Sunday, June 30, 2013

मुर्दों का चित्रहार

मौत के मोहल्ले में हाल ही में टीवी चैनल ‘लाँच’ हुआ। उद्घाटन के पिण्डदान का आँखों देखा हाल सुनाने के लिए मुझ जिन्दा आदमी को कब्रोंवाली काॅलोनी, गयाधाम से लेकर भगवान केदारनाथ के ठंडेवाले पहाड़ तक सशरीर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लखनऊ, वाराणसी व मुंबई से सहयोगी ऐश, मणिकर्णिका एवं जिया आनलाइन जुड़ी थीं। सो न रोना-न-धोना, सीधे-सीधे ‘चिपकाय ल्यौ सइंया फेवीकोल से’ चिपकती ससुरी एक भी नहीं, मानो सबका करवाचैथ मेरे बुढ़ापे के लिए च्यवनप्राश हो। गजब की ठंड तिस पर महादेव की खुली जटा से गिरती गंगा मइया की मार। खुद तो शुद्ध गंगाजल में मिलाकर बूटी चढ़ा गये, मुझ भक्त के लिए बियर-शियर का प्रबंध उप्र या उत्तराखण्ड सरकार करेगी? छलछंद बहुतेरे, बिना चढ़ाए-छाने उस अलख को कैसे देखा-बखाना जाएगा अर्थात ‘याभ्यां बिना न पश्यंति’। सो भोले बाबा का स्मरण कर ‘संतन कर साथ.... खींच ली चिलम’ अब मचै तहलका।
    ये देखिए लाशों के ढेर की तस्वीरें और यह रही चिर कुंआरी युवती की इज्जती लुटी नग्न लाश। सुहागनों की अर्द्धनग्न टोली जिनको लूट लिया गया है, वह लाल घेरे में देखिए मासूम मैना जैसा चेहरा... यह भजन मण्डली के लोगों की लाशें हैं। उधर देखिए आयताकार काले वाले घेरे में और पहचानिए यह सेक्सी जोड़ा भी लाश में बदल गया। सांडों के चाल-चलन से आप अच्छी तरह वाकिफ हैं, नंदी भी बरफ के मलबे में दब गये। मुर्दा दर्शक देख सकते हैं, सामने चैकोर चमकते घेरे के भीतर लिंग.. शिवलिंग बच गया। समूचा पहाड़ी-मैदानी श्मशान तालियां पीट रहा है। मणिकर्णिका वाराणसी से मेरे साथ जुड़ रही है.... देखिए.. इस घाट पर लाशें ही लाशें प्रति घंटा सौ की रफ्तार से... नहीं... नहीं. एक सौ बीस की रफ्तार से आती हैं। इन्हें गौर से देखिए... ये हैं राजा हरिशचंद्र के वंशजों के मालिक बादशाह डोम... हां.. बताईये.. जोर से बोलिए.. क्या 150-200 लाशें प्रति घंटा आती हैं। आपको बतातें चलें कि इसी घाट पर लाशों का आइपीएल देखकर सटोरियों ने प्रतिघंटा आने वाले मुर्दाें पर सट्टा लगा डाला। एक अखबारिये ने खोज-खबर छाप दी पहुंच गये हवालात में... सूं... सूं.. और लिखों मुर्दाें की खबर, जिंदा आदमी निगलकर।
    मंुबई से जिया का मुर्दाें को सलाम कुबूल हो। जिंदा रही तो ‘निःशब्द’ रही, अब शब्दों को नहीं मेरी जीरो फिगर देखिए..  ये देखिए प्लास्टिक के पाइप से हीरो ने मुझे नहला दिया। गौर से देखिए, विदआउट पैंटी ड्रेसअप में और ये सीढि़यों से नीचे आती मेरी नंगी.. छरहरी लातें (टांगे)। यही वह कमरा है जहां अभिनेत्री जिया ने पहली बार अपने प्रेमी के साथ जमकर पी थी.. गुलछर्रे उड़ाए थे और यहीं फांसी पर लटक गई। यह रहा वो फंदा... कितना मजबूत हैं.. इसी ने ली आपकी जिया की जान।
    संस्कारों को जीने वाला है, यह देश यहां भारतीय परिवारों को परम्परा की, उत्सवप्रियता की चिंता हमेशा तंदरूस्त रखती है, जैसे तंदरूस्ती की रक्षा करता है लाइफब्वाय, साबुन के विज्ञापन में नहाता स्वस्थ बालक। उसी तरह मृत्यु को भी उत्सव के पंडाल में ‘सीताराम’ की कथा से लेकर ‘मै तो सबकुछ छोड़-छाड़ के चली अपने सलीम गली’ के लाइव प्रसारण की ‘साधना’ में बदल दिया है। प्रियंका चोपड़ा के पिता मरे तो टीवी पर भजन... न.. काॅफी शाॅप में तब्दील हाॅल में उनकी नई अलबम के गाने....! मुंबई में ही मेरे एक रिश्तेदार की मृत्य पर मैं नहीं जा सका था। हाल ही में गया तो शोक संवेदना प्रकट करने उनके आवास पर भी गया। वहां दुःख के अवशेष एलसीडी में (वीडियो रिकार्डिंग) देखने को मिले। लाखों खर्च हुए तब जाकर विद्युत शवदाह गृह के अन्दर जाती लाश..., चार फूल छाती पर धरे सफेद... झक्क सफेद कफ़न में समायी फूले चेहरे वाली लाश की शूटिंग हो सकी थी। ऐसा शोक में डूबे पुत्रों ने बताया था।
    सियासी तम्बुओं में गांधी, अम्बेडकर, लोहिया और श्रीराम की लाशें हैं, तो हिन्दी साहित्य वालों के पास प्रेमचन्द की लाश है। हिन्दी पत्रकारिता के सभागारों में पराड़कर जी/गणेश शंकर विद्यार्थी की लाशें हैं। नई की तलाश जारी है... क्योंकि किसको मारें? यह तय करने के लिए प्रगतिशील लेखक संघ में बड़ा घमासान है। माफ कीजिएगा, लखनऊ से ऐश धमका रही है कि उसकी लाश को भूलने की जुर्रत कैसे की..? सारी हेकड़ी भुला दूंगी... मालूम है तुम्हें...? साॅरी... साॅरी... ये देखिए पिछली सरकार के कीमती हीरे की सियाह लाश। मरा दिल्ली से एसी गाड़ी में आया था। लाल त्रिकोण में देखिए शरीर काला पड़ गया है... अन्तिम दर्शन... खर... खरर... खर्र... लगता है सम्बन्ध टूट गया। सम्बन्धों का क्या कभी भी फुर्र हो जाते हैं। अगला कार्यक्रम है अगोत्रियों के हाथों दाह-संस्कार का चित्रहार... देखिए।

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