Thursday, April 18, 2013

आदमी हूँ तो आदमियत की बात करता हूँ

कलम को किसी एक की हिमायत में या तारीफ में अड़ाना बहुत ठीक नहीं है। कलम पर बिना हिचक पेड पत्रकारिता या पीत पत्रकारिता का इलजाम लगते देर नहीं लगती, लेकिन जो सामने दिखता हो उसे कागज पर लिख देना पत्रकार का कर्तव्य नहीं? पत्रकारिता का धर्म नहीं? इसीलिए एक सजग कलमकार की हैसियत से एक सेवाभावी आदमी का विशलेषण करने की जरूरत होती है। भले ही उसे व्यक्तिगत कहकर आरोपों की चहारदीवारी में धकेला जाय। उससे पहले बता दूं, जब व्यक्तिगत सार्वजनिक होने लगे तब उस पर बात होनी लाजिमी है। कलम चले बगैर रह ही नहीं सकती, खासकर जब सूखे की राजनीति में खुब्तुलहवासी की जोरदार हवा बह रही हो।
    इतनी लाइने लिखनी इस कारण पड़ीं कि नौकरशाही से सार्वजनिक सेवा के हाइवे पर आ रहे डी.के. शर्मा के सार्थक प्रयासों का जिक्र करने जा रहा हूँ। डी.के. शर्मा का नाम लखनऊ के रहने वाले बहुत अच्छे से जानते हैं। किसी भी राजनैतिक दल के नेता, कार्यकर्ता और सामान्यजन मेें मृदुभाषी शर्माजी खासे लोकप्रिय हैं। इसके पीछे उनका लक्ष्यघोष ‘जल ही जीवन है’ रहा है। वे लखनऊ जल संस्थान में सचिव से महाप्रबन्धक पद पर मुस्कराता हुआ सेवाभावी चेहरा रहे। सबकी सुनना, उसका समाधाना करना बल्कि उसे यूं भी कह सकते हैं लखनऊ का प्याऊ रहे। शर्मा जी ब्राह्मण परिवार में जन्में लेकिन उनके लिए पानी कभी भी मुसलमान या हिन्दू नहीं रहा। रमजान हो या होली-दिवाली जलापूर्ति के लिए उन्हें धर्मगुरूओं से लेकर राजनेताओं तक ने  सराहा। उनके साथ काम करने वाले कर्मचारी आज भी उनकी कार्यशैली की तारीफ करते नहीं अघाते। इसकी गवाही में जलसंस्थान के कर्मचारी संगठन के पदाधिकारी कहते हैं, कर्मचारियों की समस्याओं के लिए कभी प्रदर्शन, घेराव या आन्दोलन की नौबत नहीं आई। वे हर कर्मचारी का दर्द समझते थे।’ यही हालात घड़ाफोड़ जैसे जन प्रदर्शन की भी रही। उनकी इसी छवि ने उन्हें विराम नहीं लेने दिया। वे आज भी हर दिन दो-ढाई सौ लोगों से मिलते हैं। उनकी समस्याओं को सुनते हैं, भरसक उससे छुटकारा दिलाने का सार्थक प्रयास करते हैं। इसे नेतागीरी या सेवाभाव के खानों में नहीं बांटा जा सकता। यह स्वाभाविक मानवीय गुण है, जो उनके छात्रजीवन से ही निखरने लगा था। जब वे गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कालेज के छात्र थे तभी वहां के छात्रों ने उन्हें अपना अध्यक्ष बनाया था। छात्रसंघ अध्यक्ष डी.के. शर्मा को उनके साथी आज भी भूले नहीं हैं। चुनावी राजनीति और गठजोड़ों की तारीफ? उनके पुराने साथी बेहद प्रभावी अंदाज में करते।
    महापुरूषों ने जिन सपनों के लिए संघर्ष किया, वे आज जगह-जगह बिखरे दिखाई देते हैं। आम आदमी हारा और हताश है। राज्यसत्ता अपनी महात्वाकांक्षाओं के चैराहे पर खड़ी होकर जनप्रलाप सुन नहीं पा रही है। अपराध, हिंसा, अलगाव और विकास के फटे ढोल की धमक से सूबे भर के लोग बिलख रहे हैं। छोटी से छोटी समस्या के लिए उम्मीद बांधे लोगों में निराश है। इस पीड़ा का अनुभव शर्मा जी को लगातार होता रहा, इसीलिए सेवानिवृत्ति के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर उसके द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने में अगली कतार में दिखते हैं। पिछले दिनों सपा सरकार के कानून-व्यवस्था में विफल रहने को मुद्दा बनाकर कांग्रेस द्वारा किये गये राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन के दौरान राजद्दानी लखनऊ में प्रदेश कांग्रेस
अध्यक्ष निर्मल खत्री के नेतृत्व में कदम से कदम मिलाते हुए डी0के0 शर्मा चले। इस आयेजन के प्रचार की कमान वे बखूबी सम्भाले रहे।
    सामाजिक संगठन परशुराम ब्राह्मण जन कल्याण समिति के प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतीय लोकाधिकार संगठन के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष व एक दैनिक समाचार-पत्र के सलाहकार सम्पादक होने के साथ सियासत के मोहल्ले में भी अपनी पूरी उपस्थिति दर्ज कराए हैं। लखनऊ के कांग्रेसजनों के बीच जहां लोकप्रिय हैं, वहीं राजधानी के लाखेां वाशिन्दों के बीच जाना-पहचाना चेहरा हैं। वे जनविकास की जिम्मेदारी निभाते हुए हजारों कदम चल चुके हैं। उनका कहना है कि आदमी हूं तो आदमियत की बात करता हूं। उन्हें पूरा विश्वास है कि विकास का जो रास्ता कांग्रेस चुनती आई है। उससे हर देशवासी को लाभ पहुंचता रहा है, और आगे भी पहुंचेेगा। महंगाई का बढ़ना, भ्रष्टाचार का गहराना और महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध बढ़ती आबादी और सामाजिक मान्यताएं टूटने के कारण जिस तेजी से अपने पांव पसार रहे हैं, उसी तेजी से कांग्रेस उनके समाधान के रास्ते भी तलाशती जाती है। जाति, सम्प्रदाय, क्षेत्रीयता आदि संकीर्णताओं से ऊपर उठकर एक बेहतर समाज बनाने के कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के अभियान में पूर्णतया समर्पित डी0के0 शर्मा निरंतर सक्रिय हैं। शर्मा जी के जनसंपर्कों को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी सराहा है।

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