Sunday, June 30, 2013

नगर आयुक्त की गाड़ी पर फेंका कूड़ा

कानपुर। कानपुर के नगर निगम परिसर में गोविन्द नगर के पार्षद और उनके समर्थको ने जमकर हंगामा किया। महानगर में जगह-जगह फैली गंदगी, नालों और नालियों के बाहर पड़ा सिल्ट का ढेर, बजबजाते कूड़े के ढेर से गुस्साए कानपुर दक्षिण के पार्षदों ने अपर नगर आयुक्त का घेराव किया। उनकी गाड़ी पर कूड़ा फैला कर विरोध प्रकट किया।
    कानपुर महानगर में कूड़ा उठाने की जिम्मेदारी एटूजेड कंपनी की है। नगर निगम ने महानगर में कूड़ा उठाने का ठेका उसको दे रखा है। एटूजेड कंपनी की हिला हवाली की वजह से इन दिनों शहर में जगह-जगह कूड़े का ढेर लगा हुआ है। नालियां बजबजा रही हैं। कानपुर दक्षिण के पार्षद नवीन पंडित और अन्य पार्षदों ने मिलकर नगर निगम कार्यालय में जमकर हंगामा किया। नगर निगम के अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी भी की।पार्षद नवीन पंडित की अगुवाई में पार्षदों के दल ने अपने साथ लाये कूड़े को नगर निगम कंट्रोल रूम और अपर नगर आयुक्त की गाड़ी पर कूड़ा डालकर अपना विरोद्द प्रकट किया। गुस्साए पार्षदों ने चेतावनी दी कि यदि 24 घन्टे के अन्दर महानगर का कूड़ा साफ नहीं हुआ तो नगर निगम आयुक्त समेत सभी अधिकारियों के आवास पर कूड़ा फेंको प्रदर्शन करेंगे।
    अपर नगर आयुक्त के मुताबिक शहर में कूड़ा बराबर उठ रहा है। केवल कुछ मोहल्ले में कूड़ा उठाने में देरी हो जाती है। शहर की सफाई का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। बारिश का मौसम देखते हुए हर जोन के अधिकारियों को भी इस सिलसिले में आदेश दे दिए गए हैं।

एक मच्छर... आदमी को बना देता है हिजड़ा

लखनऊ। मच्छरों का हमला हो चुका है और उनकी आक्रमता युद्ध जैसी बर्बर है। क्योंकि वे अकेले नहीं हैं। उनके साथ कीट-पतंगों की भारी फौज उनकी सहयोगी है और सहयोगी हैं नगर निगम के नाकारा अधिकारियों, बेखौफ सफाईकर्मियों व उनके संगठनों की समूची ताकत। इसके अलावा उनकी तरबीयत के लिए है बरसात का पानी, जो राजधानी के हर हिस्से में पूरी ढिठाई से भरा है। यह हमला सियासत, आतंकवाद या नक्सलवाद से प्रभावित नहीं है। इसके पीछे भ्रष्टाचार, घपलों-घोटालों के माफिया और उद्दंड नस्लवादी ताकतें हैं, तो उनकी महत्वाकांक्षाओं के साझेदार हमारे अपने भाई बंद भी हैं।
    बरसात की शुरूआत के ऐन पहले सूबे के मुख्यमंत्री को शहर के शानदार इलाके गोमतीनगर के विकल्पखण्ड से सीवर के गंदे पानी में लापता सड़क से गुजरने का जोखिम उठाना पड़ा। यही नहीं प्रदेश के महामहिम, नगर विकास मंत्री और नगर के प्रथम नागरिक मेयर तक ने राजधानी की सड़कांे; गालियों में पसरी गंदगी से उठती दुर्गंध को साफ करने के आदेश दिये। गैरहाजिर सफाईकर्मियों का वेतन काटने के बयान अखबारों में छपवाये गये। नतीजा सिफर का सिफर। सारा शहर कूड़े-कचरे, जल भराव, बजबजाती नालियों, सड़ते भोजन सामग्रियों और प्लास्टि पाॅलीथीन से गंधा रहा है। नगर विकास मंत्री ने महज पांच दिन पहले राजधानी की नगरीय सुविधाओं को बदतर करार दिया है और अफसरों को नाकारा घोषित किया। नगर आयुक्त ने शहर में अपनी कार घुमाई तो पाया कि निजी संस्था व निगम के सफाईकर्मी गायब, उनके सुपरवाइजर, इंस्पेक्टर, जोनल अधिकारी तक लापता थे।इस बदइंतजामी के घमासान में राजधानी के नागरिकों, व्यापारियों और सफाईकर्मियों के बीच आये दिन झड़पों से लेकर सर फुटौव्वल तक की नौबत आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण सफाईकर्मियों का काम न करने का मंसूबा और इसे शह देते हैं उनके सफाई मजदूर संगठन। और इस शह-मात की बिसात पर चालें चलने वाले है, बड़े-बड़े राजनैतिक दल और उनके कद्दावर नेतागण। साफ-साफ यह वोटों के खेल का षड़यंत्र है?
    शर्मनाक तो यह है कि राजधानी की धरती पर सर झुकाए मुस्कराते हुए आने वाले तमाम देशी-विदेशी मेहमानों की व्यंगात्मक वाणी में कहा गया जुम्ला ‘माशाअल्लाह... ऐसा बदसूरत तो नहीं था लखनऊ’ भी इन नामाकूलों में कोई हरारत नहीं पैदा करता है। भले ही यह मेहमान लखनउव्वा कवाब, शवाब और रूआब की शान में रसपगे बयान दे जाएं, लेकिन वह शहर की नवाबी पहचान और सियासी तरबियत की शतरंज के खिलाडि़यों से संतुष्ट होकर नहीं जाते। यही वजह है कि दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर लखनऊ धुंधला- द्दंुद्दला दिखता है। पिछले दिनों मशहूर शायर फैज अहमद ‘फैज’ की बेटी मोनीजा हाशमी लखनऊ आईं थीं। लखनऊ की तारीफ में उनका वाक्य था ‘मैंने दो तरह का लखनऊ देखा’, फिर भी इज्जतदार बेईमान अमला बेशर्मी से खीसे निपोरता रहा।
