Monday, September 17, 2012

नाच बेटा नाच...पैसा मिलेगा


लखनऊ। छोड़-छाड़ के अनारकली चली अपने सलीम की गली... ओ... अनारकली डिस्को चली या पौव्वा चढ़ा के आई चमेली से भी दो कदम आगे माशाअल्लाह... गानों पर कमर मटकाती तीन से तीस साल की नई पीढ़ी को खुलेआम घरों में, स्कूलों में, सड़कों पर देखा जा सकता है। और चालीस से साठ की अघाई-बुढ़ाई पीढ़ी को इस नाच-गाने पर ताली बजाने में कतई संकोच नहीं। इस जमात में पिज्जा-पास्ता, पराठा-तरकारी से लेकर लिट्टी-चोखा खाने-पचाने वालों की पूरी साझेदारी है। किटी से सीटी पार्टियों, किचन से क्लासरूम, बस से बेडरूम और दफ्तर से सड़क तक मोबाइल पर गाना सुनते और थिरकते दिखना नई पीढ़ी का ‘स्टेटस’ हो गया है। सरकारी रजिस्टरों में दर्ज गरीबी की रेखा के नीचे जीने वालों की जमात के कानों में भी ‘इयरफोन’ ठुंसा हुआ दिखाई ही नहीं देता बल्कि उन्हें थिरकते हुए देखा जा सकता है। स्कूलों में बाकायदा ‘डांस के सुपर किड्स’ जीटीवी शो के आडीशन के लिए अलग से कक्षाएं लगाई जाती हैं। प्रधानाचार्या से लेकर शिक्षिकाएं तक उत्साह से बच्चों की तैयारी में हिस्सा लेते हैं। अभिभावक-शिक्षक बैठक में अभिभावकों पर बच्चों को घर पर अभ्यास कराने के लिए प्रशिक्षक रखने का दबाव डाला जाता है। यानी स्कूलों ने इसे आमदनी का जरिया बना लिया है। जब घर-स्कूल दोनों जगह बच्चों को प्रोत्साहन दिया जाता है, तो वे रिक्शा, आॅटो, वैन, बस में मस्ती करते नाचते-गाते दिखते हैं। ऐसे में किसी भी हादसे से इन्कार नहीं किया जा सकता। किशोरियों, युवतियों को तो लगातार हादसों का शिकार होना पड़ रहा है। इसके पीछे पैसा कमाने की होड़ भर नहीं है बल्कि यह सोंचा समझा ‘ग्लोबलाइबल कारपोरेट’ षड़यंत्र है। टीवी के लाइफ ओ.के. चैनल पर ‘झलक दिखला जा-5’ नृत्य कार्यक्रम दिखाया जा रहा है। इसमें नाच कम फूहड़ता, अश्लीलता अधिक दिखती है। इसमें अधिकांश नाचनेवाले जोड़ों के ‘सेक्स उपकरण’ उभार कर दिखाने की होड़ सी लगी रहती है। औरत को सामान्यरूप से छू भर देने से हंगामा खड़ा हो जाता है। बेडरूम से बाहर जिन नारी अंगों का भूल से भी दिखना तक नारियों को गंवारा नहीं उनकी नुमाइश बकायदा तबला-पेटी बजाकर की जा रही है। इसका असर यह है कि घरों के गुसलखाने, रसोई यौनाक्रमण के शिकार हो रहे हैं, तो बैठकों, शयनकक्षों में नृत्यशाला का अतिक्रमण हो गया है। संगीत की दुनिया में आई इस नई क्रांति का शिकार राजधानी की हजारों युवतियां हो रही हैं और सुरों की महफिल से आत्महत्या तक की नाकाम कोशिश करने वाली पूनम जाटव का नाम भुलाया जा सकता है?
‘झलक दिखला जा-5’ के मंच पर ईशा शरवानी-सलमान की जोड़ी संभावित विजेता में ईशा के हाथ में चोट लगने से वह बाहर हो गई है। रश्मि और ऋत्विक की जोड़ी को भी सराहा जा रहा है। इनके अलावा एक बच्चा जोड़ा दर्शील-अवनीत का भी रहा जो अपनी उम्र से पहले ‘कामशास्त्र’ का प्रशिक्षण लेकर विदा हो गया।
    कामेडियन भारती की गरीबी की दास्तान देशभर को सुनवाकर उसकी फूहड़ता से भरपूर जज रोमो के साथ रोमांटिक होने के नखरों को देर तक दिखाकर मनोरंजन करने की नाकाम कोशिश जारी है। इसके अलावा ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के विजेता बिहार के सुशील कुमार से उल्टे-सीधे हाथ-पैर उछलवाकर निम्नमध्यम वर्ग के दर्शकों को जोड़ने की भरपूर कोशिश की गई है। माधुरी के माधुर्य से दर्शक जहां बंधे हैं, वहीं लगातार आनेवाले मेहमान अभिनेता/अभिनेत्री भी दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हैं। इस शो के दर्शकों में सर्वाधिक संख्या बच्चों और युवतियों की है। यही वजह है कि इसकी टीआरपी भी पहले पायदान पर है। गो कि नाचने की धूम है। अधिक दिन नहीं बीते लखनऊ के कोठों और कोठेवालियों को उजड़े हुए। इन्हें सुनने और इनके नृत्य की एक शरीफाना उम्र और जगह तय थी और ‘झलक दिखला जा’ हर जगह नाच रहा है?
    इसी तर्ज पर सुरों की महफिलें भी सजी हैं। ‘इंडियन आइडल’, ‘सुरक्षेत्र’ जैसे कार्यक्रमों में छोटे-बड़े सभी गाते दिख जाएंगे। इससे पहले भी ‘जुनून’ जैसे कार्यक्रम से लखनऊ की मालिनी अवस्थी का नाम सामने आया। वहीं कल्पना भी कलप गयीं। इनकी नकल स्थानीय स्तर पर भी की जा रही है। चुनाचे नाचने-गाने की घोर महत्वाकांक्षी पीढ़ी का शिक्षा जगत से नाता टूटता जा रहा है और अपराध की नई किस्मों के जंगल उग रहे हैं। इस सबकी जिम्मेदारी समाज की नहीं है? ताली बजाकर ‘नाच बेटा नाच..पैसा मिलेगा’ का प्रोत्साहन क्या संज्ञेय अपराद्द की श्रेणी में नहीं आता? इन सभी सवालों का जवाब तलाशना ही होगा वरना बदलाव का कुतर्क बरबाद कर देगा।

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