Thursday, June 6, 2019

न बिजली, न पानी फिर भी है संस्कारधानी !


लखनऊ | उत्तर प्रदेश की संस्कारधानी में संस्कारवान सियासी दल के संस्कारी महंत के नेतृत्व की सरकार ने ढोल-नगाड़े बजा कर स्वछता अभियान चलाकर करोड़ों रूपये फूंक दिए, अफसरों को सुधरने की सख्त चेतावनी दे दे कर समूची मीडिया में सुर्खियां बटोरीं | बिजली-पानी, आवारा जानवरों के तमाम इंतजामात के लिए ढपोरशंखी ऐलान किये, बंदरों के आतंक से छुटकारा पाने के लिए हनुमान चालीसा पाठ का ज्ञान देने और आवारा कुत्तों के लिए नगर निगम को आँख दिखाने के बावजूद सब कुछ पहले से बदतर हालात में है | लेसा और जल संस्थान की लापरवाही का आलम ये है कि पूरे शहर में कभी भी बिजली गुल हो जाती है, कभी भी पानी गायब हो जाता है | कभी भी लाइन पर काम करते हुए संविदा कर्मचारी मौत के मुंह में समा जाते हैं | यही हाल सीवर की सफाई करने वाले संविदाकर्मियों और खुले मेनहोलों में गिरने वालों का है | गंदगी का आलम ये है कि गली-गली कचरे से गंधा रही और नालियां बजबजा रहीं हैं | भीषण गर्मी में मच्छरों की फ़ौज हमलावर है | मजा इस बात का कि एनजीटी से लेकर उच्च न्यायालय तक चेतावनी दे रहे हैं फिर भी अनुशासित अफसरान काम करने के बजाये जज के घर के सामने कचरा डलवाने का अपराधिक कृत्य अंजाम दे रहे हैं !

राजधानी से छपने वाले तमाम अखबार, न्यूज पोर्टल इन खबरों को रोज सुर्खियाँ बना रहे हैं | इन खबरों में किन इलाकों में लोग पानी के लिए रतजगा कर रहे हैं या कहां पानी आया ही नहीं और आया तो गंदा आया, कहाँ टैंकर बने सहारा | कहां कितने पानी की जरूरत है और कितना पानी सप्लाई किया जा रहा | इससे भी बदतर हालात बिजली गुल होने के हैं, अँधेरे में गर्मी की मार से झुलसे राजधानीवासी बीमारी की चपेट में लगातार आ रहे है | इसकी गवाही के लिए किसी भी अस्पताल, डाक्टर के दवाखाने में बेशुमार कराहती-कांखती भीड़ देखी जा सकती है | उस पर तुर्रा ये कि आप किसी भी शिकायती फोन को लगायें वो उठता ही नहीं अगर गलती से उठ गया तो उठाने वाला किसी दूसरे पर अपनी बला टाल देगा जो उपलब्ध ही नहीं होगा | हां, भुगतान बिल समय से पहले आ जाता है, वो भी अनाप-शनाप रकम का जिस पर बाबूओं से लेकर इंजीनियर तक अपनी कमाई का बना लेते हैं | कब क्या बढ़ाया गया तक कोई बताने की जहमत नहीं उठाता ?

