Friday, September 11, 2015

रिश्वत लो... वोट दो का नारा है बुलंद -डाॅ0 डंग

कौन करेगा देश अखण्ड.. भारतीय जनसंघ... जनसंघ...। यह नारा पचास-साठ साल पहले देश की गलियों, सड़कों पर महज गंूजता था। आज वही गूंज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सदारत में सार्थक सफलता की ओर लगातार अपने कदम बढ़ा रही है। तभी तो भारतीय जनता पार्टी के कर्मयोगियों ने अपने रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने का बाकायदा अभियान चला रक्खा है। इसी प्रयास में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के डाॅ0 सरजीत सिंह डंग को भाजपा मुख्यालय लखनऊ के बड़े से फाटक के भीतर एक बार फिर बेहद अदब से प्रवेश कराया गया। डाॅ. डंग मिर्जापुर भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे, उप्र सरकार में सार्वजनिक निर्माण, परिवहन मंत्री रहे। भाजपा के प्रवक्ता रहे। सफल चिकित्सक, मुखर राजनेता और दृष्टिसम्पन्न पत्रकार के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं। और यह सब छात्र राजनीति की कोख से जन्मा है। वे छोटी सी उम्र में ही बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के
अध्यक्ष रहे। वे लेखक भी हैं, अच्छे वक्ता भी हैं और घोर मानवतावादी हैं। उनका सहज स्नेह, सुलभता और आत्मीयता प्रथम परिचय की झिझक को ही नहीं अवस्था के भारी व्यावधान को भी समाप्त कर देता है। उन पर क़लम अक्षर दर अक्षर जनती जायेगी और उनके गुणों का बखान खत्म नहीं होगा। उनके मानसिक द्वंद
और आदमी की पीड़ा से उभरती बेचैनी से साक्षात्कार के कुछ अंश राम प्रकाश वरमा, संपादक ‘प्रियंका’ की कलम से लिखे जा रहे हैं, पाठकों के लिए:-
सवाल: घर वापसी पर अपने पुराने साथियों और तेरह साल के अंतराल में पार्टी में आये नये चेहरों के साथ कैसा अनुभव किया?
जवाब: संसार परिवर्तनशील है। साथी तो साथी होते हैं। बेशक नई पीढ़ी आई है और यह उनकी अपेक्षाओं का दौर हैं संचार साधन बढ़े हैं, उनका भरपूर उपयोग हो रहा है। इसके मायने यह कतई नहीं हैं कि वैचारिक मान्यताएं लुप्त हो रही हैं। वे कल भी थे, आज भी हैं, आगे भी रहेंगे। व्यक्तिगत संबंधों-संपर्काें का अपना महत्व है। मोदी के नाम ने एक चमत्कार किया है। चेहरे बदलते रहते हैं, आगे भी बदलेंगे, वैचारिक पृष्ठभूमि ठीक होने से भाजपा मजबूत होती चली जाएगी। और अपना घर किसे नहीं अच्छा लगता।
सवाल: आपके चुनाव क्षेत्र में भी इस बीच खासा बदलाव हुआ होगा। क्या नये सिरे से लोगों में अपने प्रति, पार्टी के प्रति विश्वास जगाने के लिए किसी कार्यक्रम की योजना है? खासकर तब जब आपके सहयोगी दल के सांसद के क्षेत्र में आपका चुनाव क्षेत्र है?
जवाब: टिकट लेने के लिए पार्टी में वापसी नहीं की, मैं तो जातिहीन, धनहीन, बाहुबलहीन हूं। आप आश्चर्य करेंगे, मेरे चुनाव क्षेत्र में ढाई लाख वोटों में सिखों के कुल 850 वोट हैं। मुझे तो पहली बार भी जबरन टिकट थमाया गया था। मैं तो
जिलाध्यक्ष था लखनऊ आया था चुनाव लड़नेवालों के नाम लेकर लेकिन मुझे ही प्रत्याशी बना दिया गया, तब लोगों के स्नेह ने विधायक बनवा दिया। पुराने संपर्कोे को ताजा करना है, नई पीढ़ी को अपने से जोड़ना है और लक्ष्य है जिले की पांचों सीटें भाजपा जीते। जनता गुंडाराज से निजात चाहती है। मजहबवाद के मुखालिफ लोगों को जागरूक करना है। इसमें जनता के साथ संचार और समाचार-पत्रों का भी सहयोग लूंगा।
सवाल: आप प्रशिक्षित चिकित्साक हैं, फिर चिकित्सा सेवा छोड़कर राजनीति में क्यों दाखिल हुए?
