Thursday, April 18, 2013

भू-स्वर्ग के नक्शे में दर्ज है राम राज्य का संविधान


धूप ने करवट क्या बदली, सियासत से समाजवाद तलक का मिजाज गरम हो गया। अक्षर अँगार तो भाईचारा भयंकर। अपराध की दहशत के साथ महंगाई भी हमलावर। तिस पर मनोरंजन के नाम पर टेलीविजन ठप और गुटखे पर पाबंदी से नशा हिरन। ऐसे में कलम से निकलती नीली-नारंगी किरणें कौन सा विस्फोट कर देंगी? मैं इसी जगह, इसी कागज के टुकड़े ‘प्रियंका’ में लिखता रहा हूँ, ‘रावण के पुतले को जलते हुए देखकर ताली बजाने वाले हिजड़ों की जमात में शामिल होकर हिंसा का उत्सव मनाने भर से कोई बदलाव नहीं होने वाला और न ही ‘या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण...’ के सस्वर पाठ से नारी अस्मिता की रक्षा होने वाली है।’
    समुद्र मंथन की तरह समाज मंथन की भी अलख जगानी होगी। ‘लक्ष्मी’ की जगह माँ को, केवल माँ को प्रणाम करने का संकल्प लेना होगा। नवसंवत् 2070 के स्वागत के साथ माँ दुर्गा के नौ रूपों का पूजन और प्रभुश्रीराम का जन्मदिवस मनाते हुए आत्ममंथन करना होगा। समुद्र मंथन से ही संवत्सर की उत्पत्ति हुई है- समुद्रादर्णवादधि संवत्सरों अजायत। समाज मंथन से ही भू-स्वर्ग का नक्शा हासिल होगा। इसी नक्शे में दर्ज होगा राम राज्य का संविधान और सृष्टि की रचनाकार मां का दुलार भी। नवसंवत् 2070 ‘पराभव’ के राजा बहृस्पति व मंत्री शनि का अभिनन्दन तभी सार्थक होगा, जब नारी के सम्मान को ठेस नहीं लगेगी। अपराध, अधर्म और अशिष्टता को छूत की बीमारी माना, जाना जाएगा। परिवार की पाठशाला में एकल परमाणु ऊर्जा (न्यूक्लीयर फेमिली) या सेक्स सर्कस के पाठ्यक्रमों की जगह जीवन के सत्य से साक्षात्कार कराने वाले आचरण को शामिल करना होगा। पाखण्ड और पश्चिम के प्रेम से पैदा होने वाले बाजार की चकाचैंध से अपनी पीढ़ी को सचेत करना होगा, तभी तो नई पीढ़ी को माँ का आंचल नसीब होगा।
    क़लम है मेरी मां का नाम..... बड़ी बुलंद आवाज में बार-बार दोहराते हुए ‘प्रियंका’ 34वें बरस में दाखिल हो चुकी है। इस दौर-दौरे में झूठ-मूठ के गीत गाने से जहां परहेज बरता गया, वहीं दाल-भात की लड़ाई लड़ने वालों के साथ सुर में सुर मिला कर खबरों के विस्फोट सत्ता के महलों में किये गये। यही वजह रही कि दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में ‘प्रियंका’ को भरपूर दुलार मिला, तो कई जगहों पर पाठकों/संवाददाताओं ने मिल बांट कर पढ़ा, लोकापर्ण किया और प्रसार-प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। मजा तो यह रहा कि पूरे बरस भर राजनीति के कटरे से नदारद रही ‘प्रियंका’। कहीं से कोई शिकायत नहीं आई उल्टे पाठकों की संख्या में इजाफा हुआ। बावजूद इसके ‘चीथड़े’ की संज्ञा से भी सामना होता रहा। किसी ने नाम नहीं सुना, तो कोई स्वर्गीय राजीव गांद्दी की बिटिया से नाता जोड़ने की गफलत में रहा। इससे कोई घबराहट या शर्मिन्दगी नहीं हुई। हां, खबर लिखने, अखबार बेचने के लिए जिस इरादे की जरूरत थी उससे तनिक भी पीछे हटने की कोशिश नहीं की, क्योंकि पाठकों ने, विज्ञापनदाताओं ने और जिलों, शहरों, कस्बों में बैठे ‘प्रियंका’ के संवाददाताओं ने कभी इस ओर सोंचने का मौका ही नहीं दिया। गुरूजनों और पाठकों के आशीर्वाद से चैंतीस बरस के बालिग समाचार पाक्षिक का ‘वार्षिंकांक-2013’ आदमी की पैरोकारी का हलफनामा दाखिल कर रहा है।
    सियासत की हकीकत बयान करते हैं ‘लखनऊ में पिटा एक मुख्यमंत्री, ‘गरीबी-गरीबी खेलें, ‘सपा का हीरामन। उत्सवप्रियता और आस्था के दर्शन ‘रामकथा,’ ‘कुंभकरण के बेटे’, ‘रावण की लाश’, ‘गोबर के लड्डू का चढ़ावा’, ‘एक मेला था छैल-छबीला’, ‘मां दुर्गा पूजन’ में होंगे। ‘आधी सड़क’ पर पसरी नंगी हकीकत से सामना होगा, तो ‘हिन्दी के स्वर्णाक्षर ‘सुधा’, हिन्दी के पुरखों की पत्रकारिता को उजागर करने के साथ हिन्दू-मुसलमान खांचे के निर्माण के सच से सामना भी कराएंगे। हिन्दी पत्रकारिता, हिन्दी साहित्य और हिन्दी के समाचारों का वह दौर सच में हिन्दी का स्वर्णयुग था। और अन्त में केदार नाथ सिंह की यह लाइने -
मैं पूरी ताकत के साथ
शब्दों को फंेकना चाहता हूँ
आदमी की तरफ
यह जानते हुए कि आदमी का
कुछ नहीं होगा
मैं भी सड़क पर सुनना चाहता हूँ
वह धमाका
जो शब्द और आदमी की टक्कर से
पैदा होता है
यह जानते हुए कि लिखने से
कुछ नहीं होगा
मैं लिखना चाहता हूँ

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