छतों पर बंदर खास करके पानी की टंकियों, गमलों में लगे पेड़-पौधों और कपड़ों को अपना निशाना बना रहे हैं | पानी की टंकियों के पाइप तोड़ देने से लेकर टंकी का पानी गंदा कर देना उनका दैनिक व्यायाम है | गौरतलब है आजकल लखनऊ में जेठ के मंगल के चलते ह्नुमान जी की आराधना घरों से लेकर हनुमान मन्दिरों में जारी है, हर दो किलोमीटर पर भंडारे आयोजित किये जा रहे हैं | चारो ओर हनुमान चालीसा का पाठ गूँज रहा है मगर मुख्यमंत्री योगी का ज्ञान काम नही आ रहा, बल्कि वानर सेना का उत्पात 45 डिग्री तापमान की आग उगलती धूप में और उग्र होता जा रहा है | यहाँ एक बात और बतानी जरूरी होगी कि यदि आप छतों खाने का सामान बंदरों के लिए डाल दें तो वे उसमे दिलचस्पी नहीं लेते | ठीक यही हाल कुत्तों का है, रोटी नहीं खायेंगे | उनका आहार हड्डियां, हगीज और कचरा है | इन कुत्तों का शिकार अस्पतालों में नवजात बच्चे तक आये दिन बन रहे हैं | राह चलते लोगों या कहीं भी खेलते बच्चों को निशाना बनाना आम है | सांड और गायें गली-कूचों से लेकर राजपथ तक लोगों को पटक कर अस्पतालों के हड्डी विभाग को गुलजार किये हैं |
छत पे बन्दर, घर में अंधेरा पानी की बूंद नहीं और दरवाजे पर कुत्ते, गाय-सांड, गली-सडकों पर फैला बेतरतीब कचरा , फिर भी मुस्कराइये लखनऊ आपका स्वागत करता है | आदमी मुस्करा कर कैसे जिए ? क्या संस्कारवान सरकार कोई तरकीब बताएगी या कोई जतन करेगी ? या सिर्फ विकास का ढोल बजाएगी ?                 

तो बंदरों की सर्जिकल स्ट्राइक जारी रहेगी ....!


लखनऊ | न हनुमान चालीसा का पाठ, न जेठ के मंगलों की पूजा-अर्चना का कोई असर और न ही योगी बाबा का बजरंगबली प्रेम बंदरों को उत्पात से रोक पाया, उल्टे बंदर हैं कि मेट्रो उजाड़ने पर बजिद | राजधानी के अखबारों में पिछले तीन-चार दिनों से लगातार बंदरों द्वारा मेट्रो संचालन में गड़बड़ियां पैदा करने की ख़बरें छप रही हैं | खबरों के मुताबिक़ गुजरे तीन महीनों में कई बार बंदरों ने मेट्रो रोक दी | इतना ही नहीं जून के पहले दिन बादशाहनगर मेट्रो स्टेशन पर फाल्स सीलिंग, मेट्रो सिस्टम का कुछ हिस्सा उखाड़ने के साथ यात्रियों से सामन छीनने, काटने से खासी दहशत फैल गई है | यह कोई पहला वाकया नहीं है इससे पहले मवैया स्टेशन पर बिजली के तार, फाल्स सीलिंग उखाड़ दिए थे | एक हफ्ते पहले मेट्रो रैम्प पर तारों में फंसकर एक बंदर मर भी चुका है जिससे मेट्रो थोड़ी-थोड़ी देर के लिए थम गई | रविवार को दुर्गापुरी स्टेशन के प्लेटफार्म पर सेफ्टी कोन गिरा दिया जिससे सामने से आ रही मेट्रो को इमरजेंसी ब्रेक लगाकर रोकने से यात्री चोटहिल हो गये कोई बड़ा हादसा होने से बच गया |
उस पर तुर्रा ये कि मेट्रो रूट पर ऑटो,टेम्पो नहीं चलने देने का तुगलकी फरमान जारी करने की तैयारी हो रही है | दूसरी ओर बंदरों को पकड़ने के लिए नगर निगम से लेकर वन विभाग तक कवायद के बाद भी अभी तक बंदरों को पकड़ने या उन्हें मेट्रो स्टेशनों पर न आने देने के काम में कोई संजीदगी दिख नहीं रही, हालांकि वन विभाग ने अपनी टीम भेजने की हामी भर ली है |
गौरतलब है कि चारबाग रेलवे स्टेशन से लेकर लखनऊ के लगभग सभी स्टेशनों पर बंदरों का जबर्दस्त आतंक है | रेलवे ने कई बार इन बंदरों को भगाने के लिए लंगूर की व लंगूर की आवाज निकालने वाले शख्स की तैनाती की लेकिन कोई कारगर भला नहीं हुआ उल्टे यह इंतजाम भी रेल अफसरों की लापरवाही की भेंट चढ़ गया | इससे भी बदतर हालातों का सामना राजधानीवासी रोज करने को मजबूर हैं | यहां याद दिलाते चलें कि कुछ दिनों पहले बरेली बस स्टेशन पर रोडवेज की एक बस लेकर बंदर चल दिया था | यही नहीं आवारा सांड लोगों को  रोज यहां-वहां घायल कर रहे हैं | आवारा कुत्ते भी राजधानी की सड़कों से लेकर गली-कूचों में नागरिको को काटने-दौडाने में लगे हैं | यहां बताना लाजिमी होगा केंद्र सरकार के एक मंत्री ने इन पर एक बड़ी योजना बनाने का एलान किया था और उ.प्र. सरकार रोज ढिंढोरा पीटती रहती है, लेकिन कोई कारगर योजना जमीन पर उतरती दिखाई नहीं देती |
गो कि छत पर बंदर, रेल-बस स्टेशनों पर बंदर, सडक पर कुत्ते-सांड और गायों का आतंक चुनांचे इन पर कोई सर्जिकल स्ट्राइक के इंतजाम होंगे ! ये आंतरिक नागरिक सुरक्षा से जुड़ा गम्भीर मामला है | मजा तो इस बात का है कि यह विपक्ष के नेताओं की भी चिंता का विषय नहीं है जबकि चुनावों के दौरान राहुल गांधी, अखिलेश यादव तक इस समस्या से दो-चार हो चुके हैं |          

