Sunday, February 6, 2011

मनोरंजन की प्रयोगशाला में... ‘कुंती’?

लखनऊ। बुद्धू बक्से को बुद्धिमान हुए अरसा हो गया। अब उसे अभिमान भी हो गया है। टेलीविजन इस कदर प्रभावमान है कि उसकी ओर टकटकी लगाए देखते दर्शक बकायदा उससे प्रेरणां और प्रशिक्षण पा रहे हैं। जिसके चलते बाजार भी उत्साहित होकर उछालें भर रहा है। इसके विभिन्न चैनलों पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों में मनोरंजन से अधिक हिंसा, षड़यंत्र और अश्लीलता के सफल प्रयोग हो रहे हैं। जिसके चलते ब्लड प्रेशर व हृदयघात के रोगियों में खासा इजाफा हो रहा है और मानवदेह के सेक्स उपकरणों का प्रदर्शन खुली सड़कों पर हो रहा है। इससे जहां डाॅक्टरों के यहां हृदय रोगियों की कतार बढ़ती जा रही है, वहीं भारतीय संस्कारों के चीरहरण के साथ शोहदई, सहमति के साथ यौनानंद, बलात्कार, समलैंगिक दोस्ताना व अनैतिक अप्राकृतिक यौन संबंधों वाले अपराधों की बाढ़ से समाज प्रदूषित हो रहा है।
    टेलीविजन के सभी चैनल सामाजिक समस्याओं के नाम पर बेहूदगियों से भरपूर धारावाहिक दिखाने की होड़ लगाए हैं। जी टीवी पर अगले जनम मोहे बिटिया कीजो, पवित्र रिश्ता, कलर्स पर भाग्य विधाता, उतरन, बालिका वधू, न आना इस देश लाडो, तुझसे लागी लगन, एनडीटीवी इमैजिन पर बाबा ऐसा वर ढूंढो, गुनाहों का देवता, बंदिनी जैसे दिखाए जाने वाले धारावाहिकों में लगभग एक जैसे षड़यंत्र सास-बहू के तमाशे, बाल विवाह, विद्दवा विवाह, प्रौढ़ आदमी का बालिका से विवाह, औरतों की खरीदी, बालिका की हत्या, अनैतिक संबंध, लिव इन रिलेशन, तलाक, प्रेमिका या होने वाली पत्नी से बलात्कार, शादी से पहले बच्चा या अनैतिक गर्भ, हत्या के तरीके, अपराध व अपराधियों की प्रयोगशाला मे होते नए-नए प्रयोग होते हैं। विज्ञापनों के जरिए बीच-बीच में सेनेटरी नेपकीन व कंडोम, 72 घंटे वाली गर्भनिरोधक गोली के बहाने पूरी तरह अश्लीलता परोसी जाती है। किट चाॅकलेट का प्रचार दो गिलहारियों की आइ लव यू.. से होता है। काॅमेडी शो के नाम पर द्विअर्थीय संवादों की अदायगी के साथ आधे-अधूरे पारदर्शी कपड़ों में सजी लड़कियों से फूहड़ व अश्लील मजाक होते हैं।
    समाज में तमाम समस्याओं से जूझने वाले एनजीओ के अध्यक्ष सुनील मिश्रा का कहना है, ‘इस तरह के द्दारावाहिक सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों में बांधक साबित हो रहे हैं। खासकर औरतों की प्रताड़ना व स्वास्थ्य मामलों में तो बेहद खतरनाक है।’
    मध्यमवर्गीय क्षेत्र में प्रैक्टिस करने वाले डाॅ0 ए0के0 खान कहते हैं, ‘इन सीरियलों में जो भी दिखाया जाता है उसमें अधिकांश असत्य होता है। सेक्स संवाद या अनैतिक संबंधों के कारण युवा-किशोर यौनशक्ति बढ़ाने की दवाएं पूंछने आते हैं। लड़कियां गर्भ गिराने की दवा लेने आती हैं। पांच सालों में इस तरह के मरीजों का आना बढ़ा है। इसके अलावा इन सीरियलों को देखते हुए उत्तेजना के चलते रक्तचाप बढ़ जाता है जिससे इंसान का चिड़चिड़ा हो जाना सामान्य बात है। औरतें अत्याचार, महिला किरदारों की पिटाई, यौन उत्पीड़न, सास/बहू षड़यंत्र आदि देखकर उत्तेजित हो जाती हैं, रोने लगती हैं। इसके नतीजे में अधिकांश अवसाद ग्रस्त हो जाती हैं। अवसाद की दवा के नाम पर नींद की गोलियां देकर उन्हें नशेड़ी बनाया जा रहा है।’ विधान सभा मार्ग पर दवा की दुकान चलाने वाले मुश्ताक खान बताते हैं, ‘कंडोम, 72 घंटे वाली गर्भ-निरोधक गोलियां या यौनशाक्ति बढ़ानेवाली दवाओं को लड़के ही नहीं लड़कियां भी बेझिक खरीद रही हैं।’