    गलियां गंदी हैं। नाले-नालियों मंे पानी सड़ रहा है। नाले उफना रहे हैं मासूमों की जान जा रही है। पिछले दिनों सआदतगंज के उफनाते नाले में गिरकर आठ साल के सादिक की मौत हो गईं। उसकी लाश भी तलाशने निगमकर्मी नहीं आये। इस नाले को ढकने के लिए पहले भी हंगामा हो चुका है। मच्छरों के जच्चा-बच्चा केन्द्रों की भरमार भी यहीं है। गोबर, गू और गंध के खाद-पानी से अघाए-मुटाए मच्छरांे ने मलेरिया, डेंगू, जापानी इंसफेलाइटिस व वेस्ट नाइल जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने के लिए कमर कस ली है। इनसे निपटने का कोई भी इंतजाम शासन-प्रशासन के पास दिखाई नहीं देता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल दुनिया भर में मलेरिया से 2.5 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं, जिनमें से 6.5 लाख लोग मरते है। डेंगू से प्रभावित होने वालों की संख्या लगभग 10 करोड़ है, इनमें 22 लाख के लगभग मौत के मुंह में समा जाते हैं। सेंट्रल डिजीज बोर्ड के अनुसार मच्छर हर साल करीब 700 मिलियन लोगों को बीमार करते हैं, जिनमें से 5.3 मिलियन लोगों की मृत्यु हो जाती है। सबसे मजेदार बात तो यह है कि इन पर प्रचलित कीटनाशकों का भी कोई खास प्रभाव नहीं होता। इनकी सूंघने की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार मादा मच्छर इंसानों का खून चूसकर अपनी प्रजनन क्षमता बढ़ाती है।
    एक मच्छर.... आदमी को हिजड़ा बना देता है। यह सिनेमा का संवाद भर नहीं हकीकत है। मादा मच्छर जब खून चूसने के लिए अपना डंक आदमी के शरीर में चुभाती है तो आदमी के खून में बहुत जल्द थक्का बन जाता है फिर मच्छरों को खून चूसने में परेशानी हो जाती है। वे अपने महीन डंक के साथ अपनी जहरीली लार (रसायन) भी आदमी के खून में पहुंचा देती हैं जिससे उस जगह पर लगातार खुजली होती है और उस जगह पर लाल चकत्ता सा उभर आता है। आदमी को केवल मादा मच्छर ही काटती है, क्योंकि आदमी के खून में प्रोटीन व अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो इनका भोजन होते हैं और इसी की सहायता से वे अंडे बनाती हैं। आमतौर पर मादा मच्छर पौधों से रस चूसती हैं।
डेंगू मच्छर से बचने का उपाय
डेंगू फैलाने वाले मच्छर प्रातः के समय अधिक सक्रिय होते हैं, तभी काटते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार मच्छररोधी उपलब्द्द उत्पाद हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसलिए डेंगू मच्छरों से बचने के लिए बायोसाइड को पानी में मिलाकर घर के बाहरी हिस्सों पर ठीक से छिड़काव करने से यह घर में नहीं आ पाते। यह गंध रहित पदार्थ है, इसे पूरे गरमी-बरसात में केवल दो या तीन बार इस्तेमाल करने की आवश्यकता पड़ती है।
मच्छर की पूजादेश में मच्छरों के प्रकोप से शायद ही कोई हिस्सा छूटा हो। परेशान लोगों ने तरह-तरह के उपाय किये हैं, लेकिन झारखंड के बोकारों में लोग मच्छर भगवान की पूजा कर रहे हैं ताकि वे मच्छरजानित रोगों से बचे रहें। चास नामक स्थान में मच्छर की एक विशाल प्रतिभा स्थापित की गई और श्रद्धालुओं ने पदयात्रा निकाली। पदयात्रा में उन्होंने मृदंग बजाए और मंत्रोंच्चार किया। मच्छर की प्रतिमा के सामने हवन किया गया। एक पुजारी ने सैकड़ों लोगों के सामने मंत्रोच्चार किया और मच्छर भगवान को माला पहनाकर उनकी पूजा की। स्थानीय लोगों का कहना है कि हमने मच्छर से बचने की कोशिश की है और मच्छर की प्रतिमा लगाकर तथा इसकी पूजा कर इसे खुश करने की कोशिश की है। ज्ञात हो कि लोगों ने यह पहल तब की, जब स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू के बढ़ते मामलांे पर ध्यान नहीं दिया। बरसों पहले जब स्वास्थ्य विज्ञान में बहुत तरक्की नहीं हुई थी, तो स्माॅल पाॅक्स और चिकन पाॅक्स जैसी बीमारियों का संबंध भी देवी प्रकोप से जोड़ा जाता था और बाकायदा इसके लिए पूजा होती थी। झाड़फूंक का अंधविश्वासी प्रचलन आज भी विद्यमान है, लेकिन मच्छर को भगवान बनाने की यह घटना अनोखी है और डरावनी भी।

