Wednesday, July 6, 2011

जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है

जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है... जैसा आक्रोषित नारा किसी ‘रोड शो’ का शोर भर नहीं है, बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश के आहत विपक्ष की बुलन्द आवाज है। लाठियों और गोलियों की मार से घायल किसानों, मजदूरों की पीड़ा से भरी-पुरी चीख है। राजनैतिक रंगमंच पर लगातार उभरते दबंग दृश्यों के बीच बोले जाने वाले संवादों का प्रति उत्तर है। भट्टा-परसौल से लेकर लखनऊ के राजमार्ग पर फैले खून से लिखी गई इबारत है। यह एक दिन की देन नहीं है। पिछले चार सालों से लूटों और राज करो, विरोधियों का नाश करो, समस्याओं का ठीकरा दूसरों के सर फोड़ दो के चलते चुनावों का टेंडर पड़ने के ऐन पहले की तैयारी भी है। इसमें पिछले महीने की घटनाओं-दुर्घटनाओं ने कांग्रेस को शानदार मौका दे दिया। कांग्रेस उप्र में पिछले 23 वर्षों से अपनी निकासी की पूर्ति का मुहूर्त तलाश रही थी। कई बार कांग्रेस के तारणहार राहुल गांद्दी दलितों के दरवाजे, युवाआंे की भीड़ में, बुन्देलखण्ड की गर्म चट्टानों पर प्यासे लोगों के बीच जाकर भी सूबे के मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर सके। आकर्षण ही नहीं बल्कि भरोसा भी जीतने में कामयाब रहा राहुल गांधी का भट्टा-परसौल का सफर। बेशक वहां किसानों पर जुल्म हुआ। इसके मुखालिफ सबसे पहले राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौ0 अजीत सिंह अपने सांसद बेटे जयंत चौधरी के साथ भट्टा जाते नोएडा गेट पर रोके गए। भाजपा का भी एक प्रतिनिधि मंडल जो कैलाश अस्पताल में घायल पुलिस व प्रशासनिक कर्मियों से मिलकर नोएडा जाते समय पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया।
    किसानों पर पुलिसिया दबंगई के 90 घंटों बाद राहुल गांधी तमाम कांग्रेसी नेताओं के साथ भट्टा पहुंचे और किसानों व उनके परिवार के साथ 17 घंटे बैठे रहे। यह खबर मीडिया के लिए जहां सनसनीखेज व बिकाऊ थी, वहीं उप्र सरकार और उसकी मुखिया के लिए चिंताजनक। भाजपा और सपा के लिए बेहद तकलीफदेह। यहीं सरल बीजगणित के नियमों के पाठ्यक्रम तलाशे गये। उनमें हल न मिलने पर सरकारी पुलिस ने अपनी आका के इशारे पर राहुल को पुलिसिया घेरे में लेकर दिल्ली का रास्ता दिखा दिया। राहुल गांधी के साथ इस दौरान पुलिसिया शिष्टाचार उनकी गरिमा के अनुरूप नहीं रहने से कांग्रेसी नाराज हो गये। नतीजे में सारे सूबे में कांग्रेसियों ने विरोध जताया। एक बार फिर लखनऊ में सरकारी पुलिस ने उप्र कांग्रेस अध्यक्षा रीता बहुगुणा के साथ बदसलूकी की, यह सारा घटनाक्रम कांग्रेस के हक में रहा। भाजपा और सपा की तमाम कसरत जो कई महीनों से जारी थी, पर पानी फिर गया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके राजनाथ सिंह ने बेचैन होकर गाजियाबाद में धरना देकर अपनी गिरफ्तारी दी, तो सपा ने बयान जारी करके अपनी खिसियाहट मिटाई।
