Thursday, April 18, 2013

लखनऊ में पिटा एक मुख्यमंत्री

लखनऊ के पांवों के नीचे लहू से सराबोर सुर्ख चादर बिछाने की मशक्कत ललमुंहे फिरंगियों से किसी भी मायने में कम उसके अपनांे ने नहीं की, बेटा चुगलखोर, तो बाप मुंहजोर। सरकारी ओहदेदार उस्ताद, तो मुख्यमंत्री सरगना। रिश्ते-नातों में आपाधापी, महलों में रंगरंलियों के ठहाके और चुंगी से लेकर कचेहरी दरबार तक रिश्वतखोरी, लूट का बांकपन छितराया था। गजब ऐसा कि बादशाह अमजद अली शाह जहरखुरानी का शिकार हुए। तकदीर की बुलंदी तो देखिए कि मामूली शहजादे से वली अहद का ओहदा पाये वाजिदअली शाह अवद्द की सल्तनत के तख्त पर काबिज हुए। बांके-तिरछों की बन आई, मोतियों के थाल लुट गये। हर तरफ हैरानी परेशानी, फरियादी गलियों में जूतियां चटकाते फिरते। ऐसी हाय तौबा, ऐसा गुस्सा कि सूरज और गरम हो जाये और चांद का निकलना दुश्वार। गुस्से ओ.. गम की द्दुंध के बीच हैरतअंगेज हादसे से लखनऊ सहम गया।
    मुंशी केवल किशोर ‘नादिर उसल असर’ में लिखते हैं, ‘गोलागंज के मलिका-ए-जमानी के इमामबाड़े के पास से मुख्यमंत्री अमीनुद्दौला अपनी बग्धी में बैठा हुआ गुजर रहा था। उसके साथ उसका बलिष्ठ नौकर हुलास भी था। अचानक चार आदमी सामने आ गये। उनमें से एक तफज्जुल हुसैन ने घोड़े को काबू में किया और मुख्यमंत्री से अपनी बांकी की तनख्वाह मांगी। बर्खास्त नौकर समझ अमीनुद्दौला जब तक कुछ कहते तब तक और तीनों आदमी सामने आ गये। हुलास ने चारों को ललकारा तो एक ने गोली चला दी मगर निशाना चूक गया। दूसरे फजल अली नाम के बादमाश ने ‘मारो-मारो’ की हांक देकर अपनी बंदूक दाग दी गोली सही निशाने पर लगी हुलास लहूलुहान गिरते मरते भी अपनी तलवार से एक बदमाश हैदर खां को घायल कर गया। घायल हैदर दर्द से बेपरवाह अपने साथी तफज्जुल के साथ हाथ में खंजर लिए बग्घी में घुस गया। दोनों मुख्यमंत्री को काबू करने में गुत्थम-गुत्था हो गये लेकिन मुख्यमंत्री ने दोनों को थाम लिया। इस बीच तीसरे ने अपनी तलवार से मुख्यमंत्री के कंधे व बाजू को घायल कर दिया। चारों ने एक साथ उन्हें पीटकर दबोच लिया और दो बदमाशों ने उनके सीने से खंजर टिकाकर धमकी देते हुए कहा, ‘हम तुम्हारी जान नहीं लेंगे मगर किसी मददगर या तमाशबीन ने हम पर हमला किया तो यकीनन तुम्हें मार डालेंगे।’ तब तक भीड़ जुट गई थी लेकिन किसी ने मदद की पहल न की, मुख्यमंत्री खून बहने से खड़े नहीं हो पा रहे थे, टूटे-फूटे शब्दों से लोगों से मदद की गुहार भी लगा रहे थे लेकिन डर से कोई नहीं बढ़ा। बदमाशों ने उन्हें बग्धी से उतारकर पास की पुलिया पर लिटाया मगर खंजर की नोक जरा भी जुम्बिश न खाई।’
    इस हौलनाक खबर को पाकर अंग्रेज रेजीडेन्ट अपने सहायक लेफ्टिनेंट बर्ड के साथ चंद मिनटों में मौका-ए-वारदात पर पहुंच गया। मामले को रफा-दफा करने की कोशिश को नाकाम करते हुए एक बदमाश बोला, ‘अजी, अंधेरेगर्दी मची हुई है। दरबार में भले आदमियों की गुजर नहीं, नौकरी छीन ली। अब कहां से खांएं? हमें मजबूरी में यह सब करना पड़ रहा हैं मुख्यमंत्री को हम तभी छोड़ेंगे जब हमें पचास हजार रूपया नकद और बगैर छेड़छाड़ के कानपुर जाने दिया जाएगा।’
    रेजीडेन्ट ने किसी समझौते से इनकार करते हुए वायदा किया कि यदि वे मुख्यमंत्री को सही सलामत छोड़ देंगे तो उन्हें भी कुछ नहीं होगा। उन्हें रेजीडेंसी में पनाह दी जायेगी अवध सरकार को नहीं सौंपा जायेगा और पचास हजार रूपयों को मुख्यमंत्री से ही तय करें। इसी बीच मुख्यमंत्री के रिश्तेदार तीन-चार हाथियों पर पचास हजार रूपए लादकर आ गये। बदमाशों को रेजीडेन्ट मय रूपयों के रेजीडेन्सी ले आये और एक कमरे में टिका दिया।
    रेजीडेन्ट ने खुद जाकर नवाब वाजिद अली शाह को पूरा वाक्या सुनाया। नाराजगी के बाद बदमाशों के लिए अपने सिपाहियों के साथ हथकडि़यां भेजीं लेकिन रेजीडेन्ट ने मना कर दिया। बाद में इन बदमाशों को अवध सरकार को सौंप दिया गया। मेजर जनरल स्लीमेन की किताब ‘ए जर्नी थ्रू दि किंगडम आॅफ अवध’ के अनुसार मुख्यमंत्री ने नवाब को लिखकर भेजा था कि मुजरिमों को फैसला होने तक मारा-पीटा न जाय। बदमाशों पर मुकदमा चला, तीन बदमाशों फजल अली, तफज्जुल हुसैन, हैदर खान को उम्र कैद हुई। पीलीभीत के रहने वाले चैथे बदमाश अली मुहम्मद को पीलीभीत भेजकर उस पर कड़ी निगरानी रखी गई। नवाब वाजिदअली ने इसे सल्तनत की बेइज्जती मानी और मुख्यमंत्री अमीनुद्दौला को बरखास्त कर दिया। नए मुख्यमंत्री हुए अली नकी जिन्हें बाद में अंग्रेजों ने खरीद लिया था। यही अवध की सल्तनत को अंग्रेजों की झोली में डालने का असल षड़यंत्रकारी भी कहा जाता है।
प्रियंका एलकेओ ब्लाग से

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