लखनऊ। बिजली चोरी का हल्ला हर चार दिन बाद ऊर्जा मुख्यालय की बैठकों से लेकर अखबार की सुर्खियों तक में छाया रहता है। इसी शोर की आड़ में बिजली वालों की बेईमानी नजरअंदाज की जाती है और उपभोक्ताओं की गर्दन दबाई जाती हैं। कभी लोड बढ़ाने के नाम पर, कभी मीटर चेक करने के नाम पर तो कभी बिजली चोरी के नाम पर बिजलीकर्मी बेघड़क घरों में घुस जाते हैं। महिलाओं, बुजुर्गाें को बाकायदा धमकाते, डराते हैं। जेल भेज देने का भय दिखाकर सीधे-सीधे रिश्वत तक मांगते हैं। भय भी ऐसा कि पिछले दिनों पुराने लखनऊ में एक बुजुर्ग महिला की करंट लगने से मौत हो गई। इसके अलावा मनमाने तरीके से उपभोक्ताओं से जुर्माना वसूला जाता है। इसी तरह मीटर रीडर रीडिंग में गड़बड़कर उपभोक्ताओं की जेबें काट रहे हैं। यही हाल बिजली बकाया वसूली के दौरान खुलेआम किया जा रहा है, जबकि पाॅवर कारपोरेशन प्रबंधन ने साफ-साफ बड़े अधिकारियों को वसूली के लिए उपभोक्ताओं के घरों तक जाने के आदेश दिये हैं। राजधानी में मुख्य अभियंता से लेकर अवर अभियंता तक अपने दफ्तरों से बाहर निकलना मुनासिब नहीं समझते। हर अधिशासी अभियंता ने वसूली का बाकायदा ठेका उठा रखा है। यही ठेकेदार व उनके सहयोगी पूरे शहर में वसूली करने में लगे हैं। मजे की बात है उपभोक्ता से वसूली में बकाया रकम के साथ तीन सौ रूपये अलग से लिये जाते हैं। यह तीन सौ रूपये अधिकतर नकद मांगे जाते हैं। उपभोक्ता चेक से भुगतान करना चाहे तो बकाया भुगतान राशि का चेक म्ेनअपकीं के नाम से और तीन सौ रूपयों एक चेक और म्म्म्न्क्क्ीनेेंपदहंदरध्बीवूा या जहाँ कहीं का भी हो के नाम से लिया जाता है। यह किस मद का होता है और क्यों लिया जाता है? जब उपभोक्ता बकाया भुगतान कर रहा है तो बिजली काटने/जोड़ने का पैसा भी उससे जबरिया नहीं लिया जा सकता। बिजली के बिलों में अनाप-शनाप पैसे लगा देना आम बात है। जरा उदाहरण देखिए, उपभोक्ता कुल 20 यूनिट बिजली जलाता है, उस पर 11501 रू0 बकाया है, उस पर एनर्जी व फिक्स चार्ज के अलावा 1505.38 रू0 अलग से चार्ज किये जाते हैं। वहीं 27 यूनिट वाले उपभोक्ता से एनर्जी व फिक्स चार्ज के अलावा 1545.09 रू0 लिए जाते हैं जब उस पर महज 7634 रू0 बकाया होता है। जरा आप देखें गरीब उपभोक्ता की जेब फाड़कर उसे कैसे लूटा जाता हैं। 20 यूनिट पर एक महीने में बिल होता है 698.38 रू0 27 यूनिट पर डेढ़ महीने में बिल आता है 1133.71 रूपया। खेल देखिये उपभोक्ता से 15 दिनों का फिक्स चार्ज दो बार वसूला जा रहा है? एमटी के नाम से 20 यूनिट दर 116रू0, 27 यूनिट पर 319.18 रू0 वसूला गया? गोया मीटर रीडर अपनी मर्जी से कभी भी आये अपनी मनमानी रकम भर कर उपभोक्ता को पकड़ा दे उसे वह देना ही होगा?
