Saturday, September 19, 2015

कलम, कमल और कमला 

लखनऊ , पिछले दिनों लखनऊ में एक नाटक "कमला " का मंचन हुआ था , इसे अमरउजाला  अख़बार ने छापा भी था लेकिन सिगरेट के धुंवे में दिल जलाने , लूटने-लुटाने वालो ने बिकती औरत  की हकीकत को समझने ,जानने की कोशिश नहीं की और सरेआम बढ़ती  शोहदाई समाज  को इसी ओर  धकेल रही है.हालाँकि यह हिंदी पखवाड़े के नाम पर हुआ फिर भी अच्छा प्रयास था।  मज़े की बात है की" कमला " नाट्क में कमला का किरदार एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की पत्नी ने निभाया। यहां कमला के बारे में लिखने का मकसद केवल ये है , सरकार नहीं आपके हिलने की जरूरत है  . सरेआम गोश्त की दुकान देख कर मांसाहारी गोश्त खरीदेगा ही।  सारा शहर देक्ता है खुली आँखों से मगर बोलता कोई नहीं।  पिछलेदिनो एक लरका एक किशोरी से हुसैनगंज चौराहे पर मारपीट कर रहा था , यह तमाशा लोग घंटा भर देखते रहे लेकिन कोई बोला नहीं क्योकि इन हिजड़ों के घरों में कोई लरकी नहीं होगी शायद और पुलिस हमेशा की तरह मासूम कुछ नहीं जानती। शहर के सबसे बड़े अख़बार "दैनिक जागरण " ने खबर छापी , फेसबुक पर लिखा , यहां तक मोटरबाइक का नंबर दिया गया मगर सब गणपति बप्पा मोरया के नाम पर मस्त।  आप कुछ कर सकते है।  बाइक का नंबर है उ.p. ३२ सीएल ८७८९ , पुलिस कंट्रोल कंप्लेंट नंबर पी १६ -०९ -२०१५ / १०८२४ समय ६. पीएम।  है कोई मई का लाल जो खुलासा करे ? गोया क़लम ,कमल , कमला यूँ ही बिकती ,पिटती रहेंगी ?         

Friday, September 11, 2015

राजनीति के मुहल्ले में 2017 का पंचाग

तो इस गरमी में पीने का पानी भरपूर मिलेगा और बिजली चैबीस घंटे। शहर-गांव गुलजार होंगे, रातों की नींद हराम नहीें होगी। ऐसा ऐलान किया है बिजली वाले बड़े साहब ने, जो विद्युतशास्त्र के आर्थिकज्ञान वाले घपले-घोटालों के मोटे-मोटे बहीखाते अपनी ठंडी वाली कार में रखे अशोक मार्ग से कालीदास मार्ग के लगातार, बार-बार चक्कर लगाने में मसरूफ़ हैं। इधर भूकंप और बारिश के भय से उबरे तो सूर्यदेव की भृकुटी दो दिन क्या तनी... राजधानी में त्राहिमाम.. दसियों लाख की आबादी पीने के पानी के लिए हलकान। गलियों से लेकर बहुखण्डी भवनों तक में अंधेरा पसर कर फैल गया। रक्तचाप, मधुमेह के मरीजों से लेकर स्वस्थ्य व नब्बे किलो वजन वाले भी गरमी, मच्छरों के हमलों से बेचैन। बाकी सूबे की आबादी हर साल की तरह इस साल भी भगवान भरोसे है।
नगर विकास महकमा अपने जिम्मे के काम सफाई, अतिक्रमण और विकास में पूरी मुस्तैदी से रामपुर, इटावा, आजमगढ़, मैनपुरी, कन्नौज में जुटा है। बचे हुए समय में अपने मंत्री के तोहफे वापस लाने, उनके बयान लिखने और अखबार के दफ्तरों में पहुंचाने में ब्यस्त है। और मौसम है कि पूरी तरह से बेइमानी पर अमादा। हर चैथे दिन बादल-बरखा-तूफान का तांडव। शहरों में जलभराव से लेकर मच्छरों की जनसंख्या विस्फोट के साथ संक्रामक रोगों की आमद का खतरा। गांवों में खेत-खलिहान बर्बाद, किसान मरने को मजबूर। सरकार आइजीपीएल और फैशन शो में मस्त। किसानों को मुआवजे के नाम पर इंचीटेप से नापी गई जमीन के हिसाब से हजार-पांच सौ के चेक थमाएं जा रहे हैं, वो भी बैंक से बैरंग लौट रहे हैं। अब उनकी जांच होगी। ऐसे में बर्बाद भूखा किसान फांसी के फंदे पर नहीं झूलेगा? मजा तो इस बात का है कि किसानों की तकलीफें सुनने की जगह उन्हें लाठियों से पीटा तक जा रहा है। नब्बे फीसदी किसान कर्जदार है, सिर्फ अखबारी बयानों के जरिए लगान, बिजली-पानी शुल्क ऋण माफी की बातें की जा रही है।
अस्पतालों में डाक्टर से लेकर आया, चैकीदार तक मरीजों और उनके तीमारदारों से आये दिन मारपीट कर रहे हैं। बीमारों को लूटने-ठगने के अलावा बाकायदा दवाओं, लहू और लाश के कारोबार में लगे डाॅक्टर्स सड़कों पर इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाकर सरकार को ब्लैकमेल करने के साथ अपने को वोटबैंक साबित करने की जिद ठाने है। यही जिद सूबे के वकील साहबान, निजी स्कूलों के संचालक व सरकारी स्कूलों के मास्टर साहब भी ठाने हैं। अकेले
राजधानी लखनऊ में आये दिन वकीलों के झगड़े, मारपीट की वारदातें इतने अधिक बढ़ गये हैं कि लखनऊ को दुनिया के मानचित्र पर बार-बार शर्मसार होना पड़ता है। व्यापारी नेता बनवारीलाल कंछल से कचहरी परिसर में की गई मारपीट को लखनऊ की किस रवायत या किस तहजीब से परखा जायेगा? आये दिन होने वाली वकीलों की हड़तालें और उस दौरान कानून के विद्वानों द्वारा कानून का मखौल उड़ाने के साथ हिंसक आचरण करना, कानून की किस किताब के किस पन्ने पर दर्ज है?