    राजनीति के हाशिए पर ढकेल दिए गए भाजपा व कांग्रेस के नेता जहां अपनी पुर्नस्थापना के लिए जूझ रहे हैं, वहीं समाजवादी पार्टी हर हाल में 13 मई 2012 से अगले पांच सालों तक उप्र में राज करने के लिए बजिद है। बदलाव के लिए उप्र का मतदाता भी बेचैन है। यह बेचैनी यूं ही नहीं है। लगातार हो रहीं हत्याएं, बलात्कार, दलितों पर अत्याचार, जमीनों पर दबंगों/माननीयों के कब्जे, सत्तादल के विधायकों/मंत्रियों / सांसदों के अपराधी साबित होने, जेल जाने जैसी घटनाओं के साथ विकास के प्रचार का हल्ला इसके पीछे हैं। घपले-घोटालों के अलावा बसपा मुखिया का हर समस्या का दूसरे दलों पर पलटवार भी नारजगी की वजह बनी। इसी नाराजगी की चिंगारी को हवा देने के लिए विपक्ष बेचैन है।
    बसपा से दलित नाराज है। विश्वास करना मुमकिन नहीं। है, मगर यह सच। दलितों की सरकार से दलित क्यों बेजार हैं? यह उनकी झोपड़ियों के भीतर झांककर देखने से पता लगता है। दबंगों की सताई दलित औरत अपनी नंगी देह पर उग आए अपमान के फफोलों को देखकर फफक रही है। महीनों बेगार करने के बाद हथेली पर कोई सिक्का नहीं गिरने से दलितों की झोपड़ियों में चूल्हे के पास कुत्ते अपनी नींद पूरी कर रहे हैं। स्वाभिमान के नाम पर लगातार उन्हें ठगा जा रहा है। यह ठगी उनके अपने पार्टी कैडर के लोग चंदे के नाम पर, नौकरी लगवाने के नाम पर या ऐसी ही छोटी-छोटी जरूरतों को पूरी करने के नाम पर हो रही है। एक छोटी सी घटना फैजाबाद जनपद की है। एक विधायक जी अपने क्षेत्र के दलितों का हाल जानने पहुंचे। सभी से नाम लेकर उसका दुःख-सुख पूंछ रहे थे, तभी एक बूढ़ा सामने आया और बोला -‘विधायक जी हमार बकरी चोरी होइगै है।’ विद्दायक जी ने पूंछा, ‘कैसे?’ उसने बताया कल यहीं पास में बसपा कार्यकर्ताओं की बैठक थी। उसमें भाग लेने आए लोग मेरी बकरी उठा ले गए। मेरी बच्ची ने शोर मचाया तो उसे बहुत मारा। गांव का ही एक दबंग अब मेरी बच्ची को उठा ले जाने की धमकी दे रहा है। विधायक जी ने महज उसे आश्वासन भर दिया। ऐसी ही लाखों घटनाएं उप्र के गांव-गलियों से निकलकर सूबे भर में नाराजगी पैदा कर रही है।
    कानून-व्यवस्था सम्भालने वाले चेहरों पर किसी भी घटना से कोई शिकन नहीं पड़ती। सूबे से सटी नेपाल सीमा से अनाज की तस्करी से लेकर आदमी की तस्करी तक बेखौफ जारी है और सीतापुर की रामकली भूख से दम तोड़ देती है, जिसे डॉक्टर दमे का मरीज बता देते हैं। जमीनों के अद्दिग्रहण के विरोध में चार सालों में एक सैकड़ा से अधिक किसान पुलिसिया प्रताड़ना में मारे गए। भट्टा-परसौल को लेकर जो हंगामा बरपा या उस पर राहुल गांधी की आवाज पर प्रदेशवासियों का आंदोलित हो जाना केवल विपक्ष का करतब भर है? कतई नहीं! यह बदलाव की बयार है।

यूपी में रेप-मर्डर एटीएम...

