Saturday, June 10, 2017

लखनऊ के हस्ताक्षर पर सरकारी सियाही !

लखनऊ | रमजान खत्म होने और मीठी ईद आने में महज दस दिन बाकी रह गये हैं ,लेकिन जो नजारे अमीनाबाद,नजीराबाद,मौलवीगंज,चौक समेत पूरे पुराने लखनऊ में इस दौरान देखने को मिला करते थे वह नहीं
दिखे | बाजारों में रौनक के नाम पर मायूसी , खाने-पीने की दुकानों तक में सन्नाटा पसरा रहा | जहाँ तरावीह     (क़ुरान पाठ) के बाद सारी रात नामी-गरामी होटलों में खूब गहमा-गहमी रहती थी , सडकों फुटपाथों तक पर रोज़ेदारों , खाने-पीने के शौकीनों की भीड़ नुमाया होती थी , वहीं रस्मअदायगी करने वाले दिखते रहे | इसके पीछे नोट बंदी और बड़े (भैंस) के गोश्त का जरूररत के हिसाब से न मिलना बताया गया | एटीएम में पैसे नहीं , कारोबार में मंदी के चलते ईद का भी उत्साह नहीं दिख रहा है |
गौरतलब है प्रदेश सरकार ने अवैध बूचडखानों पर प्रतिबंध व गोश्त की दुकानों के नवीनीकरण पर रोक लगा दी थी ,हालांकि उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद थोड़ी राहत मिली है लेकिन रमजान महीने को देखते हुए उसका कोई फायदा दिख नहीं रहा है | नवाबों के शहर लखनऊ के चमकते हस्ताक्षर टुंडे कबाबी , इदरीस होटल , रहीम होटल के आलावा तमाम छोटे-बड़े रेस्टोरेंट गोश्त की कम आमद से छटपटा रहे हैं | इन नामी-गरामी होटलों में केवल लखनउवे ही नहीं खाने आते हैं बल्कि दुनिया की नामचीन हस्तियां भी चठकारे लेते व अंगुलियां चाटते देखी जाती हैं | रमजान के दिनों में बिरयानी , कुलचे-नहारी , कबाब-पराठे , शीरमाल-कोरमा और भुने मुर्ग का स्वाद लेने वालों की खासी भीड़ रहती है इन होटलों में , बाकी के दिनों में मुस्लिमों से अधिक हिन्दू जमात के लोगों के साथ शोहरतयाफ्ता शख्सीयतों का जमावड़ा देखा जाता है | फ़िल्मी सितरों से अधिक सियासी हस्तियां टुंडे के कबाब ,इदरीस की बिरयानी के शौक़ीन हैं | बताते चलें कि इन होटलों के मालिकों ने अपने ग्राहकों को चिकन (मुर्ग) व मटन खिलाने की कोशिश की तो ४०-५० फीसदी बिक्री घट गई | जो पर्यटक कबाब-बिरयानी का नाम सुनकर आते हैं उनमें ५० फीसदी मायूस होकर वापस हो जाते हैं क्योंकि उनकी पसंद के स्वाद का खाना नहीं मिलता |
अमीनाबाद , नजीराबाद के कई होटल मालिकों का कहना है ,’ बीफ शौक से ज्यादा गरीबी का मसला है | कबाब की शौकीनी अलग बात है और महज २०रु.में गरीब आदमी का पेट भरना एकदम अलग |’
‘आप बताइए शाकाहार खाना कहाँ २० रु. में मिल रहा है ? पूडियां तक १२-१५ रु. में एक मिलती हैं , खस्ता-कचौड़ी १८-२० रु. में एक पीस मिलता है | गरीब के पेट पर लात मार कर सरकार को क्या मिलेगा ? कम से कम रमजान का तो एहतराम कर लेना था ! ‘ यह सवाल फूलबाग के होटल मालिक यूनुस मियां ने बेहद बेबसी से उठाये | वहीं गोश्त के एक कारोबारी का कहना है इस बंदिश ने मटन,चिकन,मछली,बीफ के दामो में ३०-४० फीसदी का इजाफ़ा कर दिया है | बकरे का गोश्त पहले ही ४०० रु. किलो बिक रहा था अब बढ़ कर ५००-७०० रु. किलो हो गया | रमजान की वजह से सभी तरह के मांस की मांग बनी हुई है , लेकिन हालात अभी और भी खराब होंगे क्योंकि वध के लिए पशुओं के खरीद-फरोख्त पर केंद्र सरकार ने पाबंदी लगा दी है |
गोश्त के कारोबारी अब्दुल वहीद मियां का कहना है ‘बीफ के नाम पर गाय को सियासत का मोहरा बनाकर देश भर में नफरत के बीज बोये जा रहे हैं , जबकि बीफ में भैसे,ऊंट,सुवर के आलावा और कई जानवरों के गोश्त शामिल होते हैं | ज्यादातर भैसे का गोश्त ही बीफ के नाम पर बिकता है , गाय का गोश्त तो सरकार की जानकारी में बीफ के नाम से विदेशों को निर्यात किया जाता है और इसमें भारत दुनिया भर में अव्वल है | सरकार को पहले इसके निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाना चहिये जिससे अपने आप गौवध रुक सकेगा |’

बहरहाल उच्च न्यायालय का कहना गौरतलब है कि सरकार किसी के खाने-पीने पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती , ऐसे में सरकार को उसका सम्मान करना चाहिए |दूसरे जब संघ और भाजपा मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बना रही हैं और गाय के दूध से रोजा इफ्तार करा रही हैं तो उन्हें गौ मांस खाने के फायदे-नुकसान से भी परिचित कराने की मुहिम चलायें और धैर्य से इसके परिणामों का इंतजार करे | 

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