वेश्या नहीं बनने दिया अपनी पीड़ा को.... उम्र भर


मैं, मेरा मन और मेरी माटी स्वाभिमान के राजपथ पर लगातार चलते हुए उम्र के 65वें साल के ठीक पास आ गये हैं। तो क्या मैं थक रहा हूँ? मेरा मन निराश हो गया है? मेरी माटी श्मशान के सच से भयभीत है या फिर बेचैन है? जी नहीं! थका तो मैं तब नहीं, जब जीवन समर में जूझने के लिए लगातार मुफलिसी से मल्लयुद्ध करता रहा। निराशा ने तो उसी समय मेरी प्रेमिका बनने से इन्कार कर दिया था, जब सेठाश्रित पत्रकारिता के भव्य ड्राइंगरूम से धकियाया गया। रही माटी के भयभीत होने की या बेचैन होने की, तो क्या सरयू के गहरे पानी में उतरने से पहले डरे थे ‘राम’? बेचैनी तो बदलाव का फैशन भर है, बस। यकीन मानिए, मैं अयोध्यापति न सही लेकिन अयोध्यापुत्र तो हूंँ, मर्यादाओं ने ‘आदर्श’ ही नहीं ‘आनन्द’ भी दिया। शायद यही कारण था कि हर-हर महादेव... का जयकारा भर नहीं लगाया बल्कि सच की तलवार थामे कर्म के रण की चरित्रकथा बांचता रहा। हां, एक सच और साझा करूंगा, अम्मा और बाबू शब्द के न बोल पाने का अनर्थ अब भी नहीं समझ सका। भले ही दोनों ‘ऊँ नमः शिवाय’ हों या ईश्वर के पर्यावाची। उनसे मेरा हाथ, साथ कब छूटा था, याद नहीं। उन्हें बहुत बाद में लगभग जवानी के अखाड़े में दंड-बैठक लगाते हुए दीवार पर टंगी हुई तस्वीर में देखा। तस्वीरों से अलग कई बार ईश्वर से मुलाकात हुई। शक्ल बयान करूंगा या नाम लूंगा तो शायद मेरी धर्मचेतना पर शंका होगी, लेकिन सैकड़ों, हजारों की संख्या है मेरे मित्रों की, धुर दक्षिण से उत्तर तक, पूरब से पश्चिम तक सबके सब देवाधि देव महाकाल। हर एक की अपनी अलग सामथ्र्य, अपनी अलग पहचान। तभी तो नारद के मोहल्ले में ‘प्रियंका’ के साथ पूरी जिद से मौजूद हूँ।
    नहीं जानता सीता के साथ रावण ने क्या किया होगा, उनकी सच्चरित्रता को एक धोबी ने लांछित करने का सहास दिखाया था। आज तो गांधी के सीता-राम को राजघाट से लेकर खादी आश्रमों तक में कैद कर दिया गया है। रावण के करोड़ों ‘प्रिंट आउट’ हर दीवार पर चस्पा हैं। लांछन के पत्थर थामे समूची दीवार सीता पर हमलावर है। ऐसे में लव-कुश को बदअमनी के अश्वमेघ यज्ञ के दौड़ते घोड़े की लगाम पकड़नी ही होगी। प्रियंका का दामन थामे यही करने का सहास किया है, मैैंने। भले ही अर्थ नहीं है जेब में, मगर आस्था है और अस्थि भी। अषाढ़ में ही जन्मा था, जब घनघोर बारिश से धरा तर-बतर थी, पता नहीं तब कोई केदारनाथ, ‘तालिबानी’ हुआ था या नहीं। मैं तो चवालीस साल के पत्रकारिता पथ पर हिन्दी के तालिबानों से युद्धरत हूँ। जन्मदिवस (7 जुलाई) पर ‘रामकथा’ लिखने की धृष्टता नहीं कर रहा हूूँ, वरन् सच के भूगोल में उन जंगलांे की तलाश में भटक रहा हूँ, जहां राम ने चैद्रह बरस काटे थे।
    भटकाव का हाल यह रहा कि मैंने जब अपने पिता के बनवाए हुए घर में पहला कदम रखा तो देहरी के ठीक ऊपर आले पर बैठे कबूतर के एक जोड़े की गुटर... गूं.. गुटर.. गूं सुनाई दी। अन्दर की दीवारों पर हाथ रखा तो मिट्टी भरभरा कर झरने लगी, आगे बढ़ा तो आंगन की चैखट से टकरा कर गिरने को हुआ तभी दरवाजे का पल्ला सामने आ गया और उसने मुझे थाम लिया। मैं मूरख जान भी न सका कि कबूतर का जोड़ा मुझे आशीष रहा है, दीवारें अपने वारिस पुत्र को देखकर रो दीं थी और दरवाजे का पल्ला मानों पिता का मजबूत हाथ हाथों में आ गया था और अम्मा तो घर की ईंट-ईंट से निकली आ रहीं थीं। शायद यही वजह थी कि आंगन की पहली मंजिल पर पड़े लोहे के जाल में कइयों का पांव फंसा, नहीं फंसा ते मेरा, मेरे भाई का और हमारे बच्चों का। उम्र की सीढ़ी के पैंसठवें डंडे पर कदम रखते हुए समझ आ रहा है, अम्मा-बाबू तो हमेशा साथ रहे, उनका आशीर्वाद साथ रहा। मैं ही नालायक समझ नहीं सका।
    आज मैं सिर्फ अपनी और अपनी ही बात करना चाहता हूँ, भले ही इसे आप मुगालते के ‘बर्थ डे केक’ का काटना मान लें। जब पूरी उमर अपनी पीड़ा को वेश्या नहीं बनने दिया और आँसुओं को आवारा, तो आज भला उज्जर धोती, कड़क कमीज में सजा-द्दजा अक्षरों के लड्डू क्यों नहीं बांट सकता? विचारों के दस्तरख्वान पर क्यों नहीं आमंत्रित कर सकता? कह लीजिएगा, ‘वरमा जी के कपड़ों की क्रीज नहीं टूटती’, उड़ा लीजिएगा खिल्ली मेरे मुंह पर मेरी। आपको हक है मेरे सहोदर। न खुशी, न गम से कोई राय-मश्विरा किया, न खिलखिलाया, सिर्फ आपकी सोहबत में रहते हुए हर नुकीले पत्थर पर अपनी कलम के निशान छोड़े हैं। झूठ-मूठ का कोई गीत नहीं लिखा, नहीं ढोई कोई पालकी। हाथ भी पसारा तो आपके सामने। क्योंकि आप ही तो मेरे देव हो, फिर कहां जाता अपना जन्मदिन मनाने।
    और अन्त में इतना ही कि मैं अयोध्या पुत्र राम, नाम भर से प्रतिष्ठा की चाहत नहीं रखता, लेकिन राम नाम सत्य है। इसी को सार्थक करते हुए वनवास से लौटने की इजाजत अब तो मिलेगी? प्रणाम।

सहालग का बाजार गर्माया

लखनऊ। एक महीने की सुस्ती के बाद सहालग का बाजार फिर अंगड़ाई लेने लग गया है। हालांकि जुलाई माह में केवल 11, 13, 14 तारीखों में तीन शुभ मुहूर्त हैं। इसके बाद हरिशयन दोष है। फिर नवम्बर 16 के बाद लग्न होंगे। ये तीनों लग्न भारी उमस और बादल बूंदी के बीच होंगी।
    6 तारीख को सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र में होंगे और 16 तारीख को कर्क की संक्रान्ति के वायुमण्डल में पड़ने से घनघोर घटायें दिखेंगी। लेकिन वर्षा कमजोर होने की आशंका है, तो भी वैवाहिक आयोजनों पर इस भय छाया रहेगा।
    बावजूद इसके शादियों को लेकर होने वाली खरीददारी अपने चरम पर है। कपड़ा बाजार, कैटरिंग व शादी घरों के कारोबारी जहां व्यस्त हैं, वहीं नाई, पंडित जी की अग्रिम बुकिंग है। एक अनुमान के मुताबिक इन तीन लग्नों में अकेले लखनऊ में दो हजार शादियां होनी है। यह आंकड़ा शादीघरों व कैटरर्स की बुकिंग के आधार पर निकाला गया है।
    अमीनाबाद व गणेशगंज बाजार के कपड़ा व्यापारियों के अनुसार महिलाओं के लिए लहंगे, साडि़यों की खासी रेन्ज किफायती दामों में है। इनमें 200 से 10,000 तक की रेन्ज है। सहालग को देखते हुए इन दिनों काफी किफायती दामांे में वैरायटी आई हुई है।
    इस समय जेंट्स के लिए लांग कुर्ते, बैलून पैंट, इंडो वैस्टर्न (लांग कोट), ट्राउजर। दो हजार से लेकर 2500 रूपये तक की रेंज में यह उपलब्ध हैं। वहीं दूसरी तरफ जेंट्स के लिए ही है लांग कोट भी फैशन में है, जिसे विशेष तौर पर ट्राउजर या धोती के साथ पहना जा रहा है।
    इसकी रेंज लगभग 5000 से लेकर 7000 रूपये तक है। वहीं बच्चों के लिए भी आकर्षक लांग कुर्तें व बैलून पैंट उपलब्ध है, जिसकी कीमत 1000 से लेकर 1500 रूपये तक है।

दुल्हनों का निर्यात!

