Sunday, November 6, 2011

अब लाल दुलारे के हैं मुखरित अमर बोल

कृष्ण मुरारी लाल ‘मधुकर’

वह बेगमयी साहित्य-सरिता का पटु खेवट!
हो गया प्रवासी तोड़ जगत के
मोह पाश!!
नीरवता चहुं दिशि फैली लुटी बसन्त श्री!
बुझ गया अठत्तर वर्षों से
दीपित प्रकाश!!
घन घोर प्रलय के उमड़े-गरजे-यूं बरसे!
साहित्यांगन में बिजली सी
पड़ी टूट!!
है कौन कि जिसने सुरभित-सरस-सुमधुवन से
‘माधुरी’, ‘सुधा’ की मृदुता को भी लिया लूटा!!
‘दोहावली’ को भी दुख मिला भीषण अपार!
हिन्दी पर संकट पड़ा अचानक
दुर्निवार!!
मुस्कान खो गई ‘गंगा-पुस्तक-माला’ की!
अब कौन बहायेगा कविता में
सरस धार!!
वह सौम्य सरल व्यक्तित्व कलित साहित्य खम्भ!
उठ गया धरा से दे कर संचित निधि अमोल!!
फिर खोया कविता ने है अध्याय एक!
अब लाल दुलारे के हैं मुखरित अमर बोल!!-

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