गरीब बच्चों के निजी स्कूलों में पढ़ने का हक नहीं है? क्या महज इसलिए कि उनकी गरीबी से अमीर बाप के बेटों को समय से पहले गरीबी से पहचान हो जाएगी या गरीब के बेटे भी अमीरों की औलादों के बराबर हो जाएंगे? इसी आशंका से ग्रस्त निजी स्कूलों के संचालक अदालत में इंसाफ की गुहार लगाने जा रहे हंै? मोटी-मोटी तनख्वाह उठाने वाले मास्टर साहबान बच्चों के पढ़ाने से अधिक राजनीति में, कोचिंग क्लास चलाने में या नकल कारोबार में साझीदारी करने में अधिक दिलचस्पी रखते हैं? यह महज आरोप नहीं है वरन् सरकारी स्कूलों के हालात इसके सच्चे गवाह हैं। एक बात और जो इससे भी अधिक कड़वी है, मेरे मित्र व उप्र सरकार के पूर्व मंत्री डाॅ0 सरजीत सिंह डंग ने ‘अखबार मेले‘ में दिये गये अपने भाषण में कही थी, ‘जो स्वंय नकल करके पास होकर जोड़-तोड़ लगाकर शिक्षक की नौकरी पा गया भला व बच्चों को क्या पढ़ाएगा और कैसी नई पीढ़ी तैयार करेगा‘।
बहरहाल, राजनीति के ‘स्लम एरिया‘ में अपने-अपने छप्परों के नीचे लिखा-पढ़ी करके या यूं कहें कि वोटरों की रजिस्ट्री अपने नाम दर्ज कराके जश्न मनाने के दौर दौरे में 2017 में होने वाले चुनावों का पंचांग और सूबे में आने वाली नई सरकार के वास्तुशास्त्र का अध्ययन जारी है। ऐसे में जो चुप रहेगा वो भीष्म पितामह की संज्ञा से निंदनीय होगा, इसलिए आदमी को और उसके नातेदारों को खबरदार करते रहना राष्ट्रधर्म होगा।

यह दौर शोशा (सोशल) इंडिया का है: पं0 हरि शंकर तिवारी

पं0 हरिशंकर तिवारी के जाननेवालों को उनका जन्मदिन याद रखने में कोई कठिनाई होनी नहीं चाहिए, क्योंकि वे सावन में पैदा हुए थे। सावन में शिव, बरखा और बाढ़ की धूम रहती है। और पूर्वांचल इन तीनों से ही निहाल रहता है। इसकी धार्मिक राजधानी काशी (बनारस) जहां शिव स्वयं रहते हैं। राजनैतिक राजधानी गोरखपुर जहां बरखा और बाढ़ के साथ इस शहर के भूगोल में खासा बदलाव आया है। नई काॅलोनियों व बहुमंजिली इमारतों के जंगल उग आये हैं। तरक्की के नाम पर अजगर की तरह पसरे ओवरब्रिज के पेट में आपाधापी मचाती नई आबादी की अराजक भीड़ की एक दूसरे से आगे निकलने की बेसब्र होड़ दिखती है और इस सब के बीच जस का तस दिखता है, गोरखनाथ मंदिर, गीता प्रेस व धर्मशाला बाजार में तिवारी जी का हाता। तीस बरस पहले भी उनसे अखबार के लिए साक्षात्कार लेने आया था और आज भी उनकी उम्र के 75 बरस पूरे होने पर बातचीत के लिए पहुंचा। वहीं बड़ा सा फाटक, बड़ा सा मैदान, सामने की ओर वही झोपड़ी, बगल में हैंडपम्प, दाहिनी ओर आवासीय परिसर के कमरों के सबसे कोने में ड्राइंगरूम कहा जाने वाला बड़ा सा कमरा। यहीं मुलाकात होती है पूर्वांचल की राजनीति के सशक्त स्तम्भ और लोकप्रिय बाबा हरिशंकर तिवारी से, और उनसे जो बातें हुईं वे आपके लिए हाजिर हैं:-
सवाल: अगले महीने आप 75 साल के हो

जाएंगे उम्र के इस पड़ाव पर कुछ खास सोंच रखते हैं या कोई विशेष कार्य करने की इच्छा रखते हैं।
जवाब: उम्र तो होती ही है बढ़ने के लिए और बढ़ती उम्र के साथ सोंच परिपक्व होती है। मैं तो आदमी के दुख-दर्द में हमेशा खड़ा रहा। पीडि़त की सेवा ही लक्ष्य था और है।
सवाल: आप काफी समय उप्र सरकार के मंत्री रहे हैं, मुलायम सिंह यादव के साथ भी उनके मंत्रीमण्डल में रहेे हैं। उस दौरान आपने गोरखपुर के विकास के लिए कुछ विशेष किया।
जवाब: सारा जिला जानता है जितना काम मैंने किया उतना शायद ही किसी ने किया। पुल, पुलिया, सड़क तो सभी बनाते हैं, मैंने भी बनवाये। एक जिले से दूसरे जिले को जोड़ने की दूरी को कम करने के साथ उन गांवों को सड़क से जोड़ने का काम किया जहां साइकिल से भी लोग नहीं जा पाते थे। जो मेरी क्षमता में था किया, बाकी जनता सब जानती है।
सवाल: आज गोरखपुर के विकास के लिए कोई विशेष सोंच या हसरत है?
