Thursday, April 18, 2013

न मुलायम, न सख्त सपा का हीरामन


लखनऊ। ‘टीपू सुल्तान’ जिन्दाबाद की गंूज में मगन सूबे की समाजवादी सरकार अपनी उपलब्धियों का ढोल खूब ऊँची आवाज में बजाने में मस्त है। यही वजह है कि जरूरतमंदों और भूखे-नंगों की आवाज नौजवान मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंच पा रही। यह सच है कि सरकार के युवा मुखिया अखिलेश यादव की छवि जो जनता के बीच बनी है वह निश्छल, ईमानदार और उत्साही आदमी की है। वे करना बहुत कुछ चाहते हैं, पर बेलगाम चाचाओं की फौज और बेअदब नौकरशाहों की अनुशासनहीनता का अंगदी पांव उनके आड़े आ जाता है। वे मीलों साइकिल चला कर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं, तो महज सुस्ताने के लिए नहीं। उनके मन मंे गरीबों, पीडि़तों और शोषितों के लिए बहुत दर्द है, लेकिन वे उनके लिए कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। वे प्रशासन को चुस्त बनाना चाहते हैं, पर सचिवालय में उनके आदेशों का पालन नहीं होता। उनकी घोषणाओं और चेतावनियों पर कोई ध्यान नहीं देता। तिस पर जब-तब सपा मुखिया की हड़क-दड़क। यही है साइकिल पर सवार उप्र की ठहाके लगाती सरकार का सच।
    मुख्यमंत्री की दयनीय हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें अपनी सरकार की सालगिरह के जश्न के बाद भी कहना पड़ रहा है कि अफसर सुधर जायें..., अब सख्ती होगी, प्रदेश में थानों की दशा देखकर बाहर से ही डर लगने लगता है... इनमें सुधार किया जाएगा। यह कानून और व्यवस्था से जलते सूबे के लिए आग में घी डालने जैसा है। वह भी तब जब सरकार ने विधानसभा सदन के भीतर माना है कि सूबे में अपराध  बढ़े हैं। अकेले 642 बलात्कार के मामले साल भर में हुए हैं। इन बलात्कार पीडि़तों के आँसूं पोंछने के लिए सरकार ने कुछ भी नहीं किया। जबकि विधानसभा चुनावों के दौरान सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने सिद्धार्थनगर व बाराबंकी की चुनावी सभाओं में जनता से वायदा किया था कि अगर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तो बलात्कार पीडि़ता लड़की को सरकारी नौकरी दी जाएगी और बलात्कारी के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही की जायेगी। तब अखबारों में इसे जहां प्रमुखता से छापा गया था, वहीं भारी विवाद भी हुआ था। अपनी उस घोषणा को सपा सरकार क्यों भूल गई? ऐसें में ‘वूमेन पाॅवर लाइन’ का क्या मतलब रह जाता है जब थानों में रपट लिखाने गई युवती/महिला को सुरक्षा देने की जगह थानेदार थप्पड़ मारकर भगा देता है? यही नहीं जिन पर सरकार चलाने की जिम्मेदारी है वे अपने निजी आर्थिक फायदे के लिए, जमीन के छोटे से टुकड़े के लिए, झूठे स्वाभिमान के लिए, धार्मिक स्थल के अपमान के नाम पर हिंसा के रास्ते पर चल पड़ते हैं। छोटी से छोटी बात को निपटाने के लिए उनमें सरकारी ताकत का बेजा इस्तेमाल करने की आदत बनती जा रही है। इसी के चलते हर तीन घंटे में पुलिस कहीं न कहीं मार खा रही है, कई पुलिसवालों की हत्याएं हो चुकी हैं। क्या युवा मुख्यमंत्री के इरादों और सोंच की इसी तरह द्दज्जियां उड़ाई जानी चाहिए?