नई दिल्ली। सुखी दाम्पत्य की लालसा का सपना हर युवा को होता है। इसी चाहत ने शादी-ब्याह का एक बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है। इस बाजार में जहां अरबों-खरबों के कारोबार को कई हिस्सों में बांट रखा है, वहीं आयातित दूल्हों की बढ़ती मांग ने देश में एक अलग मण्डी खड़ी कर दी हैं दूसरी तरफ दुल्हनों के निर्यात कारोबार में लगे दलाल चांदी काट रहे हैं।
    गौरतलब है कि महज पांच साल पहले तक गरीब मुस्लिम लड़कियां अरब के शेखों को अच्छी कीमत के बदले जबरन ब्याह दी जाती थीं। इस तरह की शादियों का लगातार खुलासा होने के बाद इनमें ठहराव आया। पंजाब में आयातित (एनआरआई) दूल्हों से अपनी बेटियों को ब्याहने का गर्वीला चलन बड़ी बेगैरती से अपने पांव पसारे है। हाल ही में आ रही खबरों से पता लगता है कि दिल्ली, उप्र की भी लड़कियाँ इन दलालों की गिरफ्त में आ रही हैं। दलाल शादी लायक लड़कियों और उनके परिवार को विदेश के चमकदार सपने और दौलत की रेल-पेल का बखान कर उन्हें फंसा रहे हैं। विदेश में बसे परिवार भी अपने देश की देशी लड़की को दुल्हन बना कर लाने को आतुर रहते हैं। ऐसे में दलालों के लिए कोई खास मुश्किल नहीं आती। विदेश में बसा लड़का भी अपने मां-बाप के दबाव में शादी कर लेता है, लेकिन सुखी दाम्पत्य प्रताड़ना, यौन हिंसा, दहेज की भेंट चढ़ जाता है। यह खुलासा नेशनल कमीशन फाॅर वोमेन्स एनआरआई सेल में दर्ज 723 शिकायतों से होता है। यह शिकायतें मात्र तीन सालों के भीतर दर्ज कराई गई हैं। इनमें 132 परिवार दिल्ली से हैं, जबकि दूसरे नंबर पर उप्र से 67, पंजाब से 50, और हरियाणा से 531, पंजाब और दिल्ली में यह शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं। अधिकतर शिकायतों में बलात्कार, गाली-गलौज, हिंसा का जिक्र हैं। अमेरिका और आस्ट्रेलिया मे रह रहे भारतीय पुरूषों के खिलाफ अद्दिक शिकायतें हैं।
    एनसीडब्ल्यू के अनुसार बहुत सी शादियां तो हनीमून तक ही टिकती हैं क्योंकि इन्हें करने वाला इसे ‘हनीमून मैरिज’ मानता है। इसके लिए वह बड़ी से बड़ी कीमत चुकाता है और अपनी सुरक्षा के लिए सभी रस्में विधिविधान से निभाता हैं। भारतीय दुल्हन को विदेश में बेडरूम के बिस्तर पर न सिर्फ बलात्कार का शिकार होना पड़ता है वरन् कई बार पतिदेव के दोस्त तक भारतीय दुल्हन से जबरन बलात्कार करते हैं। विरोध करने पर पिटाई की जाती है। पासपोर्ट से लेकर हर सामान छीन लिया जाता है। मां-बाप तक की पहुंच पर पाबंदी लगा दी जाती है। जिन मामलों में रिश्तेदार, पड़ोसी या लड़की किसी तरह अपने परिवार तक अपनी व्यथा पहुंचा पाते हैं उनमें उसे मायके में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है।
    दुल्हनों के निर्यात का जाल भारत में हरियाणा से लेकर समूचे एशिया में फैला है। इनमें बांग्लादेश, म्यामार, पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका अगली पंक्ति में हैं। मलेशिया में रह रहे रोहिंग्या जाति के म्यामार के शरणार्थी भी अपने लिए म्यामार या बांग्लादेश से दुल्हन मंगाते हैं। म्यामार में जातीय हिंसा के बाद लगभग 30 हजार रोहिंग्या पलायन कर मलेशिया जा बसे, इनमें पुरूषों की संख्या अधिक है। इन शरणार्थियों से मलेशियाई अपनी लड़कियां ब्याहने से कतराते हैं। इन रोहिंग्यों की अपेक्षा मलेशायाई मुसलमान अधिक सभ्य व शिक्षित हैं। वे देशविहिन, बेरोजगार और पिछड़े रोहिंग्या युवा से अपनी लड़की ब्याह कर उसका भविष्य खराब नहीं करना चाहते। यही वजह है कि इण्डोनेशिया, बर्मा की मुसलमान युवतियों से जो शादियां हुई भी तो वे खास सफल नहीं रहीं। अब वे अपने देश से बधुएं आयात करते हैं। इन रोहिंग्यों के आस-पास सक्रिय दलाल युवतियों की फर्जी शादी कराकर फर्जी पासपोर्ट व दस्तावेजों के जरिए नकली पति के साथ दुल्हनों को आयात करने के धंधे में चांदी काट रहे है। गौर से देखा जाय तो इस धंधे में वेबसाइटें, मैरिज ब्यूरों, अखबार  और टी.वी. चैनल सभी अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।

कंडोम... शिट... इडियट!

लखनऊ। कंडोम का इस्तेमाल आज भी भारतीयों की यौनक्रियाओं में शामिल नहीं है। विवाहित पुरूष गर्भ ठहरने के भय से या एड्स जैसी बीमारी के बचाव के कारण कंडोम का इस्तेमाल करते हैं। आम घरों में कंडोम का प्रवेश न के बराबर है। जो लोग कंडोम के नये उत्पादों का प्रयोग करते हैं, उनमें यौनक्रियाओं के लम्बे समय तक खिंचने के लालच या कई तरह के सुगंधित फ्लेवर में होना होता है, लेकिन किशोर-युवा कंडोम का इस्तेमाल खुलकर कर रहे हैं। इनमें कालेज के विद्यार्थी, नौकरीपेशा और विभिन्न संस्थानों में कार्यरत युवा शामिल हैं।
    मेडिकल स्टोर्स एशोसिएशन के एक पदाधिकारी बताते हैं पिछले पांच सालों से कंडोम की खपत लखनऊ में लगातार बढ़ रही है। अब इनके खरीददारों में हिचक कम हो रही है। हजरतगंज के एक मेडिकल स्टोर के मालिक के अनुसार लड़कियां बेहिचक कंडोम की मांग करती हैं। महिलाएं 72 आवर्स गर्धनिरोधक की मांग बेहिचक करती हैं। वहीं छात्र-छात्राएं तो इसके बड़े ग्राहक हैं। बावजूद इसके कंडोम का आमचलन अब भी भारतीय सभ्य समाज में जरूरत नहीं समझा जाता। यही वजह है कि जनसंख्या पर हमारा नियंत्रण नहीं हो पा रहा है तो एड्स ने भी खासे पैर पसारे हैं।
    ऐसा नहीं है कि केवल भारत में ही कंडोम से परहेज है। ‘पापुलर साइंस’ पत्रिका के अनुसार पूरी दुनिया के पुरूष कंडोम का इस्तेमाल  करने में परहेज बरतते हैं। शिट.. इडियट कहकर शर्माने या नकारने वाले शिक्षितों की जमात अद्दिक है। पत्रिका के अनुसार बिल-मिरिंडा गेट्स फाउंडेशन कंडोम की मौजूदा डिजाइन बदलने और सुपीरियर डिजाइन सुझाने के लिए एक लाख पौंड की रकम देने की पेशकश कर चुका है। फाउंडेशन की सोंच है कि पिछले पचास सालों से एक ही तरह के कंडोम उपलब्द्द हैं, उनमें कोई बदलाव हुआ नहीं है। नई पीढ़ी के लिए लुभावने, आकर्षक और स्वास्थ्यवर्धक कंडोम की आवश्यकता है। जनसंख्या नियंत्रण के साथ सुरक्षित यौनसंबंधों के लिए कंडोम का इस्तेमाल जरूरी है का प्रचार विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार करता आ रहा है।
    गौरतलब है बिल-मिरिंडा गेट्स फाउंडेशन इस ओर काफी समय से सक्रिय है। फाउंडेशन ने नया सुपर डिजाइन सुझाने वाले को पुरूषकृत करने की घोषणा की है।