जवाब: हाँ, यहां के नौजवानों को रोजगार यहीं दिलाने के लिए कागज, खाद के कारखाने लगवाने की इच्छा हमेशा रही। प्रयास मैंने किये और आज भी प्रयासरत हूँ, देखिये कब सफलता मिलती है।
सवाल: राजनीति में आने के पीछे क्या सोंच थी? घरवालों ने एतराज नहीं किया?या कोई प्रेरणास्त्रोत रहा?
जवाब: छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़ गया था। घर-परिवार और प्रेरणास्रोत सभी कुछ जनता है, फिर एतराज कैसा, बाकी जो परेशानियां आई उन्हें भी जनता के सहयोग से दूर किया।
सवाल: आपकी शिक्षा कहां से हुई? आज आप शिक्षा के प्रति कितने सजग हैं? आपने शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष कार्य किया है?
जवाब: यहीं गोरखपुर में पढ़ा और अपने क्षेत्र के नेशनल पोस्ट ग्रेजुएट काॅलेज बड़हलगंज से लेकर यहां तुलसीदास माध्यमिक विद्यालय तक कई विद्यालयों में जो बदलाव हुए हैं और उनका स्तर कितना अच्छा हुआ है, यह सर्वविदित है। लड़कियों के स्कूल के अलावा नर्सिंग शिक्षा के लिए भी प्रशिक्षण संस्था खड़ी की और आज भी इन शिक्षा के मंदिरों को उच्चस्तरीय बनाने में प्रयासरत हूँ। मैं गोरखपुर विश्वविद्यालय कार्यकारिणी से काफी लम्बे समय से जुड़ा रहा।
सवाल: आप स्वाभाव से धार्मिक हैं या यथार्थवादी? कभी मंदिर जाते हैं?
जवाब: स्वभावतः धार्मिक हूँ, मंदिर भी जाता हूँ, लेकिन कर्म की धरती पर यथार्थवादी हूँ।
सवाल: आपके जीवन में कोई भाग्यवान (लकी) रहा है?
जवाब: कभी इस बारे में सोंचा नहीं।
सवाल: आप अपने गुस्से को कैसे शान्त करते हैं?
जवाब: ऐसा अवसर आता ही नहीं फिर मैं भी आदमी हूँ।
सवाल: नितांत व्यक्तिगत सवाल है, क्या आपने कभी खाना या चाय आपने हाथ से बनाया है?
जवाब: हाँ भाई, जब मैं पढ़ता था तो यहीं अलीनगर में अपने छोटे भाई के साथ रहता था, तब ऐसे अवसर आये थे।
सवाल: आप धर्मग्रन्थ या साहित्य में क्या विशेष रूप से पढ़ना पसन्द करते हैं?
जवाब: दोनों, मैंने गीता भी पढ़ी, रामायण भी पढ़ी और उनसे प्रेरणां भी ली। उपन्यास भी पढ़े, इतिहास भी पढ़ा। समाचार-पत्र नियमित पढ़ता हूँ।
सवाल: टी.वी. देखते हैं? कुछ खास देखते हैं?
जवाब: सिर्फ समाचार।
सवाल: कभी सिनेमा हाल जाकर सिनेमा देखा?
जवाब: याद नहीं पड़ता।
सवाल: प्रदेश में बिजली-पानी पर त्राहिमाम है, जनता पर दरों में वृद्धि और पुलिसिया डंडों की दोहरी मार पड़ रही है, इस पर कोई सुझाव?