लखनऊ। गुंडों की छाती रौंदकर आने वाली सर्वजन सरकार और उसकी दलित मुखिया की आमद के महज सौ दिनों बाद से ही सूबे के जन जीवन को हिंसा के खूनी पंजों ने लहूलुहान करना शुरू कर दिया था। आज पन्द्रह सौ दिनों बाद हालात इतने बदतर हो गये हैं कि हर आठ घंटे में एक हत्या और एक औरत की आबरू लुटने जैसी पारिश्वकता हो रही है। छोटी से छोटी बात को भी ताकत से निपटाने की खबरें दहशत पैदा कर रही हैं। कहीं दहेज के लिए कहीं मौज-मस्ती के लिए, कहीं जमीन के एक छोटे से टुकड़े के लिए, कहीं झूठे स्वाभिमान के लिए, तो कहीं सरकारी पैसों की लूट के लिए बेखौफ एक दूसरे का खून बहाया जा रहा हैं। हद तो यह है कि पुलिस की हवालात और हजारों सुरक्षाकर्मियों से घिरी जेलों में लोग मरे जाते हैं। सच तो यह है कि हिंसक वारदातों को बेखटके वक़्त-बे-वक़्त अंजाम देने के लिए दुर्दान्तों ने बाकायदा ‘क्राइम एटीएम’ लगा दिया है, तभी तो अकेले राजधानी में तीस दिन में 26 हत्याएं और दर्जन भर से अधिक औरतें बेइज्जत हो जाती हैं। दलितों, महिलाओं को सम्मान दिलाने का नारा बुलंद करने वाली सरकार को उप्र के राजसिंहासन पर बैठानेवाले मतदाताओं ने कम से कम ऐसा सपना नहीं देखा था कि आदमी की पीड़ा से चीखने वालों को पुलिस की लाठियों से पिटवाया जाएगा। विपखी दलों के संवैधानिक अधिकारों को पुलिसिया हिंसा का शिकार होना पड़ेगा। आखिर महात्मा बुद्ध और अंबेडकर को सरमाथे लगाने वालों की अगुवई में इस सूबे को हिंसा की अंधेरी सुरंग में कौन धकेल रहा हैं?
    डॉक्टरों, इंजीनियरों की हत्याओं की ‘हैट्रिक’ बनानेवाले हाथ कौन जाने कब किसका गला घोंटने को सामने आ जाएं, कोई नहीं जानता। यह कैसा विकास है, जहां हिंसा फुफकार रही है? आखिर इससे निबटने के लिए सरकार झूठे, मनगंढ़त बयानों के अलावा दरहकीकत क्या करने जा रही है? ये सवाल जितने जरूरी है, उतने ही कठिन भी। क्योंकि यह चुनावी वर्ष है और सूबे का 17 करोड़ मतदाता सरकार के जवाब के बाद ही अगली सरकार के लिए फैसलाकुन होगा।

Tuesday, July 5, 2011

महाभारत 2012 में तीन महारानियां

लखनऊ। राजनैतिक महाभारत में वोटों को हथियाने की जंग लगातार उप्र में तेज होती जा रही है। और इसमेंतीन महारानियोंकी भूमिका बेहद अहम है। यह महज इत्तफाक नहीं है। सोची-समझी रणनीति के तहत उप्र विधान सभा चुनाव 2012 के लिए ऐसा किया जा रहा है। सियासी पैंतरेबाज मुख्यमंत्री मायावती को शिकस्त देने की गरज से उनके सामने तुर्की-बतुर्की जवाब देने के लिए जहां कांग्रेस अपने प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा को लाख मनमुटावों, आरोपों गुटबाजी के बाद भी नहीं हटा रही, वहीं भाजपा जलते-उबलते शब्दों के जरिये हमलावर होनेवाली साध्वी उमा भारती को उप्र में उतार चुकी है।
