Monday, March 14, 2011

इंकलाब ज़िदाबाद

दुश्मन हमला कर चुका है और, उसकी आक्रमकता युद्ध जैसी बर्बर है। अब हमें दो-टूक शब्दों में बात कहने की हिम्मत जुटानी ही होगी। यह हमला महज राजनीतिक नहीं है। दरअसल यह हमला आतंकवाद, माओवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, घपलों-घोटालों, कालेधन और महंगाई के पीछे छुपे चेहरे ‘ग्लोबलाइजेशन’ के जरिये किया जा रहा है। इस हमले के पीछे जहां दुनियाभर के रूढ़िवादी ताकतकवर व्यापारी हैं, तो उनकी महत्वाकांक्षों के साझेदार हमारे अपने भाई बंद भी है। पिछले पांच महीनों में सामने आए घपलों-घोटालों से पैदा हुआ घमासान और भारत की धरती पर सरझुकाए आने वाले कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मीठी वाणी व इससे पहले भी हुए तमाम देशी-विदेशी हमले इस जंग के पुख्ता सुबूत हैं।
    इस जंग को हवा देने और उग्र करने का काम केन्द्र और राज्य स्तर के नेता अपनी भ्रामक बयानबाजियों के जरिए करने में लगे हैं। इन नेताओ ंकी पूरी कोशिश सरकार के तमाम आर्थिक कार्यक्रमों को मटियामेंट करने और तास्सुबी अखाड़े खोदने भर की है। भारत किसी देश से कोई आर्थिक जंग नहीं लड़ना चाहता है, बल्कि दुनियाभर के अमीर  राष्ट्र और उनके बनिए-बक्काल अपनी पूंजी के जरिए भारतवंशियों को आर्थिक, मानसिक गुलाम बनाने की साजिश कर रहे हैं। और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाए खड़े हैं हमारे अपने बनिये और उनके राष्ट्रवादी मुखौटा  पहने सियासी समर्थक। यह कोई लफ्फाजी नहीं है। पुख्ता सुबूत हैं अकेले गुजरात में दुनिया के प्रमुख उद्योगपतियों से 450 अरब डाॅलर के पूंजी निवेश के समझौते जनवरी 2011 में हुए हैं।  इसके अलावा पिछले साल पीएचडी चैंबर की 105वीं वार्षिंक आम बैठक के उद्घाटन के मौके पर वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने बढ़ते विदेशी पूंजी के प्रवाह को ‘खतरे की घंटी’ न मानने की बात कहते हुए यह भी कहा था कि यदि विदेशी पूंजी का प्रवाह स्तर से ऊपर निकलता है तो चिंता का विषय है। यहां बताते चलें कि साल 2010 के नवंबर महीने तक देश के शेयर बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों का पूंजी प्रवाह 38 अरब डाॅलर से ऊपर निकल गया था। तब वित्तमंत्री ने भी इसे खपाने की चिंता जताई थी। हालांकि उस समय वित्त मंत्री ने उच्च आर्थिक वृद्धि के लाभ को समाज के निचले तबके तक पहुंचाने का भ्रामक बयान भी दिया था। आज हालात और भी बदतर हो रहे हैं। अब विदेशी शेयर बाजारों में देशी पूंजी के निवेश का भी रास्ता खोला जा रहा है। इसी तरह हमारे देश के बड़े उद्योगपतियों से लेकर बड़े व्यापारी तक अपना पैसा विदेशी बाजारों में लगा रहे हैं। हमारे पड़ोसी मुल्क प्याज, लहसुन जैसी रोजमर्रा की जरूरतों वाली वस्तुओं के साथ मोबाइल, टीवी व जूते तक से भारतीय बाजारों को पाट दे रहे हैं।  और तो और हमारा ही सामान सस्ते भाव में खरीदकर दोबार हमें ही महंगे भाव में बेचा जा रहा है। इन सामानों के साथ आने वाले लोगों की नीयत कतई साफ नहीं है। इसकी गवाही नेपाल सीमा से लगे इलाकों में व देश के अन्य सीमावर्ती इलाकों में लगातार पकड़े जा रहे घुसपैठियों की बढ़ती संख्या है। और हमारी सरकार के ताजा बजट में विदेशी पूंजी निवेश को दी गई खुली दावत भी हमें इतिहास के पन्नों में दफ्न ईस्ट इंडिया कम्पनी के कारनामों की याद दिला रहे हैं।
