Wednesday, August 7, 2013

लखनऊ फिर घायल

लखनऊ। रमजान के मुबारक महीने में झगड़ा फसाद जायज है? वह भी आपस में.. भाई-भाई में एक ही फिरके में? हर गली-कूचे की मस्जिदों से र्कुआन की आयतें गूंज रही हैं... तमाम हिदायतें दी जा रही हैं। मौलाना या आलिम से लेकर आम मुसलमान नेकी और ईमान के रास्ते पर चलने की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं.... ऐसे में ये फसाद? यह सारे सवाल लखनऊ के हर वाशिन्दे के हैं। और क्यों न हो?  शहर की इकलौती माँ गोमती का ही पानी शिया भी पीते हैं... सुन्नी भी पीते हैं... हिन्दू भी पीते हैं... और वे पटरी दुकानदार भी पीते हैं, फिर यह हिंसां?        इन सवालों के जवाब तलाशने जब ‘प्रियंका’ ने सआदतगंज से हजरतगंज तक तफसील जानी तो कई जवाबों का खुलासा हुआ। दरअसल हर त्यौहार से पहले पटरी दुकानदार स्थानीय पुलिस नगर निगम व जिला प्रशासन से अपनी दुकानें लगाने की इजाजत लेकर लगभग पन्द्रह दिनों तक नक्खास (विक्टोरिया स्ट्रीट) में अस्थायी दुकानें लगाते हैं। इनमें वे लाखों रूपयों का सामान पहले से भर लेते हैं। ये दुकानदार रातों में भी उन्हीं दुकानों में सोते हैं। जूता बेचनेवाले अकबर अहमद का कहना है, ‘कुछ असामाजिक तत्व हर साल अवैध रूप से वसूली करते हैं। इन लोगों से पुलिस भी मिली रहती है। पिछली बकरीद में वसूली को लेकर काफी झंझट हुआ था, जो मौलाना याकूब के हस्तक्षेप से शांत हो गया था।’ गौरतलब है 12वीं रबीअव्वल के जुलूस में इन्हीं मौलाना के काॅम्पलेक्स के पास गोलियां चलीं थीं। इन पर मुकदमें भी हैं।
    इस बार भी बाजार सजते ही असामाजिक तत्व सक्रिय हो गये और मनमानी पर उतर आए। शहर के वरिष्ठ नागरिक मुश्ताक खान कहते हैं, ‘खुदा जाने पुलिस क्यों तमाशाई बन जाती है। रमजान के पाक महीने में इबादत की जगह फसाद करने-कराने वालों को खुदा भी माफ नहीं करेगा और इसमें शामिल सियासी लोगों की मंशा भी नहीं पूरी होगी। बहरहाल लखनऊ एक बार फिर घायल हुआ। फसादियों ने रोजेदारों को सरेराह पीटा, खुदा के सच्चे बन्दों को गोलियों से भून दिया, इससे ईद की आँख में आँसू छलक आये हैं।

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