Sunday, June 30, 2013

एक मच्छर... आदमी को बना देता है हिजड़ा

लखनऊ। मच्छरों का हमला हो चुका है और उनकी आक्रमता युद्ध जैसी बर्बर है। क्योंकि वे अकेले नहीं हैं। उनके साथ कीट-पतंगों की भारी फौज उनकी सहयोगी है और सहयोगी हैं नगर निगम के नाकारा अधिकारियों, बेखौफ सफाईकर्मियों व उनके संगठनों की समूची ताकत। इसके अलावा उनकी तरबीयत के लिए है बरसात का पानी, जो राजधानी के हर हिस्से में पूरी ढिठाई से भरा है। यह हमला सियासत, आतंकवाद या नक्सलवाद से प्रभावित नहीं है। इसके पीछे भ्रष्टाचार, घपलों-घोटालों के माफिया और उद्दंड नस्लवादी ताकतें हैं, तो उनकी महत्वाकांक्षाओं के साझेदार हमारे अपने भाई बंद भी हैं।
    बरसात की शुरूआत के ऐन पहले सूबे के मुख्यमंत्री को शहर के शानदार इलाके गोमतीनगर के विकल्पखण्ड से सीवर के गंदे पानी में लापता सड़क से गुजरने का जोखिम उठाना पड़ा। यही नहीं प्रदेश के महामहिम, नगर विकास मंत्री और नगर के प्रथम नागरिक मेयर तक ने राजधानी की सड़कांे; गालियों में पसरी गंदगी से उठती दुर्गंध को साफ करने के आदेश दिये। गैरहाजिर सफाईकर्मियों का वेतन काटने के बयान अखबारों में छपवाये गये। नतीजा सिफर का सिफर। सारा शहर कूड़े-कचरे, जल भराव, बजबजाती नालियों, सड़ते भोजन सामग्रियों और प्लास्टि पाॅलीथीन से गंधा रहा है। नगर विकास मंत्री ने महज पांच दिन पहले राजधानी की नगरीय सुविधाओं को बदतर करार दिया है और अफसरों को नाकारा घोषित किया। नगर आयुक्त ने शहर में अपनी कार घुमाई तो पाया कि निजी संस्था व निगम के सफाईकर्मी गायब, उनके सुपरवाइजर, इंस्पेक्टर, जोनल अधिकारी तक लापता थे।इस बदइंतजामी के घमासान में राजधानी के नागरिकों, व्यापारियों और सफाईकर्मियों के बीच आये दिन झड़पों से लेकर सर फुटौव्वल तक की नौबत आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण सफाईकर्मियों का काम न करने का मंसूबा और इसे शह देते हैं उनके सफाई मजदूर संगठन। और इस शह-मात की बिसात पर चालें चलने वाले है, बड़े-बड़े राजनैतिक दल और उनके कद्दावर नेतागण। साफ-साफ यह वोटों के खेल का षड़यंत्र है?
    शर्मनाक तो यह है कि राजधानी की धरती पर सर झुकाए मुस्कराते हुए आने वाले तमाम देशी-विदेशी मेहमानों की व्यंगात्मक वाणी में कहा गया जुम्ला ‘माशाअल्लाह... ऐसा बदसूरत तो नहीं था लखनऊ’ भी इन नामाकूलों में कोई हरारत नहीं पैदा करता है। भले ही यह मेहमान लखनउव्वा कवाब, शवाब और रूआब की शान में रसपगे बयान दे जाएं, लेकिन वह शहर की नवाबी पहचान और सियासी तरबियत की शतरंज के खिलाडि़यों से संतुष्ट होकर नहीं जाते। यही वजह है कि दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर लखनऊ धुंधला- द्दंुद्दला दिखता है। पिछले दिनों मशहूर शायर फैज अहमद ‘फैज’ की बेटी मोनीजा हाशमी लखनऊ आईं थीं। लखनऊ की तारीफ में उनका वाक्य था ‘मैंने दो तरह का लखनऊ देखा’, फिर भी इज्जतदार बेईमान अमला बेशर्मी से खीसे निपोरता रहा।
    गलियां गंदी हैं। नाले-नालियों मंे पानी सड़ रहा है। नाले उफना रहे हैं मासूमों की जान जा रही है। पिछले दिनों सआदतगंज के उफनाते नाले में गिरकर आठ साल के सादिक की मौत हो गईं। उसकी लाश भी तलाशने निगमकर्मी नहीं आये। इस नाले को ढकने के लिए पहले भी हंगामा हो चुका है। मच्छरों के जच्चा-बच्चा केन्द्रों की भरमार भी यहीं है। गोबर, गू और गंध के खाद-पानी से अघाए-मुटाए मच्छरांे ने मलेरिया, डेंगू, जापानी इंसफेलाइटिस व वेस्ट नाइल जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने के लिए कमर कस ली है। इनसे निपटने का कोई भी इंतजाम शासन-प्रशासन के पास दिखाई नहीं देता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल दुनिया भर में मलेरिया से 2.5 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं, जिनमें से 6.5 लाख लोग मरते है। डेंगू से प्रभावित होने वालों की संख्या लगभग 10 करोड़ है, इनमें 22 लाख के लगभग मौत के मुंह में समा जाते हैं। सेंट्रल डिजीज बोर्ड के अनुसार मच्छर हर साल करीब 700 मिलियन लोगों को बीमार करते हैं, जिनमें से 5.3 मिलियन लोगों की मृत्यु हो जाती है। सबसे मजेदार बात तो यह है कि इन पर प्रचलित कीटनाशकों का भी कोई खास प्रभाव नहीं होता। इनकी सूंघने की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार मादा मच्छर इंसानों का खून चूसकर अपनी प्रजनन क्षमता बढ़ाती है।
    एक मच्छर.... आदमी को हिजड़ा बना देता है। यह सिनेमा का संवाद भर नहीं हकीकत है। मादा मच्छर जब खून चूसने के लिए अपना डंक आदमी के शरीर में चुभाती है तो आदमी के खून में बहुत जल्द थक्का बन जाता है फिर मच्छरों को खून चूसने में परेशानी हो जाती है। वे अपने महीन डंक के साथ अपनी जहरीली लार (रसायन) भी आदमी के खून में पहुंचा देती हैं जिससे उस जगह पर लगातार खुजली होती है और उस जगह पर लाल चकत्ता सा उभर आता है। आदमी को केवल मादा मच्छर ही काटती है, क्योंकि आदमी के खून में प्रोटीन व अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो इनका भोजन होते हैं और इसी की सहायता से वे अंडे बनाती हैं। आमतौर पर मादा मच्छर पौधों से रस चूसती हैं।
डेंगू मच्छर से बचने का उपाय
डेंगू फैलाने वाले मच्छर प्रातः के समय अधिक सक्रिय होते हैं, तभी काटते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार मच्छररोधी उपलब्द्द उत्पाद हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसलिए डेंगू मच्छरों से बचने के लिए बायोसाइड को पानी में मिलाकर घर के बाहरी हिस्सों पर ठीक से छिड़काव करने से यह घर में नहीं आ पाते। यह गंध रहित पदार्थ है, इसे पूरे गरमी-बरसात में केवल दो या तीन बार इस्तेमाल करने की आवश्यकता पड़ती है।
मच्छर की पूजादेश में मच्छरों के प्रकोप से शायद ही कोई हिस्सा छूटा हो। परेशान लोगों ने तरह-तरह के उपाय किये हैं, लेकिन झारखंड के बोकारों में लोग मच्छर भगवान की पूजा कर रहे हैं ताकि वे मच्छरजानित रोगों से बचे रहें। चास नामक स्थान में मच्छर की एक विशाल प्रतिभा स्थापित की गई और श्रद्धालुओं ने पदयात्रा निकाली। पदयात्रा में उन्होंने मृदंग बजाए और मंत्रोंच्चार किया। मच्छर की प्रतिमा के सामने हवन किया गया। एक पुजारी ने सैकड़ों लोगों के सामने मंत्रोच्चार किया और मच्छर भगवान को माला पहनाकर उनकी पूजा की। स्थानीय लोगों का कहना है कि हमने मच्छर से बचने की कोशिश की है और मच्छर की प्रतिमा लगाकर तथा इसकी पूजा कर इसे खुश करने की कोशिश की है। ज्ञात हो कि लोगों ने यह पहल तब की, जब स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू के बढ़ते मामलांे पर ध्यान नहीं दिया। बरसों पहले जब स्वास्थ्य विज्ञान में बहुत तरक्की नहीं हुई थी, तो स्माॅल पाॅक्स और चिकन पाॅक्स जैसी बीमारियों का संबंध भी देवी प्रकोप से जोड़ा जाता था और बाकायदा इसके लिए पूजा होती थी। झाड़फूंक का अंधविश्वासी प्रचलन आज भी विद्यमान है, लेकिन मच्छर को भगवान बनाने की यह घटना अनोखी है और डरावनी भी।

No comments:

Post a Comment