Tuesday, October 24, 2017

Wednesday, September 13, 2017

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भाजपा का नया इतिहास

भाजपा के नये भारत का इतिहास !

 नई दिल्ली (राव) | भारतीय जनता पार्टी ने एक सामान्य ज्ञान 2017 नाम से एक बुकलेट छपवाई है, जिसमें पहले प्रधानमंत्री के तौर पर पंडित जवाहरलाल नेहरू का कोई जिक्र नहीं है। किताब में प्रधानमंत्री पद से त्याग देने वाले पीएम के रूप में मोरारजी देसाई का नाम है। 70 पेजों की इस किताब के 34वें पेज पर शीर्षक है-भारत में पहले।
इसमें देश के पहले राष्ट्रपति, गवर्नर जनरल, उप राष्ट्रपति, लोकसभा स्पीकर और उपप्रधानमंत्री के बारे में बताया गया है। लेकिन इसमें न तो पंडित जवाहर लाल नेहरू का बतौर प्रथम प्रधानमंत्री जिक्र है और न ही महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता बताया गया है। इन बुकलेट्स को कई सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों के हजारों बच्चों को बांटा गया है।
महाराष्ट्र में कक्षा 9 की भूगोल की पुस्तक में देश का नक्शा गलत छाप कर बच्चों को बांट दिया गया यही गलती पिछले साल भी महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड ने की थी | इसी तरह उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग ने कक्षा एक में चलने वाली सरकारी पुस्तक ‘कलरव’ में अंग्रेजी की 31 वर्णमाला लिखीं हैं जबकि 26 होनी चाहिए | प्रकाशक यहीं नहीं रुके कक्षा 3 को पढ़ाया जाने वाला विषय कक्षा 1 की किताब में छाप कर बच्चों में वितित कर दिया गया है | यह है स्कूल चलो अभियान का सच और भाजपा की इतिहास बदलकर नई पीढ़ी को गुमराह करने की साजिश ! यही नहीं बाबा साहेब अम्बेडकर के नाम से स्कूलों व विश्वविद्यालयों में दलित विद्यार्थियों को ही प्रवेश नही मिल रहा है ?


प्रियंका हिंदी समाचार

नई आज़ादी के हल्ले में खबरपालिका  
सच लिखो तो सियासी मुहल्ले के जांबाज देशद्रोही कहकर हाथ काट ले रहे हैं | झूठ लिखो तो पाठक दारूबाज दलाल मान लेता है | चाटुकारिता करो तो किराये के पंडालों में भोजन के लिए बुलाकर सियासी गुंडे हलक में हाथ डालकर अपमानित कर रहे हैं |   इससे भी जी नहीं भरता तो गौरी लंकेश,ब्रजनन्दन,जैसों का राम नाम सत्य करते हुए केरल-बंगाल हिंसा के साथ इमरजेंसी का फुक्का फाड़ तर्पण कर रहे हैं | तिस पर तुर्रा ये कि सियासी आरामगाहों में ठेके या संविदा पर काम पाए संस्कारी लफ्फाज राष्ट्रवाद की परिभाषा बता रहे हैं | गो कि आदमी की पैरोकारी करने की जगह सत्ताधारियों के जयकारे लगाने की लतखोर ‘पत्तलकारिता’ जमात में शामिल होना होगा ? कौन देगा इस सवाल का जबाब गांधी या गोडसे के वारिस ? या फिर लोहिया या  मार्क्स का झंडा उठाये जमात ? या जिन्ना की बिगडैल औलादों के खलीफा ?
