Monday, March 31, 2014

अरे... बिक तो रहे हैं गोलगप्पे

लखनऊ। चार फरवरी बीत गई, लेकिन गोलगप्पे भी ठेले पर बेचे जा रहे हैं। चाउमीन और कबाब पराठे भी सड़क किनारे बिक रहे हैं। बिरयानी, छोला-भटूरा कार्नर भी गुलजार हैं। कहीं कोई गुणवत्ता या मिलावट की जांच नहीं और न ही खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता प्राधिकरण की 4 फरवरी, 2014 तक हर हाल में लाइसेंस बनवा लेने की चेतावनी का कोई असर दिखाई दे रहा है।
    गौरतलब है पिछले साल फूड सिक्योरिटी एण्ड स्टैंडर्ड अथाॅरिटी आॅफ इंडिया ने खाने-पीने का सामान बेचने वाले खोमचे-ठेले वालों को 4 फरवरी, 2014 तक हर हाल में लाइसेंस बनवा लेने के दिशा-निर्देश जारी किए थे। जो दुकानदार ऐसा नहीं करेगा और सामान बेचता हुआ पाया जायेगा तो उसे 6 माह की सजा या पांच लाख रूपयों का जुर्माना भुगतना होगा। दरअसल खोमचे-ठेलों की बेतहाशा बढ़ोत्तरी और खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता में सुधार लाने के नजरिये से यह कदम उठाया जा रहा है। खाद्य सुरक्षा के उच्चाधिकारियों की माने तो इससे जहां उपभोक्ता को सही सामान मिलेगा वहीं प्रदूषण पर भी नियंत्रण होगा और  सरकार को राजस्व भी मिलेगा।
    यह कब होगा? अभी तो लोकसभा के चुनाव हैं। खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण जब अपना डंडा चलाएगा तब चलाएगा। ब्रांडेड कंपनियां तो अभी ही सब कुछ डब्बे में बंद करके बेच रही हैं। नारे भी लुभाने वाले हैं, मिलिये शहर के ‘बेस्ट’ पानी पुरी वाली ‘मेरी मम्मी से या मम्मी की बनायी पानी पुरी के साथ’। पानी पुरी और उसका मसाला घर में बनाने के लिए डब्बाबंद आम दुकानों पर बिक रहा है। इसी तरह सांभर, इडली, बड़ा, कचैड़ी से लेकर चाट, बिरयानी तक के सभी मसाले बाजार में उपलबध हैं। यही हाल जूस का भी है। गृहणियां इनका इस्तेमाल भी खूब कर रही हैं। इसके पीछे उनका तर्क भी वजनदार है, पानी पुरी का पानी बाहर अशुद्ध होता है और पूरी भी मिलावटी तेल में तली जाती है। इससे पेट तो खराब होता ही है, कई बार डायरिया और वायरल के वायरस लम्बी परेशानी में डाल देते हैं। इसके विपरीत घर में पानी भी शुद्ध होता है और तेल भी। जूस निकालने वाले जार की सफाई न बराबर दुकानदार करते हैं, जिससे बाजार के जूस से फायदा कम नुकसान अधिक होता है।
    मांसाहार बेचने वाले सड़क किनारे ठेलों पर बिरयानी, कबाब-पराठा, अंडा रोड, कलेजी खुले मंे बनाते हैं। उनमें घूल के साथ मक्खी-मच्छर पड़ जाना मामूली बात है। यही सब चाउमीन और चाट के ठेलों पर भी होता है। मेलों व पर्वाें पर खोमचे, ठेलेवालों की खासी भीड़ होती है। जहां पानी तो बोतलबन्द इस्तेमाल करने वाले उसे हाथ में पकड़े दिख जाते है, लेकिन गोलगप्पे ठेलों पर ही खाते दिखेंगे। मांसाहार का तो और बुरा हाल है। इनके ठेलों पर तो बाकायदा मयखाना खुला होता है, लोगबाग वहीं शराब पीते हैं और वहीं खाते भी हैं। इनकी ओर खाद्य सुरक्षाकर्मी कतई ध्यान नहीं देते? हां, पुलिस इन पर खासी मेहरबान रहती है। इनसे घंटे व दिन के हिसाब से वसूली होती है। कई व्यस्ततम पटरियांें पर तो वर्गफुट के हिसाब से पुलिसवाले पैसा वसूलते हैं। नगर निगम भी इस वसूली अभियान में साझीदार होता हैं। मेलों व साप्ताहिक बाजारों की वसूली करोड़ों रूपयों की होती। पिछले दिनों लखनऊ मध्यक्षेत्र से समाजवादी पार्टी के विधायक रविदास मेहरोत्रा ने लखनऊ पुलिस पर आरोप लगाया था कि पुलिस पटरी दुकानदारों से रोज 50 लाख रूपए की वसूली करती है। ऐसे हालात में यदि दुकानदार के पास लाइसेंस होगा तो उसे किसी तरह की वसूली का शिकार नहीं होना पड़ेगा। इसके अलावा खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा।
    खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता प्राधिकरण के चेयरमैन के दिशा-निर्देशों के अनुसार खोमचे, ठेले वालों के लाइसेंस बनवाने की तारीख 4 फरवरी, 2014 निकल गई है लेकिन अवैध ठेले-खोमचे की जाँच के लिए कोई सघन अभियान नहीं चलाया जा रहा है शायद लोकसभा चुनावों को देखते हुए यह सुस्ती है। बहरहाल अभी धड़ल्ले से बिक रहे हैं गोल-गप्पे और चाट!

1 comment:

  1. सहीं कहां आपने...... आपके ब्लाँग पर पहली बार आया हूँ,लेकिन आपकों पढ़ कर लगता हैं. हर दिन आना होंगा।।।

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