Thursday, December 20, 2012

यदि आज अंगरेज भारत छोड़ दें?

अंगरेज नेता और समाचार-पत्र बहुधा यह धमकी दिखाया करते हैं कि यदि अंगरेज आज भारत को छोड़कर चले जाएं, तो कल ही यहां पर चीन की तरह क्रांति मच जाय और अफगानिस्तान -सरीखा कोई विदेशी आक्रमण कर इस देश पर अपना अधिकार जमा ले; रूस अपना षड्यंत्र अवश्य फैलावेगा और उस समय भारत की सांपत्तिक और नैतिक अवस्था कहीं गिर जायगी। इससे अच्छा तो यही है कि अंगरेज सर्वदा भारत में रहकर भारत की रक्षा करें, और
धीरे-धीरे उसको स्वराज्य की ओर ले चलें (?)
    इधर बड़ी व्यवस्थापिका सभा में इस प्रश्न पर पंडित मोतीलाल नेहरू ने काफी प्रकाश डाला है। गवर्नमेंट की सेना-नीति की कड़ी आलोचना करते हुए आपने रूस का हाल, जैसा स्वयं उन्हांने देखा है, बयान किया। आपका कहना है कि ‘‘रूस स्वयं ब्रिटिश-नीति से डरता रहता है, और सर्वदा आत्मरक्षा में तत्पर रहता है। उसमें इतना साहस कहां, जो भारत पर आक्रमण करें।’’ रही अफगानिस्तान की बात, सेा वह भी अमीर अमानुल्लाह के इधर के व्याख्यानों से ही प्रकट है। अमीर स्वयं अपने देश की उन्नति में ही रत हैं। थोड़ी देर के लिये यह भी मान लिया जाय कि अफगान आक्रमण करेंगे, तो क्या यह विचार में आ सकता है कि भारतवासी उनसे लोहा न ले सकेंगे? जब जर्मनी के छक्के भारतवासियों ने छुड़ा दिए, तो अफगान कौन चीज है।
    खैर, इसको भी जाने दीजिए। क्या भारत छोड़ने से अंगरेजों का कोई नुकसान न होगा? इधर डाॅक्टर तारकनाथ दास ने अमेरिका में व्याख्यान देते हुए सारबोन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एलबर्ट डेमाज्योर की स्पीच उद्धत की है। पाठकों के लिये वह यहाँ पर दी जाती है -
    ‘‘भारत चूसा जाने के लिये अच्छा देश है। बहुत बड़ा धनी और घना बसा हुआ होने के कारण वह अपने स्वामी को धन और आत्म-रक्षा-साधन प्रदान करता है। भारत ही के द्वारा इंगलैंड अपना भाग्य-निर्णय करता हैं। सुदूर पूर्व (चीन, जापान आदि) में ब्रिटिश व्यापार के लिये भारत केंद्र है। वह ब्रिटिश-जहाजी बेड़े को शरण देता है। सेना में सहासी योद्धा भरती करता है; भारतीय सेनाएं इंगलैंड के लिये चीन और दक्षिण अफ्रिका में लड़ती हैं, यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि भारत ने मेसोपोटामिया को जीता और टर्की को हराया। भारत इंगलिस्तान के लिये एक बृहत् मंडी है..... भारत इंगलैंड को सूद के रूप में 13,500 लाख पौंड से ज्यादा वार्षिक धन अर्पण करता है। भारतीय सेना में तमाम ब्रिटिश अफसर और सिपाही अपना पेट भरते हैं, और उनकी बचत ग्रेट-ब्रिटेन को जाती है। वह ब्रिटिश खजाने में अफसरों की पेंशन, इंडिया आफिस के खर्च और सूद के रूप में न जाने कितना धन डालता चला जाता है। 300 लाख पौंड से कहीं ज्यादा रूपया भारत अंगरेज महाजनों को देता है। इसका अंदाज लगाना असंभव है कि और कितना अधिक वह अंगरेज व्यापारियों को और जहाजों के स्वामियों को प्रदान करता है।’’
    ये शब्द एक नामी फ्रेंच प्रोफ्रेसर के हैं। पर इनमें कोई नई बात नहीं है। स्वयं र्लाउ बर्केनाहेड के शब्द उन्हीं के मुखारविंद् से सुन लीजिए-
‘‘भारत इंगलैंड के लिये अमूल्य है। इंगलैंड की व्यापारिक सफलता और संपन्नता भारत ही से है। भारत से नाता टूटना इंगलैंड के लिये एक भयानक अर्नथ होगा।’’ 
    .............‘‘यदि हम भारत छोड़ दंे, तो हमरे साम्राज्य का सत्यानाश प्रारंभ हो जाय; क्योंकि पूर्वी देशों पर भारत ही के कारण हमारा आद्दिपत्य हैं। वे सब हाथ से अवश्य निकल जायंगे।’’
    एक तरफ तो अंगरेजों के ऐसे विचार हैं, दूसरी तरफ वे डरे भी हैं। भारत छोड़ देने पर उनका नाश अवश्यंभावी हैं फिर इतनी मूर्खता क्यों? लेकिन दुःखी और बेडि़यों में जकड़े हुए भारत की अपेक्षा स्वतंत्र और सुखी भारत इंगलैंड को कहीं अधिक लाभ पहुंचा सकता है।

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