Sunday, October 14, 2012

तिलक को कौन देगा इंसाफ?

ओबरा (सोनभद्र)। हज़ारों हज़ार छात्र छात्राओें का आदर्श, विद्वता और शैक्षिक आदर्श का स्तम्भ बन चुके वरिष्ठ शिक्षक सीजे तिलक को उनके ही स्कूल सेकेे्रड हर्ट सेकेण्ड्री कानवेण्ट की प्रधानाचार्या सिस्टर किरन नें अपनी निरंकुश तानाशाही का इस क़दर शिकार बनाया कि आज वह इन्साफ पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खानें को मजबूर हैं। सीबीएसई के नियम कानून की धज्जियां उड़ाने पर उतारू प्रधानाचार्या नें शिक्षक धर्म को शर्मसार करने वाली ओछी हरकत को अन्जाम देते हुए बच्चों को जीवन भर अनुशासन और ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाले संस्था के प्रति निष्ठावान शिक्षक को उसी स्कूल मे बच्चों व साथी कर्मियों के सामने अपमानित करते हुए स्कूल परिसर से बाहर निकलवाने का क्षुद्र कार्य भी अंजाम दे दिया।       
    उक्त शिक्षक का सुदोष मात्र इतना था कि विद्यालय प्रबन्धन द्वारा समय से पूर्व उसे सेवानिवष्त्त किये जाने की कुचेष्टा का उसने विरोध करते हुए अपने हक की मांग कर दी कि उसे राज्य सरकार और सीबीएसई के नियमानुसार 60 वर्ष की अवस्था में सेवानिवष्त्त किया जाये न कि 58 वर्ष में। लिहाजा हक और अधिकार की बात सुनते ही त्योरियां चढ़ाने वाली क्रिश्चियन संस्था दी एजुकेशनल सोसाइटी आफ दी अरसू लाइन मेरी इम्माकूलेट विमल सदन लखनऊ द्वारा संचालित उक्त विद्यालय की प्रधानाचार्या नें इस मामले को निजी प्रतिष्ठा का विषय बनाते हुए शिक्षक के जीवनभर के योगदान को मटियामेंट करने पर ही नहीं तुली अपितु अपने अहंकार और स्वतंत्र अल्प संख्यक संस्था के दम्भ में चूर होकर स्थानीय नियंत्रक जिलाविद्यालय निरीक्षक, रूल एवं रेगुलेशन से लेकर जिले एवं प्रशासन के सर्वोच्च नियंता जि़ला मजिस्ट्रेट के आदेश की अवमानना करने पर अड़ गयीं।
    यहां तक कि विद्यालय को मान्यता प्रदान करने से लेकर परीक्षा नियंत्रक सीबीएसई के आदेश को भी उक्त तानाशाह और निरंकुश हो चली प्रधानाचार्या ठेंगा दिखाती आ रही हंै। हैरान परेशान और हताश शिक्षक को अब बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर अब वह इन्साफ मांगने कहां जायें। भीगी बिल्ली बनकर रहने वाले उक्त विद्यालय के शिक्षक और शिक्षिकाओं से लेकर विद्यालय परिवार भयवश दुबककर अपने साथी कर्मी के साथ हो रहे अन्याय को चुपचाप देखने को मात्र इसलिए विवश है कि कहीं उन्हें भी कल को बाहर का रास्ता न दिखा दिया जाये।
    अन्याय और शोषण के विरूद्ध अपने हक की आवाज उठाने वाले उक्त शिक्षक द्वारा इन्साफ के लिए अधिकारियों के यहां 2 फरवरी 12 से ही प्रत्यावेदन के साथ किये गये गुहार पर गौर करें तो न्याय पाने के लिए उक्त शिक्षक ने जिलाधिकारी के यहां दिये गये आवेदन पत्र में उल्लेख किया है कि उसकी सेवानिवष्त्ति की आयु 31 जनवरी 2014 को पूरा होता है जबकि उन्हे 60 वर्ष की बजाय 58 वर्ष की अवस्था में ही 01 फरवरी 2012 को पठन-पाठन कराने के बाद जबरिया सेवानिवष्त्त कर दिया गया और कहा गया कि अब आपको सेवामुक्त किया जाता है। विदित है कि राज्य सरकार द्वारा जारी राजाज्ञा में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि सेवानिवष्त्ति की आयु 60 वर्ष निद्र्दारित की गई है। साथ ही वह सेवानिवष्त्ति के बाद दो साल और सेवा का एक्सटेंशन पाने का अद्दिकारी है। यदि सेवक एक्सटेंशन नहीं लेता है तो वह साढ़े सोलह माह का वेतन सेवा लाभ के रूप में पाने का अधिकारी है।
    केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत कार्यरत कर्मचारी भी उक्त सेवा नियमावली के दायरे में आते हैं। पीडि़त शिक्षक ने अधिकारियों के यहां सेवानिवष्त्ति पर पक्ष रखते हुए दावा किया है कि उनकी सेवानिवष्त्ति की आयु 31 जनवरी 2014 को पूरी होती है। बावजूद इसके उनकी आयु 58 वर्ष पूरे होते ही उन्हे 01 फरवरी 2012 को ही सेवामुक्त कर दिया गया। उन्हे न तो सेशन का लाभ ही दिया गया हैै और न ही 60 वर्ष की सेवा आयु और 2 वर्ष का एक्सटेंशन लाभ ही। विदित है कि पीडि़त शिक्षक की जन्म तिथि 1 फरवरी 1954 है जो विद्यालय अभिलेख में भी दर्ज है और विद्यालय द्वारा जारी वार्षिक बुलेटिन पत्रिका में भी उसका उल्लेख किया गया है।
    यहां ध्यान देने योग्य व विद्यालय प्रबन्धन के द्वारा शासन को गुमराह करने वाला एक तथ्य और है कि श्री तिलक को नियुक्ति का जो पत्र दिया गया है, इस पर 11 अप्रैल 1988 की तारीख अंकित है जबकि शासकीय अभिलेखों में वर्ष 2004 से उनकी नियुक्ति दर्शायी गई है। क्या यह संज्ञेय अपराध नहीं है?
    बावजूद इसके केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा जारी सेवा नियमावली का अनुपालन प्रबन्धन द्वारा न कर मनमानी की जा रही है। हालत यह है कि कल तक उस कालेज का स्तम्भ कहे जाने वाले उक्त शिक्षक को कालेज जाने पर हर दिन रूसवाई का सामना करना पड़ रहा है और कालेज परिसर में जाने पर प्रतिबन्द्दित कर दिया गया है।

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