Sunday, June 30, 2013

अ से अपमान और अ...आ से .................?

पिछले दिनों अखबार की सुर्खियां सियासतदानों के अपमान से लाल-नीली और पड़ोसी मुल्कों की बदगुमानी से सियाह होती रहीं। सबसे ज्यादह हल्ला सूबे के मंत्री आजम खां के अमरीकी अपमान को लेकर मचा। मायावती की कर्नाटक तलाशी की चीख-पुकार राजनीति के कटरे में दलित हो गई। देश का अपमान, देशवासियों की बेइज्जती खबर जरूर बनीं लेकिन सिर्फ अखबार बेचने के लिए, टीवी के न्यूज चैनलों की टीआरपी बरकरार रखने के लिए और सियासीदलों का सारा वक्त 2014 की लोकसभा के भीतर अपनी-अपनी कुर्सियांे की गिनती करने में जा रहा है। यहीं सवाल उठता है कि रोज-रोज अपमानित होने वाला आदमी कहां अपना बयान दें? कहां अपना विरोध दर्ज करायें? उससे पहले यह भी सवाल उठता है कि आदमी की जाति क्या है? क्योंकि ‘वोट’ तो जातियों के खेमे में हैं।
    जातियों के कबीले से अलग खड़े आदमी का सबसे अहम् सवाल है कि यह देश किसका है? सरबजीत का या आजम खां का या फिर मायावती का, निर्भया या गुडि़या का? देश की सीमा पर मर मिटनेवाले जांबाज सैनिकों का, आखिर किसका है यह देश? सवा लाख कम सवा सौ करोड़ की आबादी जिन्दा रहने के लिए अपनी हर सांस का कर (टैक्स) चुकाते हुए कदम-कदम पर बेइज्जत होते हुए भी इन सवालों का जवाब क्यों नहीं पाती। आदमी को बीच सड़क पर पुलिस का मामूली सिपाही बेवजह थप्पड़ मारकर जलील कर देता है। रेल के कूपे में रिश्वत न देने पर टी.सी. चलती रेलगाड़ी से आदमी को धक्का दे देता है। यही नहीं हिजड़े तक सारेआम शरीफ आदमी के कपड़े उतार लेते हैं।
    आगरा मंें पिछले दिनों रूनकता इलाके में शराब के नशे में धुत 5-6 लफंगों ने 40 साल के मोहन सिंह जो पेशे से मजदूर हैं, को रात आठ-साढे बजे न केवल मारा-पीटा व लूटा बल्कि उसे नंगा करके उसकी गुदाद्वार के जरिए कोल्ड ड्रिंक की बोतल उसके पेट में डाल दी। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं। इसके आगे उप्र के मंत्री और खुशफहमी में गाफिल कद्दावर मुसलमान नेता आजम खां के रामपुर में सांसद जयाप्रदा को उनके कार्यालय में घुसकर एक सरकारी कारिन्दा अपमानित करता है, अखबारों में बहुत कुछ छपता है, लेकिन मंत्री जी (जो कभी सांसद के मुंहबोले भाई थे) खामोश रहे। राजधानी लखनऊ के हवाई अड्डे पर नवाब सैफ अली खां (फिल्म अभिनेता) को वहीं के एक मामूली कर्मचारी ने खचाखच भरे यात्रीकक्ष में अपमानित कर दिया, कहीं कोई मुसलमान आवाज नहीं बुलंद हुईं? सैफ अली इसी हिन्दुस्तान के राजवाड़ों में से एक के वारिस होने के साथ कलाकार भी हैं। इसी लखनऊ में गौतमबुद्ध की मूर्ति तोड़ दी गई, अपमान के विरोध की पिपहरी भी नहीं बजी? लखनऊ के इंदिरानगर के संवासनीगृह में अमानवीय व्यवहार के चलते कई लड़कियां भाग निकली, बलात्कार पीडि़ताओं और शोहदों की शिकार लड़कियों को सरेआम पुलिस धमकाती, धकियाती