गौरी की हत्या पर चीखते-चिघाड़ते लेख/ज्ञान , समझदार सलाहें और आंसू बहाती संवेदनाएं उनकी चिता की राख में चमकती चिंगारियों से जुबानी शोले भडकाने का अपराध दर अपराध करके क्या साबित करना चाहती हैं ? हिन्दुओं के संस्कार तो मिट्टी को प्रणाम करने के हैं , फिर ये कौन से और किस ग्रह के हिन्दू हैं जो गौरी की अस्थियों तक को गाली दे रहे है ? यह किसी पत्रकार की पहली हत्या नहीं है और गाली के भजन भी पहली बार नहीं सुनाये जा रहे हैं , पिछली उत्तर प्रदेश सरकार के समय शाहजहांपुर के पत्रकार जोगेंद्र सिंह की जिन्दा जला कर हत्या के दौरान भी इसी तरह हल्ला-गुल्ला मचा था | आगे भी जब ऐसा कुछ घटेगा तो क्या इसी तरह छाती कूटते हुए मातम मनाएंगे ? चिंता तो संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर डेविड केय भी जता चुके हैं और दुनिया भर की जेलों में बंद पत्रकारों के रिहा किये जाने की मांग भी कर चुके हैं | महज चिंता,निंदा,संवेदना या विलाप करने से कुछ नहीं होगा | हमे समझना होगा कि पत्रकारों के बरखिलाफ राजनीतिक षडयंत्र की जड़ें कहाँ और कितनी गहरी हैं |
राजनीति के कचरा घरों से लेकर राजनीति के मुहल्ला दर मुहल्ला बड़बोले नेताओं की जमात पत्रकारिता को मिशन बताते नहीं थकती और पत्रकारों के आदर्श गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम लेना नहीं भूलती , लेकिन यह नहीं बताती कि किस मिशन पर पत्रकारों को काम करना चाहिए ? क्या वे खुद जिस मिशन पर काम कर रहे होते हैं उस पर पत्रकारों को काम करना चाहिए या फिर खबरपालिका के जिम्मेदार वकील होकर आदमी की पैरोकारी के मिशन पर ? आदमी की पैरोकारी करते हुए गांधीजी ने अपनी छाती पर गोली लगने के बाद हाय ..मार डाला नहीं ‘ हे ...राम’ कहा था | यह वाक्य राष्ट्र के लिए था , मानव के लिए था और उसकी पैरोकारी के लिए था | मोहनदास करमचन्द गांधी स्वतन्त्रता आन्दोलन के नायक ही नहीं थे , पत्रकार भी थे और आजाद भारत में 30 जनवरी,1948 को पहले पत्रकार की हत्या हुई थी | इसी के बाद पत्रकारिता ‘मिशन’ से ‘मोशन’ हो गई और शुभ-लाभ के बहीखाते में दर्ज की जाने लगी | 31 अक्टूबर,1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पत्रकारिता ‘मोशन’ से ‘मंचन’ में तब्दील हो गई | मंच पर अभिनय होता है जिसमे झूठ के सारे नातेदारों की भागीदारी होती है और मंच के पीछे साजिशों की पटकथा लिखी जाती है | क्या यही ‘न्यू इंडिया’ और नई आजादी’ के मंच पर नहीं हो रहा है ?
 इसी सवाल की कोख से हिंसक कबीले पैदा होने लगते हैं और रक्तरंजित पथ का निर्माण होने लगता है | इन्हीं साजिशी कबीलों की असलियत से नई पीढी को वाकिफ कराना है और इसके लिए पत्रकारों को अपने पुरखों की कलम से जने अक्षरों से हौसला हासिल करना होगा | यही हौसला ‘मिशन’ बनाना होगा जो  आन्दोलन साबित हो |  सवाल बहुत हैं ,बहसें बहुत हैं लेकिन अक्षरों की अपनी सीमा है , शालीनता है और ललकार भी |
प्राण नाथ डांट ल्यो मुला हम न मनिबे
लखनऊ | सब्जी जल गई...चावल जल गया....हाय दइया | लड़का घंटा भर से नंगा घूम रहा है कोई फ़िक्र है | टिफिन लगा या फोन पर ही लगी रहोगी | ऐसी आवाजें गांव-कस्बे से लेकर शहरी घरों से सुनाई देना आम हो गया है | दरअसल गृहणियां हर समय मोबाइल फोन पर लगी रहती हैं इसलिए ऐसी आवाजों की बुलंदियां बढ़ रही हैं | दिन में कई बार डांट खाने के बाद भी फोन की लत है की नहीं छूटती |  ऐसा नहीं है कि अकेले महिलाएं ही सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं बल्कि बच्चे,बूढ़े,युवा सभी के हाथों में फोन है और फेसबुक,वाट्सअप,वीडियो,गाने,जोक्स के साथ बातों का सिलसिला गजब है | लोगों का अपने पार्टनर तक से जुड़ाव घट रहा है , तलाक तक की नौबत आ रही है | अब अधिकतर लोगों की चाय सोशल मीडिया के दोस्तों के साथ होती है और सवेरा मोबाइल के एलार्म से होता है | मोबाइल की लत ने दुर्घटनाओं के साथ अपराधों को भी जन्म दिया है | आगरा से खबर है की 4जी फोन के लिए पति ने पत्नी को पीट-पीट कर मार डाला | लखनऊ में पति ने पत्नी को फोन पर बात करने से रोका तो पत्नी ने पति पर चाकू से हमला कर दिया | ‘डिजिटल इंडिया’ के फायदों के साथ कई  खतरे व अपराध भी बढ़ रहे हैं | चिकित्सकों के अनुसार लोग ‘स्मार्टफोन सेपरेशन एन्ग्जाइटी’ के शिकार हो रहे हैं | आंकड़े बताते हैं कि 79 फीसदी लोगों के हाथों में मोबाइल फोन हैं |
अंडे पर डंडा !
