Thursday, April 18, 2013

वजीर-वजीर... जी... हुजूर.. आओ गरीबी गरीबी खेलें

नई दिल्ली। देश के सरकारी सफेद वाले कागजों से लेकर चांदी सी चमकती दीवारों पर लिखे बलन्द नारे गरीबी हटाओं को भजते-पढ़ते और नौकरशाह से नेता तक को गरीबी-गरीबी खेलते 65 साल गुजर गये। इस दौर-दौरे में आबादी बढ़ी, आमदनी बढ़ी, महंगाई बढ़ी, कर्ज बढ़ा, घोटाले-घपले बढ़े, कारपोरेट घरानों, राजनेताओं और नौकरशाहों की दौलत बढ़ी, मध्यवर्गीय अमीर बढ़े और गरीबी की रेखा के नीचे जीने वालों की संख्या पहुंच गई 1947 की जनसंख्या के आंकड़े 37 करोड़ के बराबर। गांवों में 60 फीसदी लोग 35 रूपये, तो शहरों में 10 फीसदी लोग 20 रूपये रोज पर गुजर करने वाले सरकारी रजिस्टर में दर्ज हैं। वह भी तब जब देश में पिछले बरस अकेले गेहूं की पैदावार 317 लाख टन हुई थी और इस साल 235 लाख टन संभावित है। दूध, दाल और जूट के उत्पादन में दुनियाभर में अव्वल है, भारत।
    हकीकत का बही खाता बताता है कि बरफ का गोला बेचने वाला सुदूर गांवों में मोबाइल के टाॅपअप बेचने से बैटरी चार्ज करने के धंधे में लगा है। पांच रूपये की गोरा बनाने वाली ‘फेयर एण्ड लवली’ क्रीम व एक रूपये का शैम्पू पाउच ग्रामीण व शहरी गरीब धड़ल्ले से खरीद रहे हैं। छोटा पैक मैगी से लेकर चाऊमीन तक उन गांवों में बिक रहे हैं जिनका नाम भी देश के वित्तमंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने नहीं सुना होगा। बिजली, मोबाइल टाॅवर से लेकर केबिल/डिश नेटवर्क का जाल बैटरियों, जेनरेटर, इन्वर्टरों के सहारे लगातार अपने पांव पसारता जा रहा है। एकदम ताजा उदाहरण उप्र के इलाहाबाद में पचास दिनों के कंुभ मेले में जहां सरकार ने 16 हजार करोड़ खर्च किये वहीं मेले में आए 10 करोड़ लोगों के एक लाख करोड़ से अधिक खर्च करने का अनुमान है। इसी तरह बीती महाशिवरात्रि में आस्था के नाम पर करोड़ों लीटर दूद्द गटर में बहा दिया गया।
    मनरेगा की मजदूरी में लाख घपले हों लेकिन आम श्रमिक की आमदनी में खासा इजाफा हुआ है। गांवों से आज भी शहरों में आकर और विदेश (गल्फ) जाकर कमाने वालों का रेला कम नहीं हुआ है। ग्रामीण इलाकों की झोपड़ी और बाजार नये बदलाव से रौशन हो रहे हैं। नाई से लेकर कसाई, दर्जी से लेकर जूता गांठने वाले तक हाईटेक और ब्रांडेड के नशे में गाफिल हैं। करोड़ांे की आबादी दोहरे राशनकार्ड, वोटर कार्ड और दो पत्नियों के सुख में मस्त हैं। मगर उनके घरों में शौचालय नहीं, पीने का शुद्ध पानी नहीं है और गांव/मोहल्ले में अस्पताल, स्कूल नहीं है।
    कबाब-पराठे खाकर बोतलवाले पानी से योजनाओं का गरारा करते हुए आंकड़ों की कुल्ली करने वाले ही बताते हैं कि हर साल 30 फीसदी उत्पादन बर्बाद हो जाता है, किसानों को अपनी कमाई का अधिकतम 23 फीसदी ही मिलता है। 80 फीसदी किसान भारी कर्ज में डूबा है तो 60 फीसदी कर्ज न चुका पाने के चलते आत्महत्या कर लेते हैं। कर्जमाफी घोटाले के बाद इस साल के बजट में किसानों को 7 लाख करोड़ का कर्ज देने का इंतजाम किया गया है। वहीं देशभर के 172 बड़े घराने बैंकों की 37 हजार करोड़ से अद्दिक की रकम दबाए बैठे हैं। कुल आबादी का सत्तर फीसदी रोजमर्रा की जरूरतों का मोहताज है। उसके लिए दवाई, सफाई, पढ़ाई और सुरक्षा के नाम पर योजनाओं का ठेंगा, वहीं देश में 10 लाख करोड़ रूपया महज 55 अरबपतियों के पास है। इन्हीं के सात हजार दो सौ पच्चानबे भाई बंदों पर सरकारी बैंकों का 68262 करोड़ रूपया बकाया हैं। यह रकम मनरेगा पर खर्च होने वाली राशि से दोगुनी और पौने चार करोड़ किसानों को दी गयी कर्ज माफी से अधिक है। सरकार को टैक्स अदा करने वाले 3.24 करोड़ लोगों में 89 फीसदी की सालाना आमदनी 5 लाख रू0 तक है। बाकी के 11 फीसदी अमीरों/कारपोरेट्स को हर साल 5.15 लाख करोड़ रूपये से अधिक की टैक्स रियायत दी जाती है। इसे खत्म कर दिया जाये तो राजकोषीय घाटा स्वतः खत्म हो जायेगा। 