Thursday, December 20, 2012

सत्य से साक्षात्कार है ‘नचिकेता’

राम प्रकाश वरमा
राम का नाम सत्य है, मृत्यु के समय इकट्ठा होने वाली भीड़ का जयकारा है। और जन्म ‘मातृरूपेण संस्थिता’ का सच। इसी सत्य के संघर्ष का नाम जीवन है। उसे -‘नचिकेता’ का स्वरूप देकर केरल जैसी पावन माटी में जन्में पत्रकार/कवि पी. रविकुमार ने तमाम धार्मिंक ग्रंथों का सारांश चंद पन्नों में समेटने का साहस दिखाया है। ‘नचिकेता’ मूलतः मलयालम भाषा में है, उसका हिन्दी अनुवाद प्रो0 डी0 तंकप्पन नायर ने किया है। अनुवाद पढ़कर सीधे श्री नायर से जुड़ने का आनंद और रविकुमार के दर्शन भरे काव्य की भावगंगा के आचमन की अनुभूति को मैं अपने गुरूवार आचार्य पं0 दुलारे लाल भार्गव के दोहे में व्यक्त करते हुए ‘नचिकेता’ के सत्य से साक्षात्कार कराना चाहुंगा।
राधा गगनांगन मिलै धारापति सौं धाय;
पलटि आपुनों पंथ पुनि धारा ही ह्नै जाय।
    कवि रविकुमार ने लिखा है ‘आत्मविलासम्’ पढ़ने के बाद ‘नचिकेता’ लिखने की प्रेरणां मिली। दरअसल श्रीकृष्ण का यह कहना ‘अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते’ के बाद कई जगह कर्म के अनुसार फल का भी जिक्र श्रीमदभगवदगीता में हैं। पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक के आनंद भय का हमारे तमाम धर्मग्रन्थों में जिक्र हैं। उसी को काव्य रूप से इतने कम पन्नों में समेट कर पठनीय बनाया गया है। तो भी जन्म के बाद मृत्यु के सत्य को सभी जानते हैं, स्वीकारते हैं, लेकिन मैं, मेरा से मोहग्रस्त रहते हैं। कोई भी यमराज की अगवानी के लिए दो गज कफन खरीद कर पहले से नहीं रखता। ऐसे में सत्य से साक्षात्कार कराता है काव्य ‘नचिकेता’।
    शुक्ल शोणित संघात होकर/द्रवरूप में से लेकर जन्मांतर के पालने में नचिकेता नेत्र खोलता है से आगे काल कहीं नहीं जाता/ पीछे मुड़कर अंतिम बार देखा तो/दो काले भैंसे/ प्रिय पुत्र! तू हमारा सब कुछ था/ महारौरव नामक नरक में गिरता है। मैं ईश्वर से एकात्म हो जाता हूं, तक मनुष्य की वेदना का संघर्ष प्रतिष्ठापित है। जिंदगी की अनसुलझी पहेली और उसकी उत्तेजना में किये गये कर्म एवं उसके अनुरूप दण्ड के भय को उद्घाटित करते हुए ईश्वर के समक्ष खड़े हो जाने का शानदार समापन काव्यमय किया गया है। ‘नचिकेता’ काव्य को पढ़ने के बाद श्री के.जी. बालकृष्ण पिल्लै को द्दन्यवाद दंूगा। वे केरल हिन्दी प्रचार सभा के
अध्यक्ष रहे हैं। ‘प्रियंका’ कार्यालय आये भी हैं, उनका स्नेह बराबर बना रहा। इतनी उम्र होने पर भी उन्होंने प्रो0 नायर और रविकुमार को प्रेरित किया कि जन्म, मरण और अस्तित्व के संघर्ष के सत्य का लयबद्ध आनंद ‘प्रियंका’ के पाठक भी ले सकंे।
    और अन्त में इतना ही, ‘नचिकेता’ आदमी की आत्मा को झिंझोड़ने में सक्षम है। ‘मैं’ को ठोकर मारकर मानव को जगाने का नाम है ‘नचिकेता’। मोटे-मोटे ग्रन्थ सभी नहीं पढ़ सकते, परन्तु इस काव्य की पंक्तियां ग्रन्थों की तरह ही प्रेरणा देंगी।

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