नई दिल्ली  | मांस बाजार की तबाही के बाद सरकार की नजर एक लाख करोड़ के मुर्गी पालन उद्योग पर टेढ़ी होती दिखाई दे रही है | विधि आयोग ने पिंजरे ( बैटरी केज ) में बंद और खुली मुर्गियों के अण्डों के बीच अंतर की सिफारिश की है | आयोग ने प्राणियों ( अंडे देने वाली मुर्गी ) पर अत्याचार रोकने के लिए नये नियमों की रूपरेखा तैयार की है | इस नियम में जानवरों पर अत्याचार कम करने के लिए पिंजरे में बंद और खुले में रहने वाली मुर्गियों के अंडों और गोश्त ( ब्रायलर ) में अंतर करना जरूरी है | आयोग की सिफारिश है कि मुर्गियों को खुले में रख कर उनसे अंडे हासिल करने को बढ़ावा दिया जाना चाहिए इसके लिए राज्य राज्य पशुपालन विभाग मान्यता दे | आयोग का तर्क है कि इससे उपभोक्ताओं को स्वस्थ व अत्याचार रहित प्रणाली में तैयार उत्पाद मिल सकेगा | अंडे देने वाली मुर्गियों और गोश्त ( ब्रायलर ) के लिए भी मानक तय किये गये हैं | इस खबर से मुर्गी पालन से लेकर अंडे और मुर्ग का गोश्त बेचने वाले कारोबारियों में खलबली मच गई है क्योंकि नियमों का पालन नहीं करने वालों के खिलाफ पशु अत्याचार निरोधक क़ानून के तहत कार्रवाई करने की भी सिफारिश की गई है | इतना ही नहीं मुर्गीपालन केन्द्रों की नियमित निगरानी व जांच के साथ नियमों का पालन न करने पर मुर्गियां तक जब्त करने का भी प्रावधान किया गया है |
बताते चलें कि अवैध बूचडखानों के बाद केंद्र सरकार ने पशु बाजार नियंत्रित करने के लिए नये नियम बनाये थे जिसके तहत पशुओं/मुर्गियों की गर्दन पंजे,पंख बाँधने , उल्टा पकड़ने पर पाबंदी लगा दी थी | आयोग का कहना है कि छोटे पिंजरों में मुर्गियां पंख तक नहीं फैला सकतीं , उन्हें बहुत परेशानी होती है , इसके साथ ही मुर्गियों की संख्या उनके वजन के हिसाब से तय होनी चाहिए | वहीं कारोबारियों का कहना है ये सिफारिशें न केवल हास्यास्पद हैं बल्कि इससे उत्पादन घटने के साथ बीमारियों के बढ़ने का खतरा भी बढ़ेगा क्योंकि खुले में मुर्गियां बीट और खाद के संपर्क में रहेंगी | वहीं पोल्ट्री उद्योग से जुड़े दिग्गजों का कहना है कि यदि आयोग की सिफारिशें मानी गईं तो इसके लिए अरबों डॉलर के निवेश की जरूरत होगी |

गौरतलब है कि पिछले महीनों में अंडों और मुर्ग के गोश्त की कीमतों में 30-40 फीसदी का इजाफा हुआ है | जानकारों का कहना है कि इसी वजह से सरकार की नजरें इस और उठ रहीं हैं | वहीं उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि बढ़ी कीमतों के बाद भी उत्पादन लागत पर संकट मंडरा रहा है | सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अकेले अंडों का उत्पादन 29.9 अरब है | यहाँ एक बात और गौर करने लायक है कि देश में मौजूदा सरकार और उसका मात संगठन शाकाहार का समर्थक है |  

Friday, August 18, 2017

राम प्रकाश वरमा , संपादक , ‘प्रियंका’,हिंदी समाचार पत्र ,लखनऊ |
1 लखनऊ विस्वविद्यालय से परास्नातक , हाईस्कूल केकेसी , इंटर क्रिश्चियन कालेज लखनऊ से |( बाकी मेरा बचपन और काफी कुछ मेरे लेख में है )