            इन तीनों महिलाओं में कोई समानता नहीं है और ही तीनों ने कभी एक साथ बैठकर एक कप कॉफी पी होगी। हां, ये तीनों ही यदि आमने-सामने हांे तो सूबे की सियासत का ज्वालामुखी निश्चितरूप से फट सकता है। तीनों की भाषा, भूषा और विचारधारा एकदम अलग है, यहां तक उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी। एक ब्राह्मण, दूसरी पिछड़े समाज से, तो तीसरी दलित। अजीब इत्तफाक है कि तीनों ही उप्र से बाहर की रहनेवाली लेकिन उनकी राजनैतिक कर्मभूमि आज एक ही है।
            इनमें रीता बहुगुणां सबसे उम्रदराज 61 वर्ष की हैं। उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणां देश की राजनीति में ख्यातिनाम थे और उप्र के मुख्यमंत्री रहने के साथ सत्ता के केन्द्र में रहे। उनके गुण स्वभाविक तौर पर उनकी पुत्री में है। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रही हैं। उन्हें जुझारूपन के साथ सियासी शतरंज पर अच्छी बिसात बिछाने का गुर विरासत में मिला है। वे जहां अच्छी वक्ता हैं, वहीं जोश की आग में शब्दों को गरम करने से भी नहीं चूकतीं। इसी अंदाज के चलते मिलनसार और संवेदनाओं से भरपूर रीता दो साल पहले मुरादाबाद की एक सभा में मुख्यमंत्री मायावती पर सख्त टिप्पणी कर बैठी थी। हालांकि इस पर तुरंत बाद माफी भी मांगी थी, लेकिन उन्हें इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी। उनको उसी रात गिरफ्तार किया गया। उनके साथ पुलिस ने भी शालीनता नहीं बरतीं उनके लखनऊ आवास को बीएसपी कार्यकर्ताओं के गुस्से का शिकार होना पड़ा। वे शादी शुदा संपूर्ण गृहिणी होने के साथ शाकाहारी हैं। उनका पसंदीदा पहनावा सूती सिल्क की साड़ियां हैं। उनके द्वारा किये जा रहे संघर्ष से सूबे में कांग्रेस का दबदबा बढ़ा है।
            मायावती 1956 में दिल्ली में एक साधारण दलित परिवार में जन्मी। उन्हें कांशीराम राजनीति में लाये थे। आज 55 वर्षीय मायावती बहुजन समाज पार्टी की सर्वेसर्वा और उप्र की मुख्यमंत्री हैं। प्रदेश की राजनीति में वे पहली तेज-तर्रार दलित महिला है। उनके चुनौतीपूर्ण भाषणों और अदम्य साहसी अंदाज से विरोधी भी घबराते हैं। वे अपने विरोधियों को करारा जवाब देने के लिए जानी जाती है। वे अपने निजी जीवन में दखलंदाजी की इजाजत किसी को भी नहीं देतीं। उनकी मित्रता का दावा शायद ही कोई कर सके। हां इसी फरवरी में प्रदेश के समीक्षा निरीक्षण पर निकली मायावती की मुलाकात एक पुरानी मित्र से बागपत मंे हो गई थी।
            मायावती की कभी मकान मालकिन और नजदीकी सहेली रही डॉ. दयावती ने सोचा भी नहीं था कि अचानक इस तरह उनसे मुलाकात हो जाएगी, अगर होगी भी तो वह पहचान जाएंगी। डॉ. दयावती बागपत में जिला कुष्ठ रोग अधिकारी के पद पर तैनात थीं। सीएचसी के निरीक्षण के दौरान दोनों का आमना-सामना हुआ। उनके नमस्कार करते ही मायावती फौरन उन्हें पहचान गई। निरीक्षण के बीच ही दोनों पुरानी सहेलियों के बीच गुफ्तगू हुई। सूबे की मालकिन अपनी पुरानी मकान मालकिन को देख कुछ पल के लिए सब कुछ भूल गई।
