Monday, September 17, 2012

यू.पी. में कचरे पर पशु रोमांस शो!

लखनऊ। पर्यटन के मानचित्र पर सूबा उप्र के महानगरों व राजधानी को कचरा, कुत्ता, सांड, बंदर, मच्छर, अंधेरे और बीमारों के लिए दर्ज किया जा रहा है। यही वजह है लखनऊ आगरा, मथुरा, इलाहाबाद, श्रावस्ती, अयोध्या, चित्रकूट, वाराणसी जैसे शहरों में विदेशी-देशी पर्यटक लगातार घट रहे हैं। इससे जहां राजस्व घट रहा है, वहीं रोजगार चैपट हो रहा है। सरकारी कर्मचारी निठल्ले और भ्रष्ट हो रहे हैं। शहरी हलकान और बीमार होकर अपनी मशक्कत की कमाई से बने सरकारी अस्पतालों में द्दक्के खा रहे हैं। नई पीढ़ी सेक्स के सारे करतबों का प्रशिक्षण खुली सड़कों पर पा रहे हैं। और जिम्मेदार नगर निगम के पार्षद, अधिकारी अपनी कमाई के संसाद्दन तलाशते हुए गुण्डई पर अमादा है। महापौर कोरे बयानों के जरिए अपनी पीठ अपने ही हाथ से थपथपाने और माला पहनने में व्यस्त हैं। नगरों का विकास करने वाले मंत्री जी नाराज हैं। आखिर कौन सुनेगा सूबे के आदमी की किल्लतों भरी चीख?
    गौर करने लायक है कि आगरा में कूड़ा उठानेवाली ठेकेदार कंपनी अल्ट्रा अर्बन इन्फ्राटेक के मुखालिफ नागरिकों का आक्रोष इतना बढ़ा कि नगर निगम को खुद आगे आना पड़ा फिर भी कूड़ा नहीं उठाया जाता। सिल्ट और जूता कारखानों का कचरा शहर के पर्यावरण में जहर घोल रहा है। इसी को देखते हुए पिछले दिनों उच्चन्यायालय के आदेशानुसार 40 जूता कारखानों को शहर के रिहायशी इलाकों से बाहर जाने का नोटिस प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिया है। बावजूद इसके नागरिक आन्दोलित तो सफाईकर्मी आनन्दित। ऐसे ही हालात वाराणसी, इलाहाबाद में भी है। अयोध्या, चित्रकूटद्दाम और श्रावस्ती कचरे और आवारा जानवरों से त्रस्त है। गंगा-सरयू में स्नान का सारा पुण्य कचरे-कुत्तों को दान करने वाले भक्तगण बेहद दुखी हैं। हाल ही में पितरों के श्राद्ध शुरू होने वाले हैं और इन तीर्थ नगरियों में सड़ांध, संक्रामक रोग और पशु आतंक पैर फैलायें है। ऐसे हालातों में कैसे होगा पिण्डदान और श्राद्धकर्म?
    राजधानी की अंधेरी सड़कों-गलियों पर सिल्ट-कूड़ा फैला पड़ा है। सांड-कुत्तों की सेक्सक्रिया के कार्यक्रम मुफ्त में देखने के साथ नागरिकों के घायल होने का सिलसिला जारी है। पिछले दिनों एक पार्षद अपने समर्थकों के साथ निजी सफाई व्यवस्था के ठेकेदार कंपनी पाॅवर सिक्योरिटी का ठेका रद्द होने से नगर निगम अद्दिकारियों से मारपीट कर बैठे। वहीं सफाई कर्मचारी संविदा पर रखे जाने के बाद भी काम न करने पर हटाए गये तो धरना-प्रदर्शन कर बैठे। ऐसे तमाशे रोज देखने-सुनने में आते हैं। पूरे शहर में सफाईकर्मी काम करने से परहेज करते हैं। जहां काम करने की गलती करते हैं, वहां घर-घर से वसूली करते हैं। पैसा वसूलने के बाद आंखें अलग दिखाते है। हद तो यह कि कूड़ा-उठाने को कहने पर बवाल काटने की धमकी तक देते हैं। गए महीने मोहनलालगंज सीएचसी में तैनात अधीक्षक के सफाईव्यवस्था दुरूस्त करने को कहने पर कर्मचारियों के हिमायती ड्राइवर ने उन्हें काट डालने की धमकी दे डाली। इनकी धमकियों को हकीकत में बदलते भी राजधानीवासी कई बार देख चुके हैं और आज भी ओमनगर में देखी जा सकती है। ऐसा नहीं है कि गंदगी-कचरे के लिए अकेले नगर निगम/सफाईकर्मी ही जिम्मेदार हैं, नागरिक भी जिम्मेदार है। सामाजिक संगठन और भ्रष्टाचार का हल्ला मचानेवाले भी जिम्मेदार हैं। बाबा/अन्ना के कार्यकर्ताओं को खस्ताहाल शहरी सेवा कोई मुद्दा नजर नहीं आती?

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