    समाज में सेक्स व अपराध के बढ़ते चलन से सरकार भी चिंतित है। सरकार की तमाम नसीहतों के बाद भी टीवी चैनल अश्लीलता, अंधविश्वास और फूहड़ता दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ऐसे चैनलों के खिलाफ पिछले छह महीने के दौरान दो दर्जन से अधिक कड़ी चेतावनियों वाले और कारण बताओं नोटिस जारी किए हैं। कई चैनलों को दर्शकों से माफी मांगने और कई मामलों में तो प्रसारण पर रोक के लिए मजबूर किया गया है।
    खबरों में अश्लीलता और सनसनी दिखाने में कुछ न्यूज चैनल भी कम नहीं है। मंत्रालय ने एक प्रमुख हिंदी न्यूज चैनल को एक ऐसा कार्यक्रम दिखाने के लिए कड़ी चेतावनी दी, वहीं ‘बिग बाॅस’ रिएलिटी शो के प्रकारण पर कलर्स चैनल को अदालत तक जाना पड़ा।
    हालांकि सेंसर बोर्ड का कहना है कि इंडियन ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन अपनी आचरण संहिता लागू करता है और उसी पर जोर देता है।
    अमेरिका में पिछले दिनों दिखाया गया सीरियल ‘द सीक्रेट लाइफ आॅफ द अमेरिकन टीनएजर’ में 16 साल की नायिका शैलेन विवाहपूर्व ‘बालिका वधू’ है। इसमें हाईस्कूल में पढ़ने वाली लड़की गर्भवती हो जाती है और अपने बच्चे को जन्म देने के लिए उत्साहित है। सीरियल में किशोरों के यौन मस्ती-उत्पीड़न, ड्रग, शराब सेवन जैसी तमाम विसंगतियों को दिखाया गया है। नतीजे में 10-16 तक उम्र के बच्चे सेक्स का आनंद उठाने में मगन है और मां-बाप परेशान। परेशानी बढ़ने का यह हाल है कि हर साल लगभग चार लाख लड़कियां यौन संक्रमण का शिकार हो रही हैं। ये लड़कियां अवसादग्रस्त होकर मनोवैज्ञानिकों की शरण में पहुंच रही हैं। भारत में यह समस्या अभी पहले चरणपर है। भले ही राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान कंडोम की लूट या उससे चोक हुए टाॅयलेट का प्रचार जोर-शोर से किया गया हो या यौन अपराध हो रहे हैं। कंडोम की बिक्री बढ़ रही हो। गर्भ निरोधक, यौनशक्तिवर्धक दवाओं का बाजार बड़ा हो रहा है। बच्चियों से बलात्कार, हत्याएं हो रहे हैं। फिर भी अभी इसे रोका जा सकता है।
    टेलीविजन पर दबाव बनाने की आवश्यकता है। ‘सेल्फ कंटेंट’ के नाम पर अश्लीलता की कोचिंग चलाने से टीवी चैनलों को रोकना होगा, दंडित करना होगा। सरकार के साथ हमें यानी समाज को, परिवार को पूरा सहयोग करना होगा। इसे रोकने के लिए पुलिस नहीं मां-बाप, शिक्षकों को आगे आना होगा। सीता-अहिल्या के देश में, श्रीराम की माता कौशल्या के देश में बार-बार कंुती को प्रयोग करने की छूट देने से सिर्फ और सिर्फ महाभारत ही होगा। इस सर्वनाश से भारत को भारतीयता को और उसके संस्कारों को बचाना ही होगा।

No comments:

Post a Comment