Tuesday, November 6, 2012

कुत्ते भी करते हैं किटी पार्टी और ब्याह!

लखनऊ। आवारा कुत्तों के झुंड के झुंड राजधानी की सड़कों पर, गलियों में, निर्माणाधीन भवनों में, खण्डहरों में, खाली पड़े मकानों व कूड़ाघरों में, पार्कों और गोश्त की दुकानों, बूचडखानों, बिरियानी-मुर्ग-मछली के ठेलों के आस-पास देखे/पाये जाते हैं। इन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं लेता। यदि ये सेक्सक्रियारत होते हैं तो उन्हें मार भगाने से लेकर उनके संवेदनशील सेक्स उपकरण पर लाठियों से प्रहार तक किए जाते हैं। इसके पीछे समाज का घिसा-पिटा तर्क ‘अश्लीलता’ होता है। जबकि यही समाज अपने प्यारे ‘डाॅगी’ को ‘सेक्स मीटिंग’ कराने बड़े फख्र से ले जाता हैं। आवारा कुत्तों की शादियों का मौसम ‘कातिक’ में बताया जाता है। इसकी गवाही में उतरती सर्दियों में उनके बच्चे पैदा होने को रखा जाता है। इस लिहाज से यह मौसम उनकी शादियों या ‘मीटिंग’ का है।
    आमतौर पर पांच-सात कुत्तों के झुंड में एक मादा होती है और उसी को लेकर सबके सब लड़ते-झगड़ते देखे जाते हैं। जबकि यह महज वर्चस्व की जंग होती है, जो जानवरों में आम बात है। जानवरों के डाॅ. एस. नार्मन के अनुसार कुत्ता बेहद समझदार जानवर होता है। वह भी आपसी सहमति पर विश्वास करते हैं, उनमें भी सामाजी भावानाएं काम करती हैं तभी तो उनके इलाके/मोहल्ले तक होते हैं। एक इलाके के अकेले कुत्ते पर दूसरे इलाके के कुत्ते गुर्राने (शुरूआती पूंछताछ) के साथ हमलावर तक हो जाते हैं। उन्हें भी शोहदों/चोरों का भय होता है। आप गौर से देखिए खण्डहरों/पार्कों में पसरे या दावतों के आस-पास मंडराते कुत्ते किस तरह भाईबंदी दिखाते हैं। ये भी आपसी समझौते के तहत ‘लिव इन रिलेशन’ बना लेते हैं या एक ही मादा के साथ पूरा जीवन गुजार देते हैं।’ ऐसा पक्षियों और अनेक वन्य जीवों में भी देखा जाता है।
    गौरतलब है, देश में 2.5 करोड़, दिल्ली में 3 लाख और लखनऊ 40 हजार आवारा कुत्ते होने का आंकड़ा पेट्स पर काम करनेवाली संस्था यूरोमाॅनीटर ने पिछले दिनों जारी किया था। वहीं इनके काटने से अकेले उप्र में हर साल लगभग 16 लाख लोग वैक्सीन के इंजेक्शन लगवाते हैं। उप्र में वैक्सीन खरीदने का बजट 2010-11 में 44 करोड़, 2011-12 में 52 करोड़ था। पेटा और पाॅ जैसी संस्थाओं ने आवारा कुत्तों पर काफी काम किया है। उनके ही एक सदस्य के मुताबिक वे भी किटी पार्टी, सामुहिक भोज के साथ शान्ति से सेक्सक्रिया में विश्वास रखते हैं। यह तो इंसान है जो उन्हें दुत्कारता रहता है जिससे वे आक्रमक रूख अपना लेते हैं। वहीं पालतू कुत्तों का आचरण देखिए उनमें कहीं उग्रता नहीं होती।
    कुत्ते पालने वाले अपने ‘पॅपी’ या ‘डाॅगी’ के मनोरंजन व जीवनसाथी के लिए खासे सचेत रहते हैं। उन पर 10 से 30 हजार रूपये महीने तक खर्च करते हैं। उनके लिए किटी पार्टी आयोजित कराते हैं। उनकी शादी व बच्चों के पैदा होने के जश्न गए जमाने के ‘गुड्डे-गुडि़यों’ की शादी से भी अधिक धूमधाम से मनाए जा रहे हैं। पेट स्पेशालिस्ट डाॅ0 उमेश जी कहते हैं कि ‘पेट के लिए किटी पार्टी आयोजित करने या उनमें ले जाने से उनके व्यवहार में बदलाव आता है। हर गेट-टू-गेदर में वे अपने जैसे साथी से मिल पाते हैं, मस्ती करते हैं। उनका अकेलापन दूर होता है और अपनी मादा भी तलाश कर रोमांस और शादी तक पहुंच जाते हैं।’ कुत्ते पालने वाली महिलाएं कुत्तों को लेकर काफी संजीदा रहती हैं। युवतियां तो उनके लिए हद दर्जे तक भावुक और सारी खुशियां जुटाने में आगे रहती हैं। सुनने में आश्चर्यजनक लगे लेकिन है सच, डाॅगीशादी, पेटशादी, कैन्डीरोमियो जैसी साइडे इंटरनेट के साथ महानगरों में धड़ल्ले से फल-फूल रही हैं, जो बाकायदा हजार से पांच हजार रूपए में आपके कुत्ते का पंजीकरण कर उसके लिए जीवन साथी तलाश कर ‘मीटिंग’ कराने का काम कर रही हैं। ऐसे में आपको भी कुत्तों की बारात में जाने या रिशेप्शन पार्टी का निमंत्रण कभी भी मिल सकता है। जी हां, महानगरों में यह इज्जतदार व्यवसाय और स्टेटस सिंबल बन रहा है। लखनऊ भी इससे अछूता नहीं है। इन कुत्तों के लिए पार्लर/सैलून खुलने के साथ बजाज आलियांज के अलावा कई इंश्योरेंश कंपनियां लाखों रूपयों की पाॅलिसी तक करती हैं। यूरोमाॅनीटर इंटरनेशनल के अनुसार कुत्तों के पालने के चलन बढ़ने के साथ इनसे जुड़े कई कारोबार खड़े हो रहे हैं। इनमें पशु आहार, पशु चिकित्सा, पशु फैशन, व्यवसाय अरबों रूपयों का हो रहा है। सरकार को अभी तक महज कुत्ता पालने के लाइसेंस से ही राजस्व मिलता था, लेकिन अब पांच अरब के राजस्व की संभावनाएं कुत्तों से जुड़े कारोबार के चलते बढ़ गई हैं। आयकर विभाग इस ओर खासी रूचि दिखा रहा है।
    आवारा कुत्तों पर काम करने वाले श्री वी.एस. तिवारी के अनुसार यदि इनके साथ प्यार से पेश आया जाए तो यह बड़े काम के सिद्ध हो सकते हैं। इन्हें अपराध रोकने से लेकर चैकीदार तक का रोजगार देकर इनका उपयोग किया जा सकता है। यह काम नगर निगम और पुलिस विभाग आसानी से अंजाम दे सकता है।

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