    उत्तर प्रदेश में उद्योग लगाने के लिए आमंत्रण बांटते मुख्यमंत्री उद्योगपतियों के एक सम्मेलन में आगरा पहुंचे थे। तब अखबारों में औद्योगिक इकाई लगाने की उनकी महत्वाकांक्षी योजनाओं को प्रमुखता से छापा गया था, लेकिन अभी तक कोई करगर पहल नहीं हुई। वह भी तब जब सरकार 10729 करोड़ की रकम औद्योगिक विकास के नाम पर तय कर चुकी है। ‘आईटी हब’ की घोषणा के बाद बेहद धीमी गति से उस पर अमल हो रहा है। नौकरशाहों की काहिली का ही नतीजा है कि गए साल के बजट का आधा हिस्सा भी अधिकतर विभागों में खर्च नहीं किया गया। इतना ही नहीं कर वसूलने में भी कोताही बरती। सरकार और उसके कत्र्ताधर्ता आये दिन केन्द्र सरकर पर राज्य को पैसा न देने व बढ़ती महंगाई के लिए उस पर आरोप लगाते रहते हैं। हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। अफसरों के घुमा फिराकर दिये गये जवाब विधानसभा की कार्यवाही में मौजूद हैं। जवाहरलाल नेहरू रोजगार योजना और मनरेगा का क्रियान्वयन कलई खोलने के लिए काफी है। रही महंगाई बढ़ने की बात तो बेशक केन्द्र की नीतियां इसके लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन राज्य सरकार ने बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए कौन से कदम उठाए? जबकि नियोजन विभाग के अर्थ एवं संख्या प्रभाग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली वस्तुओं के दामों में 10 से 50 फीसदी तक इजाफा हुआ है। आज हालात इतने बदतर हैं कि सूबे में पैदा होते ही बच्चा 10988 रू0 का कर्जदार हो जाता है। यह कर्ज और बढ़ेगा नहीं इसकी क्या गारंटी हैै? जब बजट के आंकड़ें ही बता रहे हैं कि अब तक 219304 करोड़ रूपए का कर्ज बढ़कर इस साल 239878.35 करोड़ रूपये हो जाएगा। बिजली के मद में 32 हजार करोड़ रूपए से अधिक की देनदारी है। इसके लिए केन्द्र की वित्तीय पुनर्गठन योजना लागू करने की मशक्कत जारी है। इससे आम उपभोक्ता को झटका भर नहीं लगेगा बल्कि वह मरणासन्न हो जाएगा। यही नहीं सूबे के 26 जिला मार्गाें को डबल लेन करने के लिए एशियन डेवलपमेन्ट बैंक ने 2200 करोड़ रूपया कर्ज दिया है। कर्ज के बोझ से दबे सूबे के वाशिन्दे जीने मरने के लिए तड़प रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में रक्त समेत तमाम जांचे काफी महंगी हो गई हैं। वह भी तब जब रोगियों को आयुष डाॅक्टरों की गुंडई, उचित इलाज व दवा का अभाव झेलना पड़ता है। यही हाल कूड़ा प्रबंधन को लेकर है, सामान्यजन पैसा देने के बाद गंदगी और सफाईकर्मियों की बदतमीजी से बेहद परेशान है। सरकारी खजाना भरने के चक्कर में जगह-जगह शराब की दुकाने खोलने के साथ आधुनिक ‘शाॅर्पिंग माॅल’ मे ंभी शराब बेचने की इजाजत दे दी गई।
    मुख्यमंत्री निश्चित ही तेजतर्रार, लगनशील और मेहनती हैं। वे सुबह से देर रात तक बिना थके मेहनत करते हैं। उनकी सरलता का दुरूपयोग 80 फीसदी अफसर से लेकर मंत्री तक कर रहे हैं। उनकी सज्जनता के चलते ही सूबे में प्रजातंत्र की बहाली से लेकर विपक्ष के ऊँचे स्वर सुनाई देते हैं। तभी तो भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता आरोप लगाते हैं कि सूबे की सभी योजनाओं में मुस्लिमपरस्ती के साथ घोटालों का बोलबाला है। आरटीआई से हासिल जानकारी के आधार पर उनका दावा है कि राज्य सरकार ने अपने शुरूआती 8 महीनों में साढ़े आठ करोड़ रूपए बेरोजगारी भत्ते में बांटे और इसे बांटने के आयोजनों पर साढ़े बारह करोड़ खर्च किया। इसी तरह राजधानी लखनऊ में बांटे गए 10 हजार लैपटाप में अकेले 3192 शिया पीजी काॅलेज व 1569 करामत हुसैन गल्र्स काॅलेज को देकर मुस्लिम तुष्टीकरण किया गया। भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि 26 सौ करोड़ की इस योजना में भी इसके वितरण आयोजनों पर अनाप-शनाप खर्च किया जाएगा। सरकार मुर्गी से ज्यादा मसाले पर खर्च कर रही हैं?
