Monday, March 14, 2011

कहां हैं महात्मा गांधी?

लखनऊ। सूबे की बसपा सरकार के मंत्रियों व सरकारी दफ्तरों से महात्मा गांधी के फोटो को उतरे हुए धीरे-धीरे चार साल हो रहे हैं। गौरतलब है कि आजादी के बाद से देश के सभी सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के राष्ट्रपति के चित्रों को टांगने की परम्परा रही हैं। सभी दलों की सरकारों ने इसका पालन भी किया। मई 2007 में जब पूर्ण बहुमत वाली बसपा सरकार उप्र में दाखिल हुई तो सबसे पहले विधान भवन में मौजूद मुख्यमंत्री व मंत्रियों के कार्यालयों की साफ सफाई के बहाने महात्मा गांधी के चित्रों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। आज लखनऊ में सभी कार्यालयों में डाॅ0 अम्बेडकर, कांशीराम और मायावती के चित्र लगे दिखाई देते हैं।
    महात्मा गांधी की जगह इन चित्रों को लगाने का आदेश किसने दिया, पर हर तरफ मौन हैं। एक सेवानिवृत हाकिम के मुताबिक जुबानी आदेश के तहत महात्मा गांधी का चित्र लगाना प्रतिबंद्दित हैं। यहीं उप्र सूचना विभाग के कारिन्दों का जवाब भी गौर करने लायक हैं। यहां बताते चलें कि राजनेताओं के चित्र सूचना विभाग ही उपलब्ध कराता है। प्रदेश सरकार के मंत्रियों की मांग पर उन्हें सूचना विभाग ने डाॅ0 अम्बेडकर, कांशीराम व मायावती के चित्रों को उपलब्ध कराया, किसी ने महात्मा गांधी के चित्र की मांग ही नही की तो कैसे गांधी जी के चित्र को दिया जाता। इस मामले पर बसपा के नेताओं का कहना है कि गांधी जी कांग्रेस के नेता हैं। कांग्रेस सरकारों में डाॅ0 अम्बेडकर के चित्र को नहीं लगाया गया तो बसपा सरकार गांधी का चित्र क्यों लगाए? समय के साथ परम्पराएं बदली जा सकती है और यह गलत भी नहीं है। हम गांधी जी का अपमान तो नहीं कर रहे हैं।
    यहां याद दिलाते चलें इसी विधान सभा में मायावती ने गांधी जी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल काफी समय पहले किया था, जिस पर काफी हो-हल्ला भी मचा था। हालांकि गांधी जी के चित्र को इससे पहले भाजपा के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भी हटाने की पहल की थी, लेकिन सार्वजनिक निंदा के बाद उन्होंने अपने कदम वापस लेकर गांधी जी के चित्रों को सरकारी कार्यालयों में लगा रहने दिया। कांग्रेस, भाजपा व सपा के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है। सभी के अपने-अपने स्वार्थ हैं, सबको दलित वोटों की आवश्यकता है। कुछ को सरकारी सुविधाओं की चाहत है, तो कइयों के लिए गांधी जी महत्वहीन हैं। उससे भी बड़ी बात है गांधी जी वोट नहीं है। गांधी जी दलित नहीं है। इसीलिए कोई भी इस मसले पर कुछ भी नहीं कहना चाहता। बहरहाल, गांधी जी लखनऊ के सरकारी कार्यालयों से बाहर ही रहेंगे।

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