Tuesday, October 16, 2018

कलश स्थापना के साथ प्रथम माँ शैलपुत्री का पूजन


लखनऊ | नवरात्र कल बुधवार से प्रारम्भ हो रहे हैं, तिथि अनुसार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा आज 9 अक्टूबर को दिन में 9.15 बजे लग चुकी है लेकिन उदया तिथि होने के कारण प्रतिपदा 10 अक्टूबर को मानी जायेगी और कलश स्थापना प्रात: सूर्योदय 6.12 से 12 बजे तक कभी भी कर सकते हैं इसके बाद राहु काल लग जाएगा | सर्वोत्तम अभिजीत मुहूर्त दिन में 11.36 से 11.59 तक ही होगा | इस नवरात्र में माता नाव में सवार होकर आ रही हैं, सभी का कल्याण करेंगी |10 अक्टूबर को माँ शैलपुत्री का का पूजन होगा |


शैलपुत्री ( पर्वत की बेटी )
वह पर्वत हिमालय की बेटी हैं और नौ दुर्गा में पहली रूप है । पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थीं ।
 इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी । एक बार दक्ष ने भगवान शिव को 
आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था, देवी सती वहां पहुँच गईं और तर्क करने लगीं । 
उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था ,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर
 पातीं  और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर देती हैं | दूसरे जन्म वह शैलराज हिमालय की बेटी पार्वती-
 हेमावती के रूप में जन्म लेती है व शैलपुत्री के रूप में विख्यात होती हैं और भगवान शिव से विवाह करती हैं 
 नौदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं | 
माता शैलपुत्री का बीज मन्त्र : ह्रीं शिवायै नम: है |
ब्रह्मचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)
दूसरी उपस्तिथि नौ दुर्गा में माँ ब्रह्मचारिणी की है। " ब्रह्मा " शब्द उनके लिए लिया जाता है जो कठोर भक्ति करते है और अपने 
दिमाग और दिल को संतुलन में रख कर भगवान को खुश करते है । यहाँ ब्रह्मा का अर्थ है "तप" । माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति बहुत
 ही सुन्दर है। उनके दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में पवित्र पानी के बर्तन ( कमंडल ) है। वह पूर्ण उत्साह से भरी हुई है ।
 उन्होंने तपस्या क्यों की उसपर एक कहानी है | 
पार्वती हिमवान की बेटी थी। एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ खेल में व्यस्त थी, नारद मुनि उनके पास आये और भविष्यवाणी
 की "तुम्हरी शादी एक नग्न भयानक भोलेनाथ से होगी और उन्होंने उसे सती की कहानी भी सुनाई। नारद मुनि ने उनसे यह भी 
कहा उन्हें भोलेनाथ के लिए कठोर तपस्या भी करनी पड़ेगी । इसीलिए माँ पार्वती ने अपनी माँ मेनका से कहा कि  वह शम्भू
 (भोलेनाथ ) से ही शादी करेगी नहीं तो वह अविवाहित रहेगी। यह बोलकर वह जंगल में तपस्या निरीक्षण करने के लिए चली
 गयी। इसीलिए उन्हें तपचारिणी ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। माता अडिगता का सन्देश देती हैं |
माँ ब्रह्मचारिणी का बीजमन्त्र  : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:

साहस और शक्ति की देवी मां चंद्रघंटा 
तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा जिनके सर पर आधा चन्द्र (चाँद ) और बजती घंटी है। वह शेर पर बैठी संघर्ष के लिए तैयार
 रहती है। उनके माथे में एक आधा परिपत्र चाँद ( चंद्र ) है। वह आकर्षक और चमकदार है । वह 3 आँखों और दस हाथों में दस
 हथियार पकड़े रहती है और उनका रंग सुनहरा है।गले में सफ़ेद फूलों की माला है | माँ चंद्रघंटा का वाहन बाघ है | वह हिम्मत 
की अभूतपूर्व छवि है। उनकी घंटी की भयानक ध्वनि सभी राक्षसों और प्रतिद्वंद्वियों को डरा देती है । इन्हें साहस और शक्ति की
देवी माना जाता है |
मां चन्द्रघंटा का बीजमन्त्र  : ऐं श्रीं शक्तयै नम:
चौथे रूप में प्राण शक्ति देतीं मां कुष्मांडा
माँ के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। " कु" मतलब थोड़ा "शं " मतलब गरम "अंडा " मतलब अंडा। यहाँ अंडा का मतलब है
 ब्रह्मांडीय अंडा । वह ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। वह सूर्यलोक
 की निवासी हैं | वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती है। उनके पास आठ हाथ है ,सात प्रकार के हथियार 
उनके हाथ में चमकते रहते है। उनके दाहिने हाथ में सर्वसिद्ध माला है और वह शेर की सवारी करती है।
मां कूष्मांडा का बीजमन्त्र: ऐं ह्री देव्यै नम:
माँ के आशीर्वाद का रूप है स्कंदमाता
देवी दुर्गा का पांचवा रूप है " स्कंद माता ", हिमालय की पुत्री , उन्होंने भगवान शिव के साथ शादी कर ली थी । उनका
 एक बेटा था जिसका नाम "स्कन्दा " था स्कन्दा देवताओं की सेना का प्रमुख था । स्कंदमाता आग की देवी है। स्कन्दा उनकी
 गोद में बैठा रहता है। उनकी तीन आँख और चार हाथ है। वह सफ़ेद रंग की है। वह कमल पैर बैठी रहती है और उनके दोनों 
हाथों में कमल रहता है।कमलासन वाली माता को पद्मासन भी कहा जाता है | देवी का यह रूप इच्छा, ज्ञान और क्रियाशक्ति
का समागम है |
मां स्कंदमाता का बीजमन्त्र  : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
 