            बकौल दयावती, मायावती ने 1976-78 के दौरान उनके मायके रैदासपुरी, मुजफ्फरनगर में पार्टी गतिविद्दियों के लिए किराये पर कमरा ले रखा था। उन दिनों मायावती से उनकी अच्छी दोस्ती थी, साथ खाती-सोती थीं, तमाम मुद्दों पर रात भर बातें होती रहती थीं। कुछ दिनों बाद दयावती की शादी नोएडा में हो गयी। माया के मुख्यमंत्री बनने पर लखनऊ जाकर कई बार मिलने की कोशिश की, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी।
            वे सादा शाकाहारी भोजन परम्परागत सलवार-कुर्ता पसन्द करनेवाली हैं। उनके पहनावे को दलित युवतियां भी गर्व से अपनाती हैं। उन्हें 2012 के चुनावों में जहां नाराज वोटरों को मनाने की मशक्कत करनी है, वहीं अपने वोट बैंक को सम्भाले रखने की भी चुनौती है।
            51 साल की उमा भारती को भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के उप्र में कराये गये सर्वे के नतीजें और लालकृष्ण आडवाणी के दबाव में उप्र की राजनीति में रोपा गया है। मध्य प्रदेश की सियासत से ठुकराई हुई उमा को भाजपा उप्र में मायावती के मुखालिफ इस्तेमाल करके अपनी पारंपरिक छवि हिंदुत्व को जहां पुख्ता करने के ख्वाब देख रही है, वहीं पिछड़ों का वोट हासिल करने का गणित भी हल करना चाहती है। उसे उम्मीद है कि उमा भारती पार्टी के वोटों में 4 से 6 फीसदी वोटों का इजाफा कर सकती हैं क्योंकि पार्टी के पास कल्याण सिंह को खाने के बाद पिछड़ों का कोई बड़ा चेहरा नहीं था, इसलिए उमा इस लिहाज से पार्टी के लिए तारणहार साबित हो सकती है। इतना ही नहीं भाजपा के दिग्गज नेताओं का सोचना है कि उमा की आक्रामक शैली सूबे में जहां लोध वोट उसके खाते में जमा कराएगी, वहीं हिंदुत्व की धार भी पैनी होगी जिससे पार्टी को बड़ा लाभ होगा। हालांकि 2009 के लोकसभा चुनावों में उनकी कर्मभूमि मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। वे मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। सन्यासिन उमा संगीत प्रेमी और उम्दा भोजन की शौकीन हैं, उनके दोस्तों का दायरा भी अच्छा है।
            बहरहाल, 2012 के चुनावी महाभारत में इनतीन महारानियोंकी मौजूदगी उप्र के मतदाताओं को कितना लुभाएगी? कितना डराएगी? कितना सताएगी? यह आने वाला समय बताएगा।

जारी है सियासत और जुर्म का भाईचारा

लखनऊ। सियासत और जुर्म के भाईचारे ने उप्र में एक नई इबारत लिखकर जनतंत्र के चेहरे को जहां दागदार बनाया है, वहीं अपराधियों का हौसला भी बुलन्द हुआ है। पिछले दस सालों में हुए अपराद्दों के आंकड़े इसके गवाह हैं। हाल ही में सैफी हत्याकांड में गिरफ्तार बसपा विद्दायक इंतजार आब्दी उर्फ बॉबी से लेकर समाजवादी फूलन देवी तक सभी सियासी दलों की कथनी करनी का फर्क सामने है। ताजा घटनाक्रम वाराणसी के बेनियाबाग मेंगुलामी छोड़ो-समाज जोड़ोंरैली के जरिये शुरू हुआ। यह रैली यूं तो आठ छोटे क्षेत्रीय दलों के संयुक्त मोर्चे के झंडे के नीचे हुई। इस मोर्चे में भी पीस पार्टी के मो0 अय्यूब हाजिर थे। मोर्च के असली कर्त्ताधर्त्ता पूर्व सांसद और मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी हैं। अफजाल की रहनुमाई में कौमी एकता पार्टी का गठन कुछ माह पहले हुआ था।
