Sunday, February 6, 2011

औरतों का मीना बाजार है गड़बड़झाला

लखनऊ। शहर का दायरा बढ़ता जा रहा है। सौंदर्य में निखर आ रहा है। पहचान की नई-नई इमारतें अपने हुस्न पर इठला रही हैं। नए बाजार और शार्पिंग माॅल्स का ग्लैमर सर चढ़कर बोल रहा है। शहर के हर कोने में नामी गिरामी चीजों की फ्रेंचाइजी उपलब्ध है। काकोरी के कवाब हों या टुंडे के सड़क किनारे ठेले से लेकर ‘वेब माॅल’ तक में मिल जाएंगें। चूड़ी, क्राकरी, चिकन के कपड़े, बिंदी, लाली, पाउडर सब बंथरा से लेकर चिनहट तक, मोहनलालगंज से ठाकुरगंज तक उभरी नई काॅलोनियों के बाजारों में बिकता है। महिलाओं के उपयोग में आने वाला हर सामान शहर में खुली हजारों नई दुकानों में बिकता है। मगर जो बात अमीनाबाद बाजार के बीचोबीच बसे गड़बड़झाला बाजार की है, वह कहीं नहीं है।
    अमीनाबाद बाजार में मौजूद भीड़ खाली वहां से गुजरती भर है या वहां खरीददारी भी करती है। यह देखने के लिए वहां थोड़ी देर ठहर कर देखने की जरूरत पड़ेगी। आज भी अमीनाबाद में माताबदल पंसारी शहर के इकलौते पंसारी हैं, जहां आदमी की जरूरत के लिए जड़ी-बूटियों, ग्रहों के अनुसार हवन की लकड़ियों से लेकर रसोई में काम आनेवाले पुराने मसाले और न जाने क्या-क्या मिलता है। मिलने को तो यहां बहुत कुछ मिलता है। यहीं है जूतों वाली गली, झउवे वाली गली, मारवाड़ी गली, भूसेवाली गली और इन सबके बीच में है औरतों का मीना बाजार ‘गड़बड़झाला’। सच में गड़बड़झाला में सब गड़बड़ नजर आता है। उसका हर गलियारा हर दुकान एक जैसे नजर आते हैं। यहां बेलन भी बिकता है, बर्तन भी हैं और महिलाओं के अंतरंग उपयोग की चीजे भी बिकती हैं। आर्टिफीशियल ज्वैलरी भी है तो बिंदी, चूड़ी, कंगन, फीता भी है। शादी ब्याह, पूजापाठ में उपयोग होने वाले तमाम सामान बिकते है।
    लखनऊ को आधुनिक बनाने की होड़ में या सियासत के मोहल्लों में अमर हो जाने की नई संस्कृति के चलते भले ही नये-नये आए ‘लकनौवालों’ को गड़बड़झाले की गड़बड़ न समझ आए लेकिन उसकी अहमियत आज भी जस की तस बरकरार है। ‘स्टेफ्री’, ‘जाॅकी’, ‘नेपी’, ‘हगीज’, ‘हेयर रिमूवर’ या ‘तनिष्क’ के विज्ञापन टी0वी0 के छोटे से पर्दे पर चैबीसों घंटों दिखाएं जाएं, मगर आम औरतों को ये सारी चीजें आज भी गड़बड़झाला बाजार से खरीदने में मजा आता है। दरअसल गड़बड़झाले से औरतों का अपनत्व है, अंतरंगता है और बहनापा है। इसीलिए गड़बड़झाला चूड़ियों की खिलखिलाहट और पायलों के संगीत की मुस्कराह से गुलजार है। गो कि गड़बड़झाला बाजार नहीं लखनऊ की आत्मा है और आत्मा तो अजर अमर होती है।

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