Tuesday, November 6, 2012

बालिका वधू या वध?

‘बालिका वधू’ टी.वी. सीरियल की आनन्दी को बालिग होने के साथ ही तलाक के गहरे घाव की पीड़ा सहनी पड़ी। हाँ, उसके सास-ससुर ने उसे अपनी बेटी और ददिया सास ने पोती मान लिया है। अब वे उसका ब्याह उसी (जैतसर) जिले के कलेक्टर से करने की तैयारी में हांफते-दौड़ते दिखाए जा रहे हैं। इसी बीच उसका पति अपनी दूसरी पत्नी गौरी के झूठ से बिफरा हुआ अपनी पहली पत्नी को वापस पाने अपने घर आ गया है, और भावनात्मक षड़यंत्रों का तमाशा जारी है। फिर भी यहां एक सवाल है कि क्या टेलीविजन के रंगीन पर्दे पर दिखाई जाने वाली आनन्दी जैसी किस्मत देश की असल बालिका बधुओं की भी है? सच ‘सत्यमेव जयते’ से भी अधिक खतरनाक है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की सलाह और खाप पंचायतों के फरमान से भी कहीं अधिक दर्दनाक है। भारत ही नहीं दुनिया के तमाम मुल्कों में बाल विवाह का प्रचलन है। इसके पीछे सामाजी शातिर अपराधियों का घिनौना षड़यंत्र सक्रिय है।
    गुजरात के वाडिया में पिछले दिनों सामुहिक बाल विवाह का आयोजन हुआ था। इसका उद्देश्य मात्र वेश्यावृत्ति था। वहां की एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इसके विरोध में आवाज उठाई भी थी। ऐसे ही छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखण्ड, बिहार, उप्र, मणिपुर, उत्तराखण्ड, पूर्वोत्तर व दक्षिणी भारत के इलाकों के अलावा नेपाल की लड़कियां आये दिन महानगरों में नारकीय जीवन जीते मौत की गोद में समा जाती हैं। कई बार खबरें छपती हैं कि पुलिस ने नाबालिंग लड़कियों को दलालों के चंगुल से छुड़ाया। बावजूद इसके गरीबी और अंधविश्वास के चलते एक बड़ी आबादी लड़कियों (नाबलिग/किशोरी) से छुटकारा पाने का आसान तरीका ‘बाल विवाह’ अपनाते हैं।’ राजस्थान के श्रीरामपुर में आखातीज पर पांच साल की इमली का ब्याह 15 साल के अशोक से उसके माता-पिता ने कर दिया। ऐसे ही सात साल की राधिका को 20 साल के राजू से उप्र के बलरामपुर जिले के इटियाथोक इलाके में ब्याह दिया गया। बाल विवाह का प्रचलन ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है तो 15-16 साल की किशोरियों को ब्याहने का चलन शहरों में भी धड़ल्ले से जारी है। वह भी तब जब यह कानूनन अपराध है और सरकारें ‘बेटियां बचाओ’ का हल्ला मचाए हैं। पिछले ही महीने दुनिया भर में ‘गल्र्स डे’ मनाया जा चुका है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-3) के हालिया आंकड़े बताते हैं कि देश में 47.4 फीसदी लड़कियों को 18 साल से कम उम्र में ब्याह दिया जाता है। इनमें 15 साल से भी कम उम्र में ब्याहने वाली किशोरियों की संख्या 18.5 फीसदी हैं।