ऋषि कता की पुत्री कात्यायनी माँ 
माँ दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी। एक बार एक महान संत जिनका नाम कता था ,जो अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थे ,
उन्होंने देवी माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक तपस्या की ,उन्होंने एक देवी के रूप में एक बेटी की आशा व्यक्त 
की थी। उनकी इच्छा के अनुसार माँ ने उनकी इच्छा को पूरा किया और माँ कात्यानी का जन्म कता के पास हुआ माँ दुर्गा के रूप में।
मां कात्यायनी का बीजमन्त्र  : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:
शुभ फल देनेवाली मां कालरात्रि (माँ का भयंकर रूप)
माँ दुर्गा का सातवाँ रूप है कालरात्रि। वह काली रात की तरह है, उनके बाल बिखरे होते है, वह चमकीले भूषण पहनती है। 
उनकी तीन उज्जवल ऑंखें है ,हजारो आग की लपटे निकलती है जब वह सांस लेती है। वह शावा (मृत शरीर ) पे सावरी करती है,
उनके दाहिने हाथ में उस्तरा तेज तलवार है। उनका निचला हाथ आशीर्वाद के लिए है। । जलती हुई मशाल ( मशाल ) उसके बाएं 
हाथ में है और उनके निचले बायां हाथ  अभय की मुद्रा में है जिससे वे भक्तों को निडर बनाती है। उन्हें "शुभकुमारी" भी कहा जाता
 है जिसका मतलब है जो हमेश अच्छा करती है। मां को भोग में गुड़ बेहद पसंद है, गुड़ का भोग लगाकर किसी ब्राह्मण को दे देना
 चाहिए |
मां कालरात्रि का बीजमंत्र  : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:
माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप मां 
महागौरी 
आठवीं दुर्गा " महा गौरी है।" वह एक शंख ,चंद्रमा और जैस्मीन के रूप सी सफेद है,उनके गहने और वस्त्र सफ़ेद और साफ़ होते है।
 उनकी तीन आँखें है ,उनकी सवारी बैल है ,उनके चार हाथ है। उनके निचले बाय हाथ की मुद्रा निडर है ,ऊपर के बाएं हाथ में
" त्रिशूल " है ,ऊपर के दाहिने हाथ डफ है और निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद शैली में है।वह शांत और शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण 
शैली में मौजूद है. यह कहा जाता है जब माँ गौरी का शरीर गन्दा हो गया था धूल के वजह से और पृथ्वी भी गन्दी हो गयी थी तब 
भगवान शिव ने गंगा के जल से उसे साफ़ किया था। तब उनका शरीर बिजली की तरह उज्ज्वल बन गया.इसीलिए उन्हें महागौरी
 कहा जाता है । यह भी कहा जाता है जो भी महा गौरी की पूजा करता है उसके वर्तमान ,अतीत और भविष्य के पाप धुल जाते है।
मां महागौरी का बीजमंत्र  : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
 
ज्ञान का स्वरूप मां सिद्धिदात्री 
माँ का नौवा रूप है " सिद्धिदात्री " ,आठ सिद्धिः है ,जो है अनिमा ,महिमा ,गरिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य ,लिषित्वा और
वशित्व। माँ शक्ति यह सभी सिद्धिः देती है। उनके पास कई अद्भुद शक्तिया है ,यह कहा जाता है "देवीपुराण" में भगवान शिव को
 यह सब सिद्धिः मिली है महाशक्ति की पूजा करने से। उनकी कृतज्ञता के साथ शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह
 " अर्धनारीश्वर " के नाम से प्रसिद्ध हो गए। माँ सिद्धिदात्री की सवारी शेर है ,उनके चार हाथ है और वह प्रसन्न लगती है। दुर्गा का
 यह रूप सबसे अच्छा धार्मिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सभी देवताओं , ऋषियों मुनीस , सिद्ध , योगियों , संतों और श्रद्धालुओं
 के द्वारा पूजा जाता है।
मां सिद्धिदात्री का बीज मंत्र  : ह्रीं क्लींऐं सिद्धये नम:
नवदुर्गा- एक स्त्री के पूरे जीवनचक्र का 
बिम्ब है नवदुर्गा के नौ स्वरूप !
 
1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या *"शैलपुत्री"* स्वरूप है !
 
2. कौमार्य अवस्था तक *"ब्रह्मचारिणी"* का रूप है !
 
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह *"चंद्रघंटा"* समान है !
 
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह *"कूष्मांडा"* स्वरूप है !
 
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री *"स्कन्दमाता"* हो जाती है !
 
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री *"कात्यायनी"* रूप है !
 
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह *"कालरात्रि"* जैसी है !
 
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से *"महागौरी"* हो जाती है !
 
9 धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार मे अपनी संतान को सिद्धि (समस्त सुख-संपदा) का 
आशीर्वाद देने वाली *"सिद्धिदात्री"* हो जाती है !
 
