Friday, November 9, 2012

माँ तेरी ही बीमार है

ओ पुत्र! सुन धैर्य से,
तेरी छह फुट साठ किलो की
काया में रक्त जो दौड़ रहा है
चूसा है तूने अपनी मां के तन से।
उद्दंड आवाज नीची कर
मां तेरी ही बीमार है
आज भी तेरे काटे का
घाव टीसता है मां के स्तन से।
एक रात तू तप रहा था
बुखार में आग सा
न सोने दिया उसने किसी
देवी देवता को, सबको सुमिरा मन से।
डाॅक्टरों ने कह दिया था
अब भगवान ही बचा सकता है
आँगन में लगी तुलसी के आगे
रात भर आँसू उसके बहते रहे सावन से।
और जिस पेड़ के नीचे है खड़ा
तू जिसे पूजता है पिता मान
उसे भी उसने सींचा है अपने बदन से।
अरे मूर्ख, वो नहीं चीखेगी
दर्द को भी उसने ही है पाला पोसा
उसका है वो बड़ा बेटा
वही साथ है रहा उसके पूरे जीवन से।
माँ तेरी ही बीमार है।
माँ तेरी ही बीमार है।
माँ तेरी ही बीमार है।
माँ तेरी ही बीमार है।
-राम प्रकाश वरमा
09839191977

1 comment:

  1. वास्तव में माँ के ऋण की अदायगी एक जन्म क्या सात जन्मों भी नहीं की जा सकती तभी तो कहा भी गया है की माँ के पैरों के नीचे जन्नत है लेकिन आधुनिक होनहार .............................................................? बेहद अच्छी रचना आपको दिल से बधाई !

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