2/3  १९६९ में गुरुवर प. दुलारे लाल भार्गव , संपादक , माधुरी , सुधा पत्रिका , आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माताओं में एक स्तम्भ की कृपा से प. उमा शंकर मिश्र वरिष्ठ कांग्रेस नेता व एमडी एसोशिएटेड जर्नल्स लि. ने हिंदी दैनिक ‘नवजीवन ‘ में बतौर ट्रेनी शुरुआत कराई , इन्ही दोनों की कृपा से तीन साल नवजीवन में रहा | हिन्दी पत्रकारिता का ककहरा नवजीवन और आचार्य भार्गव जी से सीखा इन्ही की कृपा से हिंदी के मूर्धन्य रचनाकारों से आशीर्वाद मिला | प. कैलाश नाथ कॉल ( इंदिरा गांधी के सगे मामा ) का काफी दिनों तक टाइप का काम भी किया जिससे भाषा में सुधार हुआ | १९७६ में गुरुवर के स्वर्गवास के बाद मुम्बई की चार-पांच साल प्रवास में आर.के.करंजिया , डा.राम मनोहर त्रिपाठी , नन्द किशोर नौटियाल , डा. राही मासूम रजा ,ख्वाजा अहमद अब्बास ,कमलेश्वर जैसे दिग्गजों से मुलाकात और नवभारत टाइम्स ,सांध्य अमन ,में नौकरी व ब्लिट्ज में लेखन के दौरान कई ख्यातिनाम लोगों के इंटरव्यू लेने के मौके ने कलम को माँ मानने,समझने का गौरव दिया और लेखन में धार |
4 हिंदी पत्रकारिता बदलाव के दौर से गुजर रही है , मिशन की जगह मोशन में है सो बनियों ने भी ,नेताओ ने भी इसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया दूसरी ओर उसे समृद्ध भी किया लिहाजा पत्रकारिता शुभ-लाभ के बहीखाते में दर्ज होने लगी है |
5 दरअसल हम नारद से लेकर पराडकर जी तक पर ही अटके है जबकि आज हाईटेक टेक्नालाजी के दौर में जहाँ जरूरतें बढ़ी हैं वहीं पिछले २० सालों से बेईमानी के पैरों में बंधे झूठ के घुँघरू बेहद तेज आवाज में बज रहे हैं , ऐसे में भ्रष्टाचार के जंग लगे औजार से ठोक-पीट कर तैयार किये जाने वाले पत्रकारों से स्तर की बात बेमानी है | जहाँ संविधान को धता बता कर , कानून को धता बता कर , भोले-भले देशवासियों को जात-पात के खाने बाँट कर अपराधियों का शासन में सीधा दखल हो जाए वहां अकेले पत्रकारिता को दोष देना सही नहीं होगा |
6 जिम्मेदार तो तो हम ही हैं , प्राथमिक शिक्षा में ही बेईमानी है और सामाजिक , राजनैतिक वातावरण भी जिम्मेदार है |
7 बेशक है , इसके लिए किसी दूसरे ग्रह से कोई नहीं आएगा , हमें अपने प्रति ईमानदार होने की जरूरत है बस ये शुरुआत करने भर की देर है , कुछ मानक तय करने होंगे , नेता,कार्पोरेट्स को उनकी ही भाषा में बताने की ताकत अपने में पैदा करनी होगी |
8 वेब तो अब जवानी की दहलीज पर है और यह हर किसी की प्रेमिका साबित हो रहा है , भविष्य में हर हाथ में जो उपकरण होंगे वे तरंगो से ही सब बता देंगे | वेब मीडिया पर निगरानी की जरूरत है वरना यह अराजक भी हो सकता है लेकिन भविष्य उज्ज्वल है |
