Thursday, September 19, 2013

प्याज... न...न... लिपिस्टिक का जलवा!


लखनऊ। महंगाई, मंदी और मार्केट की अस्थिरता ने मध्यमवर्ग की हालत खस्ता कर रखी है, वहीं पूर्वांचल के निर्यातकों और विदेशों में कार्यरत कामगरों की बांछें खिली हुईं हैं। एक और हैरतअंगेज खबर है कि चैपट अर्थव्यवस्था के दौर मंे औरतों
ने पिछले तीन महीनों में अपने होठों का सौंदर्य बढ़ाने वाली लिपिस्टिक की बिक्री आसमान पर चढ़ा दी है।
    गौरतलब है शेयर बाजार की उठा-पटक, सट्टे की गरमी ने सोने की चमक ही नहीं फीकी की है वरन आम आदमी के खाने की थाली से लेकर भगवान के मंदिरों में चढ़ावे तक में कमी की है। लखनऊ के हनुमान सेतु से लगाकर आंध्रा के तिरूपति बालाजी मंदिर तक में दर्शनार्थियों की भीड़ जहां आधी रह गई हैं, वहीं चढ़ावा भी 35-40 फीसदी तक घट गया है। मध्यमवर्गीय परिवारों ने अपने भोजन से फल और सब्जियों के साथ मांसाहार में खासी कटौती की है। रेस्टोरेन्ट और ढाबों में खाने वालों में इधर खासी कमी आई है। पर्यटन के क्षेत्र में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। हैरतअंगेज है कि रूपए के लगातार गिरते जा रहे दौर में सौंदर्य प्रसाधन के कारोबार में कई वस्तुओं की बिक्री में अच्छी बढ़त हुई है। देश के बड़े अखबार ‘इकनाॅमिक टाइम्स’ के अनुसार देश में कलर कास्मेटिक्स का बाजार 16 सौ करोड़ रूपये का हैं जो पिछले दो सालों में 8 फीसदी सीएजीआर से बढ़ रहा है। इस बिक्री  में लिपिस्टिक का हिस्सा 42 फीसदी है जो पिछले तीन-चार महीनों में 25-30 फीसदी बढ़ा है। चेहरे पर लगाने वाले प्रसाधनों की बिक्री में 13 फीसदी व आंखों की सुंदरता बढ़ाने वाले प्रसाधन में 10 फीसदी की दर से बढ़त देखने को मिली है। 2013 के शुरूआती छः महीनों में रेवलाॅन लिपिस्टिक की बिक्री 30 फीसदी से अधिक बढ़ी है। अखबार के मुताबिक फिल्म अभिनेत्री और अमिताभ बच्चन की बहू ऐश्वर्या राय लोरियाल लिपिस्टिक के विज्ञापन में टीवी के पर्दे पर दिन में बीस बार दिखाई पड़ती हैं। काॅन फिल्म समारोह में भी वे इसी लिपिस्टक का एक खास शेड लगाये दिखीं थीं। मध्यवर्गीय परिवारों की औरतें ऐश्वर्या की नकल करने में दीवानी है, यह बात लोरियाल लिपिस्टिक की बढ़ी हुई बिक्री ने साबित कर दी है। लखनऊ के कई बड़े स्टोरों में आज भी लोरियाल आसानी से नहीं मिल पाती। औरतें महंगा प्याज व सोना खरीदने की जगह लिपिस्टिक खरीदने में अपने को अधिक सहज पाती है।
    बतातें चलें कि पूर्वांचल के खासे श्रमिक खाड़ी देशों में काम कर रहे हैं।, उनके द्वारा अपने घरों को भेजी जा रही तनख्वाह में इधर अच्छी बढ़त हो रही हैं। रूपए की गिरावट से कालीन, बनारसी साड़ी, सिल्क, रेशम फैब्रिक्स, हैंडीक्राफ्टस के दो - सवा दो हाजर करोड़ के निर्यात कारोबार से जुड़े निर्यातको में भी खुशी की लहर दौड़ रही है। विदेशों में कार्यरत भारतीयों ने पिछले साल देश में 70 अरब डाॅलर और 2011 में 55 अरब डाॅलर से अधिक की रकम भेजी थी।

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