Sunday, October 14, 2012

आगामी हिंदी-साहित्य-सम्मेलन


इस बार हिंदी-साहित्य-सम्मेलन का वार्षिक अधिवेशन मुजफ्फरपुर में होगा। स्वागत-समिति बन चुकी है, और वह अपना कार्य करने लगी है। अब सम्मेलन के समय और सभापति के चुनाव का प्रश्न उपस्थित है। समय के संबंध में तो यह एक प्रकार से निश्चित ही है कि वह ईस्टर की छुट्टियों में होगा। सभापति के संबंध में हमारा मत यह है -
1. बाबू जगन्नाथ ‘रत्नाकर’ बी0ए0
2. ‘आज’-संपादक श्रीयुत बाबूराव-विष्णु पराड़कर
3. पं0 पद्मसिंह शर्मा
4. बाबू मैथिलीशरण गुप्ता
5. श्रीयुत जयशंकर ‘‘प्रसाद’’
    इन पांचों सज्जनों की विदृत्ता और हिंदी की सेवा हिंदी-संसार में किसी से छिपी नहीं। बाबू जगन्नाथ-दासजी बहुत अच्छे कवि हैं, और आपने आजन्म हिंदी-सेवा की हैं। आप वयोवृद्ध भी हैं और ज्ञानवृद्ध भी। ब्रजभाषा के तो आप इस समय एक मात्र सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। आपकी संपादित अनेक काव्य-पुस्तकें काशी के भारत-जीवन-प्रेस से किसी समय प्रकाशित हुई थीं। इधर आपने बिहारी-सतसई की वृहत और सुंदर टीका लिखी है, जो बिहारी-रत्नाकर के नाम से गंगा-पुस्तकमाला ने प्रकाशित की है। आपने इसके लिखने में बड़ी खोज, परिश्रम और अध्ययन किया है। इसकी भूमिका जो आपने लिखी है और जो शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है, वह एक 2-3 सौ पृष्ठ का स्वतंत्र ग्रंथ ही होगा। उससे आपकी साहित्यज्ञता का प्रकृष्ट परिचय प्राप्त होगा। यही नहीं, आप प्राकृत के भी अच्छे ज्ञाता हैं, और अंगरेजी के भी ग्रेजुएट। आपने गंगावतरण नाम का एक मनोहर काव्य लिखकर इंडियन-प्रेस से प्रकाशित कराया हैं। उसकी काव्य-छटा भी दर्शनीय है। आपने उद्धव-शतक, भीष्माष्टक, गणेशाष्टक, द्रौपदी-अष्टक आदि अनेक छोटी-मोटी रचनाएं भी की हैं, जो शीघ्र ही प्रकाशित होंगी। ऐसे श्रेष्ठ विद्धान को यह सम्मान देना हिंदी-संसार का आवश्यक कर्तव्य है। श्रीयुत पराड़करजी की अध्ययनशीलता और योग्यता वास्तव में प्रशंसनीय है। आप संपादक भी प्रथम श्रेणी के हैं। आज पत्र को जो गौरव प्राप्त है, वह आप ही के मार्मिक लेखों और विवेचना-पूर्ण टिप्पणियों के कारण। आपने भिन्न-भाषा-भाषी होकर भी हिंदी को अपनाया है, यह आपकी विशेषता है। पं0 पद्मसिंहजी के विषय में अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं। आप संस्कृत, प्राकृत और फारसी के साहित्य के विशेष मर्मज्ञ हैं, सत्समालोचक हैं, सहृदय हैं, सफल संपादक हैं। ज्वालापुर से निकलने वालों भारतोदय पत्र को जिन्होंने पढ़ा है, वे इस बात को अच्छी तरह जानते होंगे। इस पत्र का संपादन आप ही करते थे। सतसई-संहार और सतसई-संजीवन आपकी सर्वतोमुखी प्रतिभा के प्रकृष्ट प्रमाण हैं। गुप्तजी हिंदी के लिये गौरव हैं। आपकी रचानाएं बहुत संुदर हैं। आपके जोरदार गं्रथों से हिंदी-संसार अच्छी तरह परिचित हैं। बाबू जयशंकर प्रसाद की प्रतिभा अब अच्छी तरह विकास को प्राप्त हो चुकी है। आप जैसे नाटक लिखने में सिद्धहस्त हंै, वैसे कविता करने में, वैसे ही काहनी तथा उपन्यास लिखने में। आपकी आँसू, अजातशत्रु, कामना, नागयज्ञ, स्कंदगुप्ता, अशोक, कंकाल, चंद्रगुप्त आदि पुस्तकें हिंदी-साहित्य का गौरव हैं। आपकी कविताएं इतनी भावपूर्ण और सुंदर होती हैं कि सहदय पाठक मुग्ध हो जाते हैं। हमारी राय में इन्हीं पांच सज्जनों में से किसी एक को इस बार सभापति बनाना उचित होगा। आशा है, हिंदी-संसार हमारी इस प्रार्थना पर ध्यान देने की अवश्य कृपा करेगा। अवस्था की दृष्टि से रत्नाकरजी को ही सभापति बनाने के लिये हम अधिक जोर देते हैं।

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