            गौरतलब है, विधानसभा चुनाव मई, 2012 तक हो जाने है, यही वजही है कि सूबे में बाहुबलियों ने अपने लिए सुरक्षित दलों की तलाश करनी शुरू कर दी है। वहीं अपराध और अपराधियों की छद्म निंदा करने वाले राजनेता भी अपराधियों की खुशामद में लग गए है। राजनीतिक दल सिर्फ उन्हें प्रत्याशी बना रहे हैं, बल्कि उनके कहने पर उनके करीबियों को भी प्रत्याशी बना रहे है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के बनारस में माफिया विधायक अजय राय से सम्मान लेने के बाद कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता प्रमोद तिवारी के प्रयास से पार्टी में आएं बस्ती के बाहुबली नेता राणा कृष्ण किंकर सिंह ने कांग्रेस की सोंच उजागर कर दी। इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने संतकबीर नगर के शिक्षा माफिया जय चौबे को शामिल कर निष्ठावान कार्यकर्ताओं के सामने समस्या खड़ी कर दी है। जबकि इसी पार्टी से कई बाहुबली रहे सत्ता के गलियारों में है।
            राज्य की बहुजन समाजपार्टी की सरकार को अपराधियों की सरकार कहने वाले मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं रही। इसने कवित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में जेल काट रहे पार्टी विधायक अमरमणि के पुत्र अमनमणि को महाराजगंज की फरेंदा सीट से प्रत्याशी बनाया है जबकि मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके मुख्यसचिव रहे अखंड प्रताप सिंह जिन्हें भ्रष्टाचार के मामले में पद छोड़कर जेल जाना पड़ा था। उनकी बेटी जूही सिंह को लखनऊ पूर्वी से प्रत्याशी बनाया है।
            सपा सरकार में राज्य के एडीजीपी राय उमापति राम की गाड़ियों को ओवरटेक कर सुर्खियों में आए माफिया अभय सिंह को सपा ने फैजाबाद की गोसाईगंज सीट से प्रत्याशी बनाया है। सपा के टिकट पर मिर्जापुर से संसद पहुंचे कुख्यात डकैत ददुआ के भाई बाल कुमार के बाद अब पार्टी ने ददुआ के बेटे बीर सिंह को चित्रकूट से विद्दानसभा पहुंचाने की तैयारी कर ली है। गुंडों की छाती से होकर सत्ता में पहुंची मुख्यमंत्री मायावती ऐसी पहली नेता हैं जो राज्य प्रमुख की कुर्सी पर बैठने के बाद अपने ही दल के सर्वाधिक सांसद, मंत्रियों और विधायकों को जेल पहुंचाने का रिकार्ड रखती है।
            सांसद रमाकांत से लेकर राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त इंतजार आब्दी समेत दर्जन भर से अधिक विधायक इस जमात में शामिल हैं जो हत्त्या, बलात्कार, हत्या का प्रयास आदि मामलों में जेल काट रहे हैं। आश्चर्य यह है कि पिछले लोकसभा 2009 के चुनाव में भारी संख्या में अपराधियों के पराजित होने के बाद भी राजनीतिक दल माफियाओं के पीछे भाग रहे हैं।

बलात्कार! बलात्कार!! बलात्कार!!!

