लखनऊ। औरैया की युवती को बंधक बनाकर सपा विधायक मदन सिंह गौतम व उनके चार साथियों ने चार महीने तक लगातार बलात्कार किया। ऐसा आरोप पुलिस अद्दीक्षक को दी गई तहररी में पीडि़त युवती ने लगाया है। इस घटना से पहले लखनऊ-दिल्ली के बीच चलने वाली वीआईपी गाड़ी लखनऊ मेंल में यात्रा के दौरान सूबे के आइएएस शशिभूषण लाल ‘सुशील’ ने सहयात्री युवती से छेड़छाड़, मारपीट की व बलात्कार करने का प्रयास किया। इसी दिन कैसरबाग क्षेत्र में दबंगों ने मां के साथ जा रही युवती को न सिर्फ छेड़ा वरन् उसके कपड़े तक फाड़ने के प्रयास किया। हर पांच मिनट में पांच लड़कियों को राजधानी में छेड़ने के मामले सामने आते हैं। पूरे सूबे के हालात का अंदाजा लगाना तब और आसान हो जाता है जब कानपुर में भरे बाजार दो लड़कियों से अश्लील हरकत करते रहे शोहदे और पुलिस घटना से ही इन्कार करती रही। इससे भी दो कदम आगे अलीगढ़ की खैर कोतवाली में तैनात रहे सिपाही ने छात्रा से दुष्कर्म कर उसकी वीडियों क्लिप बना ली। इन शर्मनाक घटनाओं की बाढ़ में भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाओं की पवित्र धरती नंदगांव (मथुरा) के एक विद्यालय की शिक्षिका से वहीं के सह-समन्यक ने बलात्कार कर डाला। इस कुकर्म में विद्यालय की प्रद्दानाचार्या भी शामिल थीं। इलाहाबाद के मांडा इलाके में 17 साला छात्रा के साथ उसके ही चचेरे भाई ने अपने डाक्टर मित्र व एक अन्य दोस्त के साथ डाक्टर मित्र के क्लीनिक में बंधक बनाकर तीन दिन तक बलात्कार किया। वहीं फर्रूखाबाद के जिंजौरा व पहाड़पुर गांव में युवती से छेड़छाड़ को लेकर आमने-सामने गोलियों की बौछार होने की खबर आई हैं।
इससे भी अधिक खतरनाक घटना अलीगढ़ के अतरौली विद्दान सभा क्षेत्र के गांव विद्दीपुर की है। गांव की युवती के साथ वहीं के युवक ने दुराचार किया। पंचायत बैठी युवक ने अपना अपराध कबूल किया। पंचों ने फैसला सुनाया भरी पंचायत में आरोपी को दस जूते युवती मारे और 80 हजार जुर्माना पीडि़त परिवार को मिले। घटनाएं तो इतनी हैं कि अखबार में पन्ने कम पड़ जाएंगे। ये घटनाएं महज बानगी भर नहीं हैं, वरन् समाज की बदलती सांेच का घृणित चेहरा हैं, कानून के खौफ को बिला जाने की है।
तकलीफ तो तब और होती है जब मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक बयान देते हैं, चाहे कोई भी हो बहू-बेटी से छेड़छाड़ महंगी पड़ेगी या लड़कियों को नहीं जाना होगा थाने, पुलिस लिखाएगी मुकदमा।’ ये झूठे आश्वसनों वाले बयान लगातार बढ़ती शोहदई और बलात्कार के सामने प्रदेश की महिलाओं/ युवतियों का मजाक उड़ाने वाले लगते हैं। पुलिस क्या करती है या क्या कर रही है? इसे कौन नहीं जानता। इससे भी दो कदम आगे बढ़कर उपदेशकों के हास्यास्पद बयान भी ठहाके लगा रहे हैं, ‘नियमों का पालन हो तो आसान होगा महिलाओं का सफर’, ‘मानसिकता बदलें, नहीं तो घर में छेड़ी जाएंगी लड़कियां।’ कैसे बदलेगी मानसिकता? कौन बदलेगा? वह भी तब जब टी.वी. के पर्दे पर विज्ञापन (स्प्राईट कोल्ड ड्रिंक) में ‘कैसे ले लूं मैं इसकी....’, इच गार्ड में स्त्री गुप्तांग को खुजलाते और मैनफोर्स के विज्ञापन के जरिए कंडोम के साथ का सुख खुलेआम पूरा परिवार (दादा-दादी, नाना-नानी, बहू-बेटी, बेट, पोते-पोती, नतिनी-नाती) रजामंदी के साथ देखता है। यहीं नहीं लड़कियांे को मेडिकल स्टोर पर 72 आॅवर पिल्स या कंडोम खरीदते, दुकानदार रोक सकता हैं?