जवाब: देखिए, हर सरकार अपनी ओर से जनता को बिजली-पानी ही नहीं सभी मूलभूत सुविधाएं देना-दिलाना चाहती है, लेकिन उसके सामने तमाम समस्याएं होती हैं। बिजली पानी  की सरेआम चोरी होती है, इसको रोकने के जब-जब कदम उठाये जाते हैं, जनता सड़क पर उतर आती है। यह सच है भेदभाव होते हैं, अफसरान लापरवाही, मनमानी करते हैं या क्षेत्र विशेष को लाभ दिया जाता है, लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए जन सहयोग भी आवश्यक है। अब वैकल्पिक ऊर्जा की ओर सरकार की सोंच बढ़ी है, प्रयास करने होंगे। बावजूद इसके उत्पादन बढ़ाकर, चोरी रोककर, क्षेत्रीय पक्षपात रोककर इस ओर अच्छे कदम उठाये जा सकते हैं। एक ही अफसर को बिजली की सारी जिम्मेदारी सौंपकर निश्चिंत हो जाना ठीक नहीं है। बिजली-पानी पर गंभीरता से प्रदेश सरकार को सांेचना चाहिए।
सवाल: क्या अलग पूर्वांचल राज्य से विकास की गति को बढ़ावा मिलेगा?
जवाब: यदि ऐसा होता तो उत्तरांचल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ राज्य देश के मानचित्र पर सबसे अलग दिखते दुर्भाग्य से इन राज्यों में सिर्फ लूट का विकास हुआ है।
सवाल: राजनीति बहुत घटिया क्षेत्र है, ऐसा बहुतों की घारणां हैं, आप क्या कहेंगे?
जवाब: ऐसा नहीं है। यदि ऐसा होता तो चाणक्य, गांधी और नेहरू का नाम शायद कोई नहीं जानता।
सवाल: भारत में सामंतवादी लोकतंत्र है, आप इससे सहमत हंै? इसके मुखालिफ मुहिम चलाई जानी चाहिए?
जवाब: सामंतवादी लोकतंत्र तो हमारे समाज में लाखों बरस से है। जिस राम राज्य की दुहाई दी जाती है वहां भी यही व्यवस्था रही है। फिर जो जनता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता उसे जनता नकार देती है। इतिहास भरा पड़ा है उदाहरणों से, वर्तमान आपके सामने है।
सवाल: 2017 के विधान सभा चुनाव में चिल्लूपार से चुनाव लड़ने की तैयारी चल रही है? कोई विशेष अभियान, गठबंधन या दल में प्रवेश की मंशा?
जवाब: अभी बहुत समय है, समय आने दीजिये।
सवाल: इतनी व्यस्तताओं के बीच अपने परिवार के लिए समय निकाल पाते हैं? कोई नाराजगी या स्नेहिल क्षणों का विशेष किस्सा बताएंगे?
जवाब: समग्र जनता मेरा परिवार है, उनके बीच हर पल रहता हूँ। वे लोग नाराज हैं या खुश, यह अगर वोटों की गिनती तय करती है तो मैं कहुंगा शायद कुछ लोग नाराज हैं। मेरा प्रयास है वे भी मुझे समझें और अपनी नाराजगी बताएं मुझसे जो बन पड़ेगा जरूर करूंगा। आपने तो खुद देखा है मैं क्षेत्रवासियों के बीच कितना और कैसे समय बिताता हूँ। मैं तो अपने जानवरों के साथ, खेतों में मजदूरों के साथ भी काफी समय बिताता हूँ। अपने कुनबे के सदस्यों के साथ भी सामान्य आदमी की तरह मौका मिलते ही समय बिताता हूँ।
सवाल: आप 23 साल लगातार विधान सभा सदस्य (मंत्री भी) रहे हैं, विधान मण्डल का कोई यादगार वाकया या पल जो जनसाझा करना चाहेंगे?
जवाब: कुछ खास नहीं। जो जिम्मेदारी मिली निभाई। जो काम मिला पूरे मन से किया।
सवाल: आपको अपने जीवन में सर्वाधिक किस राजनेता ने प्रभावित किया?
जवाब: इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पं0 कमलापति त्रिपाठी, पं0 नारायण दत्त तिवारी का स्नेह रहा।
सवाल: उप्र सरकार कामकाज को लेकर कई तरह के आरोप लग रहे हैं। पत्रकार मारे जा रहे हैं, जाति विशेष के लोग न्यायालय की अवमामना तक कर रहे हैं। अपराधों की बाढ़ सी आ गई है, पुलिस सत्तादल के कार्यकर्ता जैसा आचरण कर रही है, फिर भी सरकार के मुखिया अपनी पीठ ठोंक रहे हैं, क्या इसके मुखालिफ ‘हल्ला बोल‘ आवाज देने की आवश्यकता नहीं है?