मेरी गली

मैं एक गली में रहता हूं। गली में कुल पच्चीस घर हैं। बीस कम दो सौ की आबादी है। न एक कम, न एक ज्यादा। शुरू से लेकर आखिर तक एक सवालिया निशान सी पसरी है। मानो कोई उल्कापिण्ड प्रश्नवाचक चिन्ह की शक्ल में आकाश से टूट कर गिर गया और उस पर आदमी की औलादें काबिज हो गईं।
    तो गली की कथा शुरू करने से पहले आपको बता दूं कि अंकगणितीय ज्योतिष के मुताबिक इसकी राशि तुला है और मूलांक सात। तुला का अर्थ और असंतुलन से बड़ा गहरा संबंध है। इन दोनों का पूरा-पूरा असर समूची गली में है। गली की सरहद पर बाएं तरफ एक सिपाही का नाजायज घर, दूसरी ओर एक स्कूल है। इसी स्कूल में मालिक अपने परिवार के साथ रहते हैं। तीसरा घर एक रिटायर्ड बंगाली अध्यापक का है। इनको एक बेटा, एक बहू और एक पोती है। सब एक है। पत्नी रही नहीं। अल सुबह से रात तक अखबार पढ़ते और बीच-बीच में अपनी नौजवान नौकरानी से बतियाते दिख जाते हैं। बेटा-बहू दोनों कमाऊ हैं। पोती जवान होती चमकदार पानी की बूंद की तरह टपकने को है। चैथा घर ठीक इनके सामने निगम साहब का है। महाशय सरकारी कर्मचारी हैं। दो बेटियों के बाप हैं। एक बेटी को हाल ही में ब्याह कर जल संस्थान के पीले और गंदे पानी में हरिद्वार से लाया गया गंगाजल मिलाकर गंगा नहाय हैं। इसी मकान में एक जवान जोड़ा किराए पर रहता है, नौकरी पेशा है। पांचवां घर सरमा जी का है, दो बेटे, एक बेटी और एक अदद तरहदार पत्नी। मिसेज निगम और सरमाइन में सपा-बसपा जैसी दुर्दांत रंजिश है। छठे घर के नाम पर उखड़ी ईंटों, लोना खाई दीवारों पर गिरने को बेचैन छत के नीचे उन्नीसवीं शताब्दी के एक बुढ़ऊं रेंट कंट्रोल के बसाए हैं। सासें कभी भी उखड़ सकती हैं, लेकिन हैंडपंप के पानी में खालिस देशी दारू मिलाकर अभी भी खींच जाते हैं। उनके दरवाजे पर घिसी, टूटी, चिटकी और चेचक के बड़े-बड़े दाग जैसी गड्ढेदार खालिस पांच सेर वाली ईंटों का बड़ा सा फर्श है। यहां कुतिया बच्चे पैदा कर सकती हैं। सुअरिया आराम से पसर कर अपनी जचगी करा सकती है। गली का मेहतर अपने औजार भी एक कोने में रख सकता है। गली के आवारा छोकरों का क्लब भी यही है। यहां बैठकर लौंडे लफाड़ी पत्ती खेल सकते हैं और हारने पर एक दूसरे की मां-बहन से बेहूदा रिश्तेदारी भी कायम कर सकते हैं। कुल मिलाकर ये है गली का पक्का समाजवादी चबूतरा। इसके ठीक सामने बिना टोटी वाला सरकारी नल लगा है, जिसमें से तीज-त्योहार पानी रिसता है। इसका भी अपना अलग इतिहास है। इसे स्वर्गीय पं. मुकुट बिहारी मिश्र जी ने एक पउवा भर देशी चढ़ाकर अपने हाथेां से लगाया था। पंडित जी नगर निगम के ‘बंबावाले’ थे। बंबावाले पंडित कहे जाते थे और ‘तमन्ना तबर्रूक है...’ गाते लड़खड़ाते - चलते स्वर्गवासी भये।
    सातवां मकान आज की तारीख में एक बनिये का हैं। पहले इसमे ंभरा-पूरा बंगाली परिवार रहता था। कुछ मर-खप गए, कुछ बंगले-कोठियों में समा गए। बनिये ने पुलिस थाने का हवालातनुमा कठघरा लगाकर दसियों किराएदार बसा लिए हैं। खुद भी सपरिवार ऊपरवाली मंजिल में रहता हैं। आठवां मकान इसी का आधा हिस्सा है। इसमें दो भाई-बहन परिवार सहित रहते हैं। ‘बहिन जी’ मायावती जैसी महात्वाकांक्षा पाले ‘कायनेटिक’ पर रोज दफ्तर जाती हैं। भाई जी निठल्ले आधा दर्जन बच्चों के बाप एम.ए. पास बीवी के पति, साला पुलिस सेवा में है। दारू पीना और जुंआ खेलना शौक में शुमार है। जिस दिन नाप-जोख कर न पी या जुंए में हार गए उस दिन पत्नी की शामत आ जाती है। नौवें घर का दरवाजा इस घर के ठीक मुंह पर है। तीन प्राणियों का छोटा कुनबा। परिवार कल्याण वालों का छोटा परिवार, सुखी परिवार। बिटिया पइंया-पइंयां चलती है, मां-बाप दोनों कुर्बान। दसवां घर इससे सटा हुआ है। इसके मालिकान खुद किराए पर शहर के बाहर नई बसी कालोनियों में रहकर अमीरजादों की कतार में लग गए हैं। तीन किरायेदार दड़बेनुमा तीन कमरों में कठपुतलियों जैसे डोलते ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रूपइया’ जैसे किरदार अपनी-अपनी गृहस्थी जमाए हैं। ग्यारहवां घर इसके बगल में इंजीनियर साहब का है। एक बेटा, दो बेटियाँ, पत्नी स्वर्गवासी हो गई पति प्रभु राम की तरह संत है। बारहवां घर ऐन इन्हीं के दरवाजे के सामने एक सौ अस्सी डिग्री का कोण बनाता हुआ शहर के एक इंटर काॅलेज से रिटायर्ड प्रधानाध्यापक का है। दो बेटे, दो बहुएं, तीन पोते, एक पोती और एक बीमार पत्नी के साथ प्रसन्न