Monday, March 14, 2011

बलात्कार! बलात्कार!! बलात्कार!!! कैसे बचे औरतों की इज्जत?

लखनऊ। सच तो यह है कि हमारा समाज भ्रष्ट, ध्रष्ट और चरित्रहीन होता जा रहा है। हर सुबह अखबार में बलात्कार की घटनाओं की खबरें होती हैं। हद तो यह है कि जहां प्रदेश की तेज तर्रार महिला मुख्यमंत्री विधानसभा सदन के भीतर बड़े गर्व से स्वीकार करती हैं कि जनवरी 2009 से मई 2010 तक डेढ़ साल में 2412 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं यानी औसतन एक दिन मे ंपांच महिलाओं की इज्जत लूटी गई। इससे भी अधिक कानून के साथ मजाक क्या हो सकात है कि जहां स्वयं मुख्यमंत्री रहती हैं, उसी इलाके में विदेश से आई युवती से बड़े बाप के बेटे फिल्मी अंदाज में खुली सड़क पर छेड़छाड़ करते हैं। डरी-सहमी युवती एक टी.वी. चैनल के दफ्तर में शरण लेती है। चैनल के लोग पुलिस को सूचना देते हैं फिर भी पुलिस आदतन एक घंटे बाद पहुंचती है और अपमानित युवती ब्रीथिया की शिकायत पर पुलिस की नजरों में कोई अपराध नहीं बनता। सवाल यह है कि क्या सड़क पर बलात्कार होने के बाद ही अपराध बनेगा?
    यह सवाल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता पूछते हैं। उनका कहना है कि अखबार पढ़ने से तो यह लगता है कि सूबे में बलात्कारों का मौसम आ गया है। कहीं युवती को बलात्कार के बाद जिन्दा जला दिया जा रहा है, कहीं हाथ-पैर काट लिए जाते हैं। तो कहीं पीड़िता को ही जेल भेज दिया जाता है। हाथ पैर काट लिए जाते हैं। कहीं युवती पर सरेराह तेजाब फंेका जा रहा है। पीड़िताओं को अस्पतालों में इलाज के बजाए डाक्टर धक्के मार कर बाहर भगा दे रहे हैं। इसके बाद भी सरकार और उसके जिम्मेदार मुखिया, हाकिम कहते हैं, कानून-व्यवस्था दुरूस्त है। कानून का राज कायम है।
    इससे भी तकलीफदेह एक मेल ‘प्रियंका’ के पाठक का आया है, जिसका पूछना है कि क्या जब प्रदेश की तमाम युवतियां ‘गैंगरेप’ का शिकार होकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेंगी तब यह समाज, सरकार और मीडिया चेतेगी? क्या सारी जिम्मेदारी सरकार की है? मीडिया बलात्कार को चटखारे लगाकर टी.वी. के पर्दे पर दिखाकर और अखबार उसे मसालेदार खबर बनाकर छापकर छुट्टी पा सकता है? क्या उसे समाज में फैल रहे इस क्रूर अपराद्द के प्रति संवेदनशील नहीं होना चाहिए और सुधारात्मक जन जागरण अभियान चलाने की पहल नहीं करनी चाहिए?
        इन सवालों के जवाब में शायद बहस हो सकती है या टका सा पुलिसिया जवाब दिया जा सकता है। सरकार में बैठा दल अपने लोगों के शामिल होने पर पूरी बेशर्मी से इसे ‘सियासी रंग’ करार दे सकता है। विपक्ष सिर्फ हो हल्ला मचाकर अपने हित साधने की जमीन तैयार कर सकता है। फिर कौन इन बिलखती व अपमानित युवतियों के आंसू पोंछेगा?
    आंकड़े कहते हैं, अकेले राजधानी लखनऊ में बीते चार महीनों में 25 युवतियां बलात्कार की शिकार हुईं। इनमें मासूम बच्ची से लेकर नाबालिग लड़कियां तक शामिल हैं। लखनऊ पुलिस के थानों में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा सरकार के तीन सालों के दौरान बलात्कार के मामले लगभग 30 फीसदी बढ़े हैं। इनमें भी तमाम मामलों में सत्तादल के नेता शामिल हैं और इनको बचाने में सत्तादल की मुखिया और हाकिम पूरी ढ़िठाई से आगे खड़े हो जाते हैं। यही पुलिस बाकायदा पीड़ितों को धमकाने, समझौता कराने की भूमिका निभा रही है।
    कमोबेश इसी तरह की भूमिका कांग्रेस के राहुल गांद्दी से लेकर सपा, भाजपा व अन्य दलों के नेताओं की भी है। कोई भी गंभीरता से किसी प्रकार के ठोस कदम उठाने के पक्ष मंे नहीं दिखता। विधानसभा के सदन में भी इसे उठाकर विपक्ष महज अपना हित साधता दिखाई दे रहा है।
    समाजसेवकों, नेताओं, अफसरों के भरोसे को छोड़ कर ‘आदमी’ को आगे बढ़कर इस समस्या के लिए जूझना होगा। आइए हम ही पहल करें ‘प्रियंका को अपने सुझाव ई-मेलः मकपजवतण् चतपलंदां/हउंपसण्बवउ पर मेल करें।

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