Sunday, February 6, 2011

गंदा है! गंदा है!! गंदा है!!! लखनऊ शहर

लखनऊ। कूड़े से पाटा पार्षद का घर। गणेशगंज के 10 वार्डों में नहीं होगी सफाई। सफाईकर्मियों का प्रदर्शन। भ्रष्टाचार के मसले पर मुख्य अभियंता व पार्षद भिड़े। ननि के इंजीनियर हड़ताल पर। मलबा न उठाने पर नगर निगम का घेराव। घर से कूड़ा उठाने का मामला टला। ये सारी सुखिंयां पिछले महीने सुबह के अखबारों में छपी थीं। इन सुर्खियों के पीछे की पहली घटना कुछ यूं बयान की गई हैं, यदुनाथ सान्याल वार्ड के पार्षद विनोद सिंघल ने सुपरवाइजर से अपने घर की सफाई करने को कहा। विकास ने मना कर दिया। इस पर उन्होंने उसे पीट दिया। उसके बाद तमाम सफाईकर्मी आन्दोलित हो उठे, धरना-प्रदर्शन से लेकर पार्षद के खिलाफ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा दी गई। पार्षद के घर के सामने कूड़े का ढेर लगा दिया गया। सफाई कर्मचारी नेताओं ने भी लगे हाथ नगर निगम घेर लिया।
    इस घटना का सच बयान करने के लिए पार्षद से मुलाकात नहीं हो सकी। आस-पास व इलाके के लोगों से बात करने पर जो जानकारी हाथ आई वह पार्षद से अद्दिक सफाईकर्मियों पर अंगुली उठाती है। बेशक पार्षद की तू-तू, मैं-मैं सफाई को लेकर सुपरवाइजर से अक्सर होती रही है। इसी बात को लेकर सुपरवाइजर और पार्षद में झड़पे होती है। दबी जुबान से लोगों का कहना था असल मामला कुछ लेन-देन का है। सच कुछ भी हो, लेकिन समूचे शहर में वीआईपी इलाका छोड़कर दिन के 9-10 बजे सड़कांे पर झाडू लगाते, कूड़े का ठेला ले जाते सफाई कर्मियों को देखा जा सकता है। इस बीच सड़कों, गलियों में आवागमन जारी हो जाता है। ऐसे में सफाईकर्मियों से किसी शिष्टता की उम्मीद करना अपराध हो जाता है। कोई भी सफाईकर्मी किसी के कहने से रूकने की जगह अकड़कर खड़ा हो जाता है या अनसुनी करके कूड़ा, द्दूल-गर्द राहगीरों की ओर द्दकेलता-उड़ाता रहेगा। आमतौर पर सुबह-सुबह ही अल्कोहल का सेवन किये सफाईकर्मियों को बगैर काम किये घर-घर उगाही करते देखा जा सकता है। इनके सुपरवाइजर भी इन्हीं की तरह देखे जा सकते हैं। ये गलियों में झांकने की जहमत तक नहीं उठाते। गली से किसी ने इनकी शिकायत नगर निगम अद्दिकारियों या मेयर के कार्यालय में कर दी तो ये सुपरवाइजर बाकायदा गाली-गलौज तक करने पर अमादा हो जाते है।
    पिछले साल की गर्मियों में मकबूलगंज के एक सुपरवाइजर की शिकायत मेयर कार्यालय में की, उसी इलाके के एक सज्जन ने नगर विकास मंत्रालय में भी सफाई न होने की शिकायत की। जिस पर सुपरवाइजर गली में आया और बड़ा लाल-पीला हुआ। लोगों के बाप-दादाओं तक रिश्ते बनाने की कोशिश करने लगा, तब इलाके के एक दबंग ने उसे अपनी भाषा में समझाया। उसे वह भाषा आसानी से समझ में आ गई। पूरे शहर में जहां-तहां कूड़ा बिखरा पड़ा है। गालियों-सड़कों की नालियों में सिल्ट भरा है। फिर कौन सी सफाई ये कर्मचारी करते हैं?
    इससे भी भ्रष्ट आचरण नगर निगम के इंजीनियरों व अन्य कर्मियों का है। उनके भ्रष्टाचार का लेखा-जोखा हजारों बार अखबारों में छपा लेकिन ढीठ अफसरों का कुछ नहीं हुआ। क्योंकि भ्रष्टाचार में सभी आकंठ डूबे हैं। क्या पार्षद, क्या अधिकारी क्या बाबू सबके सब एक ही आचार संहिता भ्रष्टाचार का पालन करने में लगे हैं। यदि ऐसा न होता तो निगम कंगाल न होता और शहर चमक रहा होता। दरअसल लोकतंत्र से अधिकारियों की आस्था दरक रही है, तो साधारण कर्मी भी उनके साथ खड़ा हो रहा है। नेताओं की भ्रष्टता का बयान करना अक्षरों को महज काला करना होगा। इसका हल कैसे निकलेगा? सफाई से शहर कैसे चमकेगा? कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी कैसे समझेगें? नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति कैसे सचेत होंगे? इन सभी सवालों का जवाब है, मैं सुधरूं, तुम सुधरों तो हम भी सुधरेंगे की तर्ज पर नागरिकों को ही आगे आना होगा।

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