रहीं और मुसलमान, दलित राजनीति खामोश रही? देश में हजारों हजार मुसलमान लापता हैं। इनमें अधिकतर इंजीनियर या तकनीशियन हैं। दो करोड़ से अधिक अनाथ बच्चे देश की सड़कों पर भटक रहे हैं। इनका पुरसाहाल है कोई? पाकिस्तान मानवाधिकार परिषद के मुताबिक पाकिस्तान में हर दिन 20-25 हिन्दुस्तानी लड़कियों को अगवा कर उनके साथ ज्यादती होती है और सऊदी अरब व उसके अगल-बगल के देशों में हिन्दुस्तानियों को रोज जिल्लत का शिकार होना पड़ता है, तब देश का अपमान नहीं होता?
    जिस मुसलमान की दुहाई दी जाती है, उसी की पाक किताब कऱ्ुआन शरीफ़ के सूरः लुक्मान 31 (पेज683) की आयतें 17, 18, 19 में आलिम हकीम लुकमान की अपने बेटे को दी गई नसीहत दर्ज हैं, ‘ऐ बेटा, नमाज कायम रख और भली बात सिखला और बुरी बातों से मना कर और जो कुछ तुझ पर आ पड़े उसे (सब्र से) झेल, बेशक यह (बड़ी) हिम्मत का काम है (17) और (घमण्ड में आकार) लोगों से बेरूखी न करना और जमीन पर इतराकर न चल। बेशक अल्लाह किसी इतराने वाले (और अपनी) बड़ाई हाँकने वाले को पसंद नहीं करता (18) और बीच की चाल चल और अपनी आवाज नीची रख। बेशक बुरी से बुरी (आवाज) गधों की आवाज है। (19) इससे आगे सूरतुः साद 38 (पेज 751) की आयत 26 में फर्माया है, ‘ऐ दाऊद! हमने तुझे मुल्क में नायब बनाया तो लोगों में इन्साफ के साथ हुकूमत कर और (अपनी) मनमानी ख्वाहिश पर न चल, (ऐसा करेगा) तो (इन्द्रियों की इच्छाओं की पैरवी) तुझे अल्लाह की राह से भटका देगी। जो लोग अल्लाह की राह से भटकते हैं उनको सख्त अजाब होना हैं इसलिए कि (कियामत के) हिसाबवाले दिन को भूल गये हैं। क्या इन हिदायतों पर मंत्री आजम खां खरे उतरते हैं? अगर नहीं तो क्या वे सच्चे मुसलमान कहे जा सकते हैं?
    इन सारे सवालों से इतर और सियासत के मोहल्ले से बाहर निकलकर एक अहम् बात और बचपन में हमने पहली जमात के पाठ में अ से अमरूद पढ़ा था, उसकी मिठास भूल कर अ से अपमान और अहंकार का पाठ क्यों पढ़ाने पर वाजिद हैं काबिल नायब? हां! अमरीकी अपमान के हल्ले-गुल्ले के बीच घूमने-फिरने और गुलछर्रे उड़ाने में कहीं कोई चूक नहीं हुई? वापसी के बाद फिर दक्षिणी अफ्रीका की यात्रा पर क्या तीर्थ करने गये? हालांकि वहां भी चार्टेड विमान को रक्षा क्षेत्र के सैन्य हवाई अड्डे वाटरक्लूफ पर उतारे जाने को लेकर बवाल मच गया है और मेजबान गुप्ता परिवार व उसके बेहदकरीबी राष्ट्रपति जैकब जूमा सांसत में आ गये हैं।
    और आदमी से ‘दाऊद’ होने की गफलत क्या सोंचती हैं, देखिए बल्गारिया के कवि गियो मिलोव की इन लाइनों में -
आओ, छाती में बम लेकर
आसमान पर कब्जा करें।
खुदा को उसके तख्त से उतारें
और नीचे सितारों से सूनी
धरती की खाई में पटक दें
अपने हाथ आसमान के ऊँचे
पुल पर ले जायें
और रस्सियों से बांधकर
बहिश्त को धरती पर ले आयें।

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