हैं। दोनों बेटे काम धंधे में मगन, एक बहू डाॅक्टरनी, दूसरी मोहल्ला स्तर की पंचायत अध्यक्ष, पोते-पोती शिक्षारत हैं। तेरहवें घर को पूरी गली ने भुतहा घोषित कर रखा है। चैदहवें घर में दो बेटों, दो बहुओं, एक पोती और अपनी पत्नी के साथ मैं रहता हूं। अब अपनी तारीफ में क्या कहूं, बहुओं से सुन लीजिएगा। पंद्रहवां घर बेटियोंवाला है, कुल का अकेला दीपक उनके बीच अपने जन्म से अपने होने के लिए जूझता, खौखियाता पांच जनों के साथ दर्जन भर बहनों के चिल्लर ढोता खप रहा है। इसी के आधे हिस्से को सोलहवें घर का नंबर हासिल है। मां-बेटा रहते हैं। मां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की विधवा, बेटा सरकारी नौकर दो प्राणियों की गृहस्थी। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर, बस अपनी खैर ही खैर। सत्रहवां घर कभी पंडित जी बंबेवाले का था, उनकी औलाद ने एक उद्यमी महिला को बेचकर छुट्टी पाई। इस मकाननुमा ढाबली में एक जोड़ा किराएदार, दो बेटों के साथ महिला रहती है। अठारहवां घर दही वालों का हाता कहा जाता है। मंगाला भउजी और भोलइ दही वाले की जोड़ी एक तिहाई शहर में गली की पहचान बनाए रही। इसी जोड़ी ने शहर में सैंकड़ों दही-दूद्द वाले पैदा कर दिए। मंगाला भउजी के भतीजे अपने परिवार के साथ आज भी मुस्तैदी से दही में जमे हैं। उन्नीसवे नंबर पर बंबावाले पंडित के मकान का एक हिस्सा आता है जिसे टुन्नू दादा ने पंडित जी की जिंदगी में किराए पर लिया था, अब उनका पूरा कब्जा है। अपने आधा दर्जन बच्चों व मोटी-थुलथुल अधेड़ हो चली बीवी के साथ पंडित जी की आत्मा तक को रौशन किए हैं।इसी के पीछे एक कोठरी में जग्गी स्मैकिया अपनी मां के साथ रहता हैं। बीसवें धर में तीन प्राणियों का बंगाली कुनबा द्दीर -गंभीर अपनी ईंटों के भीतर बंद अपने सुख के गीत गाते, एक झबरैले कुत्ते के पीछे भागते-दौड़ते, छलांग लगाते ‘एक ही काफी दूजे की माफी’ का नारा बुलंद किये सच्चे भारतीय नागरिक हैं।
    इक्कीसवें मकान में पूरा अलग मोहल्ला बसा है। इसे पंडित जी का पुरवा या कटरा या फिर हाता कुछ भी पुकार सकते हैं। इसमें सात-आठ परिवार किराए पर बसे हैं। ऊपर की मंजिल में नगर निगम से सेवानिवृत्त मकान मालिक अपनी पत्नी के साथ उम्र के आखिरी पड़ाव पर खड़े अपनी बारी के इंतजार में प्रभु का नाम लेते हैं। नीचे आठों पहर पानी के डिब्बों से लेकर शौंच निबटाने तक के अहम मसले पर बहसें जारी रहतीं। कभी-कभार उलझे चिकने केश और काजल की मोटी रेखा वाले नैनों की ज्वाला से छूटती चिंनगारियों के खौफनाक हमले, हादसों या फौजदारी के मामलों में बदल जाते हैं। किस्सा कोताह ये कि यहां हर नस्ल के पालतू मानव रहते हैं। बाइसवां मकान स्वर्गीय ललई पांडे जी का है, उनकी दो बेटियां अपने परिवारों के साथ रहती हैं। छोटी बेटी भरी जवानी में सत्संगी है और बड़ी वाली परिवार परायण। तेइसवें में बलेसर चार बेटों, एक बेटी, नाती, बहू, पोते के साथ रहते हैं। बड़े बेटे का नाम घिस्सू और सबसे छोटा शायद छोटे... पूरी फौज अपनी गृहस्थी में व्यस्त बस एक लापता घिसुवा को छोड़कर। चैबीसवें में भवानी भइया अपने दो बेटों, एक बेटी और बीवी के साथ बीड़ी का धुआं उड़ाते बड़े ठाठ से साइकिल पर फर्राटे भरते जीवन की मौज में हैं। पचीस नंबर कभी बजरंग माली के नाम से जाना जाता था, बाद में दही वालों ने खरीद लिया। अब उनका बेटा अपने परिवार और अंगूर की बेटी के साथ रहता है। इस घर में बरगद का पेड़ा लगा था, जिसे इलाके भर की औरतें बरगदाही अमावस्या के पर्व पर पूजती थीं। बरगद का पेड़ लोहा सीमेंट की चपेट में बिला गया।
    पूरी गली की विशेषता है गंदगी, बजबजाती हुई नाली, हमारी बिष्ठा, हमारा मैला और हमारा कूड़ा लिये हवा में फैलती दुर्गंध। पचास पैसे वाले शैंपू पाउच से धुले लहराते बालों और टी.वी. विज्ञापनों से छांट कर खरीदें गए या मल्टीनेशनल कंपनियों से मिले गिफ्ट के पाउडर-क्रीम पुते चेहरे, एक अंगरखे जैसे मार्डन कपड़े में लिपटी द्दारावाहिक डींगे हांकती औरतें। और नाली किनारे हगते छोटे बच्चे, पेशाब करते मर्द। हां, गली का दूसरा छोर बंद है। गो कि सभ्यता एक बार घुस आये तो वापस न जा पाये। मेरी गली की सभ्यता का व्याकरण इसके भूगोल में खोजना संभव नहीं हैं, लेकिन सीता-सावित्री से लेकर डेमीमूर, ब्रिटनी स्पीयर्स और ऐश्वर्या हर दरवाजे, हर छज्जे पर अटकी हैं। गली के अंदर बड़े-बड़े गुल हैं।

