Monday, March 14, 2011

‘बच्चा’ से बच्चे हैं बर्बाद!

लखनऊ। शराब, कबाब और शबाब राजधानी की सड़कों पर इस कदर बिखरा है कि शरीफ शहरी भी इसे देखकर अब नाक भौं नहीं सिकोड़ता। शहर के हर मोड़ पर शराब की दुकान, कबाब के ठेले और अधनंगे हुस्न की मौजूदगी है। देशी-विदेशी शराब की दुकानों पर लगातार बढ़ती भीड़ और मांसाहार के ठेलों की बढ़ी हुई संख्या के साथ युवतियों में भी पीने-पिलाने के नए चलन ने शहर में बदलाव की राह पकड़ ली है। इसमें जो सबसे खतरनाक बात है, वह है किशोरों के नशे की लत का शिकार होने की बढ़ती शिकायतों की।
    अंग्रेजी शराब की दुकानों में काफी समय से ‘बच्चा’ के नाम से एक-दो पैग का पैक बेचा जा रहा है। ये पैक 50-70 रुपए के बीच होता है, जिसे सम्पनन घरों के किशोर-किशोरी आसानी से खरीद लेते हैं। इसी तरह बीयर के कंटेनरों की भी मांग इन किशोरों में हैं। अंग्रेजी शराब की दुकानों पर स्कूटी सवार युवतियों का दिखना आम हैं, वहीं स्कूल बैग टांगे किशोर-किशोरियों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। ये बच्चे अधिकतर ‘बच्चा’ ही खरीदते हैं जिसे आसानी से जेब में या बैग में रखा जा सके और एक बार में ही पीकर फेंका जा सके। मजेदार बात ये है कि इस ‘बच्चे’ से शराब की दुर्गंद्द भी नहीं आती। अधिकतर में किसी न किसी फल की खुशबू व स्वाद होता है, जिसे जूस की तरह बच्चे गटागट पी जाते हैं।
    ‘बच्चा’ के नाम से एक-दो पैग वाला पैक बेचने के पीछे इन दुकानदारों का तर्क है कि अंग्रेजी शराब महंगी होती जा रही है। जिससे तमाम लोग उसे खरीद नहीं पाते, सो बड़े ब्रांड में ‘बच्चा’ आने से वे लोग भी आसानी से उसे खरीद लेते हैं। आप इसे यूं समझ लें की पांच रुपए का मैगी पाउच खरीदना आसान हैं कि नहीं। उसी तरह पचास का ‘बच्चा’ भी आदमी के जेब की पहुंच में है। इससे बच्चों के बिगड़ने की बात पर दुकानदारों का कहना है, अब इसे तो नहीं रोका जा सकता। यह तो मां-बाप को ही करना होगा। सरकार या दुकानदार इसमें क्या कर सकती है?
बेशक हमें ही सोंचना होगा। अपने बच्चों पर निगरानी रखनी होगी और उन्हें इसके नुकसान बताकर इस नशेड़ी ‘बच्चे’ से दूर रखने के प्रयास करने होंगे वरना नई पीढ़ी नशे के साथ अपराध की अंधेरी गली में गुम हो सकती है।

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