लखनऊ। महिलाओं की आबरू लुट रही है। उनकी हत्याएं हो रही है। आंख फोड़ने से हाथ काट लेने जैसी क्रूर घटनाएं बढ़ रही हैं। सियासी दल लुटी-पिटी औरत पर राजनैतिक तमाशे खड़े करके बेशर्मों की तरह अपने वोट बैंक में नए खाते खुलवाने के प्रयास में लगे हैं। सरकार और उसकी पुलिस गैरजिम्मेदार बयानों के जरिए प्रदेशवासियों को बहलाने और अपने इकबाल का झांडा बुलंद करने को तरजीह दे रहे हैं।
            लखीमपुर खीरी के निद्यासन में सोनम, कन्नौज, गुरसहायगंज के गड़वाबुजुर्ग गांव की किशोरी, बाराबंकी में 6 साल की बच्ची सविता के साथ जो दरिंदगी हुई हैं, उसमें पुलिसवालों की भूमिका बेहद घिनौनी और अपराधियों जैसी है। मुख्यमंत्री ने भले ही उन्हें सजा के तौर पर निलम्बित कर दिया एक सिपाही को जेल भेज दिया, लेकिन लखनऊ में बैठे कानून-व्यवस्था सम्भालने के जिम्मेदार मुखिया के बयान जहां झूठ से लबरेज हैं, वहीं बेहद गैरजिम्मेदाराना। शायद इसीलिए विपक्ष उन पर बसपा कार्यकर्ता होने का आरोप लगाता है।
            यहां एक बात कहनी आवश्यक होगी कि बसपा के एक दिग्गज नेता जो दो बार चुनाव हार चुके हैं कहते हैं कि  बेशक अपराधी सरकार से पूछकर बलात्कार नहीं कर रहे हैं, इसलिए विपक्ष, मीडिया दोनों की उतनी ही जिम्मेदारी बनती हैं। जितनी सरकार की, बेशक पुलिस बिगड़ैल है, उसका आचरण अपराधियों जैसा है, लेकिन इसमें भी हमारी सामाजिक परिस्थितियां और उसके पर्यावरण में हो रहे असंतुलन की जिम्मेदारी भी है। बलात्कार मानसिक रोग है, सामाजिक अपराध है इससे निबटने के लिए हर किसी को आगे आना होगा।
            बांदा के शीलू बलात्कार कांड में पुलिस लगातार तरह-तरह के तमाशे खड़े करके पीड़िता उसके परिवार को प्रताड़ित करने में लगी है। ऐसे ही समूचे सूबे में दलितों पर बर्बर जुल्म हो रहे हैं। गोण्डा तरबगंज के सेमरा ग्राम के दलित प्रधान लाटूराम को दबंग आठ महीने तक बंदी बनाए रहे। उसकी पत्नी की गुहार किसी ने नहीं सुनी। राजद्दानी के बख्शी का तालाब क्षेत्र में दलित मुन्नी की पिटाई कर उसका हाथ तोड़ दिया गया, शिकायत करने पर पुलिस ने पीड़िता के पति को ही हवालात में डाल दिया। यह सब अचानक नहीं है। इसकी ईमानदारी से जांच की जानी चाहिए। यह चुनावी वर्ष है आरोप-प्रत्यारोप के जरिए वोट की राजनीति से अलग हटकर मानवीय दृष्टिकोण अपनाकर सभी आयोगों उच्चस्तरीय सरकारी मशीनरी के साथसिविल सोसायटीको आगे आना होगा।
बलात्कार की हालिया प्रमुख घटनाएं
          6 साल की सविता फतेहपुर से गायब हुई। 11 जून को शव बाराबंकी में मिला। एक आंख किडनी गायब। नरबलि की आशंका। सविता के चाचा एक कथित तांत्रिक को पकड़ा।
          फिरोजाबाद के सिरसागंज में 20 जून की रात पंद्रह वर्षीय किशोरी को शानू और गटुआ ने बहाने से बारात घर में बुलाकर रेप किया और भाग निकले। शानू गिरफ्तार, लेेकिन गटुआ फरार।
          एटा में 19/20 जून की रात सुनील, सुमन और मुलायम सिंह ने अनारकली के घर में घुस कर दुराचार किया जिंदा जला दिया। अभियुक्त फरार, एसओ निधौली कला निलंबित।
          गोंडा में 19 जून की रात दुराचार के बाद कत्ल की गई नाबालिग बच्ची की लाश बरामद की गई। पुलिस ने हालांकि दो आरोपियों गोविंद और ननके को गिरफ्तार किया है।