    विपक्ष का आरोप है कि सरकार का पूरा साल नाकामियों से भरा रहा है। मुख्य विपक्षी दल बसपा के वजनदार नेता नसीमुद्दीन कहते हैं, सरकार साढ़े चार सीएम चला रहे हैं। वहीं कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मुझे तो समाजवादी पार्टी के हीरमन है सरकार की विफलताओं को जनता को बताने के लिए लगभग समूचा विपक्ष धरना-प्रदर्शन करके वापस अपने-अपने दफ्तरांें में पंखों के नीचे बैठकर अपने व अपने भय्याजी के लोकसभा चुनाव के टिकट पर बहस करने में व्यस्त हो गया है। मुसलमान उलेमा/नेता ‘सरकार चलानी है तो मुसलमानों की मदद करनी होगी’ जैसी धमकी देकर सरकार को दबाव में लेने के हर संभव प्रयास में है। हाल के कुंडा कांड से ठाकुरों में नाराजगी है। यादव (अहीर समाज) पार्टी दफ्तर से सरकार तक अपनी पूंछ ने होने से अंदरखाने नाराज है। कुल मिलाकर सपा का एटीएम (अहीर$ठाकुर$ मुसलमान) टूटने बिखरने के कगार पर है। वहीं सपा मुखिया 2014 में लोकसभा की कुल 80 सीटों को अपनी साइकिल पर लाद लेने के लिए बेताब हैं। किसी को भी दुनिया के सर्वाद्दिक गरीबों में 8 फीसदी आबादी वाले उप्र की चिन्ता नहीं है।
    मुख्यमंत्री अखिलेश को बिग-बिग थैंकयू बोलने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या 2014 के लोकसभा चुनावों तक 41 लाख से अधिक होगी अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा। इन सभी को तब तक लैपटाॅप, टैबलेट मिल जाने हैं। इस महत्वाकांक्षी योजना के साथ गरीबों को कम्बल, साड़ी, कन्या विद्याधन, हमारी बेटी उसका कल को भी जोड़ लिया जाय तो यह संख्या लगभग तीन करोड़ आती है। यह संख्या लोकसभा चुनावों में वोटों में कितनी ही कम तब्दील हो तो भी 1.5 करोड़ से अधिक का आकलन समाजवादी पार्टी के खेवनहार लगा रहे हैं।
    आम जनता की उम्मीदों के तारे मुख्यमंत्री साल भर में महज चार बार जन मुलाकात के लिए समय निकाल सके, बाकी के दिनों में विदेश में छुट्टी मनाने, क्रिकेट खेलने, आयोजनो-समारोहों में शिरकत करने, शहीदों के घरों पर जाने या फिर सरकारी काम-काज निपटाने में अतिव्यस्त रहे। शिक्षक सड़कों पर पिटते रहे तो स्कूलों में ‘मुन्ना भाईयों’ का बोलबाला रहा और संस्कारी मुख्यमंत्री अंकल-आंटी वाली नौकरशाही का सम्मान करते रहे। अति सज्जन, सौम्य मुख्यमंत्री 2013 के बाकी दिनों में इस सबसे उबर कर नये आशाजनक कदम उठा पाएंगे?

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