9 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने गोरखपुर में अपने गांव हरनही के पास भरोहियां में एक मंदिर पर ८ दिनों तक एक कंपनी पीएसी लगा कर यज्ञ कराया था किसी अख़बार को इसे कवर करने की इजाजत नहीं थी | देश के सभी अख़बारों का जमावड़ा लगा लेकिन कोई भी अंदर नहीं जा सका , ‘माया’ पत्रिका के निशीथ जोशी व राजेन्द्र कुमार ने प्रयास किया लेकिन उनको वीर बहादुर के भाई गुलाब सिंह व अन्य लोगों ने बेतरह पीटा और ये प्रकरण विधानसभा में भी उस समय उठा था | मै गोरखपुर के पत्रकार सुशील कुमार वर्मा व मेरे मित्र फतेह बहादुर सिंह ( फोटोग्राफर ) के साथ अंदर गया और हरनही गांव के घर का फोटो , यज्ञ स्थल व यज्ञ कराने वाले बाबा , पुजारी का फोटो और प्रसाद लेकर आया | उस समय देश भर में अकेले ‘प्रियंका ‘ ने पहले पेज पर मय फोटो के ‘ वीर बहादुर का यज्ञ  राजीव गांधी की कापालिक क्रिया ?’ हेडिंग लगाकर छापा था बड़ी चर्चा हुई थी , इसके गवाह आज भी ‘माया’ के ब्यूरो प्रमुख रहे अजय कुमार , निशीथ जोशी हैं | इस रिपोर्टिंग ने जहां निडरता सिखाई वहीं देश की कई नामचीन हस्तियों के करीब जाकर बेहिचक इंटरब्यू करने की हिम्मत दी उनमे मुलायम सिंह , हरिशंकर तिवारी , का नाम प्रमुख है | वैसे इससे पहले हाजी मस्तान , वरद राजन मुदलियार जैसे तस्करों तो कांग्रेस नेता वसंत दादा पाटिल , अब्दुल रहमान अंतुले के साथ भी बातचीत का अवसर मिल चुका था | और आज की विधानसभा के अध्यक्ष प. हृदय नारायण दीक्षित भी हैं |














Thursday, August 10, 2017

गगरी न फूटे चाहे खसम मर जाए
पानी की समस्या हमारे यहाँ आज से नहीं है काफी समय से चली  रही है।  सबसे ज्यादा तकलीफदेह स्थिति ग्रामीण इलाकों की है हरियाणा के 20 गाँव ऐसे है जहाँ के लोग 30 साल से पीने के पानी को तरस रहे है और तो और उन जगहों पर अपनी बेटियों को भी नहीब्याहना चाहते है।  13 साल पहले शुरू की गई 425 करोड़ की राजीव गाँधी पेयजल रेनीवेल परियोजना का गांवों को कोई फायदा नहीं है।  मेवात जिला के करीब 60 फीसदी गांवों में पीने योग्य पानी नहीं है और जमीन का पानी खरा है ऐसे में लोग पीने के पानी की समस्या सेजूझ रहे  है।
उत्तराखंड में भी कई ताल  सूख चुके है और कई सूखने की कगार पर है। टिहरी जिले में चन्दियार कांडो और अंधियार ताल अतीत बन चुके है   रूद्र प्रयाग में चौराबाड़ी ताल भी सूखने की स्थिति में है।  यह मन्दाकिनी चाहे बुंदेलखंड की हो या उत्तराखण्ड की काल दोनोंपर मंडरा रहा है।  हालत इतने ख़राब हैं कि पिछले साल राज्य सभा में तत्कालीन पेयजल और स्वच्छता राज्य मंत्री रामकृपाल यादव ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि देश के 308 जिले पानी की समस्या से जूझ रहे है इनमे अकेले उत्तरप्रदेश के पचास जिले शामिल है। 10 वर्षों के दौरान बुंदेलखंड में 4,020 जल स्रोत ख़त्म हो गए।  बाँदा जिले में पिछले साल 33,000 चापाकलों में से 33 फीसदी सूखे पड़े थे।  इसी तरह उत्तराखंड में भी राज्य के 60 हजार जलस्रोतों में से 12 हजार सूख चुके है।  एक नजर मणिपुर की ओर भी यहाँ के लोग पानीमाफियाओं के भरोसे रहते है। जहाँ 1000 लीटर जल के लिए 200 रुपये तक चुकाने पड़ते हैं।  ये आकड़े साबित करते है कि हम कितनी ख़राब परिस्थिति से गुजर रहे है और ये हालत पूरे देश की है।  मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही नदियों को जोड़ने की बात कही थी जिसपर अभी तक अमल नहीं किया गया है।