          कानपुर में भी बीस वर्षीय युवती को कुछ लड़के रावतपुर रेलवे स्टेशन से नशीली दवा खिलाकर एक होटल में ले गए। वहां सामूहिक दुराचार किया गया। स्पेशल डीजी बृजलाल ने कहा कि युवती अपनी मर्जी से गई थी। उससे दुराचार नहीं हुआ।
          बागपत के ढिकौली गांव में 14 वर्षीय किशोरी से सुनील, राजीव और मनोज द्वारा दुराचार का आरोप है। पुलिस ने सिर्फ मनोज को गिरफ्तार किया है। पुलिस इस घटना को छिपाए रही और आरोपी किशोरी के परिजनों को लगातार द्दमकियां देते रहे। अंततः उन्होंने पैरवी करने वाले चाचा सत्यपाल (40) की गोली मारकर हत्या कर दी।
          फर्रूखाबाद में युवती से सरेराह दुराचार का प्रयास किया गया। हमलावरों ने विरोध करने पर उसे गोली मार दी। चीख-पुकार सुनकर पहुंचे ग्रामीणों ने एक हमलावार को भी पीट-पीट कर मार डाला। पुलिस ने दोनों पक्षों के खिलाफ रिपोर्ट लिखकर कार्रवाई शुरू की है।
          झांसी के बबीना थाना क्षेत्र के ग्राम कोटी में दयानन्द के घर विवाह समारोह में आई नाबालिग स्वाती के साथ दो युवकों ने बलात्कार किया। एक गिरफ्तार।
          अलीगढ़ में पुलिस हिरासत में 20 जून को पुनेथी पुलिस चौकी में सिपाही उसके एक साथी ने पूछताछ के दौरान बलात्कार किया। पुलिस कप्तान ने जांच के आदेश दिये।
          फतेहपुर में 20 जून को एक 12 साल की किशोरी के साथ दो लोगों ने बलात्कार किया। पुलिस ने दो लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
          बागपत में सीआरपीएफ जवान की 17 साल की बेटी के साथ उसकी सहेली के दो भाईयों ने बलात्कार किया। शर्मिन्दगी के कारण लड़की ने आत्महत्या कर ली।
          मुजफ्फरनगर के पास हाईवे के एक पेट्रोल पंप पर देहरादून से रही दिल्ली की दो युवतियों के बसपा विधायक के समर्थकों द्वारा मारपीट, लूट बलात्कार का प्रयास।
          मऊ में एक महिला ने दो पुलिसवालों, बस के कंडक्टर उसके मालिक पर सामुहिक बलात्कार का आरोप लगाया हैं जांच के आदेश जारी।
          बाराबंकी जनपद के देवां कोतवाली क्षेत्रान्तर्गत इब्राहिमाबाद में 24 जून की रात 8 बजे राजाराम की बेटी कक्षा तीन में पढ़ने वाली अंजलि से गांव के युवक शिवकुमार ने मुंहकाला किया। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज, घायल बालिका लखनऊ के अस्पताल में भर्ती।
          लखीमपुर के धौरहरा थानाक्षेत्र के सैनीपुरा गांव में 24 जून की रात कमांध रामसनेही ने रमेश घर में घुसकर मां के साथ सोई पांच साल की बच्ची से दुराचार कर डाला। युवक गिरफ्तार।
          सुल्तानपुर में दोस्तपुर थानाक्षेत्र के तेदुआकाजी गांव की छः वर्षीय बच्ची के साथ 24 जून की शाम शौच जाते समय मुकेश विश्वकर्मा ने दुराचार किया, एसपी के हस्तक्षेप मेडिकल के बाद पुलिस ने रिपोर्ट लिखी।
          प्रतापगढ़ के महेशगंज थाना क्षेत्र के ठकुराइन के पुरवा मजरे पटना गांव की 29 साला दलित युवती के साथ 22/23 जून की रात घर में घुसकर जबरन दुष्कर्म किया। पुलिस ने पीड़िता को थाने से भगाया। एसपी के हस्तक्षेप के बाद आरोपी गिरफ्तार एसओ/एसआई निलंबित।
          बरसाना के गांव जिरावली में गांव के ही पप्पू ने 18 वर्षीय युवती से बलात्कार में असफल रहने पर उसे जहर पिला दिया। बिजनौर में भी युवती से बलात्कार में असफल युवक ने युवती को पीटा।
          घटनाएं और भी हैं, जो दर्ज नहीं हो सकीं।