Sunday, October 14, 2012

दादी अम्मा... दादी अम्मा मर जाओ...!

लखनऊ। दादी तुम कब मरोगी? दादी मर जाए तो....? जैसे अबोध और आतंकी सवालों के बीच पिछले पखवारे अंग्रेजी-हिन्दी के रोमांस से पैदा ‘वर्णशंकर पाठशालाओं’ मंे ‘ग्रांड पेरेंट्स डे’ कार्यक्रम सूबे के महानगरों से लेकर कस्बों तक में आयोजित किये गये। इनमें बच्चों ने अपने दादा-दादी, नानी-नाना के लिए ग्रीटिंग कार्ड, बेस्ट स्टोरी, गेम्स, फैशन शो आदि का उपहार देकर आनंद उठाया और स्कूलों ने मोटी कमाई की।
    पांच दशक पहले ‘धूल का फूल’ सिनेमा आया था, जिसमें रूठी हुई दादी अम्मा को मनाने के लिए उनके पोता-पोती ने गाना गया था, ‘दादी अम्मा.... दादी अम्मा.... मान जाओ...’। आज अधिकांश परिवार के बच्चे बगैर दादी-दादा के यहां तक बगैर मां-बाप के क्रेच, डे बोर्डिंग और हास्टलों में अपना बचपन गुजार रहे हैं। ऐसे में इन उधार की पाठशालाओं के धनबटोरू पाखण्ड से बच्चों को कौन से संस्कार मिलंेगे?

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