 
दुर्गा सप्तशती के चमत्कारी मंत्र 
1 आपत्त्ति से निकलने के लिए
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते ॥
2 भय का नाश करने के लिए
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते ।भये भ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो स्तु ते ॥
3 जीवन के पापो को नाश करने के लिये ।
हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥
4 बीमारी महामारी से बचाव के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥
5 पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥
6 इच्छित फल प्राप्ति   एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः
7 महामारी के नाश के लिए
जयन्ती मड्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमो स्तु ते ॥
8 शक्ति और बल प्राप्ति के लिये
सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि । गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥
इच्छित पति प्राप्ति के लिये
ॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि । नन्दगोपसुते देवि पतिं मे कुरु ते नमः ॥
10 इच्छित पत्नी प्राप्ति के लिये पत्नीं मनोरामां देहि मनोववृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोभ्दवाम् ॥॥!!!!

Friday, September 21, 2018

पितृ पक्ष कब और पितरों को कैसे करें प्रसन्न

पूर्णिमा से अमावस्या के ये 15 दिन पितरों को कहे जाते हैं। इन 15 दिनों में पितरों को याद किया जाता है और उनका तर्पण किया जाता है। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 24 से 8 अक्टूबर तक श्राद्धपक्ष रहेगा। जिन घरों में पितरों को याद किया जाता है वहां हमेशा खुशहाली रहती है। इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए पितरों का तर्पण किया जाता है। जिस तिथि को पितरों का गमन (देहांत) होता है उसी दिन पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
जानिए किस तिथि को कौन सा श्राद्ध आएगा
24 सितंबर 2018 पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 तृतिया श्राद्ध
28 सितंबर 2018 चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या


घर पर आसान उपायों से पितरों को कर सकते हैं प्रसन्न
हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जाता है | इस समय अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर पिंडदान होता है | पिंडदान के लिए फल्गु नदी के तट को सबसे अच्छा माना जाता है | यहां पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है. कहा जाता है कि गया में पहले अलग-अलग नामों के 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था | इनमें से अब 48 ही बची है और इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं | यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है. इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख हैं.

क्या है पिंड
हिंदू मान्यता के अनुसार किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है. प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड माना गया है. पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ या चावल के आटे को गूंथकर बनाई गई गोलात्ति को पिंड कहते हैं.


श्राद्ध की विधि
श्राद्ध की मुख्य विधि में मुख्य रूप से काम होते हैं- पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज. दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्घा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है. जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि इससे पितर तृप्त होते हैं. इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है.
जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो, उस दिन सूर्योदय से लेकर दिन के 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के मध्य ही श्राद्ध करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करा लिए जाए। इसके लिए सुबह उठकर स्नान करना चाहिए, तत्पश्चात देव स्थान और पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपना चाहिए और गंगाजल से पवित्र करना चाहिए।

यदि संभव हो, तो घर के आंगन में रंगोली बनाएं। घर की महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। जो श्राद्ध के अधिकारी व्यक्ति हैं, जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मण या कुल के अधिकारी जो दामाद, भतीजा आदि हो सकते हैं, उन्हें न्यौता देकर बुलाएं। इस दिन निमंत्रित ब्राह्मण के पैर धोने चाहिए। इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि करवाएं।

पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर का अर्पण करें। ब्राह्मण भोजन से पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें। दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं। इसके बाद भोजन थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण हेतु भोजन परोसें।

ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करे और कर्ता क्रोघ न करें। प्रसन्नचित होकर भोजन परोसें। भोजन के उपरांत यथाशक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें। इसमें गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक (जिसे महादान कहा गया है) का दान करें। इसके बाद निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें। ब्राह्मण को चाहिए कि स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें तथा गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।

श्राद्ध में बिल्वपत्र, मालती, चंपा, नागकेशर, कनेर, कचनार एवं लाल रंग के पुष्प का उपयोग वर्जित है। इसमें श्वेत पुष्प ही उपयोग में लाएं। श्राद्ध करने के लिए दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, अभिजित मुहूर्त और तिल मुख्य रूप से अनिवार्य हैं। शास्त्र में कहा गया है कि पितृ पक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में उन्नति होती है। साथ ही आपके कार्य व्यापार, शिक्षा अथवा वंश वृद्धि में आ रही रुकावटें दूर हो जाएंगी।