Wednesday, August 7, 2013

सावधान! नकली है दवा...!

लखनऊ। दवा नकली, दवा की दुकान नकली, डाॅक्टर नकली और सरकारी अस्पताल बिगड़ैलों का बाड़ा। गजब है कि बीमार भी नकली दर्ज हैं सरकारी कागजोें पर! इस घपले में असली बीमारों को श्मशान तक जाना पड़ रहा है, जहां लकड़ी भी महंगी और गीली बिक रही है। इन हालातों में आदमी कैसे स्वस्थ्य रहकर जीने का रास्ता तलाशे?
    देशभर से आ रही खबरें बताती हैं कि नकली और यौनवर्धक दवाओं से दवा बाजार पटा पड़ा है। नेपाल और बांग्लादेश के बाद उप्र में आगरा को नकली दवाओं की बड़ी मंडी माना जाता है। मुंबई, लखनऊ, भोपाल, दिल्ली और अहमदाबाद का भी नाम इस कारोबार के नक्शे पर बेहद असरदार है। इन बाजारों में किसी भी दवा या इंजेक्शन की नकल मिल सकती है। इनकी पहचान आसान नहीं है और जिम्मेदार हाथ ही इसमें शामिल हैं। पिछले महीनों में आगरा में एलोथ्रोसिन 200/500 एमजी (एंटीबायटिक गले के इंफेक्शन के लिए), डोमेस्टल (उल्टी के लिए), मिकासिन (एंटीबायाटिक), वोवराॅन, एसआर, रेजेस्ट्रोन, मैक्सक्लेव टैब, डूफास्टोन, कैल्शियम टैब, मैंटेन टैब, इंडोकैप एसआर कैप, शेलकैल 500 एमजी आदि दवाओं की नकल का खुलासा कई डाॅक्टरों ने किया तो उन्हीं के खिलाफ मुहिम चलाई जाने लगी। ड्रग कंट्रोल अथार्टी भी इस धंधे में शामिल होने के संदेह से परे नही है। दवा बनाने वाली बड़ी कंपनियां भी इस गोरखधंधे में शामिल हैं। क्योंकि एस्ट्रोजेनेका के अधिकारी नकली दवा की शिकायत करने पर टाल-मटोल कर चुप्पी साध जाते हैं। निओन लेनोटेरटीजा, सिटला, सन फार्मा, बंगाल केमिकल जैसी नामी कम्पनियां भी घटिया दवाएं बाजार में उतार रही हैं। केन्द्रीय औषधि मानक प्राधिकरण की आकस्मिक जांच में 61 दवाएं घटिया स्तर की पाई गईं। राज्य स्तर पर भी धर-पकड़ की गई लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया गया। पैरासीटामाॅल (दर्द निवारक/बुखार), क्लोरोक्वीन (मलेरिया), इबुजेसिक (आर्थराइटिस) जैसी नकली दवाओं की तो भरमार है। ग्रामीण इलाकों में ये नकली दवाइयां धड़ल्ले से खपाई जा रही हैं।
    मुंबई के औषधि एवं अन्न प्रशासन (एफडीए) कमिश्नर ने दो महीने पहले एक प्रेसवार्ता में खुलासा किया था कि दवा कम्पनियों और दवाओं को बाजार में बेचने वाले ड्रगिस्ट एवं केमिस्ट के बीच बाकायदा लेन-देने होता है। गौरतलब है कि दवा उत्पादन कंपनियों को ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट के आॅल इंडिया आॅर्गनाइजेशन के अडि़यल रवैए के सामने झुकना पड़ता हैै। कंपनियों को बाजार में अपनी नई दवा बेचने से लेकर स्टाॅकिस्ट की नियुक्ति करने तक आॅर्गनाइजेशन से एनओसी लेनी पड़ती है। बिना इनकी एनओसी कोई भी दवा कंपनी अपनी दवा बाजार में नहीं बेच पाती है। कोई कंपनी इनकी एनओसी के बिना स्टाॅकिस्ट या दवा बाजार में लाती है तो आॅर्गनाइजेशन इन कंपनियों को बायकाॅट कर देती है।
    कमिश्नर एफडीए के मुताबिक एनओसी के नाम पर बड़े पैमाने पर दवा कंपनियों और आॅर्गनाइजेशन के बीच करोड़ों रूपयों का लेन-देन भी होता है। स्टाॅकिस्ट, नई दवा की लांचिंग के अलावा व्यवहार में होनेवाले मुनाफे की अतिरिक्त राशि की रिश्वत इनके द्वारा ही तय की जाती है। केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट के इस घपले पर तीन महीने पहले स्पर्धा आयोग ने दवा विक्रेता संगठन आॅल इंडिया आॅर्गनाइजेशन आॅफ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट को 47 लाख रूपए का दंड भरने का आदेश भी दिया था। आॅर्गनाइजेशन के इशारे पर नए स्टाॅकिस्ट को दवा देने से इंकार कराने वाली तीन दवाई कंपनियों पर एफडीए ने आपराधिक मामला भी दर्ज किया है। इन्हीं कारणों से दवा के दामों में इजाफा हो रहा है और इसकी शिकार आम जनता हो रही है।
    इससे भी आगे शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों में खुले अनगिनत मेडिकल स्टोर्स में कोई भी सरकार द्वारा तय मानकों पर खरा नहीं उतरता। नियम कहता है हर मेडिकल स्टोर पर एक फार्मेसिस्ट होना चाहिए लेकिन 80-85 फीसदी पर वह नहीं होता। जो लोग दवा बेचते हैं वे दवाओं की उपयोगिता से नवाकिफ साधारण सेल्समैन होते हैं। नियमानुसार दवा बेचने वाले कर्मचारी को हाथ में दस्ताना पहनना अनिवार्य है व दवा पत्ते से काट कर नहीं बेची जानी चाहिए। स्टोर पूरी तरह कवर्ड व साफ-सुथरा हो और एक निश्चित तापमान में होना चाहिए, लेकिन शायद ही ऐसा कहीं हो। जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि ये सभी मानक व्यवहारिक रूप से मानना संभव नहीं है।
    लखनऊ शहर में लगभग साढ़े चार हजार मेडिकल स्टोर्स हैं। इन मानकों व नई दवा नीति, दवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मुखालिफ लखनऊ केमिस्ट एसोसिएशन ने एक दिन की हड़ताल दो महीने पहले की थी। एसोसिएशन के मुताबिक उस दिन लगभग दो सौ करोड़ का नुकसान हुआ था। यह नहीं बताया गया कि उस दिन बगैर दवा के कितने मरीज भगवान को प्यारे हो गये। यह भी नहीं बताया गया कि अधिक मुनाफे के लिए नकली दवाइयां क्यों, कौन-कौन और कितनी बेचते हैं?

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