मुर्दों का चित्रहार

मौत के मोहल्ले में हाल ही में टीवी चैनल ‘लाँच’ हुआ। उद्घाटन के पिण्डदान का आँखों देखा हाल सुनाने के लिए मुझ जिन्दा आदमी को कब्रोंवाली काॅलोनी, गयाधाम से लेकर भगवान केदारनाथ के ठंडेवाले पहाड़ तक सशरीर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लखनऊ, वाराणसी व मुंबई से सहयोगी ऐश, मणिकर्णिका एवं जिया आनलाइन जुड़ी थीं। सो न रोना-न-धोना, सीधे-सीधे ‘चिपकाय ल्यौ सइंया फेवीकोल से’ चिपकती ससुरी एक भी नहीं, मानो सबका करवाचैथ मेरे बुढ़ापे के लिए च्यवनप्राश हो। गजब की ठंड तिस पर महादेव की खुली जटा से गिरती गंगा मइया की मार। खुद तो शुद्ध गंगाजल में मिलाकर बूटी चढ़ा गये, मुझ भक्त के लिए बियर-शियर का प्रबंध उप्र या उत्तराखण्ड सरकार करेगी? छलछंद बहुतेरे, बिना चढ़ाए-छाने उस अलख को कैसे देखा-बखाना जाएगा अर्थात ‘याभ्यां बिना न पश्यंति’। सो भोले बाबा का स्मरण कर ‘संतन कर साथ.... खींच ली चिलम’ अब मचै तहलका।
    ये देखिए लाशों के ढेर की तस्वीरें और यह रही चिर कुंआरी युवती की इज्जती लुटी नग्न लाश। सुहागनों की अर्द्धनग्न टोली जिनको लूट लिया गया है, वह लाल घेरे में देखिए मासूम मैना जैसा चेहरा... यह भजन मण्डली के लोगों की लाशें हैं। उधर देखिए आयताकार काले वाले घेरे में और पहचानिए यह सेक्सी जोड़ा भी लाश में बदल गया। सांडों के चाल-चलन से आप अच्छी तरह वाकिफ हैं, नंदी भी बरफ के मलबे में दब गये। मुर्दा दर्शक देख सकते हैं, सामने चैकोर चमकते घेरे के भीतर लिंग.. शिवलिंग बच गया। समूचा पहाड़ी-मैदानी श्मशान तालियां पीट रहा है। मणिकर्णिका वाराणसी से मेरे साथ जुड़ रही है.... देखिए.. इस घाट पर लाशें ही लाशें प्रति घंटा सौ की रफ्तार से... नहीं... नहीं. एक सौ बीस की रफ्तार से आती हैं। इन्हें गौर से देखिए... ये हैं राजा हरिशचंद्र के वंशजों के मालिक बादशाह डोम... हां.. बताईये.. जोर से बोलिए.. क्या 150-200 लाशें प्रति घंटा आती हैं। आपको बतातें चलें कि इसी घाट पर लाशों का आइपीएल देखकर सटोरियों ने प्रतिघंटा आने वाले मुर्दाें पर सट्टा लगा डाला। एक अखबारिये ने खोज-खबर छाप दी पहुंच गये हवालात में... सूं... सूं.. और लिखों मुर्दाें की खबर, जिंदा आदमी निगलकर।
    मंुबई से जिया का मुर्दाें को सलाम कुबूल हो। जिंदा रही तो ‘निःशब्द’ रही, अब शब्दों को नहीं मेरी जीरो फिगर देखिए..  ये देखिए प्लास्टिक के पाइप से हीरो ने मुझे नहला दिया। गौर से देखिए, विदआउट पैंटी ड्रेसअप में और ये सीढि़यों से नीचे आती मेरी नंगी.. छरहरी लातें (टांगे)। यही वह कमरा है जहां अभिनेत्री जिया ने पहली बार अपने प्रेमी के साथ जमकर पी थी.. गुलछर्रे उड़ाए थे और यहीं फांसी पर लटक गई। यह रहा वो फंदा... कितना मजबूत हैं.. इसी ने ली आपकी जिया की जान।
    संस्कारों को जीने वाला है, यह देश यहां भारतीय परिवारों को परम्परा की, उत्सवप्रियता की चिंता हमेशा तंदरूस्त रखती है, जैसे तंदरूस्ती की रक्षा करता है लाइफब्वाय, साबुन के विज्ञापन में नहाता स्वस्थ बालक। उसी तरह मृत्यु को भी उत्सव के पंडाल में ‘सीताराम’ की कथा से लेकर ‘मै तो सबकुछ छोड़-छाड़ के चली अपने सलीम गली’ के लाइव प्रसारण की ‘साधना’ में बदल दिया है। प्रियंका चोपड़ा के पिता मरे तो टीवी पर भजन... न.. काॅफी शाॅप में तब्दील हाॅल में उनकी नई अलबम के गाने....! मुंबई में ही मेरे एक रिश्तेदार की मृत्य पर मैं नहीं जा सका था। हाल ही में गया तो शोक संवेदना प्रकट करने उनके आवास पर भी गया। वहां दुःख के अवशेष एलसीडी में (वीडियो रिकार्डिंग) देखने को मिले। लाखों खर्च हुए तब जाकर विद्युत शवदाह गृह के अन्दर जाती लाश..., चार फूल छाती पर धरे सफेद... झक्क सफेद कफ़न में समायी फूले चेहरे वाली लाश की शूटिंग हो सकी थी। ऐसा शोक में डूबे पुत्रों ने बताया था।
    सियासी तम्बुओं में गांधी, अम्बेडकर, लोहिया और श्रीराम की लाशें हैं, तो हिन्दी साहित्य वालों के पास प्रेमचन्द की लाश है। हिन्दी पत्रकारिता के सभागारों में पराड़कर जी/गणेश शंकर विद्यार्थी की लाशें हैं। नई की तलाश जारी है... क्योंकि किसको मारें? यह तय करने के लिए प्रगतिशील लेखक संघ में बड़ा घमासान है। माफ कीजिएगा, लखनऊ से ऐश धमका रही है कि उसकी लाश को भूलने की जुर्रत कैसे की..? सारी हेकड़ी भुला दूंगी... मालूम है तुम्हें...? साॅरी... साॅरी... ये देखिए पिछली सरकार के कीमती हीरे की सियाह लाश। मरा दिल्ली से एसी गाड़ी में आया था। लाल त्रिकोण में देखिए शरीर काला पड़ गया है... अन्तिम दर्शन... खर... खरर... खर्र... लगता है सम्बन्ध टूट गया। सम्बन्धों का क्या कभी भी फुर्र हो जाते हैं। अगला कार्यक्रम है अगोत्रियों के हाथों दाह-संस्कार का चित्रहार... देखिए।

अ से अपमान और अ...आ से .................?