जवाब: देखिए कानून-व्यवस्था ध्वस्त होने के पीछे अकेले सरकार को दोष देने से इसमें सुधार नहीं होगा। जनता को भी अपनी सोंच बदलनी होगी। बढ़ती हुईं आबादी के साथ सामाजिक बदलावों और बाजार के आकर्षण अपराध के जन्मदाता होते हैं। अब डाकुओं का चम्बल नहीं रहा, हर गली का अपना चम्बल है। इसमें सरकारी अमला भी शामिल है। रही पत्रकारों के उत्पीड़न या किसी को भी जलाने के प्रकरण तो यह निंदनीय है। पुलिस का इकबाल उसके सियासी इस्तेमाल से कम हो रहा है। इसमें सुधार की आवश्यकता है। रही सरकार के मुखालिफ आवाज उठाने की या हल्ला बोलने की तो विपक्ष सजग है। कुछ अपवाद हमेशा होते हैं उन पर जाँच होती है, हो रही है। अपराधियों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए। कोसने से नहीं, करने से समाधान होगा। हर पीडि़त को इंसाफ दिलाने के लिए आवाज उठनी चाहिए, उठानी चाहिए।
सवाल: महंगाई लगातार बढ़ रही है, केन्द्र सरकार गरीबों की जेब से लगातार पैसे निकालने वाली योजनाओं को लागू कर रही है। पूंजी निवेश के नाम पर देशी/विदेशी अमीरों को सस् माथे पर बैठाकर ‘मेक इन इण्डिया‘ ‘डिजिटल इण्डिया‘ का नारा दिया जा रहा है। क्या इससे सवा सौ करोड़ लोगों का भला होगा, आप क्या सोंचते है?
जवाब: आपकी बात सही है। अब देखिए जिस चीन के गुणगान हो रहे थे, उसकी भी असलियत सामने आ गई। झूठ के पांव बेशक लम्बे होते हैं और चाल तेज लेकिन वे थक भी जल्दी जाते हैं। देश ने ‘इंदिरा इज इंडिया’, ‘शाइनिंग इंडिया’ के दौर देखे हैं और अब ‘शोशा (सोशल) इंडिया’ भी देख लेगी।
सवाल: मन की बात, योग, स्वच्छ भारत, निर्मल गंगा, बेटी बचाओ के साथ विदेशी संबंधों के प्रचार से किसी लाभ की संभावना दिखती है आपको या यह संघ/भाजपा की मानसिकता का आचरण कहा जाएगा?
जवाब: संघ तो अध्यापक की भूमिका में सदैव रहा है और उसके प्रचारक बातें अच्छी करते हैं लेकिन काम कितना अच्छा करेंगे उसके लिए देश की जनता ने उन्हें दूसरा अवसर दिया है। इंतजार कीजिए।

रिश्वत लो... वोट दो का नारा है बुलंद -डाॅ0 डंग

कौन करेगा देश अखण्ड.. भारतीय जनसंघ... जनसंघ...। यह नारा पचास-साठ साल पहले देश की गलियों, सड़कों पर महज गंूजता था। आज वही गूंज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सदारत में सार्थक सफलता की ओर लगातार अपने कदम बढ़ा रही है। तभी तो भारतीय जनता पार्टी के कर्मयोगियों ने अपने रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने का बाकायदा अभियान चला रक्खा है। इसी प्रयास में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के डाॅ0 सरजीत सिंह डंग को भाजपा मुख्यालय लखनऊ के बड़े से फाटक के भीतर एक बार फिर बेहद अदब से प्रवेश कराया गया। डाॅ. डंग मिर्जापुर भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे, उप्र सरकार में सार्वजनिक निर्माण, परिवहन मंत्री रहे। भाजपा के प्रवक्ता रहे। सफल चिकित्सक, मुखर राजनेता और दृष्टिसम्पन्न पत्रकार के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं। और यह सब छात्र राजनीति की कोख से जन्मा है। वे छोटी सी उम्र में ही बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के
अध्यक्ष रहे। वे लेखक भी हैं, अच्छे वक्ता भी हैं और घोर मानवतावादी हैं। उनका सहज स्नेह, सुलभता और आत्मीयता प्रथम परिचय की झिझक को ही नहीं अवस्था के भारी व्यावधान को भी समाप्त कर देता है। उन पर क़लम अक्षर दर अक्षर जनती जायेगी और उनके गुणों का बखान खत्म नहीं होगा। उनके मानसिक द्वंद
और आदमी की पीड़ा से उभरती बेचैनी से साक्षात्कार के कुछ अंश राम प्रकाश वरमा, संपादक ‘प्रियंका’ की कलम से लिखे जा रहे हैं, पाठकों के लिए:-
सवाल: घर वापसी पर अपने पुराने साथियों और तेरह साल के अंतराल में पार्टी में आये नये चेहरों के साथ कैसा अनुभव किया?
जवाब: संसार परिवर्तनशील है। साथी तो साथी होते हैं। बेशक नई पीढ़ी आई है और यह उनकी अपेक्षाओं का दौर हैं संचार साधन बढ़े हैं, उनका भरपूर उपयोग हो रहा है। इसके मायने यह कतई नहीं हैं कि वैचारिक मान्यताएं लुप्त हो रही हैं। वे कल भी थे, आज भी हैं, आगे भी रहेंगे। व्यक्तिगत संबंधों-संपर्काें का अपना महत्व है। मोदी के नाम ने एक चमत्कार किया है। चेहरे बदलते रहते हैं, आगे भी बदलेंगे, वैचारिक पृष्ठभूमि ठीक होने से भाजपा मजबूत होती चली जाएगी। और अपना घर किसे नहीं अच्छा लगता।
सवाल: आपके चुनाव क्षेत्र में भी इस बीच खासा बदलाव हुआ होगा। क्या नये सिरे से लोगों में अपने प्रति, पार्टी के प्रति विश्वास जगाने के लिए किसी कार्यक्रम की योजना है? खासकर तब जब आपके सहयोगी दल के सांसद के क्षेत्र में आपका चुनाव क्षेत्र है?
