ईद मुबारक
लघु कथा
‘अस्सलाम-आलेकुम दादा भाई....ईद
मुबारक हो |’ तीन फुट तीस किलो कद वजन की अनजानी बुलंद आवाज ने एक पल को ठिठका
दिया , पांव थम गये , आंखे अचरज से फ़ैल गईं | उसी हाल में जबाब दिया , ‘वालेकुम
सलाम आपको भी ईद मुबारक नन्हे दोस्त | ‘ ईद की छुट्टी होने की वजह से घर के ऊपरी
हिस्से में काफी समय बिताने के बाद नीचे बैठक में आते ही अपने पोते आत्मन के कई
नन्हें दोस्तों को बैठे देखा | मैंने उसी छोटे बच्चे से पूछा , ‘ क्या नाम है आपका
?’
‘ अलीबाबा , दादा भाई |’
‘दादा तो ठीक है लेकिन ये भाई ?’
मैंने जिज्ञासावश पूछा |
‘सब कहते हैं हिन्दू-मुस्लिम
भाई-भाई तो मैं और आप भाई-भाई हुए की नहीं ? दूसरे आप आत्मन के दादा हैं तो मेरे
भी दादा हुए की नहीं |’
‘गोया आपको रिश्तों की खासी समझ
है | किस दर्जे में तालीम पा रहे हैं ?’
‘क्लास फोर्थ में , सेंटफ्रांसिस
स्कूल हजरतगंज में पढ़ता हूं |’
‘भाई अलीबाबा जी , आप ईदी में
क्या लेंगे ?’
‘आपकी मोहब्बत और आपका आशीर्वाद
|’
‘मियां वो तो आप इतनी देर में
हासिल कर चुके हैं | ये लीजिये मेरी तरफ से आप सब आपस में बांट लीजिये |’ मैंने
पांच सौ रु.का नोट उसे देते हुए कहा |
‘शुक्रिया , दादा भाई, मेरी एक
गुजारिश है |’
‘बोलिए |’ ‘ आपको मेरे घर मेरी
अम्मी के हाथों की पकी मीठी सेवईयें खाने आना होगा |’
‘जरूर आऊंगा |’ मेरा जबाब सुनकर
सभी बच्चे सलाम , प्रणाम करते हुए चले गये लेकिन मुझे हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा और शिष्टाचार के साथ ईद के , बल्कि
त्यौहार के मानी समझा गये | खासकर अलीबाबा ने मुझे लखनऊ के नन्हे-मुन्नों की ईद
में शामिल करके पुश्तैनी तहजीब का एहसास कराया | ईद मुबारक |
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