कहीं बोर है तो चल नहीं रहेपानी की सप्लाई बराबर नहीं है। चुनाव आते ही सरे राजनितिक दाल इन्ही मुद्दों शिक्षा रोजगार किसान पानी और भी कई मुद्दों पर जुमलेबाजी शुरू कर  देगा और बाद में जनता इसी तरह परेशान होती रहेगी।  एक कहावत है जो उनकीतकलीफ को कुछ यूँ बयां करता है ''गगरी  फूटे चाहे खसम मर जाये'..
दूसरी ओर  बरसात हर बरस होती है और हर बरस आधे से अधिक देश में बाढ़ का संकट होता है , लोग मरते हैं , जानवर मरते हैं अरबों की संपत्ति का नुकसान होता है | इस बरस भी आधे से ज्यादा देश में जल का जलजला है | ६ करोड़ से अधिक लोग बाढ़ की जद में हैं | सैकड़ों की तादाद में मौते हो रही हैं ,मवेशी मर रहे हैं जो बच गये हैं वे अपनों के साथ अपने पेट की चिंता में पल-पल मर रहे हैं | अकेले गुजरात में १५० से अधिक मौतें और  असम व महाराष्ट्र में २५० लोगों की मौत हो चुकी है | बंगाल,बिहार में ५० से अधिक मौतों के साथ २१ लाख से अधिक बेघर हो चुके हैं | गंगा,ब्रह्मपुत्र,शारदा,सरयू ,घाघरा,चंबल सहित सहायक नदियाँ खतरे के निशाँ के ऊपर हाहाकार मचाये हैं |  सरकार का बयान है ,’ सरकार हर तरीके से प्रतिबद्ध है पीड़ितों की देखभाल हो रही है ‘ | देश के गृह राज्यमंत्री का कहना है कि बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना समस्या का समाधान नहीं है , सरकार इसके स्थाई समाधान की ओर गंभीर प्रयास कर रही है | वहीं राज्यसभा में कांग्रेस ने गुजरात को प्रधानमन्त्री द्वारा  ५०० करोड़ की राहत की घोषणा पर  पक्ष पात का आरोप लगाया है  |  मानसून हर बरस आता है ,लेकिन लगातार प्रकृति से हो रहे खिलवाड़ से प्रकृति हमें उसकी सजा भी दे रही है | अनियमित सूखे और अनियमित बाढ़ के रूप में और हम उससे कोई सबक भी नहीं ले रहे हैं।  बाढ़ और सूखे को लेकर सरकार और अधिकारी वर्ग चिंतित नहीं दिखाई पड़ते है | यही नहीं हर साल नेपाल अपनी नदियों का पानी हमारी ओर छोड़ देता है  जिससे पूर्वी उत्तर प्रदेश को अनचाही बाढ़ का सामना करना पड़ता है | इस साल भी बिना बताये उसने लाखों क्यूसेक पानी छोड़ दिया नतीजे में  घाघरा, राप्ती , गंडक , सरयू खतरे के निशान को पार कर रही हैं एल्गिन-चरसडी बाँध १५० मीटर कट  गया , यातायात तक बाधित हो रहा है   और प्रदेश के मंत्री कहते हैं , कहीं भी बाढ़ से खतरा नहीं है , हालत पर नजर रखी जा रही है |  लोग अपने गांव छोड़ कर सुरक्षित स्थानों की ओर भाग रहे हैं या शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं |
हर साल बाढ़ से देश को करोड़ों अरबों का नुकसान होता है।  आपदा राहत - बचाव पुनर्वास को लेकर एक बड़ी रकम खर्च होती है जबकि यही राशि युवाओं को रोजगार से जोड़ने और किसानों को मरने से रोकने के काम में लाई जा सकती है लेकिन इस दिशा में कभी भी गंभीर रूप से विचार नहीं किया गया।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने नदियों को जोड़ने की योजना बनाई लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार में यह सिर्फ फाइलों में ही दब कर रह गई। अब वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार नदियों को मोड़ने की बात कर रही है , लेकिन उस पर भी प्रश्नचिन्ह है कि क्या सच में ऐसा हो पायेगा योजनाओं पर खर्च होने वाली रकम का सही हिसाब रख पायेगाक्या योजना पर सतत निगरानी रख पायेगा ये सवाल अपने आप में एक चुनौती है
अगर सही समय पर नदी नालों की सफाई,  नहरों के तलछट की सफाईतालाब और कुओं की मरम्मत पर ध्यान दिया जाता तो बारिश के समय में परेशानी नहीं उठानी पड़ती।  मरम्मत और सुधार के नाम पर जो राशि खर्च होती है और जो कार्य होता है वो सिर्फ औपचारिकता मात्र है।  2004 में बिहार सरकार ने भीषण बाढ़ से प्रभावित लोगों को राहत पहुँचाने की 17 करोड़ की राशि के घपले का आदेश दिया था लेकिन इस जाँच का क्या हुआ अभी तक कुछ पता नहीं। कश्मीर की बाढ़ में जो राहत पहुंचाई गई उसमें होने वाले घपलों को दफना दिया गया | उत्तर प्रदेश में ऐसे घपले हर साल होते हैं |
इसी तरह साफ़ सफाई की व्यवस्था भी लचर है। पिछले दिनों योग महोत्सव में प्रधानमंत्री का आगमन लखनऊ के अब्दुल कलाम तकनीकी विश्व विद्यालय में हुआ था।  पॉलिटेक्निक के चौराहे के पास गंदगी का ढेर लगा हुआ था जिसे अधिकारियों ने टीन शेड से ढक दिया था।  इस तरह से उन्होंने अपनी गल्ती को छुपा लिया , इसके लिए जिम्मेदार लोगों से कोई पूछ ताछ नहीं की गई ये सीधे तौर पर उनकी गैरजिम्मेदारी दर्शाती है।  इस तरह की ये एक घटना नहीं है कई जगहों पर इस तरह की घटनाएं आम है। 
सवाल ये है की हमारे देश में बार - बार सूखा और बाढ़ क्यों होता है क्यों नहीं इससे निपटने के लिए पहले से इंतजाम किये जातें है।  सरकारी तंत्र इतना सुस्त है कि आप इसी बात से अंदाजा लगा सकतें है कि कई शहरों की मुख्य सड़कों पर पानी भर गया।  लखनऊ के एक उफनते नाले ने एक बच्चे की जान ले ली। 
शहरों के अधिकांश नाले नालियों पर कब्जा हो चुका है।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के सरकारी निवास के ठीक सामने स्थित नाले पर कुछ लोग सार्वजनिक रूप से मकान बनाये हुए है।  कुछ नालों पर तो पक्के निर्माण हो गए है लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।  सड़कों पर मल गंदगी सब बहता रहता है।  जगह - जगह ब्लॉकेज है और सरकार आँख मूंदे हुए है। 
अहम् बात ये है कि प्रकृति हमे लगातार सन्देश दे रही है कि जीवन बचाओ लेकिन हमारी बढ़ती महत्वकांक्षाएँ और उद्दण्ड़ताएं हमें समझने नहीं दे रही हैं। हमे सबक लेना होगा कि हम प्रक्रुति को नुकसान ना पहुचाये | कैसा विरोधाभास है कि एक तरफ पानी ही पानी दूसरी तरफ हलक तर करने को एक बूंद पानी नहीं !