Sunday, October 14, 2012

हमारे घर में तीसरा मोर्चा


सियासत के माॅल में साहित्य और पत्रकारिता के ‘कोलोबरेशन’ की जानी-पहचानी शख्सियत पहले ‘फुर्सत में’ आपसे मुखातिब होती थी। बीच के दिनों में निर्माणाधीन राजनैतिक काॅलोनी और साहित्यिक ‘फन’ के बीच बढ़े हुए यातायात में फंसे हुए अकुला रहे थे। मेरा आग्रह हुआ तो लोटन कबूतर की तरह उड़कर अपनी अटरिया पर गुटर... गूं...गुटर...गूं..., तो अब विधायकी, वोट और आदमी के बीच आपाधापी में फिर से आपसे रूबरू हैं, नींबू सी सनसनाती ताजगी के साथ उसी आखिरी पन्ने पर नये काॅलम ‘राजनैतिक व्याव्स्ता के बीच’ तीसरा मोरचा लेकर।                       -संपादक
हम सच ही कहते हैं। आप विष्वास करो या न करो। आपके पास विष्वास के अलावा और कोई उपाय नहीं। अविष्वास करोगे तो हमारी जगह कोई साम्प्रदायिक ताकत लपक लेगी। इसलिए यकीन करो कि मैं भी अर्थषास्त्र का जानकार हूं। अर्थषास्त्र का एम0ए0 हूं। मैं एम0ए0 की डिग्री यूनीवर्सिटी से नहीं लाया। तब डिग्री लेने के लिए 20 रूपये पड़ते थे। कोई भी समझदार अर्थषास्त्री 20 रूपये यों ही नहीं खर्च करेगा। मैंने भी नहीं किये। डिग्री से होता क्या है? मार्कसीट काफी है। मुझे अच्छे नम्बर मिले थे। नम्बर देने का काम विष्वविद्यालय के अपने ही प्रवक्ता करते हंै। राजनीति के क्षेत्र में भी नम्बर देने का काम अक्सर अपने दल वाले ही करते हैं। अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री को भी सोनिया जैसे उनके संरक्षको ने 10 में 10 नम्बर दिये थे लेकिन विदेषी मीडिया ने नम्बर काट लिये। अब विदेषी अखबार विद्वान अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री को भी ‘अंडर एचीवर - कम अंक पाने वाला’’ बता चुके हैं।
लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रधानमंत्री विद्वान अर्थषास्त्री थे और हैं। मैं भी अर्थषास्त्र का एम0ए0 तो हूं ही। भरापूरा परिवार है मेरा। पुत्र, पुत्रियां, बहुएं और पौत्र। लेकिन घर गष्हस्थी चलाने में अर्थषास्त्र की समझ काम नहीं आती। पुत्र पढ़े लिखे हैं, पिता कड़क हैं सो घर का काम चला करता है। लेकिन पीछे हफ्ते बात बिगड़ गई। पुत्रों के साथ बैठा। उन्हें अर्थषास्त्र का ‘सकल घरेलू उत्पाद’ समझा रहा था। बताया कि खेती की उपज और तुम्हारे फुटकर व्यापार से धन समष्द्धि नहीं बढ़ेगी। घर के बाहर से आया परदेषी धन ही समष्द्धि लाता है। युवा पुत्र भिड़ गये। एक खेती में रूचि रखता है, एक काम चलाऊ व्यापार करता है, एक अखबार में है। मैं भी अकड़ गया। मैंने डांटा, ‘‘अर्थषास्त्र समझो। एफ0डी0आई0 जानो। जी0डी0पी0 समझो। अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री के मुताबिक प्रति व्यक्ति समष्द्धि बढ़ी है, यह भी जानो। तभी घरेलू अर्थषास्त्र समझ में आएगा।’’
    बच्चे नहीं माने। एक ने कहा कि आपके अर्थषास्त्र से ही घर की लोटिया डूबी है। मेरे स्वाभिमान को चोट लगी। मैं कौटिल्य के अर्थषास्त्र का ज्ञाता हूं, एडम स्मिथ, मार्षल कीन्ज से लेकर मनमोहन अर्थषास्त्र तक मेरा ज्ञान फैला हुआ है। लेकिन घर वाले हैं कि मेरे ज्ञान अर्थषास्त्र को ही चुनौती दे रहे हैं।’’ मैंने ऊपर-ऊपर ऐंठते हुए लेकिन भीतर से मिमियाते हुए प्रतिवाद किया। अपना अर्थषास्त्र दोबारा समझाया ‘‘तुम्हारी खेती में इस दफा लहसुन जमकर पैदा हुआ। 7 रूपया किलो ही बिक रहा है, इसमें विदेषी कम्पनियों का ज्ञान लगता वे इसे खूबसूरत कागज की पन्नी में पैक करते। अंग्रेजी में नाम रखते ‘‘प्यारोफाइड गैरलाक्सि’’। हारलिक्स की तरह खूब बिकता। अपने हिमांचल प्रदेष का सेब मधुर है, ग्लूकोज से भरापूरा। लेकिन विदेषी सेब पर पर्ची चिपकी है, विदेषी होने की।
    खन्ना बाबू गोयल मैडम को परसों बता रहे थे कि फाॅरेन के सेब की बात ही दूसरी है। कांस्टीपेषन में भी फायदेमंद है। इसलिए मेरे बच्चों एफ0डी0आई0 पर ध्यान दो। विदेषी ज्ञान की हनक दूसरी है। करीना कपूर और कैटरीना कैफ का फर्क देखो। करीना देषी है, कैटरीना विदेषी। विदेषी अर्थषास्त्र ही मनमोहन है। देषी अर्थषास्त्र और स्वदेषी को कौन पूंछता है?’’ बच्चे झगड़े पर आमादा हो गये। मैंने कहा कि मैं अपनी बात पर अडिग हूं। यह कड़े निर्णय का समय है। मैं पीछे नहीं हटूंगा। तुमको साथ छोड़ना हो तो छोड़ो।’’ बच्चों ने भी फैसला सुना दिया ‘मैं आपको कमजोर नहीं होने दूंगा। आपका समर्थन करूंगा। आपको हमारा ख्याल रखना होगा। सिर्फ आपकी नीतियों का विरोध करता रहूंगा और तीसरा मोर्चा बनाने की कोषिष करूंगा।’’
    मैं फुर्सत में नहीं हूं। इसलिए फुर्सतनामा लिखने का समय नहीं। यह कड़े फैसले लेने का वक्त है। राजनैतिक अस्त व्यस्तता है। मैं भयभीत हूं। हमारे घर में भी तीसरा मोर्चा बनने जा रहा है।


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