महंगाई बोले तो जेब कटी......!
-प्रियंका वरमा
महेश्वरी
'मंहगाई'
ये शब्द सुनते ही आदमी अपनी जेब पर हाथ रखने लगता है मानों जेब कटने
वाली है । महंगाई बढ़ते ही आदमी का बजट डांवाडोल होने लगता है. हालाँकि महंगाई
बढ़ाने में काफी हद तक सरकार ही जिम्मेदार है | सरकार अपने कर्मचारियों का वेतन
भत्ता बढ़ाती है और वेतन भत्ता बढ़ते ही महंगाई भी बढ़ जाती है. अगर वेतन भत्ता न
बढ़ाया जाये तो काफी हद तक महंगाई पर काबू पाया जा सकता है.
अक्सर मौसम की मार से फसलों की बर्बादी हो जाती है जिसकी
वजह से फल, सब्जियों की कीमते आसमान छूने लगती है. अभी तमिलनाडु कृषि
संकट से गुजर रहा है. नोटबंदी, वर्षा और तूफ़ान के प्रभाव ने
उसे काफी प्रभावित किया है। पिछले साल भी
ख़राब मानसून की वजह से दाल की फसल ख़राब हो गई लिहाजा दाल के दाम बढ़ गए। २०० ग्राम
दाल के साथ 1 किलो
लकड़ी पैदा होती है और भारत जैसा देश दाल के मामले में आयत पर निर्भर नहीं रह सकता
है. लिहाजा उत्पादन बढ़ाना ही एकमात्र उपाय है. पिछले साल टमाटर की कीमतों में काफी
उछाल आया था. फल और सब्जी की कीमतों में भी काफी वृद्धि हो गई थी. पिछले साल सरकार
120 रूपये किलो में दाल बेचने को
तैयार थी लेकिन राज्य सरकारों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई और एक साल में 3 प्रतिशत महंगाई बढ़ गई |
इस बीच में पतंजलि एक नए ब्रांड के रूप में उभर कर आ रहा
है. चीजों की कीमत और गुडवत्ता को देखते हुए कई कंपनियों को अपनी चीजों की कीमतों
को काम करना पड़ा. पिछले साल एफएमसीजी ने रोजमर्रा की
चीजों में करीब 6 फीसदी
तक कमी की | नोटबंदी हुए अब काफी समय बीत गया है लेकिन अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी
है. अभी भी कुछ जगहों पर एटीएम में कैश की किल्लत है सरकार ने पिछले साल नवम्बर
में 500 और 1000 के नोटों पर पाबन्दी
लगाई थी, 86 फीसदी नकदी बाजार से
हटा ली गई थी और एटीएम नकदी की समस्या से जूझने लगे थे, बाद में ये समस्या कम हो गई थी लेकिन अब ये
समस्या फिर से सर उठाने लगीं है, कैश लॉजिस्टिक
असोसिएशन का मानना है कि महीने के शुरुआत में जब लोगो का वेतन आता है, तब एटीएम में पर्याप्त पैसे भरे जाते है पर. बाद
में आपूर्ति काम कर दी जाती है, एसोसिएशन के मुताबिक
बैंक अपनी शाखाओं में आने वाले ग्राहकों के लिए नकदी कम न पड़े इसलिए बैंक अपने
एटीएम में कैश डाल रही है.
अब सीजन शादियों का है जहाँ पैसों की खपत ज्यादा होती है और
बैंकों में नोटों की किल्लत की वजह से लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा
है। बैंकों का कहना है की रिजर्व बैंक की
तरफ से पर्याप्त नकदी नहीं मिलने के कारण ये स्थिति पैदा हुई है. रिजर्व बैंक की कानपुर शाखा से पिछले 15 सैलून से करेंसी
चेस्ट्स में नकदी आपूर्ति नहीं के बराबर है. जबसे यह खबर फैली लोगों ने नकदी
निकलना शुरू कर दिया है और जमा करने वाले एक चौथाई रह गए हैं. सबसे ज्यादा समस्या
ग्रामीण शाखाओं में है. गोरख्पुर के एक गांव की एसबीआई शाखा में काम करने वाले
अधिकारी का कहना है कि 15 दिन बाद उनके यहाँ 30 लाख रुपये की नकदी
आई और यह कहा गया की अगले 15 दिन तक इसी से काम
चलाओ. जिनके यहाँ शादियाँ है उन्हें ऐसे में नोट चाहिए। ३० लाख से क्या होगा ? यहाँ तो एक दिन में 10 लाख रुपये चाहिए
शहरी शाखाओं में नकदी और निकासी दोनों होती है लेकिन ग्रामीण शाखाओं में सिर्फ
निकासी होती है. नकदी की किल्लत की वजह से नोटेबंदी जैसे हालात फिर से उत्पन्न हो
गए है.