जवाब: टिकट लेने के लिए पार्टी में वापसी नहीं की, मैं तो जातिहीन, धनहीन, बाहुबलहीन हूं। आप आश्चर्य करेंगे, मेरे चुनाव क्षेत्र में ढाई लाख वोटों में सिखों के कुल 850 वोट हैं। मुझे तो पहली बार भी जबरन टिकट थमाया गया था। मैं तो
जिलाध्यक्ष था लखनऊ आया था चुनाव लड़नेवालों के नाम लेकर लेकिन मुझे ही प्रत्याशी बना दिया गया, तब लोगों के स्नेह ने विधायक बनवा दिया। पुराने संपर्कोे को ताजा करना है, नई पीढ़ी को अपने से जोड़ना है और लक्ष्य है जिले की पांचों सीटें भाजपा जीते। जनता गुंडाराज से निजात चाहती है। मजहबवाद के मुखालिफ लोगों को जागरूक करना है। इसमें जनता के साथ संचार और समाचार-पत्रों का भी सहयोग लूंगा।
सवाल: आप प्रशिक्षित चिकित्साक हैं, फिर चिकित्सा सेवा छोड़कर राजनीति में क्यों दाखिल हुए?
जवाब: दाखिल कहां हुआ, मैं तो छात्र जीवन से ही राजनीति में था। बीएचयू छात्रसंघ का अध्यक्ष मैं मेडिकल की पढ़ाई के दूसरे साल में ही हो गया था।
सवाल: राजनीति और समाज के आचारण पर बहसें होती हैं, आरोप भी लगते हैं लेकिन आदमी की सोंच पर कतई बात नहीं होती? जबकि इसी सोंच ने आदमी को हिंसक बनाने में बड़ी भूमिका अदा की है और कर रहा है। आप क्या कहते हैं?
जवाब: एकै साधै सब सधै। मेरा मतलब है, गुरू। प्रथम गुरू होती है, मां। मां ही शिक्षा/संस्कार देती है। आज वो ही दिशाहीन हो रही है। बाबा-दादी, ‘स्टोररूम का सामान’ हो गये हैं। ऐसे में बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षकों की होती है, वे भी आचरणहीन हो रहे हैं। शिक्षा प्रणाली का पतन हो रहा है। उस पर कोढ़ में खाज है, दर्जा दस तक कोई फेल नहीं होगा। नकल की खुली छूट है। दरअसल विद्यालय ज्ञान वितरण केन्द्र की जगह भोजन वितरण केन्द्र और उच्च शिक्षा में उपाधि वितरण केन्द्र बन गये हैं। गांवों में जाकर देखिये जहां गरीब अपने बच्चों को सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाता है, वहां स्कूलों में शिक्षक पढ़ाने नहीं आते, तो बच्चों की बड़ी संख्या भोजन के समय आती है, बाकी समय कक्षायें खाली रहती हैं। शिक्षकों ने बेरोजगार युवकों को अपनी जगह पढ़ाने के लिए बहुत थोड़े से पैसों पर रख रखा हैं। शिक्षकों से सरकार पढ़ाने के अलावा और ढेरों काम लेती है। यही वजह है कि बच्चों को भाषा का, गणित का ज्ञान नहीं है। तो एकल परिवार को अपनी सांेच बदलनी होगी।
सवाल: लेकिन कोई पहल तो करेगा?
जवाब: बेशक कई स्तर पर आवाजें उठ रहीं हैं। आप भी तो यही कर रहे हैं। सुधार होगा।
सवाल: उप्र में बिजली-पानी का संकट आम बात है लेकिन अपराधों के साथ गर्वाेन्नत हिंसा टहल-टहल कर भय का वातावरण पैदा कर रही है और सरकार आज बनाने और कल संवारने का दावा कर रही है। पत्रकारों की हत्या हो रही है, अफसरों को घमकाया जा रहा है। क्या ये राजकाज चलाने के सूत्र वाक्य ‘भय बिन होय न प्रीति’ का पालन सरकार कर रही है? क्या इसके संगठित पुरजोर विरोध की आवश्यकता नहीं है?
जवाब: आन्दोलन से लोग थक चुके हैं। लाशों पर राजनीति का चलन बढ़ गया है। सपा सरकार जब भी आती है तो अपराधों की बाढ़ आ जाती है। गुंडों और जाति विशेष के लोगों का आतंक बढ़ जाता है। सपा में कार्यकर्ताओं, नेताओं की प्राथमिक योग्यता ही अपराधी होना है। आप ही बताईये मृत्युपूर्व बयान (डाइंग डिक्लेक्शन) के बाद जाँच? यह तो कानून की नई परिभाषा गढ़ी जा रही हैं, यहां तो अपराधियों में वंशवाद की बेल बढ़ रही है। दुर्भाग्य से प्रेस अपराधियों के नाम छापकर उनका प्रचार मुफ्त में करती है। इसके मुखालिफ नागरिक संगठनों को आगे आना होगा, आम आदमी को संगठित होकर आवाज बुलंद करनी होगी और राजनैतिक दलों को उनके पीछे खड़े होकर उनका साथ देना होगा।
सवाल: शिक्षा और महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार का प्रचार कार्यक्रम तो बेहद तेज है, लेकिन जमीनी स्तर पर क्या दोनों जगह सुधार दिखाई देता है?
