Sunday, November 6, 2011

कवि कोविद क्लब के जन्म-दाता की आरती

श्री दुलारे लाल भार्गव
की कतिपय कविताएंः समयानुसार
मैं तो आरती उतारूं श्री दुलारे लाल की।
श्री दुलारे लाल की, श्री दुलारे लाल की।।
        मै तो.........................
सुकवि दुलारे लाल की, ब्रजभाषा प्रतिपाल की;
जिनकी दोहावली बनी है बिंदी हिन्दी भाल की।
श्री दुलारे लाल की, श्री दुलारे लाल की।।
        मै तो...........................
हिंदी कवियों के निर्माता, हिंदी के गौरव विख्याता;
हिंदी भाषा के संरक्षक कुंजी कोष विशाल की।
श्री दुलारे लाल की, श्री दुलारे लाल की।।
        मै तो...........................
‘कवि-कोविद-क्लब‘ जीवनदाता, छन्द अलंकारों के ज्ञाता
सत्य धर्म के परम पुजारी, सज्जनता जय-माल की।
श्री दुलारे लाल की, श्री दुलारे लाल की।।
        मै तो...........................
संत संग संतो की चर्चा, ध्यान आचरण ईश्वर अर्चा;
कविता की अविरल सुर सुरिता भक्ति सुरभि सुरमाल की ।
श्री दुलारे लाल की, श्री दुलारे लाल की।
मैं तो आरती उतारूं श्री दुलारे लाल की।।
लखनपुरी के लाड़ले दुलारे लाल की।।
भव्य अवध की वन स्थली ता में त्वं अभिराम।
शुद्ध भारती परिग्रही शत-शत तुम्हें प्रणाम।।
--गिरिजा देवी ‘निर्लिप्त‘-- 

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