    भारतीय लोकतंत्र का राजमार्ग घपलों-घोटालों की संकरी गलियों में फंस गया है। इन्हीं गलियों में बहनेवाली तास्सुब की मोरियों से द्दर्म, जाति और भयादोहन की दुर्गंद्द उठ रही है। विपक्ष में बैठी भाजपा सत्ता दल की मुखिया पर आरोपों की बौछार करने का कोई मौका नहीं चूकती। यहां तक सीधे सोनिया गांधी को उसके सहयोगी संगठन धमकी देते हैं। विहिप के मुखिया से लेकर संघ के पूर्व प्रमुख ‘नतीजे भुगतने’ जैसे जुम्ले उछालकर टकराव की जमीन तैयार करते हैं?राम-मंदिर के नाम पर सिंदूर-चंदन बांटकर हिंन्दुओं की आस्था को चोट पहुंचाने के साथ सियासी ब्लैकमेल का खतरनाक खेल देश को कहां ले जाएगा?वहीं सत्तादल में ही कई अंद्देरी गुफाएं खुल गईं हैं। इनमें से निकलने वाला चेहरा देशद्रोह से मिलता है। उससे भी तकलीफदेह हैं, प्रधानमंत्री के वाक्य, ‘वे मजबूर हैं।’ या ‘सरकार को ब्लैकमेल करना चाहती है, भाजपा।’ यह सच है कि अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान पूरे समय प्रधानमंत्री असाद्दारण संयम से राजनीतिक उतार-चढ़ावों का सामना कर रहे हैं। उनके गम ने ही यह भी कहलवाया कि उनसे कुछ गलतियां हुई हैं। लेकिन वह उतने भी दोषी नहीं है जितना हल्ला मचाया जा रहा है। बावजूद इसके भ्रष्टाचार से जिस सख्ती से निपटने के तेवर मनमोहन सिंह सरकार दिखा रही है, वह देर से ही सही लेकिन उसे उचित कदम कहा जाएगा।
    यह समय आरोपों, प्रत्यारोपों और वोट की राजनीति की संस्कृति से अलग देश की आजादी को बचाने का है। गांधी-नेहरू को गरियाने के दिमागी फितूर को भूलकर पं0 जवाहर लाल नेहरू के प्रण गरीबी और असमानता मिटाने के लिए एकजुट होकर पूरे विपक्ष को जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी होगी। आज देश के सभी बड़े शहरों में माफिया गरोहों की अपनी अलग सरकारें हैं। वे अपने दबदबे से समाज, राजनीति को अपनी मुट्ठियों में रखते हैं। सत्ता इन्हीं के आसपास है। सरकारी पैसों की लूट भी यही कर रहे हैं। इनकी देखा-देखी हर स्तर पर मामूली सक्षमता हासिल नागरिक भी अपने ही भाई बंदों को लूटने में लगा है।
    पं0 जवाहर लाल नेहरू ने बहुत पहले कहा था, ‘देश की आजादी खतरे में है, पूरी ताकत से इसे बचाना है।’ उनकी सोंच के मानचित्र पर उभरे हुए खतरे आज और भी बढ़ गये हैं। उनसे निपटने के लिए महात्मा गांधी की रणनीति अहिंसा और डाॅ0 अम्बेडकर की अगुवाई में लिखे गये भारतीय संविधान पर ईमानदारी से अमल करने की आवश्यकता है। हमें देश की आजादी बचाने के लिए हर ‘रावण ’ को देश से बाहर खदेड़ना होगा और सामाजिक विषमताओं को सत्य की लाठी से हांकना होगा। आइए, आजादी बचाने का संकल्प लें। हमारा प्रण ही एक स्वस्थ्य राष्ट्र का निर्माण करेगा।

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