अगर बैंक व्यवस्था पर नजर घुमाये तो बैंक अपना एनपीए छुपा
रही है. भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को साफ़ - साफ़ आदेश दिया कि वे अपनी कर्ज
वाली सम्पत्तियों की गुणवत्ता का पूरा खुलासा करे लेकिन निजी बैंकों ने इसकी
अनदेखी की और अपनी फंसी सम्पत्तियों को छुपाया । वित्त वर्ष 2015 - 16 की तीसरी और चौथी
तिमाही के लिए केंद्रीय बैंक ने परिसम्पत्तियों की गुणवत्ता समीक्षा की तो पता चला
की देश का बैंकिंग उद्योग अपनी करीब आधी से ज्यादा कर्जदार सम्पत्तियों को छिपा
रहा है. ये छिपी सम्पत्तियाँ अब नज़र आने लगी है, कारण केंद्रीय बैंक के नियम है. उन्होंने फंसे हुए कर्जों
को अनिवार्य रूप से बताने का निर्देश दिया है. विश्लेषकों के अनुसार बैंकों के
आकड़े चौथी और तिमाही में होने के कारण अब अगले साल हे आ पाएंगे। यह रवैया सिर्फ एक बैंक तक हे नहीं सीमित
है। 2016 में एक्सिस बैंक का एनपीए 4.5 फीसद था [बैंक ने 1.7 बताया] जबकि
आईसीआईसीआई बैंक का एनपीए 7 फीसद था जो उसके
बताई संख्या 5 . 85 फीसद से ज्यादा था
हालाँकि इन दोनों बैंकों ने रिपोर्ट जारी नहीं की है। यस बैंक ने एक बयान में कहा
है कि वित्त वर्ष 2016 - 17 में बैंक के उपायों के बाद एनपीए में कमी आई है और इस
साल 31 मार्च तक यह 1039.9 करोड़ रुपये रह गया।
इसमें से भी एक बड़े कर्जदार के 911. 5 करोड़ रुपये कइ ऋण शामिल हैं और जल्दी
ही इसे वसूल कर लिया जायेगा। रिजर्व बैंक की समीक्षा के अनुसार फॅसे कर्ज की रकम 4,930 करोड़ है जबकि वास्तव में उसने 750 करोड़
रुपये ही बताये है। उसका सीधा असर शेयरों
पर दिखाई दिया, उनमे गिरावट आ गई।
अब बैंकों की व्यवस्था पर बात कर रहे है तो आपके पैन कार्ड
भी अछूते नहीं हैं केंद्र सरकार हरेक स्थाई खाता संख्या की लोकेशनिंग कर रही है
यानि आपका पैन किस जगह पर सक्रिय है यह
सरकार को देश के डिजिटल नक़्शे पर दिखाई देगा। ऐसा माना जा रहा है कि इससे सरकार को
कर वसूली सम्बन्धी विभिन्न मसलों पर विश्लेषण करने में मदद मिलेगी और काला धन कहाँ
पैदा हो रहा है यह पता लगा सकेगा ।
अब 1 जून से SBI नए नियम लागू कर चुकी है।
अब हर ट्रान्जेस्शन पर मोबाइल वॉलेट एप्प
से करने पर 25 रुपये टैक्स लगाएगी।
सेविंग अकाउंट वालों को भी 8 मेट्रो सिटी को फ्री और 10 नॉन मेट्रो सिटी को। इसी तरह 8 में से 5 एसबीआई के एटीएम इस्तेमाल कर सकते है और तीन अन्य किसी
के एटीएम से। नेट बैंकिंग में भी आपको कैश
निकलने पर 1 लाख रुपये तक में 5 रुपये + सर्विस टैक्स लगेगा। 1 से 2 लाख रुपये में
15 रुपये + सर्विस टैक्स लगेगा। 2 से 5
लाख के बीच 25 रुपये + सर्विस टैक्स लगेगा।
अभी सिर्फ SBI ने नए नियम लागू किये हैं ज्यादा समय नहीं जब अन्य बैंक भी
नियम बनाने लगे। आम आदमी पर बोझ बढ़ता ही
जा रहा है। व्यवस्थाओं में सुधार जरूरी है क्योकि बैंकों की अव्यवस्था के चलते आम
आदमी और आम जीवन दोनों ही प्रभावित होते जा रहे है। साफ़-साफ़ बोले तो बैंकों में
पैसा रखो न रखो , बैंकों से पैसा निकालो न निकालो टैक्स चुकाना ही होगा यानी हर
हाल में जेब कटनी ही है |
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