सड़क पर आधे-अधूरे कपड़ों में बाइक पर पूरी बेशर्मी से लिपटी युवती को कौन रोक सकता हैं? चार शोहदों को सरेआम किशोरी से अश्लील हरकत करने से कौन रोकेगा? वह पुलिस जो खुद थानों के भीतर यही सब करने के प्रयास में बदनाम है? वह कायर पाखंडी अभिभावक जो खुद पड़ोस की महिला/युवती से रंगरेलियां मनाने के सपने देखते हैं या मनाते हुए पकड़े तक जाते हैं?
या फिर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का गए विधानसभा चुनावों के समय किया गया वायदा, ‘अगर उनकी पार्टी की सरकार बनती है तो बलात्कार पीडि़ता लड़की को सरकारी नौकरी दी जाएगी और बलात्कारी के विरूद्ध कड़ी कार्यवाहीं की जायेगी।’ कहां हुआ है इस वायदे पर अमल? बसपा सरकार के समय के सोनम, शीलू कांड के अलावा कन्नौज, एटा, बाराबंकी, मुरादाबाद, चिनहट (लखनऊ) कांड का सपा मुखिया ने अपने चुनाव प्रचार में बेहतर प्रयोग किया था। उस समय बड़ा हंगामा भी हुआ था। उन कांडों की सुध लेना तो मौजूदा सरकार के ‘पिताजी’ भूल गये लेकिन जो हर पल घटने वाले बलात्कारों की खबरें आ रही हैं उन पर तो चुनावी वायदे को पूरा किया जा सकता है।
बलात्कार या छेड़छाड़ क्यों बढ़ रहे हैं? इस सवाल को लेकर महज बहस नहीं शोध हो सकता है। पुरूषों पर बढ़-चढ़कर आरोप लगाये जा सकते हैं, लेकिन मानसिक नंगई पर, सामाजिक नंगई पर कौन सा शोध होगा? जब कंप्यूटर लिंग निर्धारण से लेकर बच्चा पैदा करने की तारीख तय कर रहा है और टी.वी. के पर्दे पर बच्चा जनने की सारी प्रक्रिया ‘थ्री इडियट्स’ के जरिए दिखाई जा रही है, तब ‘सत्यमेव जयते’ में चीखना बेमानी हो जाता है। जब पूनम पांडे, रोजलीन, गहना, शर्लिन चोपड़ा जैसी सिनेमाई युवतियां अपने सारे कपड़े उतारकर नंगई का हल्ला बोल देती हैं, तब सारा समाज गोलबंद होकर चटखारे लगाता है? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पूरा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक ढांचा जब बाजार में खड़ा है तो संस्कार के मूल्य कैसे बचाए जायेंगे? इसके जवाब में सरकार और सरपरस्तों को ही आगे बढ़कर पहल करनी होगी।
इश्कज़ादों और लापताओं के आंकड़े
वर्ष गुमशुदगी दर्ज मिले शेष
2012 552 265 287
(1 जनवरी से 30 जून)
2011 957 837 120
2010 1012 948 64
2009 137 989 148
कुल 3658 3039 619
इससे भी अधिक खतरनाक घटना अलीगढ़ के अतरौली विद्दान सभा क्षेत्र के गांव विद्दीपुर की है। गांव की युवती के साथ वहीं के युवक ने दुराचार किया। पंचायत बैठी युवक ने अपना अपराध कबूल किया। पंचों ने फैसला सुनाया भरी पंचायत में आरोपी को दस जूते युवती मारे और 80 हजार जुर्माना पीडि़त परिवार को मिले। घटनाएं तो इतनी हैं कि अखबार में पन्ने कम पड़ जाएंगे। ये घटनाएं महज बानगी भर नहीं हैं, वरन् समाज की बदलती सांेच का घृणित चेहरा हैं, कानून के खौफ को बिला जाने की है।
