Thursday, September 19, 2013

दूध, जल, फल, अन्न की बर्बादी!

लखनऊ। आस्था और आबादी के गड़बड़ाते संतुलन के दौर में दूध, जल, फल और अनाज की बर्बादी की बाढ़ से देश के 40 फीसदी लोग बेजार हैं। वह भी तब, जब महंगाई लगातार बढ़ रही है। रूपया लुढ़कता जा रहा है। गरीबों का पेट भरने के लिए खाद्य सुरक्षा कानून तक लाना पड़ा है। हाल ही में दूध के दामों में बीस-पच्चीस फीसदी व उससे बने उत्पादों की कीमतों में तीस-चालीस फीसदी का इजाफा हुआ है। फल आम आदमी की पहुंच से बाहर हो रहा है। एक केला चार रूपये, एक सेब 25 रूपए का बिक रहा हैं। सब्जियों का राजा आलू आम भारतीय रसोई से गायब होने लगा है। ऐसे भीषण संकट के दौर में बीते सावन में महादेव को प्रसन्न करने की गरज से लगभग सात लाख लीटर दूध अकेले लखनऊवासियों ने बेकार बहा दिया। इसके साथ ही करोड़ों लीटर पानी, टनों अनाज, फल-फूल कूड़े में फेंके गये। पूरे देश में इस आस्था की भेंट कितना दूध, जल, फल और अनाज बर्बाद हुआ होगा? और भादों, कुआर, कात्रिक (सितंबर, अक्टूबर, नवंबर) के पर्वाें पर कितनी बर्बादी होगी? श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, श्रीगणेशोत्सव, पितृपक्ष, नवरात्र, दीपोत्सव व गंगास्नान पर्वाें पर इन सभी खाद्य वस्तुओं की भीषण बर्बादी होगी। आपका अखबार ‘प्रियंका’ पहले भी (देखें ‘प्रियंका’ 1 मार्च, 2012 अंक में) लिख चुका है कि हम भारतवासी 883.3 करोड़ किलो अनाज हर साल जूठन में नष्ट कर देते हैं। इसकी तस्दीक संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत खाद्यान्न बचाओं मुहिम ने भी इसी साल की शुरूआत में अपने आंकड़े जारी करके की है। यूएनइपी के अनुसार एशियाई देशों में 11 किलों खाद्य प्रति व्यक्ति बर्बाद होता है। पिछले महीने केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने राज्य सभा में बताया था कि देश में हर साल 44 हजार करोड़ का खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। वह भी तब जब भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2012 में 79 देशों में 65वें स्थान पर है और 47 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। गरीबों की संख्या 40 करोड़ के आस-पास है। उप्र की राजधानी लखनऊ समेत कई शहरों में इसी साल अप्रैल-मई में 60-70 रूपए लीटर दूध बिका है। नागपंचमी पर कई सार्वजनिक संगठनों ने अपील की थी कि नागों को दूध न पिलाएं। दूध पीने से नागों की मृत्यु तक हो जाती है। यह वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के अनुसार अपराध है लेकिन आस्था के नाम पर दूध की बर्बादी रूक नहीं रही। देश में 11.6 करोड़ दूध का उत्पादन होने के बाद भी आधी से अधिक आबादी दूध से वंचित रह जाती है।
    आस्था का जुनून यहीं नहीं थमता जेठ के मंगलवारों (जून के महीने) मंे लखनऊ की हर सड़क पर दो-चार किलोमीटर की दूरी पर भंडारे के पंडाल दिख जाते हैं। नगर निगम, लखनऊ के एक अनुमान के अनुसार केवल बड़े मंगल पर 3500 भंडारे आयोजित किये गये थे। जिसमें लगभग 35 लाख लोगों ने भोजन किया। इन भंडारों में जल संस्थान का एक करोड़ 44 लाख लीटर पानी मुफ्त बांटा गया। इसमें कितना पानी बहाया गया, कितना खाद्यान्न कूड़े में फंेका गया किसी के पास आंकड़े हैं? इसी तरह सावन भर जगह-जगह भंडारे आयोजित होते हैं। देश भर में कभी कुम्भ, कभी अमरनाथ, तो कभी महादेव दर्शन की यात्राओं के लिए भंडारे आयोजित होते हैं। इन भण्डारों से लोग आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न लेकर स्टोर कर लेते हैं, फिर खा न पाने से इधर-उधर फेंक देते हैं। इससे खाद्यान्न की बर्बादी के साथ शहर भी गंदगी से शर्मसार होता है। गणेशोत्व की धूम है। 11 दिन चलने वाले इस महोत्सव में अकेले मुंबई में 30-35 लाख मैट्रिक टन फूल-माला, 40 लाख किलो गुलाल, 5-6 सौ टन मोदक व दोना-पत्तल, कागज बेहिसाब बर्बाद होगा। बाकी शहरों का जिक्र ही बेमानी है। यही हाल दुर्गा पूजा में होगा।
    इससे भी अधिक खतरनाक है आस्था का जूनून, जो लोगों की जान तक ले लेता है। कई बाद भगदड़ में लोग मारे जाते हैं, तो कई बार भीड़ के उन्माद में। अभी हाल ही में सहरसा-पटना के घमरा घाट रेलवे स्टेशन पर रेल की पटरियां पार कर कत्यायनी मंदिर में भगवान शिव को जल चढ़ाने जाते 37 कांवडि़ये राज्यरानी एक्सप्रेस की चपेट मंे आकार अपनी जान गांव बैठे। इसकी अति अपराद्द को भी जन्म दे रही है। हर साल कांवडि़ये देश के तमाम राजमार्गाें पर जाम लगाते हैं, लूट-पाट करते हैं, आपस में झगड़ते हैं। इसी सावन के आखिरी सोमवार को विद्दानसभा मार्ग पर ‘प्रियंका’ अखबार के दफ्तर के सामने बेहद रफ्तार से भागने वाले ट्रैफिक में घुसकर लोगों को जबरिया रोककर उनसे दस-बीस, सौ-पचास की वसूली करते कांवडि़यों को ‘प्रियंका’ संवाददाता ने स्वयं देखा। ये कांवडि़ये युवा थे। यह कौन सी आस्था हैं?

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