जवाब: कहावत है न कि ‘अन्धा बांटे रेवड़ी.... तो जो सपा के लोग हैं, एक जाति विशेष के लोग हैं, उन्हीं को हर स्तर पर फायदा पहुँचाया जा रहा है। सच यह है कि रिश्वत देकर लोगों को वोट के लिए फंसाया जा रहा है। थानों में कोतवाल एक जाति विशेष के तैनात हैं, थाने बेचे जा रहे हंै, भार्तियों में पैसा लिया जा रहा है। ऐसे में जो पैसा देकर नौकरी पायेगा वो जन सेवा करेगा या घर सेवा!
सवाल: आपके जीवन की कोई अविस्मरणीय घटना जिसे जन सामान्य से साझा करना चाहेंगे?
जवाब: पहली बार जब विधायक हुआ तो अपने एक मित्र के साथ रिक्शे से निशातगंज की ओर से महानगर जा रहा था। वहां रेलवे क्रासिंग पर फाटक बंद हो गया। जो लगभग बीस मिनट बंद रहा। इस दौरान दो पहिया, चार पहिया वाहनों के धुंएं से मैं परेशान हो गया। मैंेने अपने मित्र से कहा कि भविष्य में जब कभी भी उप्र में भाजपा की सरकार बनी तो यहां ओवरब्रिज जरूर बनवाऊँगा। ईश्वर की कृपा से 1992 में भाजपा की सरकार बनी और मैं पीडब्ल्यूडी विभाग का मंत्री बना। मैंने अपनी प्राथमिकता पर सेतु निगम व अन्य संबंधित लोगों लगाया तो पता चला कि वहां पर पुल नौ साल से स्वीकृत है लेकिन स्थानीय व्यापारियों के विरोध के कारण नहीं बन पा रहा है। मुझे सभी स्तर पर मना किया गया। यहां तक माननीय श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने भी मना किया कि इसे छोड़ों और काम करो। वे
प्रधानमंत्री के साथ लखनऊ के सांसद भी थे। मैंने प्रयास नहीं छोड़ा लोगों को समझाया और सफल हुआ। यही लखनऊ का पहला ऊपरगामी सेतु है। इसकी सराहना इसके लोकार्पण के समय अटलजी ने मुक्तकंठ से करते हुए मेरी पीठ ठोंकी थी।
सवाल: इसी 5 अगस्त को पं0 हरिशंकर तिवारी की 75वीं वर्षगांठ है, उनसे आपका परिचय कितना पुराना है, कुछ कहना चाहेंगेे?
जवाब: सबसे पहले उन्हें प्रणाम! ईश्वर उन्हें शतायु करे। हम पूर्वांचलवासी हैं तो स्वाभाविक परिचय यही है और काफी पहले से उनके बड़े पुत्र हमारे पास आते थे। पंडित जी जब भी मिर्जापुर आये मुझसे मिले बगैर नहीं लौटे। मैं पहली बार विधायक हुआ तो दारूलशफा में मुझे आवास मिला था। उन्होंने मुझे कहा चलिए यहां कहां रह रहे हैं, पार्क रोड पर रहिए, सब व्यवस्था हो जाएगी लेकिन मेरे क्षेत्र के लोगों की आसान पहुंच और भोजन आदि की सुलभता के बारे में उन्हें बताया और दारूलशफा में ही रहा। उनका स्नेह यथावत आज भी है।

अक्षरों के गाँव में आदमी का रोजनामचा

सच की जुबान काट लेने से सत्य गूंगा नहीं हो जाता। ईष्या की तलवारों से भी सच्चाई की हत्या नहीं की जा सकती। हां, लहूलुहान जरूर किया जा सकता है। बेशक यही किया गया। मैं एक बार फिर ‘प्रियंका’ के संरक्षक पं0 हरिशंकर तिवारी के 75 वर्ष की उम्र पूरी करने पर हकीकी अक्षरों का तोहफा भेंट करने की हिमाकत कर रहा हूँ। दरअसल पंडित जी ने सामाजिक, राजनैतिक संघर्षाें के अलावा हजारों बेरोजगारों को किसी न किसी रोजगार से जोड़ा है, जिससे उनके परिवार अमन चैन की जिंदगी बिता रहे हैं। भले ही आज वे उन्हें सम्मान देने से भी कतरा जाते हों। कईयों का तो मैं स्वयं पैरोकार रहा हूँ। कई दस-बीस साला ताजा करोड़पतियों की भी हकीकत से वाकिफ हूँ जो पंडित जी की पालकी ढोया करते थे। उन्होंने कई शिक्षा संस्थाएं खड़ी की है। जो समाज के लिए वरदान साबित हो रही हैं। भाग्य की विडंबना देखिए जिनके लिए संघर्ष किया, अपना भविष्य तक दांव पर लगाया वे ही बेगानों के नातेदार हो गये। उन्होंने स्वाभिमान, सम्मान की लड़ाई में, दीन-दुखी, पीडि़तों