Sunday, November 6, 2011

बसंत

-कविवर पं0 श्रीरत्न शुक्ल
कवि! सुनते हैं, राशि-राशि मधु
लेकर आया है ऋतुराज;
प्याले भर-भर सुमन पी रहे
होकर मतवाले - से आज।
जहां ‘सदावृत’ - सा बंटता है
लूट रहा सारा उपवन;
छलके-छलकाए से भी क्या
वंचित होगा यह जीवन?
समझ बसंतश्री को केवल
अपनी ही सम्पत्ति ललाम,
गाती है गर्विता कोकिला
निज सौभाग्य - गीत अविराम।
भूली राग निराशा में रट
मेरी आशा की कोयल
गाने की वासना जग उठी,
पर क्या गावे वह विह्नल!



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