Sunday, February 6, 2011

लखनऊवों की इबादत है, लखनऊ

लखनऊ से मुझे बेइंतहा प्यार है। इसलिए नहीं कि लखनऊ मेरी मातृभूमि है, कर्मभूमि है, द्दर्मभूमि है। दरअसल लखनऊ के मिजाज में शिष्टता, संस्कार और साहित्य इस कदर रचे बसे हैं कि यहां की जमीन पर पांव धरते ही अजनबी भी आप...आदाब का दामन थाम लेता है। यहां तक शराब के नशे में झूमता हुआ आदमी भी आपसे महज टकरा जाने भर से बोल उठता है, गुस्ताखी माफ हो...!’ गोया लखनऊ बेअदब भी है तो चांदी के शफ्फ़ाफ वर्क में लिपटा हुआ। आज भी जब ‘काले अंग्रेजों’ की ‘कई सितरा’ संस्कृति की नंगई ताजा बनी सड़कों पर उछलती फिर रही है, ‘प्लीज.. अपनी गाड़ी आगे लीजिए या साॅरी.. मैं देख नहीं सका’ जैसे जुम्ले आमतौर पर सुनने को मिल जाते है।
    लखनऊ का ‘ट्रैफिक’ भी यहां की सुबह के नाश्ते में मशहूर जलेबी, कचैरी की तरह गड्ड-मड्ड, मीठा-नमकीन लगता है। आप शहर में लगने वाले ‘जाम’ से जितना निकलना चाहेंगे उतना ही जलेबी की तरह फंसते जाएंगे और किसी दिलजले या झुंझलाए हुए सिपाही के अलंकार से नवाजे जाने के बाद कचैरी की नमकीनियत का स्वाद भी मिलेगा। गो कि लखनऊ की रूह में आप जी.. जनाब बसे हैं, बसे रहेंगे। इनसे आपकी मुलाकात न दिल्ली मंे होगी, न मुंबई में होगी।
    बिरयानी से लेकर तहरी तक, पूरी से लेकर रूमाली रोटी तक, सालन से लेकर तरकारी तक, अलीगंज के बजरंगबली से लेकर चैक से आगे रूमी गेट तक सब लखनऊवा है। जी हां! अमीनाबाद वाले हनुमान मंदिर से निकलते पंडित जी का परसाद बांटना और मोहल्ले की मजिस्जदों से निकलते नमाजियों का बाहर खड़े व माओं की गोद में लिपटे बच्चों पर फूंक डालना भी लखनऊवा ही रहा है। यहां न कोई हिन्दू है, न मुसलमान। शाहमीना शाह, खम्मनपीर बाबा की दरगाह में जुड़ने वाली भीड़ के चेहरों से हिन्दू-मुसलमान छांटना मुमकिन नहीं, तो गली-मुहल्लों में ज्योतिषियों व गंडा-तावीज वाले मौलवियों के यहां जुटनेवाली भीड़ में आसानी से फिरकों की तलाश नहीं की जा सकती।
    बेशक लखनऊ बदल रहा है। नये हुक्मरानों की सोंच लखनऊ की छाती पर पसर रही है, बावजूद इसके समूचे लखनऊ का आसमान गवाह है कि आद्दे-अधूरे कपड़ों में खिलखिलाती युवतियां भी हजरतगंज के हनुमान जी को भले ही ‘हाय हनु’ कहें, लेकिन मंदिर में जाते ही दुपट्टे के अभाव में सिर पर रूमाल रखकर अपने भगवान जी या हनु को प्रणाम ही नहीं करतीं बल्कि मन्नतें भी मांग लेती हैं। इसी तरह ‘कान्वेंट’ शिक्षित भी नमाज की शफ (लाइन) में अल्लाह के आगे सिजदा करता दिखेगा। यह सबका सब लखनऊवा है।
    लखनऊ हमेशा से दुनिया के मानचित्र में पर्यटन, नवाबियत और उत्सवधार्मिता के लिए दर्ज रहा है। यहां के इमामबाड़े, मंदिर, बाजार, पहनावा, मेले, लंगर, नवरात्र, मुहर्रम सबकी अपनी अलग पहचान और शान है। टी.वी., इंटरनेट के जमाने में भी रामलीलाओं का जलवा बरकरार है। कव्वालियों और कवि सम्मेलनों का रूतबा आज भी कायम है।
    चुनांचे लखनऊ की नवाबियत और शायराना तबीयत के साथ चैक में बैठी बड़ी काली माता जी के साथ हजरतगंज में शहानजफ का इमामबाड़ा मौजूद है, तो विधानसभा मार्ग पर सरकारी कामकाज के लिए सचिवालय की इमारत बुलंद है। इसके अलावा कई ऐशगाहों से अलग गोमती किनारे की ठंडी सड़क को हजरतगंज कहा जाता है। हाल ही में इसका कायाकल्पा हो गया है। सो साफगोई से कहूं तो लखनऊ लखनऊवों की इबादत है।

1 comment:

  1. Lakhnau ke baare mei
    itnaa kuchh jaan kar
    bahut achhaa lagaa
    a a b h a a r !

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