Wednesday, August 7, 2013

एक सुबह पं0 हरिशंकर तिवारी

सूर्याेदय से पहले ही नींद के आलिंगन से मुक्त हो माता पृथ्वी को प्रणाम कर उनके दुलार का आशीष लेते हुए थोड़ा व्यायाम करना ही प्रातः का प्रथम शगल है। नित्यकर्म के बाद एक प्याला चाय का और अखबार पढ़ना। इतने में ही भोर का उजाला और गाय-भैंसों का रंभाना शुरू हो जाता है। यही पंडित जी के पशुप्रेम और दिन की शुरूआत का दूसरा चरण होता है। अपनी गौशाला की ओर बढ़ते हुए अपने कुत्तों को दुलराते हैं। अच्छी नस्ल की गाय और उम्दा वंश के कुत्ते उनकी कमजोरी हैं। गौशाला उनके हाते (निवास) में ही आखिरी छोर पर है। अपने सामने वहां की साफ-सफाई से लेकर दूध दुहने व चारे आदि के काम कराते हैं।
    यदि कोई गाय या भैंस गर्भवती है तो उसकी देखभाल पर पूरा ध्यान रखते हैं। उनकी देख-रेख में ही उसका बच्चा पशुचिकित्सकों की निगरानी में जन्म लेता है। इस बीच उन्हें फोन पर बात करना भी पसन्द नहीं।
    गौशाला से बाहर आकर स्नान-
ध्यान और पूजन होता है। पूजन में कोई पाखण्ड नहीं, बस अगरबत्ती जलाकर ईश्वर का स्मरण भर। नाश्ते में कोई विशेष नियम नहीं कभी रोटी-सब्जी तो कभी टोस्ट-मक्खन, दूध या फिर दलिया, दही-चूरा। ऐसा ही सादा सा पहनावा सफेद धोती-कुर्ता। कांधे पर अंगौछा तब अवश्य होता है जब कहीं बाहर निकल रहे हों। अब तक सुबह के दस बज जाते हैं। बाहर हाते के मैदान में बनी झोपड़ी में तरह-तरह के फरियादियों और मिलनेवालों की भीड़ जमा हो जाती है। वे बाहर आते ही इस भीड़ के हो जाते हैं। उनके चेहरे की रौबदार मूंछें तक इस वक्त मुस्कराती रहती हैं।
    हर किसी से आत्मीयता, हर कोई अपना, हर एक की समस्या का निदान उनकी दिनचर्या के मजबूत उपकरण हैं। कोई आपाधापी नहीं, कोई तनाव नहीं। उनके अन्तस की ऊर्जा करूणावतार लिए समान रूप से पीडि़तों को चैतन्य करती है।
    राजनीति की चैसर के दसियों, प्यादे, हाथी-घोड़े, वजीर तक इस भीड़ में उनका आशीर्वाद लेकर अपने दिन की शुरूआत करने को आतुर आते हैं। वे इनसे भी निश्छल यथार्थपरक बातें करते हैं। एक बार ऐसी ही एक प्रातः उनके चुनाव क्षेत्र चिल्लूपार से उनके ही मुखालिफ चुनाव लड़ने का आशीर्वाद लेने एक शख्स आया, उन्होंने उसे ‘भोलेबाबा’ की तरह विजयी होने का आशीष दिया। आशीर्वाद का प्रभाव देखिए आज वही शख्स चिल्लूपार से विधायक है। पौराणिक कथाओं में है कि महादेव को कैलाश से लंका ले जाने के लिए रावण ने तमाम जतन किये, उनका आशीष भी पाया, पर वह सफल नहीं हुआ। अन्त-पन्त इतना ही कि महादेव के लिए कैलाश और कैलाश के लिए महादेव ही सत्य है।

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