जवाब: दाखिल कहां हुआ, मैं तो छात्र जीवन से ही राजनीति में था। बीएचयू छात्रसंघ का अध्यक्ष मैं मेडिकल की पढ़ाई के दूसरे साल में ही हो गया था।
सवाल: राजनीति और समाज के आचारण पर बहसें होती हैं, आरोप भी लगते हैं लेकिन आदमी की सोंच पर कतई बात नहीं होती? जबकि इसी सोंच ने आदमी को हिंसक बनाने में बड़ी भूमिका अदा की है और कर रहा है। आप क्या कहते हैं?
जवाब: एकै साधै सब सधै। मेरा मतलब है, गुरू। प्रथम गुरू होती है, मां। मां ही शिक्षा/संस्कार देती है। आज वो ही दिशाहीन हो रही है। बाबा-दादी, ‘स्टोररूम का सामान’ हो गये हैं। ऐसे में बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षकों की होती है, वे भी आचरणहीन हो रहे हैं। शिक्षा प्रणाली का पतन हो रहा है। उस पर कोढ़ में खाज है, दर्जा दस तक कोई फेल नहीं होगा। नकल की खुली छूट है। दरअसल विद्यालय ज्ञान वितरण केन्द्र की जगह भोजन वितरण केन्द्र और उच्च शिक्षा में उपाधि वितरण केन्द्र बन गये हैं। गांवों में जाकर देखिये जहां गरीब अपने बच्चों को सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाता है, वहां स्कूलों में शिक्षक पढ़ाने नहीं आते, तो बच्चों की बड़ी संख्या भोजन के समय आती है, बाकी समय कक्षायें खाली रहती हैं। शिक्षकों ने बेरोजगार युवकों को अपनी जगह पढ़ाने के लिए बहुत थोड़े से पैसों पर रख रखा हैं। शिक्षकों से सरकार पढ़ाने के अलावा और ढेरों काम लेती है। यही वजह है कि बच्चों को भाषा का, गणित का ज्ञान नहीं है। तो एकल परिवार को अपनी सांेच बदलनी होगी।
सवाल: लेकिन कोई पहल तो करेगा?
जवाब: बेशक कई स्तर पर आवाजें उठ रहीं हैं। आप भी तो यही कर रहे हैं। सुधार होगा।
सवाल: उप्र में बिजली-पानी का संकट आम बात है लेकिन अपराधों के साथ गर्वाेन्नत हिंसा टहल-टहल कर भय का वातावरण पैदा कर रही है और सरकार आज बनाने और कल संवारने का दावा कर रही है। पत्रकारों की हत्या हो रही है, अफसरों को घमकाया जा रहा है। क्या ये राजकाज चलाने के सूत्र वाक्य ‘भय बिन होय न प्रीति’ का पालन सरकार कर रही है? क्या इसके संगठित पुरजोर विरोध की आवश्यकता नहीं है?