तकलीफ तो तब और होती है जब मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक बयान देते हैं, चाहे कोई भी हो बहू-बेटी से छेड़छाड़ महंगी पड़ेगी या लड़कियों को नहीं जाना होगा थाने, पुलिस लिखाएगी मुकदमा।’ ये झूठे आश्वसनों वाले बयान लगातार बढ़ती शोहदई और बलात्कार के सामने प्रदेश की महिलाओं/ युवतियों का मजाक उड़ाने वाले लगते हैं। पुलिस क्या करती है या क्या कर रही है? इसे कौन नहीं जानता। इससे भी दो कदम आगे बढ़कर उपदेशकों के हास्यास्पद बयान भी ठहाके लगा रहे हैं, ‘नियमों का पालन हो तो आसान होगा महिलाओं का सफर’, ‘मानसिकता बदलें, नहीं तो घर में छेड़ी जाएंगी लड़कियां।’ कैसे बदलेगी मानसिकता? कौन बदलेगा? वह भी तब जब टी.वी. के पर्दे पर विज्ञापन (स्प्राईट कोल्ड ड्रिंक) में ‘कैसे ले लूं मैं इसकी....’, इच गार्ड में स्त्री गुप्तांग को खुजलाते और मैनफोर्स के विज्ञापन के जरिए कंडोम के साथ का सुख खुलेआम पूरा परिवार (दादा-दादी, नाना-नानी, बहू-बेटी, बेट, पोते-पोती, नतिनी-नाती) रजामंदी के साथ देखता है। यहीं नहीं लड़कियांे को मेडिकल स्टोर पर 72 आॅवर पिल्स या कंडोम खरीदते, दुकानदार रोक सकता हैं?
सड़क पर आधे-अधूरे कपड़ों में बाइक पर पूरी बेशर्मी से लिपटी युवती को कौन रोक सकता हैं? चार शोहदों को सरेआम किशोरी से अश्लील हरकत करने से कौन रोकेगा? वह पुलिस जो खुद थानों के भीतर यही सब करने के प्रयास में बदनाम है? वह कायर पाखंडी अभिभावक जो खुद पड़ोस की महिला/युवती से रंगरेलियां मनाने के सपने देखते हैं या मनाते हुए पकड़े तक जाते हैं?
या फिर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का गए विधानसभा चुनावों के समय किया गया वायदा, ‘अगर उनकी पार्टी की सरकार बनती है तो बलात्कार पीडि़ता लड़की को सरकारी नौकरी दी जाएगी और बलात्कारी के विरूद्ध कड़ी कार्यवाहीं की जायेगी।’ कहां हुआ है इस वायदे पर अमल? बसपा सरकार के समय के सोनम, शीलू कांड के अलावा कन्नौज, एटा, बाराबंकी, मुरादाबाद, चिनहट (लखनऊ) कांड का सपा मुखिया ने अपने चुनाव प्रचार में बेहतर प्रयोग किया था। उस समय बड़ा हंगामा भी हुआ था। उन कांडों की सुध लेना तो मौजूदा सरकार के ‘पिताजी’ भूल गये लेकिन जो हर पल घटने वाले बलात्कारों की खबरें आ रही हैं उन पर तो चुनावी वायदे को पूरा किया जा सकता है।
बलात्कार या छेड़छाड़ क्यों बढ़ रहे हैं? इस सवाल को लेकर महज बहस नहीं शोध हो सकता है। पुरूषों पर बढ़-चढ़कर आरोप लगाये जा सकते हैं, लेकिन मानसिक नंगई पर, सामाजिक नंगई पर कौन सा शोध होगा? जब कंप्यूटर लिंग निर्धारण से लेकर बच्चा पैदा करने की तारीख तय कर रहा है और टी.वी. के पर्दे पर बच्चा जनने की सारी प्रक्रिया ‘थ्री इडियट्स’ के जरिए दिखाई जा रही है, तब ‘सत्यमेव जयते’ में चीखना बेमानी हो जाता है। जब पूनम पांडे, रोजलीन, गहना, शर्लिन चोपड़ा जैसी सिनेमाई युवतियां अपने सारे कपड़े उतारकर नंगई का हल्ला बोल देती हैं, तब सारा समाज गोलबंद होकर चटखारे लगाता है? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पूरा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक ढांचा जब बाजार में खड़ा है तो संस्कार के मूल्य कैसे बचाए जायेंगे? इसके जवाब में सरकार और सरपरस्तों को ही आगे बढ़कर पहल करनी होगी।
इश्कज़ादों और लापताओं के आंकड़े
वर्ष गुमशुदगी दर्ज मिले शेष
2012 552 265 287
(1 जनवरी से 30 जून)
2011 957 837 120
2010 1012 948 64
2009 137 989 148
कुल 3658 3039 619
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