को इंसाफ दिलाने की लड़ाई में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। चुनाव हारना या हरवाना बड़ी बात नहीं, उन्हें इसकी परवाह भी नहीं, लेकिन मानवीय संवेदना को वोटों की गिनती के आंकड़ों में दफना देना क्या न्यायसंगत है? जो लोग उनके विरोध में हवा में अपनी मुट्ठी लहराते हैं, उनमें कई मेरे दफ्तर की सीढि़यां चढ़कर मुझसे फायदा लेने आये और लेकर गये। यहां लिखी जा रही लाइनों का आशय केवल इतना है कि लाभ भी लेंगे और फंुुफकारेंगे भी! इसी को और सहज, सरल भाषा में कहूँ तो कुछ भी बनाना (निर्माण करना) बेहद कठिन है और ध्वंस आसान।
वे आठ साल उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री रहे। भीड़ ने उनके आवास से दफ्तर तक जाम लगा रक्खा था। जिन रिश्तों से कोई पहचान तक नहीं थी वे भी पंडित जी की चैखट चूमने लगे। इस बीच एक बार उनके पार्क रोड, लखनऊ के आवास पर उनके बुलावे पर गया था। उनके विशेष कक्ष में कई लोग बैठे थे उनमें पत्रकार भी थे, एक सजी-संवरी महिला भी थीं। धीरे-धीरे लोग चले गये। मैं और वह महिला रह गये। पंडित जी ने उस महिला की ओर सवालिया निगाहों से देखा। उसने अपने पूरे परिवार का परिचय देने के बाद अपने को पंडित जी की सलहज साबित किया। रिश्ता बेहद करीबी बताने के बाद अलग बात करने का आग्रह किया। पंडित जी बोले, ‘वर्मा जी, जरा आप बाहर बैठिये, अब सलहज हैं तो इनसे बात करनी ही होगी।’ दस मिनट बाद जब वो महिला चलीं गईं तो बोले, ‘बड़ा विशाल संसार है सबकी सुननी होगी।’ सच में वे सबकी सुनते हैं। मैं उनके साथ कभी भी, कहीं भी गया, ऐसा कोई स्थान नहीं मिला, जहां तिवारी जी न रूके हों और लोगों ने उन्हें घेर न लिया हो। वे सभी के आत्मीय हैं। जोर से बोलते शायद ही किसी ने सुना हो।
साधारण धोती-कुत्र्ता पहनने वाले बेहद शिष्ट आदमी से मेरा परिचय तीस-पैंतीस बरसों का है। इस बीच पूर्वांचल की माटी को सरमाथे लगाते आदमी के दर्द से परिचय प्राप्त करते लाखों-लाख बार देखा। जमीन पर पालथी मार कर साधारण पंगत में भोजन करते भी देखा। मंत्री होकर सरकारी अमले के रूआब में भी शालीन ‘हरिशंकर’ देखा। हालांकि जब तक वे मंत्री रहे, मैं उनसे दूरी बनाए रहा। मैंने कभी भी निजी या किसी के स्वार्थ से प्रेरित होकर उन पर दबाव डालने की कोशिश नहीं की, क्यांेंकि मैं जानता था लाभ और स्वार्थ का व्याकरण अत्यंत कठिन होता है। हालांकि उस दौर में मेरे कई अपने मुझसे नाराज हो गये, लेकिन मैं अक्षरों के गांव में, अखबार की छांव में मुफलिसी की चैपाल पर आदमी के रोजनामचे में उलक्षा रहा। मुझे अच्छी तरह याद है 2007 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 1 मार्च के ‘प्रियंका’ के मुख्यपृष्ठ पर ‘मुलायम की छुट्टी’ ओर ‘सन्यासी सरगना’ रपटें छापी थीं। उसमें लिखा गया अक्षरशः सच हुआ था। उस सच ने पंडित जी के विश्वास को ठेस पहुंचाई थी फिर भी चुनाव बाद सबसे पहले उन्होंने मुझे याद किया था और उस पर चर्चा भी की थी।
और अन्त में इतना ही कहुंगा पूर्वांचल के इस परशुराम के मन में बहुत कुछ करने की इच्छा है, लेकिन उनके अपने ही उनकी राह में रोड़ा है। यही वजह है कि पूर्वांचल विशेषतः गोरखपुर, बस्ती से पलायन, पराधीनता और पानी (बाढ़) का शाप नहीं हट पा रहा। मेरी बात कटु हो सकती है। लेकिन
जो बात धारदार है, वो रू-ब-रू कहो।
वरना बिखेर देंगे ये जालिम दुभाषिये।।
इन्हीं लाइनों के साथ श्रद्धेय पं0 हरिशंकर तिवारी जी को उनके 76वें जन्मदिवस व 75वीं वर्षगांठ पर प्रणाम!