जवाब: आन्दोलन से लोग थक चुके हैं। लाशों पर राजनीति का चलन बढ़ गया है। सपा सरकार जब भी आती है तो अपराधों की बाढ़ आ जाती है। गुंडों और जाति विशेष के लोगों का आतंक बढ़ जाता है। सपा में कार्यकर्ताओं, नेताओं की प्राथमिक योग्यता ही अपराधी होना है। आप ही बताईये मृत्युपूर्व बयान (डाइंग डिक्लेक्शन) के बाद जाँच? यह तो कानून की नई परिभाषा गढ़ी जा रही हैं, यहां तो अपराधियों में वंशवाद की बेल बढ़ रही है। दुर्भाग्य से प्रेस अपराधियों के नाम छापकर उनका प्रचार मुफ्त में करती है। इसके मुखालिफ नागरिक संगठनों को आगे आना होगा, आम आदमी को संगठित होकर आवाज बुलंद करनी होगी और राजनैतिक दलों को उनके पीछे खड़े होकर उनका साथ देना होगा।
सवाल: शिक्षा और महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार का प्रचार कार्यक्रम तो बेहद तेज है, लेकिन जमीनी स्तर पर क्या दोनों जगह सुधार दिखाई देता है?
जवाब: कहावत है न कि ‘अन्धा बांटे रेवड़ी.... तो जो सपा के लोग हैं, एक जाति विशेष के लोग हैं, उन्हीं को हर स्तर पर फायदा पहुँचाया जा रहा है। सच यह है कि रिश्वत देकर लोगों को वोट के लिए फंसाया जा रहा है। थानों में कोतवाल एक जाति विशेष के तैनात हैं, थाने बेचे जा रहे हंै, भार्तियों में पैसा लिया जा रहा है। ऐसे में जो पैसा देकर नौकरी पायेगा वो जन सेवा करेगा या घर सेवा!
सवाल: आपके जीवन की कोई अविस्मरणीय घटना जिसे जन सामान्य से साझा करना चाहेंगे?
जवाब: पहली बार जब विधायक हुआ तो अपने एक मित्र के साथ रिक्शे से निशातगंज की ओर से महानगर जा रहा था। वहां रेलवे क्रासिंग पर फाटक बंद हो गया। जो लगभग बीस मिनट बंद रहा। इस दौरान दो पहिया, चार पहिया वाहनों के धुंएं से मैं परेशान हो गया। मैंेने अपने मित्र से कहा कि भविष्य में जब कभी भी उप्र में भाजपा की सरकार बनी तो यहां ओवरब्रिज जरूर बनवाऊँगा। ईश्वर की कृपा से 1992 में भाजपा की सरकार बनी और मैं पीडब्ल्यूडी विभाग का मंत्री बना। मैंने अपनी प्राथमिकता पर सेतु निगम व अन्य संबंधित लोगों लगाया तो पता चला कि वहां पर पुल नौ साल से स्वीकृत है लेकिन स्थानीय व्यापारियों के विरोध के कारण नहीं बन पा रहा है। मुझे सभी स्तर पर मना किया गया। यहां तक माननीय श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने भी मना किया कि इसे छोड़ों और काम करो। वे
प्रधानमंत्री के साथ लखनऊ के सांसद भी थे। मैंने प्रयास नहीं छोड़ा लोगों को समझाया और सफल हुआ। यही लखनऊ का पहला ऊपरगामी सेतु है। इसकी सराहना इसके लोकार्पण के समय अटलजी ने मुक्तकंठ से करते हुए मेरी पीठ ठोंकी थी।
सवाल: इसी 5 अगस्त को पं0 हरिशंकर तिवारी की 75वीं वर्षगांठ है, उनसे आपका परिचय कितना पुराना है, कुछ कहना चाहेंगेे?
जवाब: सबसे पहले उन्हें प्रणाम! ईश्वर उन्हें शतायु करे। हम पूर्वांचलवासी हैं तो स्वाभाविक परिचय यही है और काफी पहले से उनके बड़े पुत्र हमारे पास आते थे। पंडित जी जब भी मिर्जापुर आये मुझसे मिले बगैर नहीं लौटे। मैं पहली बार विधायक हुआ तो दारूलशफा में मुझे आवास मिला था। उन्होंने मुझे कहा चलिए यहां कहां रह रहे हैं, पार्क रोड पर रहिए, सब व्यवस्था हो जाएगी लेकिन मेरे क्षेत्र के लोगों की आसान पहुंच और भोजन आदि की सुलभता के बारे में उन्हें बताया और दारूलशफा में ही रहा। उनका स्नेह यथावत आज भी है।

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