    नाबालिग बच्चियों के साथ उनके माता-पिता और रिश्तेदारों के संरक्षण में लगातार बलात्कार हो रहे हैं। उसके नतीजे में वे समय से पहले मां बन रही हैं। वे नवजात बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मर रहे हैं। युनिसेफ के अनुसार दुनियाभर में एक तिहाई किशोरियों के विवाह होते हैं, उनमें दस फीसदी बालिकाएं होती हैं। ये बालिकाएं बालिग होने से पहले ही अधिकांशतः मौत के मुंह में समा जाती हैं। क्योंकि वे गाली-गलौज, मारपीट और यौन शोषण का क्रूर शिकार होती हैं। इसके अलावा उनके असमय गर्भवती होने के कष्ट भी इसमें सहायक होते हैं। इनकी उम्र जब खेलने, पढ़ने की होती हैं तब वे अपनी ससुराल में सूर्योदय से पहले उठती हैं। पानी भरना, नहाना धोना, घर की साफ-सफाई, कपड़े धोना, खाना बनाना फिर सास के निर्देशित कामों को करना। आधा पेट भोजन करने के बाद थकी हुई बालिका को रात में पति के बलात्कार का शिकार होना आम है। ऐसे परिवार अधिकतर मिट्टी की कच्ची झोपडि़यों में या सीलन भरी कोठरियों में रहते हैं। जहां कहीं अच्छे मकान हैं वहां भी दुर्दशा कम नहीं है। मां बनने के दौरान कोई चिकित्सा सुविधा भी नहीं हासिल होती। क्योंकि ग्रामीण इलाकों में अस्पतालों का दूर-दूर तक पता नहीं होता। युनीसेफ की बाल संरक्षण विशेषज्ञ के अनुसार विकासशील देशों में गर्भावस्था के दौरान 10-14 साल की बालिकाओं के मारने की संख्या 20-24 साल की युवतियों की अपेक्षा पांच गुनी अधिक है। 15-19 साल की 50 हजार लड़कियां हर साल गर्भधारण के दौरान मारी जाती है।
    संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड ने पिछले दिनों चेतावनी जारी की है कि ‘बाल विवाह बच्चियों के विकास, शिक्षा में जहां बाधक हैं वहीं उनका बचपन लूटनेवाला भी है। इस पाप कृत्य को रोकना होगा वरना अगले दस वर्षों में 5 करोड़ बालिका वधुएं होंगी। यदि यही हालात रहे तो 2030 तक दस करोड़ की संख्या में होंगी 15 साल से कम की गृहणियां।’
    आधुनिक दुनिया में हर तीसरी नाबालिंग लड़की को उसके मां-बाप द्वारा ब्याह दिया जाता है। युनीसेफ इस परम्परा को रोकने के लिए शैक्षणिक अभियान चला रहा है। बच्चियों की शिक्षा के लिए दूर-दराज इलाकों में स्कूल खोले जा रहे हैं। पिछले पखवारे ‘क्योंकि मैं एक लड़की हूँ’ योजना को भी जमीन पर उतारा गया है। इसी तर्ज पर उप्र में ‘पढ़ें बेटियां’, मप्र में ‘बेटी बचाओ’ अभियान चलाए जा रहे हैं। ग्लोबल दुनिया में 83 फीसदी लड़कोें की अपेक्षा महज 74 फीसदी 11-15 वर्ष की बच्चियाँ स्कूल जाती हैं। भारत की दशा इससे भी खतरनाक है। वहीं बांग्लादेश बाल विवाह के मामले में सबसे ऊँचे पायदान पर है। समूचे दक्षिण एशिया में 46 प्रतिशत तो सबशारान अफ्रीका में 37 प्रतिशत, लैटिन अमेरिका में 29 प्रतिश तो यूरोप में सर्वाधिक टर्की व जार्जिया में 14 प्रतिशत और 17 प्रतिशत बालि (नाबालिग) विवाह होते हैं। कहांनियां भी हैं, बेटी बचाओ, कन्या विद्याधन जैसी तमाशाई योजनाएं भी हैं, लेकिन बच्चियों को वधू बनाने की जगह विद्वान बनाने की ओर गंभीर सोंच राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्रों में कहीं नहीं दिखती। बालिका को वधू बनाकर उसका वध करने की जगह उसे शिक्षित बनाने की ओर बढ़ना ही होगा, तभी सुसंकृत नई पीढ़ी का निर्माण संभव होगा।

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