55 करोड़ युवा आबादी रोजगार के मौके तलाशते हुए बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ा रही है, तो 10 करोड़ बुजर्ग वरिष्ठ नागरिक सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं। 48 करोड़ महिलाएं अपनी सुरक्षा, समानता और सम्पन्नता के लिए बेचैन हैं। वित्तमंत्री के मुताबिक देश में प्रति व्यक्ति आय 38,037 रू0 है। रेलमंत्रालय के आंकड़े गवाह हैं कि दो करोड़ तीस लाख लोग रोज रेलवे को 245 करोड़ की आमदनी करवाते हैं।
    इससे इतर इस साल के बजट में जेब काटने और मूर्ख बनाने के इंतजाम भी बेहद मजबूत हैं। 14 हजार करोड़ रू0 से ग्रामीण क्षेत्रों में नये बैंक खोले जाएंगे। नए बैंक की हर चैथी शाखा गांव में खोली जाएगी। इसी तरह 10 हजार करोड़ रूपयों से महिलाओं के लिए अलग बैंक खोले जाएंगे। इसके मायने हैं कि सरकार जानती है कि गांवों में पैसा है। महिलाओं के पास पैसा है। देशवासियों के पास पैसा है। तभी तो उनसे पैसा निकलवाने के लिए हर छोटे से छोटे पहलू पर हाल ही में गौर किया गया है। तिस पर तुर्रेदार नारा है आत्मनिर्भर बनाने का। सरकारी आंकड़ों (2011-12) के मुताबिक देशवासी अपनी आमदनी का 31.2 फीसदी खाने-पीने पिलाने व तम्बाकू पर, 20.2 फीसदी परिवहन, संचार और सबसे कम 3 फीसदी मनोरंजन, शिक्षा व सांस्कृतिक सेवाओं पर खर्च करते हैं। इसीलिए आयकर से लेकर मनोरंजन, संचार तक में वसूली के नये फरमान जारी हो रहे हैं। रेल का किराया न बढ़ाकर आरक्षण में सरचार्ज और मालभाड़े में 5 फीसदी इजाफा कर आदमी की जेब काटी जाएगी। यही नहीं 10 हजार करोड़ खाद्य सुरक्षा के लिए देकर सरकारी सांड़ों को भ्रष्ट होने का पूरा मौका भी दे दिया गया है। केन्द्र सरकार बहुत शीघ्र सांतवें वेतन आयोग को लागू करने पर विचार कर रही है यानि आने वाल सालों में महंगाई और बढ़ेगी, कर्ज और बढ़ेगा।
    मानव विकास सूचकांक में हमारा देश भले ही 186 देशों की सूची में 134वें पायदान पर हो। इस साल 542,449 करोड़ रूपए उधार लेने की सोंच बनाए है और 2011-12 के अंत में 34508 अरब डाॅलर की विदेशी उद्दारी थी। वहीं मार्च 2012 तक अमीर घरानों के चलते 2 लाख करोड़ का बैंकों का एनपीए है। इसकी वसूली वित्तमंत्री के बयानों में उलझ कर रह गई है। यहां बताते चले ंकि महंगाई की खुदरा दर 11 फीसदी के पास है फिर भी दिल्ली, मुंबई दुनिया में सबसे सस्ते शहर माने जाते हैं। राज्य सरकारों में उप्र में कन्या विद्याद्दन, बेरोजगारी भत्ता, छात्र-छात्राओं को छात्र वृत्ति, मुफ्त लैपटाॅप/टैबलेट, मिड-डे मील, किसानों को कर्ज माफी और मुफ्त साड़ी जैसी योजनाएं खुले हाथों चलाई जा रही हैं। तामिलनाडू सरकार गरीबों को दो रूपये किलो चावल से लेकर विद्यार्थियों को एक साल में तीन कमीज-पैंट, पाठ्य पुस्तकें, एक साइकिल, ट्रेन/बस का पास, दिन का भोजन व छात्रावास में रहने की मुफ्त सुविधा दे रही है। पोंगल जैसे पर्व पर एक साड़ी, एक धोती, 500 रू0 नकद व अतिरिक्त राशन भी देती है। शायद चुनावों के चलते या क्षेत्रीय दलों की सरकारों को पछाड़ने की गरज से गरीबों को केन्द्र सरकार हर महीने 1 रू0 किलो ज्वार, 2 रू0 किलो गेहूँ, 3 रू0 किलो चावल कुल पांच किलो अनाज देगी। दरअसल गलत आंकड़ों के सहारे विकास के नाम पर राजनेता, नौकरशाह और काॅरपोरेट घराने आदमी का दोहन करने के साथ विश्व के मानचित्र पर ‘भिक्षान देहि’ की आड़ में अपनी तिजोरी भरने में जी जान से लगे हैं। यही काम साद्दू -संतों और मजहबी उद्योग भी करने में आगे-आगे खड़े होकर गरीबी-गरीबी खेलने में मगन हैं। सच में गरीबी कितनी गरीब हैं, यह शोध का विषय है।

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