Wednesday, August 7, 2013

खाओ बांस का अचार तो आओ...!

लखनऊ। भारतीय रसोई में मसालांे का खासा महत्व है, भले ही डाॅक्टर इसके सेवन से परहेज बताते हों। देश का हर वर्ग मसालों के स्वाद से अपने को बचा नही पाता। यही वजह है कि आज बाजार में सैकड़ों ब्रान्डों का कब्जा है। बावजूद इसके लखनऊ के मुगलिया दस्तरख्वान पर आज भी खुले मसालों की महक बदस्तूर जारी है। इन खास मसालों को तैयार करने में महिलाओं का बड़ा योगदान है। इनके द्वारा घरों में आज भी पुराने तौर-तरीके अपनाकर खड़े मसालों को कूट-पीस कर बनाया जाता है। वहीं लखनऊ की पहचान और शान को बरकरार रखे बाजार चैक व नक्खास मंे खास मसालों को बेचनेवाली दसियों दुकाने हैं। जो सब्जी सालन, मुर्ग मुसल्लम से लेकर बिरयानी पकाने के उम्दा मसाले बेचते हैं।
    लखनऊ की ही तरह आगरा के रावत पाड़ा बाजार में भी मसालों, मेवों और अचार की मण्डी है। यहां मसाले थोक में मंगाकर कोल्ड स्टोरेज में रखने वाले व्यापारी भी हैं। बड़े व्यापारी हल्दी, मिर्च, आमचूर, मध्य प्रदेश से, धनिया राजस्थान से, जीरा गुजरात से और काली-मिर्च, लौंग दक्षिण से मंगाते हैं। इनमें जीरा, कालीमिर्च, लौंग छोड़कर सभी मसाले जल्दी खराब होते हैं इसलिए इन्हें कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है।
    हींग का आयात कच्चे माल के रूम में कजाकिस्तान से किया जाता है। हाथरस में इसे तैयार करने के कारखाने हैं। वहीं से उत्तर भारत के बाजारों में तैयार हींग भेजी जाती है। हींग के एक नामचीन व्यापारी बताते हैं कि कजाकिस्तान में पेड़ों पर हींग गोंद की तरह पैदा होती हैं। इसे इक्ट्ठाकर हींग का रूप दिया जाता है। सस्ती हींग मैदे से तैयार होती है, इस पर केवल महंगी हींग का लेप चढ़ा होता है। हींग 200 रू0 से लेकर 8 हजार रूपए किलो तक रावत पाड़ा बाजार में उपलब्ध है।
    रावतपाड़ा में अचार भी खूब बिकता है। यहां आचार की सालों पुरानी दुकान आपको ऐसा स्वादष्टि अचार खिलाएंगी कि आप सब्जी खाना भूलकर अचार की मांग करने लगें। अचार विक्रेता संजीव मित्तल बताते हैं कि उनके बाबा कन्हैयालाल अग्रवाल ने यहां अचार की दुकान 1910 में खोली थी। तब से उनका अचार शहर के अलावा ग्वालियर, झांसी, टूंडला, मिढ़ाकुर आदि जगह के लोगों को अंगुलियां चाटने पर मजबूर कर रहा है। वे बांस का अचार खास तौर पर तैयार कराते हैं। इसके लिए बांस हरिद्वार से मंगाया जाता है। यहां करौंदे का मुरब्बा, सेंजना का अचार भी अपने आप में अनूठे हैं।
    रावतपाड़ा बाजार के बारे में कहा जाता है यहां गदरकाल 1857 के बाद सबसे पहले लाला कोकामल ने मसालों का कारोबार शुरू किया था। आज भी उनके परिवार के लोग इसी व्यवसाय से जुड़े हैं। अब तो यहां मेवा, अचार, फूल, पेठे के अलावा दवाओं की भी दुकाने खुल गई है। इस बाजार का फैलाव सात-आठ सड़कों-गलियों तक है। ठीक लखनऊ के चैक-नक्खास बाजार की गलियों से मिलता जुलता।

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