पिछले दिनों अखबार की सुर्खियां सियासतदानों के अपमान से लाल-नीली और पड़ोसी मुल्कों की बदगुमानी से सियाह होती रहीं। सबसे ज्यादह हल्ला सूबे के मंत्री आजम खां के अमरीकी अपमान को लेकर मचा। मायावती की कर्नाटक तलाशी की चीख-पुकार राजनीति के कटरे में दलित हो गई। देश का अपमान, देशवासियों की बेइज्जती खबर जरूर बनीं लेकिन सिर्फ अखबार बेचने के लिए, टीवी के न्यूज चैनलों की टीआरपी बरकरार रखने के लिए और सियासीदलों का सारा वक्त 2014 की लोकसभा के भीतर अपनी-अपनी कुर्सियांे की गिनती करने में जा रहा है। यहीं सवाल उठता है कि रोज-रोज अपमानित होने वाला आदमी कहां अपना बयान दें? कहां अपना विरोध दर्ज करायें? उससे पहले यह भी सवाल उठता है कि आदमी की जाति क्या है? क्योंकि ‘वोट’ तो जातियों के खेमे में हैं।
    जातियों के कबीले से अलग खड़े आदमी का सबसे अहम् सवाल है कि यह देश किसका है? सरबजीत का या आजम खां का या फिर मायावती का, निर्भया या गुडि़या का? देश की सीमा पर मर मिटनेवाले जांबाज सैनिकों का, आखिर किसका है यह देश? सवा लाख कम सवा सौ करोड़ की आबादी जिन्दा रहने के लिए अपनी हर सांस का कर (टैक्स) चुकाते हुए कदम-कदम पर बेइज्जत होते हुए भी इन सवालों का जवाब क्यों नहीं पाती। आदमी को बीच सड़क पर पुलिस का मामूली सिपाही बेवजह थप्पड़ मारकर जलील कर देता है। रेल के कूपे में रिश्वत न देने पर टी.सी. चलती रेलगाड़ी से आदमी को धक्का दे देता है। यही नहीं हिजड़े तक सारेआम शरीफ आदमी के कपड़े उतार लेते हैं।
    आगरा मंें पिछले दिनों रूनकता इलाके में शराब के नशे में धुत 5-6 लफंगों ने 40 साल के मोहन सिंह जो पेशे से मजदूर हैं, को रात आठ-साढे बजे न केवल मारा-पीटा व लूटा बल्कि उसे नंगा करके उसकी गुदाद्वार के जरिए कोल्ड ड्रिंक की बोतल उसके पेट में डाल दी। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं। इसके आगे उप्र के मंत्री और खुशफहमी में गाफिल कद्दावर मुसलमान नेता आजम खां के रामपुर में सांसद जयाप्रदा को उनके कार्यालय में घुसकर एक सरकारी कारिन्दा अपमानित करता है, अखबारों में बहुत कुछ छपता है, लेकिन मंत्री जी (जो कभी सांसद के मुंहबोले भाई थे) खामोश रहे। राजधानी लखनऊ के हवाई अड्डे पर नवाब सैफ अली खां (फिल्म अभिनेता) को वहीं के एक मामूली कर्मचारी ने खचाखच भरे यात्रीकक्ष में अपमानित कर दिया, कहीं कोई मुसलमान आवाज नहीं बुलंद हुईं? सैफ अली इसी हिन्दुस्तान के राजवाड़ों में से एक के वारिस होने के साथ कलाकार भी हैं। इसी लखनऊ में गौतमबुद्ध की मूर्ति तोड़ दी गई, अपमान के विरोध की पिपहरी भी नहीं बजी? लखनऊ के इंदिरानगर के संवासनीगृह में अमानवीय व्यवहार के चलते कई लड़कियां भाग निकली, बलात्कार पीडि़ताओं और शोहदों की शिकार लड़कियों को सरेआम पुलिस धमकाती, धकियाती रहीं और मुसलमान, दलित राजनीति खामोश रही? देश में हजारों हजार मुसलमान लापता हैं। इनमें अधिकतर इंजीनियर या तकनीशियन हैं। दो करोड़ से अधिक अनाथ बच्चे देश की सड़कों पर भटक रहे हैं। इनका पुरसाहाल है कोई? पाकिस्तान मानवाधिकार परिषद के मुताबिक पाकिस्तान में हर दिन 20-25 हिन्दुस्तानी लड़कियों को अगवा कर उनके साथ ज्यादती होती है और सऊदी अरब व उसके अगल-बगल के देशों में हिन्दुस्तानियों को रोज जिल्लत का शिकार होना पड़ता है, तब देश का अपमान नहीं होता?
    जिस मुसलमान की दुहाई दी जाती है, उसी की पाक किताब कऱ्ुआन शरीफ़ के सूरः लुक्मान 31 (पेज683) की आयतें 17, 18, 19 में आलिम हकीम लुकमान की अपने बेटे को दी गई नसीहत दर्ज हैं, ‘ऐ बेटा, नमाज कायम रख और भली बात सिखला और बुरी बातों से मना कर और जो कुछ तुझ पर आ पड़े उसे (सब्र से) झेल, बेशक यह (बड़ी) हिम्मत का काम है (17) और (घमण्ड में आकार) लोगों से बेरूखी न करना और जमीन पर इतराकर न चल। बेशक अल्लाह किसी इतराने वाले (और अपनी) बड़ाई हाँकने वाले को पसंद नहीं करता (18) और बीच की चाल चल और अपनी आवाज नीची रख। बेशक बुरी से बुरी (आवाज) गधों की आवाज है। (19) इससे आगे सूरतुः साद 38 (पेज 751) की आयत 26 में फर्माया है, ‘ऐ दाऊद! हमने तुझे मुल्क में नायब बनाया तो लोगों में इन्साफ के साथ हुकूमत कर और (अपनी) मनमानी ख्वाहिश पर न चल, (ऐसा करेगा) तो (इन्द्रियों की इच्छाओं की पैरवी) तुझे अल्लाह की राह से भटका देगी। जो लोग अल्लाह की राह से भटकते हैं उनको सख्त अजाब होना हैं इसलिए कि (कियामत के) हिसाबवाले दिन को भूल गये हैं। क्या इन हिदायतों पर मंत्री आजम खां खरे उतरते हैं? अगर नहीं तो क्या वे सच्चे मुसलमान कहे जा सकते हैं?
    इन सारे सवालों से इतर और सियासत के मोहल्ले से बाहर निकलकर एक अहम् बात और बचपन में हमने पहली जमात के पाठ में अ से अमरूद पढ़ा था, उसकी मिठास भूल कर अ से अपमान और अहंकार का पाठ क्यों पढ़ाने पर वाजिद हैं काबिल नायब? हां! अमरीकी अपमान के हल्ले-गुल्ले के बीच घूमने-फिरने और गुलछर्रे उड़ाने में कहीं कोई चूक नहीं हुई? वापसी के बाद फिर दक्षिणी अफ्रीका की यात्रा पर क्या तीर्थ करने गये? हालांकि वहां भी चार्टेड विमान को रक्षा क्षेत्र के सैन्य हवाई अड्डे वाटरक्लूफ पर उतारे जाने को लेकर बवाल मच गया है और मेजबान गुप्ता परिवार व उसके बेहदकरीबी राष्ट्रपति जैकब जूमा सांसत में आ गये हैं।
    और आदमी से ‘दाऊद’ होने की गफलत क्या सोंचती हैं, देखिए बल्गारिया के कवि गियो मिलोव की इन लाइनों में -
आओ, छाती में बम लेकर
आसमान पर कब्जा करें।
खुदा को उसके तख्त से उतारें
और नीचे सितारों से सूनी
धरती की खाई में पटक दें
अपने हाथ आसमान के ऊँचे
पुल पर ले जायें
और रस्सियों से बांधकर
बहिश्त को धरती पर ले आयें।