ईश्वर की कृपा से सुधा के प्रथम वर्ष का प्रथम खंड सकुशल समाप्त हो गया। यह सातवीं संख्या प्रेमी पाठकों की सेवा में उपस्थित की जाती है। सुधा कैसी निकली या निकल रही है, इसका फैसला करने का अधिकार पाठकों को हैं। हम केवल इतना ही निवेदन कर देना चाहते हैं कि हमने यथाशक्ति पाठकों की सेवा में उत्कृष्ट सामग्री उपस्थित करने की चेष्टा की है, और यह हमारी चेष्टा उत्तरोत्तर बढ़ती ही जायगी। इस समय हिंदी की दिन-दूनी रात-चैगुनी उन्नति हो रही है। उच्च साहित्य का आदर्श भी उच्चतम होता जा रहा है। नई-नई उच्च कोटि की पत्रिकाएं निकल रही हैं। प्रत्येक हिंदी का पत्र अपनी उन्नतिकरने में लगा हुआ है। यह बड़े ही हर्ष की बात है। हम सातवीं संख्या सुधा में कुछ परिवर्तन कर रहे हैं। आशा है, ये परिवर्तन पाठकों को रूचिकर होंगे। ‘चित्रकला’-स्तंभ के स्थान पर ‘ललित कला’ स्तंभ रक्खा गया है। इसमें चित्र, संगीत, अभिनय, रंगमंच, उपन्यास, कहानी, नाटक, कविता आदि सभी ललित कलाओं पर लेख और नोट रहेंगे। इस स्तंभ में विश्व-साहित्य का भी परिचय देने की चेष्टा की जायगी। इस प्रकार यह स्तंभ बहुव्यापक और अधिक उपयोगी बन जायेगा। इसके अतिरिक्त ‘चारू चयन’, ‘देश-विदेश’ आदि कई अस्थायी स्तंभ भी देने का विचार है। उनमें से कभी कोई स्तंभ रहेगा, कभी कोई। हमने इस बात का भी प्रबंध किया है कि प्रतिमास किसी विदेशी नाटककार, उपन्यासकार या कहानी-लेखक का परिचय, उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना का अनुवाद या आलोचना भी दी जाया करे। इस संख्या से पं0 विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक का ‘मा’ उपन्यास भी शुरू कर दिया गया है। यह क्रमशः निकलेगा। इसके बाद वर्तमान उत्कृष्ट हिंदी-लेखक, हमारे परम मित्र बा0 जयशंकरप्रसादजी का ‘कंकाल’ उपन्यास क्रमशः निकाला जायगा। यह उपन्यास बहुत ही उच्च कोटि का होगा। अगली संख्या से हिंदी के वर्तमान लेखकों और लेखिकाओं का सचित्र परिचय भी, ‘साहित्य-संसार’-स्तंभ देकर, क्रमशः प्रकाशित किया जायेगा। तात्पर्य यह कि सुधा को और भी अधिक उत्कृष्ट और उपयोगी बनाने के लिये भरसक पूरी चेष्टा की जायेगी। आशा है, हिंदी-प्रेमी जनता की ओर से हमें पूर्ण सहायता और सहयोग प्राप्त होगा।
कलम है मेरी माँ का नाम/स्वर है मेरे पिता. अक्षर है मेरा सगा भाई. ख़बरें/समाचार हैं मेरे बेटे -बेटियां. अखबार है मेरा हीरामन. पाठक हैं मेरे नातेदार. और हम हैं पत्रकार. बोलो क्या कहते हो? उठाओगे बहन वेदना की कराहती आवाज़ को? अगर हाँ, तो आगे बढ़कर थाम लो आदमी का हाथ, बना डालो धारदार तलवार. जी हाँ! धारदार तलवार . धारदार तलवार. धारदार तलवार.
Monday, September 17, 2012
‘सुधा’ की सम्पादकीय सम्मति कुछ अपने संबंध में
ईश्वर की कृपा से सुधा के प्रथम वर्ष का प्रथम खंड सकुशल समाप्त हो गया। यह सातवीं संख्या प्रेमी पाठकों की सेवा में उपस्थित की जाती है। सुधा कैसी निकली या निकल रही है, इसका फैसला करने का अधिकार पाठकों को हैं। हम केवल इतना ही निवेदन कर देना चाहते हैं कि हमने यथाशक्ति पाठकों की सेवा में उत्कृष्ट सामग्री उपस्थित करने की चेष्टा की है, और यह हमारी चेष्टा उत्तरोत्तर बढ़ती ही जायगी। इस समय हिंदी की दिन-दूनी रात-चैगुनी उन्नति हो रही है। उच्च साहित्य का आदर्श भी उच्चतम होता जा रहा है। नई-नई उच्च कोटि की पत्रिकाएं निकल रही हैं। प्रत्येक हिंदी का पत्र अपनी उन्नतिकरने में लगा हुआ है। यह बड़े ही हर्ष की बात है। हम सातवीं संख्या सुधा में कुछ परिवर्तन कर रहे हैं। आशा है, ये परिवर्तन पाठकों को रूचिकर होंगे। ‘चित्रकला’-स्तंभ के स्थान पर ‘ललित कला’ स्तंभ रक्खा गया है। इसमें चित्र, संगीत, अभिनय, रंगमंच, उपन्यास, कहानी, नाटक, कविता आदि सभी ललित कलाओं पर लेख और नोट रहेंगे। इस स्तंभ में विश्व-साहित्य का भी परिचय देने की चेष्टा की जायगी। इस प्रकार यह स्तंभ बहुव्यापक और अधिक उपयोगी बन जायेगा। इसके अतिरिक्त ‘चारू चयन’, ‘देश-विदेश’ आदि कई अस्थायी स्तंभ भी देने का विचार है। उनमें से कभी कोई स्तंभ रहेगा, कभी कोई। हमने इस बात का भी प्रबंध किया है कि प्रतिमास किसी विदेशी नाटककार, उपन्यासकार या कहानी-लेखक का परिचय, उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना का अनुवाद या आलोचना भी दी जाया करे। इस संख्या से पं0 विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक का ‘मा’ उपन्यास भी शुरू कर दिया गया है। यह क्रमशः निकलेगा। इसके बाद वर्तमान उत्कृष्ट हिंदी-लेखक, हमारे परम मित्र बा0 जयशंकरप्रसादजी का ‘कंकाल’ उपन्यास क्रमशः निकाला जायगा। यह उपन्यास बहुत ही उच्च कोटि का होगा। अगली संख्या से हिंदी के वर्तमान लेखकों और लेखिकाओं का सचित्र परिचय भी, ‘साहित्य-संसार’-स्तंभ देकर, क्रमशः प्रकाशित किया जायेगा। तात्पर्य यह कि सुधा को और भी अधिक उत्कृष्ट और उपयोगी बनाने के लिये भरसक पूरी चेष्टा की जायेगी। आशा है, हिंदी-प्रेमी जनता की ओर से हमें पूर्ण सहायता और सहयोग प्राप्त होगा।
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