Sunday, February 6, 2011

गलियों में भी लगता है जाम!

लखनऊ। राजधानी की सड़कों पर आदमी को लगभग 12 घंटे हर दिन यातायात जाम की समस्या से जूझना पड़ रहा है। वाहनों की बेतरतीब भीड़ में पैदल चलना भी कष्ट देता है। उस पर युवाओं के फर्राटा भरते दो पहिया वाहन रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी है। गलियों तक में आप पैदल नहीं चल सकते। सारा शहर इस जाम की समस्या से परेशान है। यह समस्या सरकार ने कम जल्दबाज व मतलब परस्त नागरिकों ने ज्यादा पैदा की है।
    गलियों में लोग-बाग अपने घरों के बाहर दो पहिया वाहन, यहां तक चार पहिया वाहन भी खड़े करने से नहीं चूकते। कई जगह जहां गलियां चैड़ी हैं वहा दोनों ओर मोटरबाइकों की कतार देखी जा सकती है। किसी ने अपने दरवाजे लगे नल के पाइप में जंजीरों से अपनी बाइक जकड़ कर खड़ी कर रखी है। तो किसी ने बिजली के खम्बे से बांद्द रखी हैं। इस अवैध पार्किंग से आद्दी से अधिक गली घिरी रहती है। इस तरह की पार्किंग शहर की हर गली में मौजूद है। इन्हीं गलियों में लोगों ने अपने घरों में दुकानंे तक खोल रखी हैं। इससे जहां पैदल चलने वालों, साईकिल यात्रियों, फेरीवालों को तकलीफ होती है, वहीं छोटे बच्चों के साथ महिलाओं के चोटहिल होने का अंदेशा बना रहता है। इसके अलावा सफाईकर्मी इन गलियों में जाने से कतराते हैं, नतीजे में गंदगी से बजबजाती नालियां और कूड़े-कचरे का ढेर लग जाता है, जो संक्रामक रोगों के फैलने का कारण बनता है। इन गलियों में आॅटो रिक्शा, तीन पहियों वाला हाथ रिक्शा, ठेला गाड़ी, कूड़ागाड़ी की पार्किंग आम है। गली के बच्चे इन पर खेलते हैं तो आवारा जानवरों के लिए आश्रय व प्रसूति केन्द्र के काम आते है ऐसे वाहन। बेघरों, उचक्कों, जुआरियों व चोरों के लिए भी यह वाहन फायदेमंद होते हैं। वहीं इन गलियों में अतिक्रमण आम बात है। किसी की चारपाई, तखत तो कोई पूरी की पूरी गृहस्थी बसाये हैं।
    ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी नेताओं या सरकारी कारिन्दों को नहीं हैं, वे खूब अच्छी तरह जानते हैं। वोट मांगते समय नेताजी इन गलियों से गुजरते हुए, करों की वसूली के दौरान सरकारी कर्मचारी गुजरते हुए यहां के जाम व अतिक्रमण से दो-चार होते हैं। फिर भी दोनों ही अपने-अपने स्वार्थाें के चलते चुप्पी लगा जाते है। सच पूछा जाए तो क्या गलियों में अतिक्रमण, पार्किंग, जाम के लिए सरकार जिम्मेदार है। कतई नहीं। नागरिक जिम्मेदार हैं। नागरिकों को ही सोचना होगा। उन्हें ही इससे निजात पाने का उपाय तलाशना होगा वरना सरकार तो नियम-कानून के डंडे से ही शायद निपटे। उसे निपटना ही होगा। सभ्य शहरी और सरकारी हाकिम क्या कोई कदम उठाएंगे?

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