वहीं लाखों बिजलीकर्मियों/पेंशनधारियों को लगभग मुफ्त बिजली दी जा रही है। वे दूसरों को बाकायदा बिजली बेच रहे हैं। वहीं पेंशनधारक मर गया है उसके घर में कोई पारिवारिक पेंशन भी नहीं पा रहा है फिर भी बगैर मीटर के मुफ्त में बिजली उसके घर में जल रही है? दसियों बार बिजली कर्मियों के यहां मीटर लगाने के आदेश हुए लेकिन अब तक नहीं लग सके? बिजली संकट और बिजली चोरी की खबरें दैनिक अखबारों से मिलीभगत कर छपवायी जातीं हैं। अब गरमी ने दस्तक दे दी है रोज औसतन चार घंटे लखनऊ में बिजली गुल रहती है। 24 घंटे आपूर्ति की नाकामयाबी के साथ राजस्व वसूली का लक्ष्य न पूरा कर पाने के खोखले वायदे से ध्यान भटकाने की गरज से 252 करोड़ सालाना बिजली चोरी की ख़बर छपवा दी गई। साथ में यह बताने से भी नहीं चूके कि पांच सालों में बिजली चोरी रोकने के लिए लगभग एक हजार करोड़ की रकम खर्च की गई। दरअसल बिजली के अधिकारी, कर्मचारी लापरवाह होने के साथ भ्रष्ट, बेईमान और हवाई किले बनाने में उस्ताद हैं। आये दिन सर्वर ठप हो जाता है जिसका खामियाजा उपभोक्ता को भुगतना पड़ता है। इसके अलावा जितनी भी योजनाओं की घोषणाएं की गईं वे सब मुंह चिढ़ा रही है। उस पर तुर्रा यह कि सूबे के मुख्यमंत्री बिजली संकट के लिए बसपा को दोषी ठहराकर इन बेईमानों की पीठ ठोक देते हैं लिहाजा ये और हौसलामन्द होकर उपभोक्ताओं का गला काटने में लग जाते हैं। साफ-साफ सवाल उठाया जाय तो उपभोक्ता से बड़े चोर बिजली वाले नहीं हैं?
वहीं लाखों बिजलीकर्मियों/पेंशनधारियों को लगभग मुफ्त बिजली दी जा रही है। वे दूसरों को बाकायदा बिजली बेच रहे हैं। वहीं पेंशनधारक मर गया है उसके घर में कोई पारिवारिक पेंशन भी नहीं पा रहा है फिर भी बगैर मीटर के मुफ्त में बिजली उसके घर में जल रही है? दसियों बार बिजली कर्मियों के यहां मीटर लगाने के आदेश हुए लेकिन अब तक नहीं लग सके? बिजली संकट और बिजली चोरी की खबरें दैनिक अखबारों से मिलीभगत कर छपवायी जातीं हैं। अब गरमी ने दस्तक दे दी है रोज औसतन चार घंटे लखनऊ में बिजली गुल रहती है। 24 घंटे आपूर्ति की नाकामयाबी के साथ राजस्व वसूली का लक्ष्य न पूरा कर पाने के खोखले वायदे से ध्यान भटकाने की गरज से 252 करोड़ सालाना बिजली चोरी की ख़बर छपवा दी गई। साथ में यह बताने से भी नहीं चूके कि पांच सालों में बिजली चोरी रोकने के लिए लगभग एक हजार करोड़ की रकम खर्च की गई। दरअसल बिजली के अधिकारी, कर्मचारी लापरवाह होने के साथ भ्रष्ट, बेईमान और हवाई किले बनाने में उस्ताद हैं। आये दिन सर्वर ठप हो जाता है जिसका खामियाजा उपभोक्ता को भुगतना पड़ता है। इसके अलावा जितनी भी योजनाओं की घोषणाएं की गईं वे सब मुंह चिढ़ा रही है। उस पर तुर्रा यह कि सूबे के मुख्यमंत्री बिजली संकट के लिए बसपा को दोषी ठहराकर इन बेईमानों की पीठ ठोक देते हैं लिहाजा ये और हौसलामन्द होकर उपभोक्ताओं का गला काटने में लग जाते हैं। साफ-साफ सवाल उठाया जाय तो उपभोक्ता से बड़े चोर बिजली वाले नहीं हैं?
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